Friday 29 November 2019

         मांटो स्मृति

                     एक सुबह जब मास्टर कन्हैया लाल घूम कर वापस आये तो उनके पीछे -पीछे एक देशी -विदेशी कुत्ते का पिल्ला भी घर में घुस आया | मास्टर कन्हैया लाल की पत्नी हेमलता ने उसे 'दुर -दुर  करके बाहर निकालने की कोशिश की पर वह अड़ियल पिल्ला मास्टर जी से सटा खड़ा रहा | मास्टर जी ने अपनी पत्नी को यह कहकर कि थोड़ी देर बाद यह चला जायेगा घर के काम काज में उलझा दिया | बच्चे अभी छोटे थे और हेमलता उन्हें उठाकर उनको स्कूल भेजने की तैयारी में लग गयीं | बाहर बरामदे में बैठकर मास्टर कन्हैया लाल ने अखबार की सुर्ख़ियों पर नजर डाली और 10 -15 मिनट उनमें उलझे रहे | पिलोरा  उनके पैरों के पास बैठा आँखें बन्द कर झपकी लेता रहा | 10 मिनट बाद मास्टर जी ने बाहर का गेट खोला और पिलोरे की ओर देख कर बोले , " जा भाई , मेरे पीछे क्यों चिपक रहा है मैं अब अधिक मोह माया में नहीं फंसना चाहता | पर पिलोरा था जो टकटकी लगाकर उनकी  ओर देखता रहा ,पूँछ हिलाता रहा और उनके पैरों के पास खड़े -खड़े किसी अतिन्द्रीय सुख में डूब सा गया | आखिरकार मास्टर जी ने हारकर गेट बन्द कर लिया | बोले ,"अगर नहीं जाता तो लात मारकर नहीं निकालूँगा ,पर हेमा तुझे घर में नहीं रहने देगी |"पिलोरा कुर्सी के पास तख़्त के नीचे बरामदे में जाकर लेट गया और झपकी लेने लगा | मास्टर जी अन्दर नित्य कर्म से निवृत्त होने और नाश्ता करके स्कूल जानें की तैय्यारी में लग गये | कुछ देर बाद उनकी  बड़ी बेटी रम्मो और छोटा बेटा डब्बू अपनी -अपनी यूनिफार्म पहनकर और पानी की बोतल लेकर माँ के साथ गेट पर आ गये | पिलोरे ने आँखें खोली और लपककर रम्मो और डब्बू के पैरों में लोटनें लगा | हेमां गेट खोलकर स्कूल बस की प्रतीक्षा करने लगी | रम्मो और डब्बू पिलोरा के प्यार में फंस गये वे उसके सुरमई बालों पर हाँथ फिरा -फिरा कर अपने प्यार का इजहार करने लगे | जब मास्टर जी घूमकर वापस आये थे तब थोड़ा सा धुंधलका था और पिलोरे की सूरत शक्ल साफ़ नहीं दिखाई पड़ रही थी | पर अब सूरज की किरणों में चमकदार बाल लिये पिलोरे के नाक -नक्श और शरीर गठन आकर्षक से लगे | स्कूल बस आती दिखाई पडी | बच्चों ने पिलोरे से टाटा किया और बस पर जा बैठे | माँ से कहते गये कि वह लौटकर माण्टों से खेलेंगें और हिदायत दी कि पिलोरे को जिसे उन्होंने माण्टों नाम दिया था घर से बाहर न निकाला जाय | हेमलता असमंजस में पड़ गयी | मन ही मन बोली ,'नासपीटा यह पिलोरा न जानें कहाँ से पीछे लग गया |"अब मैं क्या करूँ | यह तो घर से निकलने का नाम ही नहीं लेता | अन्दर जाकर मास्टर जी से पूछा -कि उन्हें यह पिलोरा कब और कैसे मिला और वे उसे साथ -साथ क्यों ले आये ? मास्टर जी ने बताया कि जब वे सिंहपुरा की कच्ची सड़क से खेतों के बीच से निकल रहे थे तो यह पिलोरा किसी खेत में फूस के गठ्ठरों के नीचे बैठा था | वह दौड़कर उनके पीछे आ गया | और एक घण्टे से ऊपर जब तक वो घूमते रहे उनके पीछे -पीछे चलता रहा | उन्होंने कई बार उसको भग  जानें की बात कही  पर वह पीछे लगा ही रहा और आखिरकार गेट के अन्दर तक चला आया | सुबह -सुबह उन्होंने उसे मारकर भगाने की कोशिश नहीं की क्योंकि उसका प्यार और उनके प्रति उसका विश्वास उन्हें पिलोरे के प्रति नरम बनाये रहा | हेमा बोली , "  अब बोलो क्या किया जाये , रम्मो और डब्बू स्कूल जाते -जाते कह गये हैं कि पिलोरे को घर से बाहर न निकाला जाय | उन दोनों ने इसका  एक नाम भी रख दिया है मन्टो | पता नहीं किसी पाठ में यह नाम पढ़ा होगा | ज़रा सा है पर दो तीन बार मन्टो- मन्टो पुकारने पर कान खड़ा करने लगा है | ' हेमा ने मास्टर जी से मन्टो नाम का अर्थ जानना चाहा | तो मस्टर जी ने बताया कि मांटो शायद अंग्रेजी के Mount शब्द का बिगड़ा हुआ रूप है जिसका मतलब होता है चोटी | या हो सकता है मांटो अंग्रेजी के शब्द Mint से निकला हो जिसका मतलब होता है टकसाल| | हिन्दी में मांटो शायद आंटी के बिगड़े रूप अनटो से बिगड़कर मानटो  हो गया  हो | या हो सकता है कि हिन्दी के मिठ्ठ या मठ्ठा से बिगड़कर मांटो बन गया हो | लम्बी व्याख्या सुनकर हेमा ऊब गयी बोली ," अपनी मास्टरी क्लास में किया करो | मुझे सीधी साधी बात बताया करो | " मेज पर नाश्ता ज्यों ही लगा और मास्टर जी कुर्सी पर खानें के लिये बैठे वैसे ही न जानें कैसे मांटो को जो बरामदे में तख़्त के नीचे लेटा था इसकी खबर लग गयी | वह दौड़कर गैलरी से होता हुआ कमरे के द्वार पर भोली आँखों से टुक -टुक देखता हुआ पूँछ हिलानें लगा और फिर दबे पाँव आकर मास्टर जी  के पास कुर्सी के पायों के साथ चिपक कर बैठ गया | अब क्या किया जाय ? मास्टर जी ने एक बिस्कुट नीचे डाला | मांटो ने अत्यन्त श्रद्धा पूर्वक प्रसाद ग्रहण कर लिया | हेमा कमरे में आयी निगोड़े मांटो को कुर्सी की पायों के पास बैठे हुये देखा और जान गयी कि मास्टर जी नाश्ते का अच्छा खासा भाग उसे खिला देंगें | , " बोली आप अपना नाश्ता करिये मैं इसे बरामदे में ही ठीक तरह से खिला दूंगीं | | अब बच्चों के लिये इसको भी पालना  ही होगा | पर गू- मूत कौन करेगा | नाशपीटा जगह -जगह टांग उठाकर मूतेगा | मैं इसे गेट के पास ही जंजीर से बांधकर रखने का इन्तजाम करूँगीं | तुम्हें देर हो रही है ,तैयार होकर स्कूल जाओ | "मास्टर जी ने खुशगवार नज़रों से अपनी पत्नी को देखा और स्कूल जानें की तैयारी में जुट गये | हेमा ने ब्रेड के कुछ पीस सेंके ,कुछ बिस्कुट लिये और बरामदे में आकर तखत पर बैठ गयी | मांटो तखत के नीचे बैठकर उनकी ओर टुकुर -टुकुर देखने लगा | उसकी आँखों का भोलापन और मालिकिन के प्रति उसके अटूट विश्वास ने हेमा का मन जीत लिया | वह एक -एक बिस्कुट डालती रही और वह उसे खाकर दुबारा फिर याचना भरी आँखों से उसकी ओर देखता | कई ब्रेड पीस और कई बिस्कुट खाकर वह अब और डाले गये बिस्कुटों को सूंघकर छोड़ने लगा | हेमा जान गयी कि उसका पेट भर गया है और वह उसे बरामदे में छोड़कर अन्दर चली गयी | अन्दर के कमरे से उसने काठ की एक पुरानी बड़ी चौकी निकाली | फिर खोजकर उसने चौकी की साइज की पुरानी गद्दियाँ निकालीं इन दोनों को उसने गेट के पास दीवाल से लगे पक्के बार्डर पर रख दिया | फिर टीन के एक चैड़े जग में पीनें का पानी लाकर वहां रख दिया | अब बरामदे में आकर उसने हुक्म दिया ,मांटो ,मांटो उठ  जाकर उस चौकी पर जाकर सो जा | न जानें कैसे मांटो को उस भाषा की पूरी समझ आ गयी | वह उठा ,चौकी के पास गया ,सपड़ -सपड़ करके चार पांच बार पानी पिया  और फिर चौकी पर लेटकर आँखें बन्द कर लीं | हेमा को लगा कि मांटो समझदार है | यह बच्चों का एक अच्छा दोस्त साबित होगा | थोड़ा बहुत झंझट तो  है पर अब जब अपने आप आ गया है तो वह उसे नहीं निकलेगी | चौकी पर लेटा -लेटा मांटो कभी झपकी लगाता ,कभी आँखें खोलता ,कभी बरामदे के बाहर की लम्बी चौक में इधर से उधर घूमकर नयी जगह का जायजा लेता रहा | एकाध बार मालिकिन के गेट के पास आने पर वह चुपचाप आज्ञाकारी सेवक की भांति उनके पीछे खड़ा होता रहा | फिर दिन के डेढ़ बजे के करीब जब स्कूल बस गेट के पास आकर रुकी तो मांटो उछलकर गेट के पास खड़ा होकर दुम हिलानें लगा ,और कूँ -कूँ करके अपने प्यार का इजहार करने लगा |  उसे पता चल गया  कि रम्मो और डब्बू आ रहे हैं | रम्मो और डब्बू के गेट से अन्दर घुसते ही वह उनके पैरों पर लोटनें लगा | और कूँ -कूँ की आवाज करता हुआ उनसे मांग करता रहा कि वे उसकी पीठ पर हाँथ फेरें | हेमा बोली ,"अरे बेशर्म कपड़े तो बदल लेने दे फिर तू अपनी नौटंकी करना |" पर रम्मो और डब्बू अपना -अपना स्कूली बैग माँ को थमाकर मांटो से खेलने में लग गये | कभी वे उसे गोद में बिठलाते ,कभी वे उसे हांथों में उठाते और कभी उसके साथ गलियारे में दौड़ लगाते | काफी समय तक यह खेल चलता रहा ,फिर हेमां ने कपड़े बदलकर खानें के लिये आवाज लगायी तो  मांटो जान गया कि उसके भी लंच खानें का टाइम आ गया है | बच्चों ने कमरे के अन्दर के बजाय बाहर बरामदे में तखत पर खाना पसन्द किया ताकि मांटो भी उनके पास बैठा रहे | वे खानें में सभी चीजें एक तश्तरी में रखकर मांटो के पास अलग से रख आये | माँ ने कहा था कि पप्पी को मीठा नहीं खिलाना चाहिये इसलिये उन्होंने मांटो की तश्तरी में हलुआ नहीं रखा था | रम्मो और डब्बू ने खाना शुरू करके दूर बैठे मांटो से खानें के लिये कहा पर उसने सभी चीजें सूंघकर खाना शुरू नहीं किया | रम्मो ने मम्मी को बुलाकर पूछा कि मांटो खाना क्यों नहीं खाता क्या वह बीमार है | हेमा को अपने मायके में अच्छी नस्ल के कुत्तों के साथ रहने खेलने का सुअवसर मिला था | वह इन वफादार प्राणियों के स्वभाव से भली भांति परिचित थी | वह जान गयी कि मांटो क्यों खाना शुरू नहीं कर रहा है | उसने रम्मो और डब्बू को बताया कि मांटो जानता है कि उसकी तश्तरी में और सब कुछ तो है पर हलुआ नहीं रखा गया है और जब तक हलुआ उसकी तश्तरी में नहीं रखा जायेगा वह खाना शुरू नहीं करेगा | और ऐसा ही हुआ | ज्यों ही मां ने रसोई घर से लाकर थोड़ा सा हलुआ मांटो की तश्तरी में रखा उसने खाना शुरू किया | और तश्तरी की सारी चीजें चट कर गया | रम्मो और डब्बू जान गए कि मांटो के साथ पक्की दोस्ती निभानी होगी | कि उससे कुछ भी छिपाना न होगा और मांटो उनके लिये हमेशा एक वफादार दोस्त और सेवक बना रहेगा | हेमा भी जान गयी कि मांटो किसी ऊँची नस्ल का पप्पी है | वह भटककर कहीं से खेत में आ गया होगा | मांटो का नाक -नक्शा ,बाल और शरीर गठन बता रहे थे कि उसके पीछे कई अच्छी पीढ़ियों की प्रजनन प्रक्रिया रही होगी | खाना खानें के बाद मांटो अपनी चौकी पर अलसाई आँखों से बैठा था उसी समय सड़क की नाली से रेंगता हुआ एक तिलचट्टा गेट के नीचे से घुसकर भीतर आ गया | मांटो ने झपट कर उसे अपने पंजों में दबोच लिया निर्जीव तिलचट्टा गेट के पास पड़ा था पर मांटो को यह नहीं भाया | लगता था मांटो को गन्दगी कतई पसन्द नहीं | अभी वह पूरी तरीके से भौंक नहीं पाता था पर उसने हल्की भू -भू की आवाज की | हेमा अन्दर से गेट के पास आयी और मांटो मालिकिन को मरे हुये तिलचट्टे को वहां से बाहर फेंक देने की इच्छा अपने हाव -भाव से जाहिर करने लगा |
                                                 हेमा सारी बात समझ गयी और उसने झाड़ू उठाकर तिलचट्टे को गेट खोलकर बाहर सड़क पर बटोरकर फेंक दिया | मांटो फिर अपनी चौकी पर पहरेदारी करने लगा | इसी बीच भूरे बालों वाली एक बिल्ली ऊपर की रेलिंग पर दिखाई दी | मांटो ने फिर हल्की भू -भू की | हेमा ने बाहर आकर रेलिंग को पार करती हुयी बिल्ली को देखा और जान गयी कि मांटो उसको सावधान कर रहा है कि दूध यदि बाहर रखा है तो उसे फ्रिज में रख दें | हेमा को बहुत खुशी हुयी कि घर के काम -काज में मदद करने वाला एक वफादार नन्हा साथी मिल गया है | चार बजे के बाद मास्टर कन्हैया लाल जी के कदमों की आवाज गेट के पास सुनायी पडी | मांटो उछलकर खड़ा हो गया | फिर वही द्रश्य ,पैरों के पास वही लोट -पोट | मास्टर जी से अपने शरीर पर प्यार भरा हाँथ फेरने की मांग | मास्टर कन्हैया लाल जी मांटो को देखकर काफी प्रसन्न से लगे और बोले ,"अरे यार मैं तो सोचता था कि तुझे घर निकाला मिल गया होगा | पर उस्ताद निकला तू | तूने तो हेमा का मन जीत लिया | हेमा मास्टर जी के लिये चाय और बिस्कुट लायी | मांटो बाहर चौकी पर ही बैठा रहा | वह जानता था कि उसके मालिक उसे सच्चे दिल से चाहनें लगे हैं और वे उसे जरूर बिस्कुट खिलाने आयेंगें | और ऐसा ही हुआ | अभी चाय समाप्त भी नहीं हुयी थी कि बाहर से रम्मो और डब्बू दौड़ते हुये आये और बोले कि पुलिस की एक गाड़ी बाहर हमारे घर का पता पूंछकर आ रही है | रम्मो और डब्बू कुछ दोस्तों के साथ बैट -बाल खेल रहे थे उन्होंने गाड़ी के ड्राइवर को अपने घर का पता पूँछते हुये सूना | थोड़ी ही देर में पुलिस वैन में ड्राइवर के साथ डी .एस.पी. होशियार सिंह साहब आ पहुंचें | मास्टर कन्हैया लाल जी ने उन्हें आदर से बुलाकर उनसे पूछा कि उनका आना कैसे हुआ | डी.एस.पी. साहब ने बताया कि बीते कल की शाम को उनका छोटा लड़का मुकेश ड्राइवर के साथ गाड़ी में बैठकर कबड्डी का मैच देखने सिंहपुरा गया था | सिंहपुरा की कबड्डी का मैच इतना रोमांचक होता है कि खेल प्रेमी किशोरों के लिये उसके आकर्षण को रोकना बहुत कठिन साबित होता है | अपने साथ वह घर में पला हुआ एक छोटा पप्पी जिसे हमनें मांटो नाम दिया है भी लेता गया था | मांटो मेरे आला अफसर एस. पी. रूद्र प्रताप सिंह के यहां पली हुयी अच्छी नस्ल की कुतिया रानी का बेटा है | मेरे बड़े आग्रह पर उन्होंने मुझे इसे दिया था | कबड्डी का मैच देखते समय मुकेश को यह ध्यान नहीं रहा कि मांटो उनके पैरों के पास से किधर निकल गया | बाद में उसने काफी तलाश की पर हमें कुछ पता न चला | सारी रात हम लोग बेचैन रहे | हमें शक था कि कोई उसे फुसला कर उठा ले गया है | आज सुबह दिल्ली पब्लिक स्कूल में आपके बच्चों ने अपने दोस्तों से खुशी -खुशी में बताया कि उनके घर एक पप्पी आ गया है | जो पापा के पीछे -पीछे सुबह घूमने के समय चला आया | आप शायद जानते ही होंगें कि मेरी एक छोटी बेटी आपकी बेटी रम्मो के साथ फोर्थ क्लास में पढ़ती है | उसने घर आकर पप्पी की आपके घर आने की बात मेरी पत्नी को बतलायी उसे ही लेने मैं आपके पास आ गया हूँ | आपनें क्या उसका कोई नाम भी रख दिया है |
                                          मास्टर कन्हैया लाल ने उन्हें बताया कि उन्होंने तो कोई नाम नहीं रखा पर रम्मो और डब्बू ने न जानें कैसे उसे मांटो कह कर पुकारा और उसने इसका रिस्पान्स भी दिया | जाहिर है कि मांटो ही आपका पप्पी है | कमरे के भीतर हो रही इन बातों की भनक मांटो को मिल गयी और वह भागकर बिना इजाजत लिये कमरे में घुस आया उसने मास्टर कन्हैया लाल को देखा फिर डी.एस.पी. साहब को और फिर कभी इनके पैरों पर लोटनें लगा कभी उनके फिर हेमा की ओर देखा और दौड़कर उनके पैरों पर लोटनें लगा | हेमा ने उसे उठाकर गोद में बिठाकर हाँथ फेरने लगी | रम्मो और डब्बू भी पास आकर खड़े हो गये | हेमा जिसे  पहले दुर -दुर कर भगाना चाहा था वही उसके लिये अपना बेटा बन गया था | रम्मो और डब्बू का तो वह पक्का दोस्त ही था | और मास्टर कन्हैया लाल की आँखों के आँसू क्या रोके जा सकते थे |  बेटे की विदायी की बेला आ गयी थी | कई पैकेट बिस्कुट के साथ डी.एस.पी. होशियार सिंह की गोद में बैठकर मांटो मास्टर कन्हैया लाल के घर से विदा हुआ पर उसकी स्मृति उस परिवार में हमेशा के लिये रह गयी | तभी तो मास्टर कन्हैया लाल ने हेमलता से सहमति लेकर एक पट्टिका गेट के ऊपर लटकवा दी है| पट्टिका पर लिखा है -मांटो की स्मृति कन्हैया , हेम, रम्मो और डब्बू के लिये जीवन भर सुरक्षित रखने वाली निधि बनकर रहेगी | लोग उस पट्टिका को पढ़कर कई बार मांटो के विषय में पूँछ -तांछ करते हैं | आशा है कि इस कहानी को पढ़ने के बाद ऐसी किसी पूँछ -तांछ की जरूरतनहीं रहेगी | 

No comments:

Post a Comment