Friday 29 November 2019

             पुनर्व्याख्या प्रयास

                          नथ्थू का लड़का शंटू आखिर तीसरी बार 10 वीं की परीक्षा पास ही कर गया | नथ्थू की पत्नी शंटू की माँ गुलाबो मुहल्ले भर में घूम -घूम कर बता आयी कि उसका छोरा हाई स्कूल हो गया | मेरा घर पास ही था | नथ्थू कपड़ों पर लोहा करने का काम करता था | एक छोटीसी कोठरी में मेंज डाल रखी थी | आस -पास के घरों से कपड़ा ले जाता था और लोहा करके दे जाता था | उसकी पत्नी गुलाबो भी उसकी मदद कर देती थी | घर में पांच बच्चे थे तीन लडकियां और दो लड़के | शंटू सबसे बड़ा था उससे छोटी बहिन छुनिया थी जो इस बार ग्यारहवीं पास कर बारहवीं में चली गयी थी | मां के साथ वह भी कभी -कभी कपड़ों में प्रेस के काम में लग जाती थी पर शंटू था जो रोज अपने बालों को नये ढंग से सजाकर अकड़ में घूमता रहता था | उसने कभी लोहे पर हाँथ नहीं लगाया था | उसके दोस्त उसे हीरो कहकर बुलाते थे | उनके लिये शंटू हीरो  था भी क्योंकि वे आठवीं ,नौवीँ में ही पढ़ाई छोड़ चुके थे | अगली बार नथ्थू जब घर पर कपड़े देने आया तो शंटू के विषय में मेरी राय मांगीं | बोला शंटी हाई स्कूल पास हो गया है | अब आपकी राय में उसे आगे पढ़ना चाहिये या नहीं | मैनें जानना चाहा कि शंटू ने कितने प्रतिशत नम्बर प्राप्त किये हैं तो नथ्थू ने बताया कि 40 -41 के आस -पास प्रतिशत है | बस पास- पास हुआ है | फिर कहने लगा उसकी छोटी बहन छुनिया बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुयी थी | ग्यारहवीं में वजीफा मिला और अब फिर उसके अच्छे नम्बर आये हैं | आगे भी वजीफा मिलता रहेगा | शंटू का दिमाग कुछ ठोस है | क्या शंटू को भी वजीफा मिल सकता है ? मुझे सरकारी स्कीमों का खास कर पढ़ाई -लिखायी में सरकारी मदद की स्कीमों का न के बराबर ज्ञान था | मैनें नथ्थू को बताया कि मुझे इस बारे में ठीक पता नहीं है वो स्कूल जाकर हेड मास्टर साहब से मिलकर पता कर ले | जहां तक मैं सोचता हूँ शायद सरकार ने अनुसूचित जाति के बच्चों के लिये वजीफे की कोई न कोई स्कीम लागू अवश्य की होगी |
                              नथ्थू स्कूल जाकर पूरी जानकारी हासिल कर लाया | उसने पता लगा लिया कि जब तक शंटू पास होता रहेगा उसकी फीस माफ़ रहेगी ,किताबें मुफ्त मिलेंगी और वजीफा भी मिलता रहेगा | सचमुच भारत का संविधान भारत सरकार द्वारा दलितों को ऊपर उठाने के लिये कितने कारगार कदम उठाने की ताकत देता रहता है | एक तरफ तो मेरा मन यह सब सोच -सोच कर खुश होता था पर दूसरी तरफ मेरे मन में यह भी होता था कि यह सारी सुविधायें उच्च वर्ग कहे जानें वाले गरीब परिवार के बच्चों को भी मिलनी चाहिये | मेरे एक परिचित दीन दयाल शुक्ला कई बार घर पर पैसे मांगनें आये थे क्योंकि उन्हें अपने स्कूल में पढनें वाले बच्चों की फीस भरनी होती थी | बिचारे शुक्ला जी ने मन्दिर के पास फूलों की एक छोटी सी दुकान खोल रखी थी | मुश्किल से उनका गुजर -बसर हो रहा था | रोटी के लाले पड़ रहे थे फिर फीस कहाँ से दें ? उनके पूर्वजों ने कुछ जानें -अनजानें ऐसी समाज व्यवस्था की तरफदारी की होगी जो आज उनके लिये अभिशाप बन गयी थी | कई बार मन्दिर जाते समय मैं उनकी दुकान से फूल ले लेता और कहता ,"अरे पण्डित जी कैसे हैं ?ठीक तो चल रहा है ? तो वे उत्तर देते समदर्शी जी ,मुझे पण्डित जी मत कहा करिये | पण्डित होना तो आज पाप हो गया है | बाप दादों द्वारा किये गये किसी कल्पित अपराध का बदला हम लोगों से चुकाया जा रहा है |
                                     समय तो रुकता नहीं शंटू ग्यारहवीं में फेल हो गया और उसका वजीफा बन्द हो गया | शुक्ला  जी का बेटा माधव बारहवीं में अच्छे नम्बरों से पास हो गया | बैंक पड़ोस के कस्बे में एक नयी शाखा खोलनें जा रहा था | एक चपरासी की नियुक्ति होनी थी , पहले यह नियुक्ति तदर्थ स्तर पर होनी थी फिर इसे स्थायी करना था |
                                   मिनिमम क्वालीफिकेशन हाई स्कूल पास होना था | एम. और बी.ए. पास न जानें कितनी दरख्वास्तें आयीं | शुक्ला जी का लड़का माधव भी एक अप्लीकेन्ट था | वे मेरे पास माधव की नियुक्ति के लिये प्रार्थना करने आये , मैनें उन्हें स्पष्ट बता दिया कि माधव नहीं लग सकता | ऊपर से यह निर्देश है कि अनुसूचित जाति के लिये ही यह पद सुरक्षित है | अब देखिये अनुसूचित जाति के अप्लीकेंट्स में कौन बाजी मारता है | हर एक के साथ कोई न कोई भारी -भरकम नेता खड़ा है | आखिर बाजी शंटू के हाँथ लगी | नथ्थू कई बड़े लोगों के कपड़े प्रेस करता था और उसने जोड़ -तोड़ कर ऐसी सिफारिश लगवायी कि लखनऊ का रीजनल आफिस शंटू की योग्यता से प्रभावित हो गया | अब शंटू के हीरो होने में कोई शक नहीं रहा | उसकी चाल -ढाल ,बालों की स्टाइल और सिगरेट पीने की मुद्रा सभी में ऊँचे वर्ग की झलक आने लगी | पैसों के अभाव में माधव की पढ़ाई बन्द हो गयी और उसने अपने पिता जी के साथ दुकान में बैठना प्रारम्भ कर दिया | दिन बीतते गये ,एकाध वर्ष गुजरा माधव ने जोड़ -तोड़ कर दुकान पर हवन सामग्री भी रख ली | पर सब मिलाकर अब भी मुश्किल से दो जून की रोटी जुट पाती थी | जन्माष्टमी की पहली वाली शाम को मैं शुक्ला जी की दुकान पर फूल लेने गया | माधव ने उठकर मेरे पैर छुए और बोला चाचा जी क्या करें ? मेरा मन तो आत्महत्या करने का कर लेता है | जब भीख मांगनें की नौबत आ जाये तो रास्ता ही क्या बचता है ?मैं भीतर ही भीतर काँप गया | इतना भला ,तीब्र बुद्धि और चरित्रवान लड़का आत्महत्या की सोच रहा है | यह कैसी समाज व्यवस्था है ? इसका अपराध तो केवल इतना ही तो है कि यह किसी ब्राम्हण के घर जन्मा है | मैनें कहा माधव ,अपने पिता जी को घर पर भेजना मैं उनसे कुछ बात करूँगा | जन्माष्टमी को मेरा ब्रत था | शुक्ला जी आ गये | माधव के सम्बन्ध में बात -चीत चल पड़ी ,मैनें कहा ," शुक्ला जी आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ | आप की बात का बुरा मानूगां तो फिर अपना किसे कहूंगां | अच्छा तो एक काम करिये | बोलो क्या करना है ? माधव को मेरे पास भेज देना ,मैं उसको एक अप्लीकेशन लिखा दूंगा | वह तो दस्तखत करेगा ही आप भी उस पर दस्तखत कर दें | उसके साथ आपको गरीबी रेखा से नीचे जो कार्ड मिला है उसकी कॉपी लगानी होगी और एक सर्टिफिकेट और भी लगानी होगी | कैसी सर्टिफिकेट ? शहर में रमेश भाई की एक लॉण्ड्री की बड़ी दुकान है वहां से एक सर्टिफिकेट लेना है कि माधव ने लॉण्ड्री में 6 महीनें काम किया है और उसे ड्राई क्लीनिंग और कपड़ों पर प्रेस करने का अनुभव है |
                                         शुक्ला जी चिन्तित हो उठे | कुछ देर सोच कर बोले समदर्शी जी तो क्या हम लोग कपडे धोनें और प्रेस करने का काम करेंगें ? हमारी खानदानी इज्जत और कुल की मर्यादा का क्या होगा ? और फिर माधव का व्याह भी तो करना है | उसकी छोटी बहिन भी तो 9 वीं में पढ़ रही है आप हमें यह क्या करने को कह रहे हैं ? मैनें शुक्ला जी से विनम्रता के साथ निवेदन किया |
                                       " देखो पण्डित जी जितना पवित्र काम मन्दिर के द्वार पर फूल बेचना है उससे कम पवित्र काम कपड़ों पर प्रेस करना नहीं है | सच पूछों तो प्रत्येक ईमानदारी का काम उतना ही पवित्र है जितना पूजा | किसी भी गन्दगी को चाहे वह तन की हो या मन की ,कपड़ों की हो या घर के बाहर चबूतरे की सभी का साफ़ करना पवित्रता को बढ़ावा देना है | आप तो स्वयं पण्डित हैं ,मुझे अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है | हमारे समाज के कुछ गर्वीले लोगों ने काम के साथ मनुष्यों की ऊंचाई नीचाई का सम्बन्ध जोड़ दिया | इस घातक विष ने हमारे समाज को निर्जीव कर दिया है | कपड़ों की धुलाई और प्रेस का काम किसी एक जाति का नहीं है ठीक उसी प्रकार जैसे फूल बेचने का काम या पूजा करने का काम किसी एक जाति का नहीं है | यह सब मान्यतायें इस बदले जमानें में मरे कुत्ते को ढोनें के समान हैं | मनुष्य अपने चरित्र ,ईमानदारी और सामाजिकता के कारण बड़ा या छोटा होता है | गृहस्थी संचालन और जीवन संचालन के लिये वह कोई भी काम जो उसके लिये उचित आमदनी जुटा सके कर सकता है | माधव तीब्र बुद्धि है निश्चय ही वह मेरी सोच का समर्थन करेगा |
                                          और ऐसा ही हुआ | माधव ने दौड़ -धूप कर कागजात पूरे कर लिये मेरे प्रयत्न से  और शुक्ला जी की छल रहित सादगी के कारण शहर की एक चलती -फिरती सड़क पर एक दुकान मिल गयी | मेरे मित्र श्री धर रावत ने किराया भी बर्दाश्त करने के लायक रखा | दुकान की साइट फोटो भी अप्लीकेशन के साथ लगा दी गयी ,सभी बातें नियमानुसार होने के कारण मैनें लोन रिकमेन्ड कर दिया | उस दिन मुझे कितनी खुशी हुयी जब रीजनल आफिस से लोन की अप्लीकेशन मंजूर होकर आ गयी | 2 मई  2016  को शुक्ला जी को दो लाख रुपये का लोन मिल गया | सालाना व्याज की दर केवल 8 प्रतिशत थी | लोन मिलने पर माधव मेरे पास आया ,पैर छूकर बोला चाचा जी मुझे एक महीनें रमेश भाई की लॉण्ड्री में ट्रेनिंग के लिये रिकमेन्ड कर दीजिये | इस बीच मशीनों का और दूसरे जरूरी फर्नीचर आदि का इन्तजाम हो जायेगा मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं जी तोड़ मेहनत करूंगा और सफल होकर दिखाऊंगा | रमेश भाई ने एक होनहार नवयुवक की मदद की | 18 जुलाई 2017 माधव मेरे पास एक निमन्त्रण पत्र लेकर आया यहां मैं बता दूँ कि पहले में लालगंज में था अब मेरा तबादला लखनऊ की एक ब्रान्च में हो गया है | माधव ने कहा चाचा जी आपनें मेरी तकदीर बदल दी आज माधव लॉण्ड्री को लालगंज में कौन नहीं जानता | दुकान भी मेरी अपनी हो गयी है ,मैनें खरीद ली है | तीन सहयोगी लगा दिये हैं | काम चुकाये नहीं चुकता ,सोचता हूँ कि एक और दुकान खोल लूँ | फिर उसने दुबारा मेरे पैर छूकर कहा चाचा जी मेरी शादी में अवश्य आइयेगा | आपकी होने वाली बहू कल्पना के पिता भी आपके बैंक में ही कानपुर में आफीसर हैं | कल्पना आपका आशीर्वाद पाकर धन्य हो जायेगी | आज्ञां दीजिये | खुशी से मेरा मन भर गया |
                                     इस घटना ने भारतीय हिन्दू समाज के विकास के लिये मुझे एक नयी द्रष्टि प्रदान की है | मैं  समझता हूँ कि छोटे कहे जानें वाले कामों में बड़ी कही जानें वाली जाति के नवयुवकों को पूरी महारथ हासिल करनी चाहिये | आपसी सहयोग ,आपसी सदभाव और यदि सम्भव हो तो समर्थ लोगों द्वारा वित्तीय सहायता या सरकारी सहायता के बल पर छोटे कहे जाने वाले काम बड़ी कही जाने वाली जाति के नवयुवकों के लिये आमदनी का बहुत अच्छा सुअवसर प्रदान कर सकते हैं | और इन कामों के कुशलता पूर्वक करने में वे सचमुच बड़े होने का गौरव पा सकेंगें |
                                 'माटी ' के पाठक मेरी उस अपार खुशी को यह कहानी पढ़कर अनुभव कर लेंगें जब माधव और उसकी पत्नी कल्पना मेरी पत्नी मधु और मेरे चरणों के पास बैठकर मेरा आशीर्वाद मांगनें आयें | यदि हम अपने को ऊंचा मानते हैं तो हमें कुछ ऊंचा करके दिखाना होगा |

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