Tuesday, 26 November 2019

                                                                                   ह्रदय परिवर्तन

                    जबसे नारी अधिकारों की बात जोर -शोर पकड़ने लगी है रम्मो भी संवरिया से अक्सर झगड़ा कर बैठती है। झझ्झर में बहादुर गढ़ को जोड़ने वाली सड़क अब छह लेन की सड़क बनायी जायेगी। ठेका मनफूल सिंह को मिला है। उनका एक साथी उड़ीसा में किसी कोयले की कम्पनी का मैनेजेर है वह वहाँ से २० -२५ मजदूर ,मजदूरनियों की टोली जैसा काम हो वैसी एक मुश्त बोली देकर बाँध लेता है। काम कितने मजदूर कितने दिन में कर लेंगे इसका अन्दाजा मनफूल सिंह को इन्जीनियरों से मिल जाता है। वह उड़ीसा में अपने दोस्त को फोन कर देता है और मजदूर ठेके पर आ जाते हैं। आप पूछेंगे कि रम्मों और संवरिया की लड़ाई का ठेके से क्या सम्बन्ध है। अरे भाई सम्बन्ध है तभी तो कहानी लिखी जा रही है। बात यह है कि खर्चे के लिये ठेकेदार हर हफ्ते मजदूरों को कुछ पैसे दे देता है अब चूंकि रम्मों संवरिया की घरवाली है इसलिये वह दोनों की मजदूरी हिसाब लगाकर संवरिया को दे देता है । ठेका लगभग साल भर का है। रम्मों की गोद में एक -डेढ़ साल का एक बेटा भी है। बेटे को दूध पिलाकर वह गर्मी के दिनों में किसी पेंड़ के नीचे छांह में एक पुराना कपड़ा बिछाकर सुला देती है। सर्दी के मौसम में बच्चे को धूप में लिटा देती है। जगने पर बच्चा कीचड़ ,मिट्टी और कंकडों से खेलता रहता है। घण्टे दो घण्टे बाद रम्मों उसे देख जाती है। हफ्ते दो हफ्ते तो ऐसा चलता रहा पर तीसरे हफ्ते ठेकेदार नें संवरिया को तो पूरी मजदूरी दी पर रम्मों की मजदूरी आधी कर दी पूंछने पर उसने बताया कि आधी इसलिये की गयी है कि रम्मों तो आधा समय तो दूध पिलाने और खेल खिलाने में लगा देती है। संवरिया नें उसकी इस बात को मान लिया और ठेकेदार से कोई बहस नहीं की पर जब संवरिया नें रम्मों को यह बात बतायी तो रम्मों संवरिया से झगड़ बैठी। संवरिया बोला -इसमें झगड़े की क्या बात है फैसला तो ठीक है जब आधा काम किया तो आधे पैसे मिलेंगें।
रम्मों :-आधा काम कैसे ?बच्चे को दूध तो पिलाना ही पड़ेगा। सरकार भी बच्चा होने पर ६  महीने की छुट्टी तनख्वाह के साथ देती है। अब अगर हम दोनों के पास छोटा बच्चा है और उसकी देख -रेख में कुछ समय लग जाय तो क्या कोई पगार काट लेता है ? तुम ठेकेदार से कहो कि वह पूरे पैसे दे नहीं तो हमें काम की कोई कमीं नहीं है। और कहीं देख लेंगें।
                     सवरियां के आगे एक समस्या आ खड़ी हुयी। वह ठेकेदार की बात मान गया था पर अब बहस करेगा तो ठेकेदार का दिमाग गर्म हो जायेगा पर रम्मों की जिद्द के आगे उसकी एक न चली। रम्मों रात में रेडियो पर हर रोज ख़बरें सुनती थी। कई बार उसने सुना था कि स्त्री को पुरुष के बराबर ही अधिकार है और दोनों में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिये और फिर वह संवरिया से कोई कम काम तो नहीं करती।  कितनी बार संवरिया बीड़ी पीता है और गपशप में लगा रहता है। वह तो बच्चे के अलावा और कोई समय खराब ही नहीं करती। काम में लगी रहती है। सवरियां नें ठेकेदार मनफूल सिंह से यह बात कही।
मनफूल सिंह :-तू अजीब आदमी है। पहले पूरी रजामन्दी से बात मान ली अब एक पंगा खड़ा कर रहा है।
संवरिया :-मैं तो मान गया पर वह तो नहीं मानती। कहती है सरकार आदमी औरत की मजदूरी में कोई फर्क डालना नहीं चाहती अगर मजदूरनी के पास छोटा बच्चा है और उसकी देख -रेख में थोड़ा बहुत टाइम लग जाता है तो ठेकेदार उसके पैसे नहीं काट सकता है। तुम चाहो तो रम्मो से खुद बात कर लो मुझे कोई एतराज नहीं है।
मनफूल सिंह अधेड़ होकर बुजुर्गी की ओर बढ़ रहे थे। उन्होंने उन दिनों में ठेकेदारी शुरू की थी जब औरत की मजदूरी आदमी से आधी थी। फिर आधे से बढ़कर तीन चौथाई पर आ गयी और अब तीन चौथायी से बढ़कर बराबर हो गयी। अब एक नया सिरदर्द यह शुरू हो गया कि अगर छोटा बच्चा है तो उसके  ऊपर देख रेख में लगने वाला टाइम भी मजदूरी में शामिल किया जाय उनकी समझ में सरकार की सोच लंगड़ी दिखायी पड़ी उन्होंने फैसला किया कि वह रम्मों से बातचीत करेंगें। इन्हीं दिनों वाशिंगटन D.G.के एक अनुसन्धान संस्थान नें जो अंतरराष्ट्रीय खाद्य उपलब्धता पर नजर रखता है एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट यह थी कि पाँच वर्ष के  नीचे के बच्चों में बुखमरी की द्रष्टि  से कौन देश कहाँ खड़ा है। रिपोर्ट में चार श्रेणियाँ रखीं  गयीं थीं। भुखमरी किस स्तर की है। इसके लिये (1) Moderate,(2) Serious (3) Alarming (4) External alarming  एशिया महाद्वीप में बँगला देश को छोड़कर और सभी देश भारत से ऊँचाई पर खड़े हैं। केवल बँगला देश भारत से एक श्रेणी नीचे है। चीन नम्बर 9 पर है ,पाकिस्तान 5 9 नम्बर पर है , नेपाल 5 6 वें नम्बर पर है और भारत, अफ्रीका के कितने ही लडखडाती अर्थव्यवस्था वाले देशों से नीचे के रैंक पर उदाहरण के लिये गिनी ,बिसाऊ ,टोंगो ,उटकीना ,फैसो ,सूडान ,खांडा और जिम्बाबे जैसे लडखडाते देश उसके ऊपर खड़े हैं। यह रिसर्च इस बात को लेकर की गयी थी कि पांच वर्ष के कितने बच्चे भुखमरी से मर जाते हैं या बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं या अपन्ग हो जाते हैं। अमरीका से की गयी इस सामाजिक रिसर्च के निष्कर्षों को भारत के रेडियो और टेलीविजन पर भी प्रसारित  किया गया था और अखबारों में भी पीछे के पन्नों में दबी -दबी सूचना  दे दी गयी थी पर कुछ अच्छे सोशल साइन्सेस के स्कूलों में इस रिपोर्ट पर विस्तृत चर्चा हुयी थी और इस सम्बन्ध में केन्द्र की सरकार को कुछ सुझाव भेजे गये थे। मनफूल सिंह इन ख़बरों से सदैव दूर रहते थे। पर उनकी छोटी बेटी जो शोसल साइन्सेस में भारत की गरीबी पर रिसर्च कर रही थी इस प्रकार की ख़बरों से अपनी रिसर्च के लिये कोई न कोई सामग्री जुटाती रहती थी। उस शाम काम ख़त्म होने के बाद जब राम्मों बच्चे को उठाकर संवरिया के साथ तम्बूनुमा घर में जाने को हुयी तो मनफूल सिंह नें उनको अपने पास बुलाकर रम्मों से पूंछा कि वह खाहमखांह की शिकायत क्यों कर रही है ? जितना काम करेगी उतना ही तो पैसा मिलेगा। रम्मों ने ठेकेदार से कहा कि वह पूरा काम करती है और उसे पूरा पैसा मिलना चाहिये। अगर कोई शक है तो सबका काम अलग -अलग कर दिया जाये ,वह अपना काम करके दिखायेगी फिर अपने बच्चे की ओर देख कर कहा इसका पेट भी भरूँगी और अपना काम भी करूँगी फिर आसमान की ओर देखकर कहा हे भगवान कैसी आजादी है किसी का बच्चा भूँखों मर जाय पर पाँच सात मिनट काम में हर्ज न हो और किसी के बच्चे इतना दूध पावें कि पोंकने लगें। बच्चे तो भगवान की मूरत होते हैं। पूरा खाना ,खेलना और आराम तो मिलना चाहिये। मनफूल सिंह नें रम्मों की ओर ताज्जुब से देखा उन्हें लगा कि अब औरतों में कुछ फर्क आ गया है। मजदूरनी भी बड़े -बड़े सवाल खड़े करने लगीं हैं। अरे भाई जिसके होगा उसके बच्चे खायेंगे जिसके नहीं होगा उसके बच्चे रोयेंगे। कोई क्या करे ? अब अगर कोई बच्चा बीमारी या कमजोरी से मर जाय तो हम इसमें क्या कर सकते हैं। मनफूल सिंह ने सोचा अगले हफ्ते फिर से वह मजदूरी देते समय रम्मों की टीका टिप्पणी पर ध्यान देंगें और यदि चुप न हुयी तो और कहीं काम देख ले। ठेकेदार साहब जब  घर पहुँचे और खाने की मेज पर परिवार के सब लोग इकठ्ठे हुये तो उनकी छोटी बेटी नें उनको बताया कि शोसल साइंस की रिसर्च के काम में उसे एक चार्ट भरना है। इस चार्ट में सड़क बनाने के काम में लगे मजदूर परिवारों के पाँच वर्ष से छोटे बच्चे के खान-पान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न तालिकायें भरनी हैं। इसके लिये उसे काम करती और बच्चे पालती मजदूरनियों से सम्पर्क साधना होगा वह जानती थी कि उसके पिता के सड़क बनाने के ठेके में भी बीसों मजदूर परिवार हैं। उसने पिताजी से कहा कि अगले दिन काम पर लगी मजदूरनियों के बीच वह स्वयं जायेगी और उनसे जो उत्तर मिलेंगें उन्हें प्रश्न तालिका में भरकर प्रोजेक्ट को पूरा करेगी। रिसर्च के लिए फील्ड वर्क जरूरी है। छोटी बेटी सुधा की इस बात को मनफूल सिंह को बेचैन कर दिया। सुधा से बातचीत के दौरान अगर रम्मों नें उसे बता दिया कि उसे आधी मजदूरी दी जा रही है क्योंकि वह अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिये सड़क के काम में से कुछ समय निकाल लेती है तो एक तरह से उनकी बदनामी हो जायेगी। उन्होंने सुधा से पूंछा कि तुम जो पढ़ाई -लिखायी कर रही हो उससे क्या गरीब मजदूरनियों को कोई फायदा हो सकेगा। सुधा नयी चेतना से संपन्न लड़की थी। उसने अपने माता -पिता को कई बार यह बात कही थी कि पैसा कमाने के लिये उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिये जो गरीबों के जीवन को और अधिक दुखदायी बना दे। पैसे की अधिकता तृष्णा बन जाती है और जब आदमी अपनी मानवीय संवेदना खो देता है तो उसे देश के भविष्य की चिन्ता नहीं रहती। सुधा नें अपने पिता को बताया कि भारत की केन्द्रीय सरकार एक ऐसी योजना बना रही है उन सब माताओं को जिनके बच्चे पाँच वर्ष से छोटे हैं सेवा केन्द्रों में नि :शुल्क पौष्टिक आहार दिया जाय। यदि मातायें स्वस्थ होंगीं तो प्रारम्भ के दो तीन वर्ष उनके स्तन पान करके भारत की तरुणाई स्वस्थ बनकर निकलेगी। और बच्चे के कुछ बड़ा होने पर सरकार की अतिरिक्त सहायता से दूध के अतिरिक्त कुछ और पौष्टिक उपलब्ध कराया जायेगा। भारत वर्ष के लगभग 40  प्रतिशत बच्चे  Under Weight होते हैं। पाँच वर्ष से नीचे बच्चो की म्रत्यु दर भी भारत में सबसे अधिक है। स्वास्थ्य विज्ञान कहता है कि यदि पाँच वर्ष तक बच्चे को सन्तुलित आहार मिल जाय तो भविष्य में उसके स्वास्थ्य की मजबूत नींव पड़ जाती है और यदि ऐसा नहीं होता तो आधे पेट रहने वाले बच्चे जी जाने पर भी जीवन का आनन्द नहीं उठा पाते। हमारा देश इन दिनों 8 -9  प्रतिशत की सालाना आर्थिक विकास दर से बढ़ रहा है विश्व में चीन के बाद यह सबसे बड़ी आर्थिक प्रगति है। अमरीका की आर्थिक प्रगति तो 2 -3 प्रतिशत ही है और यही हाल योरोप के विकसित कहे जाने वाले देशों का है। भारत वर्ष के कितने ही खरबपति अब संसार के सबसे धनी आदमियों में शामिल हो गये हैं। माना जाने लगा है कि मुकेश और अनिल अम्बानी मिलकर विश्व के किसी भी अमीर से आगे निकल जाते हैं। अकेले मुकेश की ही सम्पत्ति अमरीका के बिलगेट्स को पछाड़ रही है। मध्यम वर्ग में भी काफी सम्पन्नत : आ गयी है। सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाहें इतनी बढ़ गयीं हैं कि वे आराम का जीवन बिता सकें। इतना धन होते हुये भी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग भारत के विकास का लाभ नहीं पा रहें हैं और करोड़ों तो ऐसे हैं कि जो अपने बच्चों को दूध तक नहीं दे सकते ऐसा इसलिए है कि इनकी माताओं के स्तन में खुराक के अभाव में पूरा दूध बन ही नहीं पाता फिर उसने अपने पिताजी से कहा कि भारत वासी अपने छोटे से स्वार्थ के लिये देश के भविष्य को दाँव पर लगा देते हैं। अगर हमारी नयी पीढ़ी स्वस्थ्य बनकर नहीं उभरती तो आर्थिक प्रगति से आने वाली अपार सम्पदा कुछ प्रतिशत लोगों में सिमट कर सारे राष्ट्र के लिये कैंसर बन  जायेगी। पिताजी अब मेरी यह रिसर्च पूरी होने जा रही है। न जाने मेरे मन में हो रहा है कि वैभव का यह जीवन मेरी आत्मा को यानि मेरे अन्तर सुख को धीमा करता जाता है। हम जो लोग वंचित हैं उनके विषय में भी कुछ सोचना चाहिए। आप यदि सहमत हों तो मैं कुछ ठेकेदार परिवारों से सम्पर्क करके एक ऐसे सेवा केन्द्र की स्थापना करना चाहूँगी जिसमे शिशुओं और बालकों को दूध ,फलों का जूस ,पतला दलिया ,खिचड़ी और इसी प्रकार के अन्य हजम होने वाले पुष्ट भोजनों की मुफ्त व्यवस्था हो सके। चलिये इस विषय पर और इस दिशा में मेरी रिसर्च पूरी हो जाने पर सोचा जायेगा मैं जानती हूँ आप मना नहीं करेंगें। कल लगभग 11 बजे मैं अपनी दो लेडी प्रोफ़ेसर के साथ जहाँ पर अपना काम चल रहा है गाड़ी में आऊँगी। हमारी प्रोफेसर्स अमरीका के एक विश्वविद्यालय में अपने कुछ पेपर्स प्रिजेंट करेंगीं। वे चाहती हैं कि वे स्वयं अपनी आँखों से ईंट और गारा ढ़ोती मजदूरनियों का जीवन देंखें और अपने कानों से उनकी परेशानी ,उनके दुःख और उनके नारी स्वभाव सुलभ सहयोगिता के विचार सुने। मजदूरनियों का भी अपना स्वप्न संसार होता है और उनके छोटे बच्चे उनके लिये राजकुमार से कम नहीं होते। मनफूल सिंह जी यह सब सुनने के बाद न जाने क्या सोचते हुये अपने कमरे में चले गये। सुधा काफी देर तक बैठी माता जी से बातचीत करती रही।
                      अगले दिन दस बजे के आस -पास ठेकेदार मनफूल सिंह नें काम करते संवरिया को अपने पास बुलाया दो हफ़्तों से रम्मों की आधी कटी हुयी मजदूरी के पूरे पैसे संवरिया को दे दिये फिर कहा कि वह रम्मों को बुला लावे। रम्मों अपने बच्चे को दूध पिलाने में लगी थी जल्दी में अपना वक्ष आँचल से ढाकते हुये ठेकेदार के पास आयी बोली बाबूजी क्या बात है ? मनफूल सिंह नें उसकी ओर करुणापूर्ण द्रष्टि डालते हुये कहा बेटी मैंने तुम्हारी पूरी मजदूरी यानि पिछले दो महीनों की कटी हुयी रकम सवारिया को दे दी है तुम्हे अब संवरिया के बराबर मजदूरी तो मिलेगी ही साथ ही तुम दोनों के बच्चे को मैं अपना पोता मानकर पाँच वर्ष तक उसके लालन -पालन का सारा खर्च वहां करूँगा मेरी बेटी सुधा अभी तुम लोगों के बीच आने वाली है उसे मजदूरी काट लेने वाली बात मत बताना। रम्मों और संवरिया अवाक रह गये।  मनुष्य का ह्रदय भी परिवर्तन के कितने दौरों से गुजरता है। इसे सम्वेदना सम्पन्न प्रबुद्ध नर -नारी ही समझ सकते हैं।

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