Wednesday, 1 May 2019

                                                                             भक्कू पण्डित का शाप 

                कल लक्ष्मानियाँ नहीं आयी | खाना खाकर कुछ देर के लिये जब सोफे पर बैठा तो श्रीमती जी ने शिकायत की जब देखो तब  लक्ष्मानियाँ नागा कर देती है | -बिना झाड़ू -पोछे के घर कितना गन्दा लगता है | मैं कुछ बोलता नहीं | बोलता भी तो इससे अधिक क्या कह सकता था कि लाओ मैं झाड़ू -पोछा कर दूँ | बाल्मीकी घरों के मर्द बेकार भी रहें तो भी उनकी घरों की औरतें कमाकर उन्हें खिलाती रहती हैं | सामन्ती परम्परा वाले कुलीन घरों में कमायी करना मर्द का ही दायित्व माना जाता है | अगले दिन लक्ष्मानियाँ का बेटा गुड्डू जो कक्षा सात में पढता है झाड़ू -पोछे के लिये आया | इतवार होने के कारण उस दिन स्कूल बन्द था | घर पर खाली बैठकर इधर -उधर शरारती लड़कों के साथ घूमनें -फिरनें के बजाय माँ ने उसे मेरे घर सफाई का काम करनें भेज दिया था | वह दो एक बार माँ के साथ आया था -कुछ खानें -पीने को मिल जाता था -इसलिये छुट्टी के दिन उसे मेरे घर में काम करनें में कोई ऐतराज नहीं होता था | गुड्डू ने मेरी श्रीमती यानि मालिकिन को बताया कि उसकी माँ इसलिये काम पर नहीं आयी है क्योंकि वह कल से रो रही है | कभी इस पण्डित के पास जाती है कभी उस ज्योतिषी के  पास | श्रीमती जी ने जानना चाहा कि क्या बात हो गयी है | जिसके कारण उसकी माँ रो रही है  और पण्डितों के पास जा रही है तो गुड्डू ने बताया कि उसकी माँ ने दीवाली के अवसर पर 15000  के चाँदी के जेवर बनवाये थे | एक गले का हार था और एक पतली कमर की तगड़ी | बड़ी मुश्किल से कई घरों में काम कर साल डेढ़ साल में इतना पैसा जोड़ा था | बप्पा कुछ करता नहीं , बड़ा भाई रात को कहीं चौकीदारी करता है | भाभी और दो बच्चों का खर्च ही नहीं निकल पाता | एक बड़ी बहन व्याह दी गयी है | उससे छोटी दो बहनें और हैं | इतनी सब जिम्मेदारी निभाते हुये भी उसकी माँ ने चाँदी के इन जेवरों का इन्तजाम कर लिया था | बिस्तरों के नीचे लिफ़ाफ़े में जेवर रखे थे | लखपति राय सुनार के यहां से बनवाये थे और मेरी बहनें स्कूल से वापस अलग -अलग समय पर आती हैं | स्कूल में दोपहर का खाना मिल जाता है | घर पर बप्पा पड़ा रहता है इसलिये माँ  कमरे में ताला  नहीं लगाती | परसों बप्पा दुकान  में बीड़ी लेने चला गया | इसी बीच न जानें कौन घर में घुसकर बिस्तर के नीचे रखे जेवर के लिफ़ाफ़े को उठा ले गया | भकुआ पण्डित ने मम्मी  को बताया है कि घर के ही किसी आदमी ने चोरी की है हमारे कई चाचाओं के घर साथ ही साथ हैं | एक घर से दूसरे  घर में जाया जा सकता है | कई चाचियाँ हैं उनमें से कइयों को माता जी ने अपने जेवर दिखाये  थे | बहुत ख़ूबसूरती से बनाये गये थे | अब भकुआ पण्डित किसी का नाम नहीं बताते कहते हैं कि इसके लिये रमल फेंकनी होगी |
                       मेरी श्रीमती जी ने जानना चाहा कि रमल क्या होता है | तो गुड्डू ने बताया कि रमल कुछ जादू -टोना होता है | जिससे नाम का पता चल जाता है | आज उसकी मम्मी भकुआ पण्डित से रमल फिकवा कर नाम का पता लगायेगी | गुड्डू तो उस दिन थोड़ा कुछ खा -पीकर चला गया अब अगले दिन तो उसकी छुट्टी भी नहीं इसलिये लक्ष्मानियाँ को पक्के घरों में काम करने आना पड़ा | लक्ष्मानियाँ जिसका सही नाम लक्ष्मी है गुग्गा राम बाल्मीकी की पत्नी है | बड़ी मेहनती और मीठा बोलने वाली घरेलू सहायक है | खाते -पीते घर की औरतें उसे बहुत पसन्द करती हैं | हर घर में उसकी मांग है | वह अपनी मर्जी से घर चुनती है | उसे काम की कोई कमी नहीं है | कोई भी मालिकिन टर्रा कर बोले तो वह काम छोड़ देती  है | आजकल घरेलू कामकाज के लिये औरतों का मिलना सरकारी नौकरी पाने से भी अधिक कठिन है | इसलिये लक्ष्मी की मनमानी चल जाती है |
                 मेरी श्रीमती जी ने लक्ष्मानियाँ से जानना  चाहा कि उसके 15000  के चांदी के जेवर बनवाने में कितनी चांदी लगी थी | श्रीमती जी सोने और चांदी के भावों में बहुत दिलचस्पी रखती है | अब आप सब जानते ही हैं की चांदी आजकल 60000  प्रति किलो के आसपास घूम रही है | खैर लक्ष्मानियाँ ने उन्हें बताया कि कच्चा पाइया यानि 200 ग्राम वजन  के चांदी के जेवर थे | फिर श्रीमती जी ने जानना चाहा कि रमल फेंकनें के बाद क्या भक्कू पण्डित ने चोर का नाम बताया है  तो उसने फुसफुसा कर कहा हाँ बता दिया है | पहले तो बताता ही नहीं था दस रुपये देने की बात कही ,टस से मस नहीं हुआ | 50 माँगता था पर फिर 20 पर राजी हो गया | स्वाभाविक था कि श्रीमती जी ने जानना चाहा कि किसका नाम बताया है | लक्ष्मानियाँ ने और नजदीक आकर फुसफुसा  कर कहा -पंडितानी जी किसी से कहना मत पण्डित जी ने मेरी छोटी देवरानी परवतिया का नाम लिया है पर यह भी कहा है कि कहीं जाहिर न करना | थोड़े बहुत दिनों में अपने आप कपड़ों के नीचे छिपाकर पहनें हुये दिख जायेगी | तब पकड़ लेना | श्रीमती जी ने पूछा क्या तुमनें परवतिया को जेवर दिखाये  थे तो उसने कहा मैं क्यों परवतिया को जेवर दिखाती ? वह तो चौबीस घण्टे लड़ने को तैय्यार रहती है | घर के चार हिस्से तो उसी ने करवा डालें | अपने शराबी खसम से अपने बड़े भाई को गाली दिलाती रहती  है || श्रीमती जी ने पूछा फिर उसे कैसे पता चला कि तुमनें दिवाली के अवसर पर जेवर बनवाये हैं | अब लक्ष्मानियाँ बोली और इस बोली में उसकी गहरी समझदारी झलक रही थी उसने कहा -पंडितानी जी भला गहनों की बात किसी से छिपी रहती है | गहनें बनवाये ही दूसरों को दिखाने के लिये जाते हैं | आप लोग पैसे वाले हैं सोने ,हीरे के गहनें बनवाते हैं हम गरीबों के लिये चाँदी के टूम  ही बहुत हैं  | मैनें परवतिया को तो नहीं दिखाये पर उससे बड़ी मेरी देवरानी सरसुतिया  को जरूर दिखाये थे | सरसुतिया ठीक स्वभाव की है | मुझे जेठानी मानती है | उसके पास भी चांदी की एक तगड़ी है | पर वह मान गयी कि मेरी तगड़ी ज्यादा खूबसूरत है हालांकि वजन में कुछ कम है | सरसुतिया कहती है कि उसने परवतिया को बताया था और उसकी बात सुनकर परवतिया जल उठी थी |
                   कई दिन बीत गये इस बीच मेरी श्रीमती जी ने मुझे इस कहानी से कई बार परिचित कराया | मेरी साहित्यिक खुराफातें हर समय मेरे दिमाग को तंग करती रहती हैं मैनें सोचा कि लक्ष्मी ,पार्वती और सरस्वती तीनों ही इस घटना में शामिल हैं | सरस्वती ने पार्वती के  मन में असन्तोष जगाकर लक्ष्मी को चपत लगायी  है और फिर लक्ष्मी किसी एक जगह तो बैठती नहीं | शेष -शायी भगवान् विष्णु तो  सनातन हो गये हैं | लक्ष्मी चिर यौवना है | वह कहीं एक घर में बैठ सकती है ? उसे तो नये  -नये ठिकानें चाहिये ही | और सरस्वती का काम ही क्या है दिमाग में खलल पैदा करना | उल्टे -सीधे विचारों को जन्म देना | दिमाग की साहित्यिक कला बाजियां बन्द कर मैनें अपने दिमागी कूड़ा -करकट में एक टटोल लगायी तो किसी की सुनायी एक पुरानी  कहानी याद आयी | किसी गरीब मजदूरिन ने बड़ी मेहनत मजूरी करके अपने पति के साथ चार दीवारें खड़ी कर उसपर एक छप्पर डाल लिया था | अपनी मजूरी से कुछ पैसा बचाकर वह पति को बिना बताये इकट्ठा करती रही | फिर उसने चुपके से किसी सुनार के पास जाकर नाक में पहनने के लिये सोने की कील बनवायी | हो सकता है और शायद हुआ भी हो कि सुनार ने कील में सिर्फ सोने की पालिश कर दी हो और कील पीतल की ही हो | गुग्गा नौमी के दिन वह सरल मजदूरिन नाक में कील पहनकर मेले में गयी और संध्या के झुटपुटे में और औरतों ने उसकी कील की ओर कोई ध्यान नहीं दिया | एकाध ने देखा तो कुछ पूछा नहीं | अब गरीब मजदूरिन की मनोदशा को मनोविज्ञान के महारथी शोध का विषय तो बनाते नहीं पर हम छोटे -मोटे कहानीकार कभी -कभी एकाध मनोग्रंन्थियों  को खोलनें का प्रयास करते हैं | उस सरल मजदूरिन ने सोचा जब मेरी सोने की कील के विषय में कोई कुछ पूछता ही नहीं तो फिर मुझे टूम  बनाने की जरूरत ही क्या थी | आखिर टूमे  दूसरों को दिखाने के लिये ही तो बनती  हैं | अब उसे एक तरकीब सूझी अगले दिन बाबा गुदड़ी राम के शमशान वाले पीर पर मेला लगना था | औरतें जिस रास्ते से गुजरेंगीं वह रास्ता उसके घर के साथ होकर जाता था | मनोकुन्ठा ग्रस्त उस मजदूरिन ने एक कपडे में अपनी नाक की कील को लपेट कर छप्पर में खोंस दिया और फिर जब मजदूर औरतों  के झुण्ड उस रास्ते से गुजरने लगे तो उसने छप्पर में आग लगा दी | पास ही तालाब में कई आदमी औरतें नहा रहे थे | जो भी बर्तन दिखायी पड़ा उसमें पानी भरकर वे आग बुझाने दौड़े | औरतें भी इकट्ठा हो गयीं अब मजदूरिन बोली अरे मुझे अपनी टूम निकाल लेने दो छप्पर में खुसी है | आग बुझने लगी उसके हाँथ में कपडे में लपटी टूम देखकर औरतों ने उसे खोलकर देखना चाहा | उन्होंने नाक की कील की बहुत सराहना की बड़ी अच्छी बनी है ,कब बनवायी ,कहाँ से बनवायी | हमें भी बनवानी है | मजदूरिन के मुंह से अचानक निकल गया ,अरे बहना अगर तुम यह सब पहले पूछ लेती तो मैं अपने छप्पर में आग क्यों लगाती |
                       मैं जानता हूँ कि इस प्रकार की कहानियाँ ऊँचें कहे जाने वाले साहित्यकार नहीं लिखते | उन्हें नाक -नक्श और काट -छाट वाले कथानक पसन्द आते हैं | वे बेतरतीब जँगली झाड़ियों ,करीलों और कटीले पौधों से बचना चाहते हैं | बंगलों की आधुनिक सजी -सजायी कटी हुयी क्यारियां उनके मन को भाती  हैं | पर मुझे लगता है कि नारी मनोविज्ञान की एक बहुत विश्वसनीय झलक उपर्लिखित कहानी में मौजूद है | हमारी धार्मिक कक्षाओं में भी देवी लक्ष्मी ,देवी पार्वती और देवी सरस्वती की कलापूर्ण नोक-झोंक कई बार प्रस्तुत की जाती है | ऐसा इसलिये है कि नारी मनोविज्ञान थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ हर वर्ग और हर स्तर की नारियों को प्रभावित करता है | प्रदर्शनप्रियता तो नारी के स्वभाव का एक अनिवार्य अंग है | यह श्रजन का एक प्राकृतिक अवलम्ब है |
                           कुछ दिन बाद लक्ष्मानियाँ  ने आकर फिर मेरी श्रीमती को एक राज की बात बतायी उसने बताया कि सरसुतिया ने परवतिया के गले में चाँदी  का हार देख लिया है | करवाचौथ के दिन पहनें थी | कहती थी कलुआ ने (ख़सम ) ने बनवाकर दिया है | पर हार बिल्कुल वही है | जो तुमनें मुझे दिखाया था | | श्रीमती जी ने लक्ष्मानियाँ को राय दी  वह खुलकर यह बात सबके सामने कहे तो लक्ष्मनियाँ ने कहा कि सारे परिवार की इज्जत का मामला है | गली -कूचे में थू -थू होगी और परवतिया कभी मानेगी ही नहीं कि उसने कभी चोरी की है |
                        अब श्रीमती जी क्या करतीं | हारकर उन्होनें पूछा तो फिर भक्कू पण्डित के पास क्यों नहीं जातीं कैसे तुम्हारे जेवर वापस मिलेंगें | लक्ष्मानियाँ ने बताया कि वह भक्कू पण्डित के पास  गयी थी तो भक्कू पण्डित ने उसे बताया कि परवतिया भी उनके पास  आयी थी कह रही थी कि उसकी गोद नहीं भर रही है कोई जतन करो , कोई तप -जप बताओ | भक्कू पण्डित ने विश्वास दिलाया है कि वह जेवर वापसी का कोई रास्ता निकाल देंगें फिर उसने मेरी श्रीमती जी से बीस रुपये की मांग की श्रीमती जी ने रुपये देने से पहले पूछा कि किस काम के लिये रुपये चाहिये  लक्ष्मानियाँ बोली अरे उस भक्कू पण्डित के माथे  पर मारने हैं | जब कभी जाओ 20 रुपये की चोट मारता है | देना तो पडेगा ही शाप लग जायेगा न ,| 

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