Wednesday 11 March 2020

बदलते  परिवेश ( गतांक से आगे )

धुँधलकों का संसार वार्धक्य की विरासत होती है ,कभी लगता है धुंधलका साफ़ हो रहा है| तो  अगले ही क्षण ऐसा लगने लगता है कि विस्मृति की एक गहरी परत यादों को स्पष्ट नहीं होने देती | मेरे दूसरे पुत्र दिवंगत मेजर संजय कुमार अवस्थी के सम्बन्ध में किसी विवेचक चर्चा  से मैं अब तक बचता रहा हूँ | | उनका असमय निधन मैं और मेरी पत्नी के लिये सबसे हृदय विदारक  घटना थी | काफी समय तक तो मैं अपना मानसिक सन्तुलन ही स्थापित नहीं कर सका  था | मेरी अन्तस चेतना में विच्छिप्ति की एक अद्रश्य धारा बहती रहती थी अब लगभग 2 - 2 1 /2  वर्ष बीत जानें के बाद कुछ स्मृतियाँ आकार लेती दिखायी पड़ने लगी हैं | अपनी स्नातक उपाधि के शिक्षण काल में संजय ने उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त कर ली थीं | पढ़ाई लिखायी के क्षेत्र में वे सामान्य से कुछ थोड़ी बहुत अधिक प्रतिभा का ही प्रदर्शन कर सके थे पर स्पोर्ट्स के क्षेत्र में और मंचीय उपलब्धियों के क्षेत्र में उन्हें विश्वविद्यालीय ख्याति मिल चुकी थी | वे अपने वजन में यूनिवर्सिटी के वेट लिफ्टिंग चैम्पियन थे और साथ ही साथ बॉक्सिंग चैम्पियन भी थे | मंच पर उनकी गणना प्रभावशाली वक्ताओं में होती थे और नाटक के क्षेत्र में भी उनकी अदाकारी सराही जाती थी | कला स्नातक हो जानें पर मैं उन्हें सामाजिक विज्ञान के किसी विषय में परास्नातक शिक्षण के लिये भेजना चाहता था पर अपनी जिस मित्र मण्डली में वे रहते -विचरते थे उसने उन्हें क़ानून की डिग्री हासिल करने के लिये प्रतिबद्धित कर लिया | मैं जानता था कि ला क्लासेज़ में अध्ययन की गंभीरता तो थोड़ी बहुत ही होती थी पर राजनीतिक उठा पटक ने देखने परखने और भाग लेने का अच्छा मौक़ा मिल जाता था | | साथ ही मैं यह  भी जानता था कि वेट लिफ्टिंग व बॉक्सिंग की राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के कारण वे शायद ला क्लासेज में अपनी नियमित उपस्थित दर्ज न करा सकें | इधर रोहतक रेडियो स्टेशन से भी कुछ प्रोग्राम मिलने लग गये थे | बीस वर्षीय अपने इस स्वस्थ सुशोभन तरुणपुत्र को अपने जीवन का मार्ग चुनने के लिये स्वतन्त्र छोड़ दिया | उनकी मित्र मण्डली के तरुणों के सनद के नाम मुझे याद नहीं हैं पर उनके पुकारे जानें वाले नाम अब तक भलीभांति याद हैं
| उनमें तोता था ,उनमें लाफा था ,उनमें कालीचरन था ,उनमें अंशू था ,उनमें निक्की था  और भेंगा भी था और भी न जानें कितने पढ़े लिखे लेकिन दुस्साहसी नवयुवक उनकी मण्डली में थे \ उपस्थित का प्रतिशत कम  होने के कारण वे एक वर्ष ला के इम्तहान में बैठ नहीं पाये पर आखिरकार शायद मेरे सम्मान का ध्यान रखते हुये उन्होंने तीन वर्ष का ला कोर्स चार वर्ष में प्राप्त कर लिया  और सम्भवतः  उनके प्राप्तांक भी औसत से कुछ अधिक ही थे \ स्पोर्ट्स के चैम्पियन होने के नाते उनका मन भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त करनें की ओर झुकने लगा \ हरियाणा राज्य में सिविल सर्विसेज का उतना महत्व नहीं है जितना कि भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त कर लेने का | सम्भवतः पंजाब में भी कुछ ऐसी ही प्रकृति है यही कारण है कि पंजाब और हरियाणा भारतीय सेना का भाग बनकर उभरे हैं  और इन राज्यों की संपन्नता में भी भारतीय सेना के सेवा के दौरान पायी गयी निपुणता की झलक दिखायी  पड़ती है |   चूँकि एन० डी  ० ए ० में जानें का समय बीत चुका था  इसलिये चि ० संजय ने शार्ट सर्विस कमीशन लेने का निर्णय किया | अपने प्रथम प्रयास में ही वह लिखित परीक्षा  उत्तीर्ण कर गये और शारीरिक क्षमता तो उनमें थी ही इसलिये शारीरिक शक्ति परीक्षा में  उन्होंने बाजी मार ली || क़ानून के स्नातक होने के नाते उन्हें मनोविज्ञान का इतना ज्ञान हो गया था कि साइक्लोजिकल टेस्ट भी उन्होंने पास कर लिया पर अन्त में एक अड़चन आड़े आ गयी | मेडिकल परीक्षा में  उन्हें पूर्ण पूर्ण सफलता नहीं मिली | शायद ब्लड प्रेशर की कोई समस्या थी | उन्होंने अपील की और उन्हें अम्बाला में मेडिकल बोर्ड के सामने पेश होने को कहा गया | सौभाग्य से बोर्ड ने उन्हें हरी झण्डी दिखा दी और वे मद्रास के आफीसर ट्रेनिंग सेन्टर में जानें के लिये सन्नद्ध हो गये | तैयारियां पूरी हो जानें के बाद माता पिता का आशीर्वाद लेकर वे कुछ मित्रों के साथ उनकी गाड़ी में दिल्ली एयरपोर्ट के लिये रवाना हो गये | मैनें सोचा प्रभु ने मेरे ऊपर  अत्यन्त कृपा की है | बड़ा पुत्र बैंक में लग ही चुका था |  अब मेरा दूसरा पुत्र भी राष्ट्रपति से कमीशन लेकर परिवार  के गौरव को अक्षुण रखेगा | हम दोनों हर्ष के  साथ दिन भर बात -चीत करते रहे  और शाम का धुँधलका उतरने लगा | ठीक इसी समय बाहर एक स्कूटर आकर खड़ा हुआ और उससे एक गौर वर्ण का लम्बा  नवयुवक  उतारकर कर घर के फाटक पर खड़ा होकर अन्दर आनें  की इजाजत  मांगनें लगा | उस युवक के सुशोभन व्यक्तित्व ने मुझे प्रभावित किया  और मैनें उसे अन्दर आने को कहा | अन्दर आकर उसने मेरे चरण स्पर्श किये और उसने पूछा कि उसकी छोटी बहन गीता  कहाँ है ? मैं भौचक्का रह गया  क्योंकि मैं गीता के विषय  में कुछ जानता ही नहीं था | मैनें पूछा कि गीता कौन है ? और मैं तो उसे जानता ही नहीं हूँ  और न मैनें कभी उसे संजय के साथ देखा | तो उसने बताया कि गीता उसकी छोटी बहन है और यूनिवर्सिटी में एम ० एड ०  कर रही है  और वह संजय के प्रशंसकों में है और संजय की मित्र मण्डली भी उसे जानती है | मैनें उससे कहा कि मैं गीता के  विषय में कुछ नहीं जानता  और अगर वह दिल्ली संजय को सी आफ करने यानि विदा देने गयी है तो संजय ने मुझे उस विषय में कुछ नहीं बताया | मैनें उस युवक से घर और व्यवसाय के विषय में पूछा तो उसने बताया कि रेलवे रोड पर उसका घर है | वे लोग पांच भाई हैं | वह स्वयं परास्नातक है और बी ० एस ० एन ० एल ०  में एकाउंटेंट है | उसके सभी भाई पढ़े लिखे हैं | उसके पिता घड़ियों के प्रसिद्ध कारीगर हैं  और उसके भाइयों की झझ्झर रोड पर दुकानें हैं | उसके सारे भाई ड्राइव कर लेते हैं और उसका परिवार रोहतक के पण्डितों  के एक सम्भ्रान्त परिवार के रूप में जाना जाता है | मैनें उसे चाय -पानी आदि के विषय में पूछ कर विदा दी और  कहा कि जब गीता का पता  जाये तो मुझे आकर बता दे क्योंकि मैं भीतर से चिन्ता ग्रस्त हो उठा था | सौभाग्य से अगले दिन वह अपनी गाड़ी में अपने एक भाई के साथ आया और मुझे बता गया कि उसकी छोटी बहन गीता दिल्ली में अपनी बुआ के पास है और चिन्ता की कोई बात नहीं है | संसार का इतिहास निरन्तर परिवर्तन की राह चलता रहता है | व्यक्ति के जीवन का इतिहास भी न जानें कितने अनजान कारणों से अनेकानेक मोड़ लेता रहता है | मैं जानता था  कि संजय के अनेक गुणों में एकाध दुर्गुण भी है | मदिरा सेवन और खुमारी में लापरवाही करना उन्हें कहीं प्रशिक्षण के दौरान पीछे न ढकेल दे  कुछ हुआ भी ऐसा ही एक साल का कोर्स लगभग ड़ेढ़ साल में पूरा हुआ  पर आखिर में उन्हें भारत के राष्ट्रपति का कमीशन मिल ही गया  और वहां भी उन्होंने अच्छी रैंक हासिल की | इस बीच में उनकी रुपये पैसे सम्बन्धी हर मांगें जोड़ -तोड़ कर पूरी करता रहा | | उस समय प्रशिक्षण का खर्चा सरकार नहीं उठाती थी | और उनका मद्रास का यह ट्रेनिंग कोर्स मेरे  ऊपर एक काफी बड़ा बोझ छोड़ गया | बाद में शायद रक्षा मंत्रालय ने क़ानून बनाकर प्रशिक्षण का खर्चा वापस कर दिया पर उसका जो भी उपयोग हुआ हो उसे संजय ही जानते होंगें | अब हमारे परिवार में एक कमीशन्ड आफीसर था और हम जानते थे कि वह शीघ्र ही लेफ्टीनेन्ट से कप्तान बन जायेगा | हष्ट - पुष्ट  शरीर ,एक लम्बा जवान जिसका पिता व बड़ा भाई ऊँची नौकरियों में थे इज्जतदार लड़कियों के लिये एक चहेता वर था  पर संजय ने शायद अपने जीवन साथी का चयन कर ही लिया था और वह चयन गीता पर ही आ टिका था | इसका पता मुझे बाद में लगा पर अभी इस अनकही कहानी के बहुत से अछूते पहलू हैं | स्मृति की छेनी  से मैं धीरे -धीरे विस्मृति की परतें कुंदेर रहा हूँ | ज्यों -ज्यों द्रश्य उज्वल होता जायेगा वैसे   ही मैं शब्दों में उसे परसीमित करने का प्रयास करूंगा | 65 साल की डा ० उज्ज्वला शर्मा को अपने पुराने प्यार को पाने में लगभग पूरे अपने जीवन काल का समय लग गया  तो प्यार की कहानी न जानें कितने अनगिनत मोड़ लेकर चलती रहती है और अब मैं एक ऐसे ही मोड पर आ खड़ा हुआ हूँ | उस दिन सुबह से शाम तक बादल बरसते रहे थे | शाम के धुंधलके में एक किशोर के साथ एक तरुणीं मेरे द्वार पर आयी और उसने अन्दर आकर मुझसे कुछ बात करनी चाही उसने बताया कि वह एम ० एड ० की छात्रा है | पहली नजर में मुझे लगा कि वह किसी कुलीन और मर्यादित कुल की पुत्री है | उसने कहा कि प्रोफ़ेसर साहब ----------------------

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