मोलड़ बनाम मूल चन्द्र
समस्या आ खड़ी हुयी | सफाई और पोछा तो सिंहपुर के बाल्मीकी घरों की बेटी सुनीता करती रही है और इस परिवारिक उत्सव के समय भी कर जायेगी | पर बर्तनों का क्या होगा | तितरी और फुल्ला बिहार अपने घर छठ मनाने के लिये चले गए हैं | फुल्ला रिक्शा चलाता था ,मजदूरी करता था और तितरी बर्तनों की सफाई का काम करती थी कैसे चमका देती थी बर्तनों को धो -पोंछकर | बिल्कुल ऐसे जैसे अभी नये खरीदे गये हों | अपने काम में होशियार थी और स्वभाव की सरल और मिलनसार | इतना काम था उसके पास कि बहुत से घरों से उसे काम न करने की माँफी मागनी पड़ती थी |अब दोनों कुछ दिनों के लिये अपने गाँव वैरागीपुर चले गये हैं | बिहार के बक्सर जिले में गंगा के इस पार उ ० प्र ० का छोर है और उस पार बिहार की पूर्वी सीमाँ रेखा | छठ पर्व का इतना सामाजिक महत्व है कि हम सब के बहुत कहने पर भी फुल्ला और तितरी घर न जानें का मन नहीं बना पाये बोले पन्द्रह दिन बाद वे लौट ही आयेंगें | सभी से मिलना -जुलना हो जायेगा | गन्ना चूसने का मौक़ा भी मिलेगा भगवान् सूरज की पूजा करेंगें नाचेंगे -गायेंगें और हाँ छठ पर बनें ठेकुआ का स्वाद ही निराला होता है | अब तितरी तो चली गयी प्रो ० विश्वबन्धु के आगे समस्या आ खड़ी हुयी | दीवाली के बाद गोवर्धन और फिर भैय्या दूज और ठीक भैय्या दूज के बाद उनकी शादी की पच्चीसवीं वर्षगाँठ | प्रो ० साहब की पत्नी रेणुका जिद कर बैठी कि शादी की सिल्वर जुबली मनायेंगें आप अपने मित्रों को सपत्नीक बुलाइये मैं अपनी सहेलियों को सपति बुलाऊंगीं बड़ा लड़का एम ० टेक ० कर रहा है | अपने दोस्तों को ले आयेगा उससे छोटी दोनों लड़कियाँ इन्जीनियरिंग कालेज में अपने साथ पढ़नें वाली छात्राओं को निमन्त्रित करेगी | नाते -रिश्तेदार , सगे -सम्बन्धी ,भाई -बान्धव ,भौजे ,साली ,सलहजे सभी को बुलाया जायेगा | काफी बड़ा उत्सव रहेगा | भगवान् का दिया सब कुछ है दिल खोलकर खर्च करेंगें | भीतर से न चाहते हुये भी प्रो ० विश्वबन्धु को बच निकलने का कोई मार्ग नहीं मिला | शादी -शुदा सभी व्यक्ति जानते हैं कि पच्चीस वर्ष साथ -साथ रहने के बाद शादी का उल्लास इतना धीमा पड़ जाता है कि सिल्वर जुबली मनानें की बात भी मन की उदासी को दूर नहीं कर पाती | पुरुष होने के नाते मैं नारी मनोविज्ञान का पण्डित नहीं हूँ और न हीं कह सकता कि नारी के प्रारम्भिक शादी उल्लास में कोई कमी आती है या नहीं पर पुरुष होने के नाते मुझे ऐसा अनुभव होता है कि उल्लास की जगह एक प्रकार की थकान सी मन को घेरने लगती है | सामाजिक मान्यताओं की परिपाटी हमें अपना कर्तव्य निर्वाहण करने की ओर प्रेरित अवश्य करती है किन्तु उसमें आन्तरिक आनन्द का सहज आवेग नहीं होता | खैर तो निश्चय हो गया कि रजत जयन्ती मनाई जायेगी | नाते -रिश्तेदार ,साली -सलहजें ,खानदानी -सम्बन्धी ,काफी दूर दराज से घर आयेंगें | हो सकता है उनमें से कई दो -चार दिन के लिये घर में रुक जांय | सिल्वर जुबली के दिन तो आने वाले सभी मेहमानों के लिये या तो किसी होटल में प्रबन्ध कर लिया जायेगा या घर पर ही | घर में ही खानें -पीने की आवभगत का कॉन्ट्रेक्ट दे दिया जायेगा | सर्विस भी उन्हींकी और सामिग्री भी उन्हीं की | पर यदि साली -सलहजें उत्सव के बाद भी घर पर ठहर गयीं तो चौका -बर्तन कौन करेगा | खाना बना लेना तो उल्टा -सीधा हो जायेगा क्योंकि उनमें खाते -पीते घरों की स्त्रियां उसमें अपनी हेठी नहीं समझती हिन्दुस्तानी टाइप के खानें में बर्तनों के साफ़ धुलने पोछनें की बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है | चौका -बर्तन करना दासी कर्म के नाम से जाना जाता है | तितरी होती तो कोई बात नहीं थी | उसके चले जानें पर भी घर के चार -पांच प्राणियों का काम दोनों लडकियां मिलजुल कर कर सकती थीं | सफाई और पोछा के लिये तो सुविधा मिल ही रही थी पर अब क्या इन्तजाम किया जाय | प्रो ० विश्वबन्धु ने सोचा क्यों न दिहाड़ी पर काम करने वाली एक मजदूर स्त्री को दो -चार दिन के लगा लिया जाय | बातचीत की तो उसने कहा कि वह तीन सौ रुपया रोज लेती है पर वह चौका -बर्तन का काम नहीं करेगी | क्योंकि वह छोटा काम है | प्रो ० विश्वबन्धु ने समाजशास्त्र का गहरा अध्ययन किया था उनके शोध प्रबन्ध का विषय था ' प्राचीन भारत में श्रम की समस्या '| यह जानकार चकित रह गये कि ईंट और गारा ढोना एक ऊँचें दर्जे का काम है जबकि चौका -बर्तन करना एक घटिया स्तर का काम है | उन्होंने एक अपढ़ मजदूरिन से इस सत्य की प्राप्ति की | प्राचीन भारत के अपने शोध में उन्होंने जोर देकर कई प्रमाणों के साथ यह बात सिद्ध की थी कि भोजन की पवित्रता ,और भोजन बनाने के स्थान और पात्रों की स्वच्छता पर प्राचीन ऋषियों -मुनियों का सबसे अधिक ध्यान रहता था | प्रसिद्ध कवियत्री महादेवी वर्मा ने भी कहीं यह लिखा है कि कुछ ऊँचें ब्राम्हण तो लकड़ियां ढोने के बाद ही यानि उन्हें पूरी तरह स्वच्छ करके भोजन बनाने के लिये अग्नि में रखते थे | रसोई की इतनी स्वच्छता और पवित्रता रखने वाला भारत अब चौका बर्तन के काम को हेय समझनें लगा है | यह जानकार उनके ज्ञान में वृद्धि हुयी | उन्हें महसूस हुआ कि उनके समाजशास्त्र का अध्ययन अभी अधूरा है | उन्होंने अपनी पत्नी को विश्वास में लेकर यह जानना चाहा कि क्या वह और उनकी दोनों लडकियां इस काम को सम्भाल नहीं सकतीं | पत्नी ने झिड़क कर कहा तुम्हें इतनी भी समझ नहीं है कि बाहर वालों के सामने हम ऐसा काम करेंगीं | प्रो ० विश्वबन्धु ने कहा ठीक है तो मैं कर लूंगा | बर्तन पड़े रहने देना मैं देर रात अन्धेरे में चुपके से साफ़ कर दिया करूँगा | पत्नी ने गुस्से भरी नजर उनपर डालकर जो बात की वह उनकी छाती में तीर की तरह भिद गयी | प्रोफ़ेसर बनते हो ,कहते हो कई लोगों को नौकरी दिलवा दी है अब चार दिन के लिये किसी काम वाली का इन्तजाम नहीं कर सकते | जमुना प्रसाद का क्या हुआ उसको बुला लो |
प्रो ० विश्वबन्धु चुप रह गये | वे कैसे बताते कि जमुना प्रसाद रिटायर होकर गोरखपुर अपने गाँव में चला गया है | कि उसकी पत्नी और बच्चे तो कभी उसके साथ आये ही नहीं थे ,कि वह नौकरी के कारण उनके शहर में पड़ा था | रिटायर होते ही अपने घर गाँव चला गया | बात यह थी कि पिछले एक दो काम -काजों में जमुना प्रसाद ने आकर सफाई के कामों की पूरी जिम्मवारी सम्भाल ली थी | प्रो ० विश्वबन्धु जी की धर्मपत्नी इसी मुगालते में रह रही थीं |
आइये इस सम्बन्ध में कुछ गहरायी से विचार कर लें | समाजशास्त्री कहते हैं कि आर्थिक स्वतंत्रता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं होता | समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर होने के नाते प्रो ० विश्वबन्धु अपने क्लासेस और तमाम सभाओं में यही बात दोहराते रहते थे | उन्हें लगा कि यदि आर्थिक परतन्त्रता पूरी तरह से ख़त्म हो गयी तो भारत का मध्य वर्ग मानसिक कुंठाओं का शिकार हो जायेगा क्योंकि उसे यानि मध्यवर्गीय स्त्रियों को घरेलू काम -काज के लिये मदद करने वाले सस्ते हाँथ नहीं मिल पायेंगें | उन्होंने पहली बार गहराई से पंजाब ,हरियाणां और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मध्यवर्गीय परिवारों पर नजर डाली उन्हें लगा सभी घरों में बिहार ,पूर्वी उ ० प्र ० ,झारखण्ड ,छत्तीसगढ़ या मध्य प्रदेश से घरेलू कामकाज के लिये जरूरत मन्द स्त्रियों या किशोर वय के लड़कों की उपस्थिति अनिवार्य बन गयी है | सफेदपोश पढ़े -लिखे स्थानीय नवयुवक और नवयुवतियों की टोलियां बेकार हैं और सड़कों पर निरुदेश्य चहलकदमी करती रहती हैं | दूसरी तरफ घरेलू कामकाज के लिये लेबर की इतनी जरूरत है कि उसकी मांग ही पूरा नहीं हो पाती | कोई भी स्त्री जो श्रम कर सकती है और घरेलू काम को छोटा नहीं समझती एक छोटी -मोटी नौकरी से अधिक कमाई करने की क्षमता की अधिकारिणीं है | केन्द्रीय सरकार के मनरेगा प्रोग्राम का आधा परधा पैसा छोटे -मोटे खाऊ नेताओं के मुंह में जा रहा है फिर भी उसने श्रम के बाजार में एक गहरा उलट फेर कर दिया है | अब बिहारी या झारखण्डीय मजदूर ,राज ,पशुरक्षक या खेती किसनई का माहिर अपनी कीमत पहचान गया है | हो सकता है शीघ्र ही वह समय आ जाय जब एक औरत किसी दफ्तर या काल सेन्टर से जितना कमा कर लावे उतना सब उसे चौका -बर्तन और सफाई पोंछा में खर्च देना पड़े | प्रो ० विश्वबन्धु ने ऐसे दिन के आने की सच्चाई को स्वीकार करना शुरू किया और निश्चय किया कि वे अपनी लड़कियों को रसोईं और रसोईं से सम्बन्धित प्रत्येक काम में उतनी ही निपुणतां देना चाहेंगें | पर अब उन्होंने सोचा कि यह तो रही शोध के लिये मिलने वाली सामग्री पर समस्या का तात्कालिक हल कहाँ से ढूढ़ निकाला जाय | उन्होंने अपने कुछ मित्रों से बात की | मित्रों ने उन्हें बताया कि वह तो खुद ही तंग हैं | जिस दिन सफाई वाली नहीं आती उन्हें स्वय ही सुबह या शाम के धुँधलके में झाड़ू -पोछा करना पड़ता है और अगर बर्तन किसी दिन न धुल सके तो वे स्वयं ही अपने खानें के लिये कुछ बर्तन धो मांज कर तैय्यार कर लेते हैं | कई मित्रों की पत्नियां काम में लगी थीं उनकी कठिनायी को तो विश्वबन्धु जी थोड़ा बहुत समझ सके पर जिन्हें दिनभर घर में ही रहना था और जिनका अधिकाँश समय टी ० वी ० में ही कटता था वे भी इसी सामन्ती मनोवृत्ति की शिकार थीं | मैं तो अमरीका नहीं गया पर मेरे एक मित्र बताते हैं कि अमरीकी समाज में यद्यपि सम्पन्नता अपनी चरमस्थिति पर है पर घरेलू काम -काज के लिये श्रम इतना दुर्लभ हो गया है कि आप अपनी पूरी तनख्वाह लगाकर भी सार्थक मदद नहीं पा सकते |
प्रो ० विश्वबन्धु को लगा कि सारा गुड़ -गोबर हो रहा है | आखिरकार उन्होंने एक बिहारी लड़के से बात की दिखने में वह 16 -17 का लग रहा था पर वैसे वह 20 -22 का था | उसने कहा कि वह 300 /-रोज लेगा साथ ही दोनों पहर का खाना और यदि रात में भी उसकी जरूरत हुयी तो उसके सोने के स्थान और बिस्तरों का प्रबन्ध | मरता क्या न करता | प्रो ० विश्वबन्धु उसे अपने साथ घर ले आये | अभी उसे घर दिखा ही रहे थे कि सड़क पर एक नाटा काला भारी शरीर का नवयुवक अपनी पत्नी और चार पांच वर्ष के दो बच्चों के साथ सड़क पर जाता दिखाई पड़ा | उसने जैसे ही प्रो ० विश्वबन्धु को देखा दौड़कर उनके पैर छुये | कुछ देर बाद प्रो ० साहब ने उसे पहचाना और कहा मोलड़ ,तुम काफी मोटे हो गये हो | अब कहाँ हो ? मोलड़ ने अपने साथ वाली स्त्री की ओर देखकर कहा कि वह उसकी धर्मपत्नी राम प्यारी है | रामप्यारी ने दोनों हाँथ जोड़ प्रो ० विश्वबन्धु को प्रणाम किया | प्रो ० विश्वबन्धु ने फिर पूछा मोलड़ तुम अब कहाँ हो ?कई वर्षों बाद दिखायी पड़े | इधर कहाँ जा रहे हो ? मोलड़ ने बताया कि वह इन दिनों कलकत्ता में है | दो दिन पहले अपने बड़े भाई की लड़की की शादी में यहां आया था | गाड़ी गोकर्ण मन्दिर के पास खड़ी है | संकट मोचन हनुमान के दर्शन करके वह पैदल चलकर माता मन्दिर में दर्शन करने जा रहा है | प्रो ० विश्वबन्धु ने जानना चाहा कि कलकत्ता में वह क्या कर रहा है और यहां और कितने दिन ठहरेगा | मोलड़ ने बताया कि कलकत्ता में उसकी ट्रेवेल एजेन्सी है | उसके पास महानगर कलकत्ता के आस -पास बसे परगना क्षेत्र में बसों के कई रुट का लाइसेन्स है | उसके पास दस बारह बसों का फ़ीट है | अभी वह चार पांच दिन यहां और रुकेगा | सभी रिश्तेदारों से मिल जुलकर पुरानी यादों को नयी ताजगी देकर वापस जायेगा ,अब मोलड़ की भी एक कहानी है | कहना ही पडेगा |
लाला घासी राम का सबसे छोटा बेटा मोलड़ दसवीं पास कर 11 वीं में भर्ती हुआ था | देखने सुनने में वह अधिक सुशोभन नहीं था | रंग भी गहरा सांवला और काठी भी छोटी- मोटी | पर पढ़ाई में तेज था | 10 वीं में प्रथम श्रेणीं में पास हो गया था | प्रो ० विश्वबन्धु राजा घासी राम के बगल में रहते थे | मोलड़ शुरू -शुरू में उनके ज्ञान के आतंक से डरकर उनसे कतराता रहता था | पर जब एक दिन प्रो ० विश्वबन्धु ने सामने आते मोलड़ को रोककर पूछा कि उसका मोलड़ नाम कैसे पड़ा | तो वह शर्मा गया | दरअसल हरियाणवी में मोलड़ का अर्थ भोला ,बुद्धिहीन ,और अधपगले के सेन्स में लिया जाता है | अपने स्वभाव के भोलेपन और रंग तथा काठी के अप्रभावी होने के कारण स्कूल के उसके साथी उसे मोलड़ कहने लगे थे | उसका स्कूली नाम मूलचन्द्र था पर अब वह मोलड़ के नाम से ही जाना जाने लगा था | मोलड़ ने संकोच छोड़कर प्रो ० विश्वबन्धु को बताया था कि वह मोलड़ है इसीलिये लोग उसे मोलड़ कहते हैं | फिर लाला घासीराम के परिवार को अभाग्य ने आ घेरा | अचानक एक सुबह जब वह घूम कर आये और नाश्ता करने जा रहे थे तो उनकी छाती में दर्द उठा और इसके पहले कि कोई डाक्टर लाया जाय वह यह संसार छोड़कर चल बसे | मोलड़ चार भाइयों में सबसे छोटा था | दो बड़ी बहनें और दो बड़े भाई ब्याहे जा चुके थे | लाला घासीराम के संसार छोडनें केएक दो महीनें बाद ही घर में कलह का सूत्रपात हो गया | मण्डी में एक किराने की दुकान से घर का साजबाज चल रहा था | भाइयों में बटवारा शुरू हो गया | मोलड़ की माँ बड़े भाई के हिस्से में आयी पर बड़े भाई ने अब उसकी पढ़ाई के खर्च को अनावश्यक समझा | उसने मोलड़ से कहा कि बनिया के बेटे के लिये 10 तक की पढ़ाई काफी है अब वह कोई काम धन्धा सीखे | मोलड़ के कुछ दोस्त अच्छे घरों से थे उनके घर गाड़ियां थीं | मोलड़ उनके साथ रहकर ड्राइव करने की छोटी -छोटी बातें सीख चुका था | उसने तय किया कि वह ड्राइवर बनेगा ,समय पाकर टैक्सी खरीदेगा और फिर यदि भगवान् ने मदद की तो ट्रेवल एजेन्सी चलायेगा | हल्दी ,धनिया और मिर्चा बेचने का बनिया दर्शन उसके मन को नहीं भाया | अब समस्या आयी ड्राइविंग लाइसेन्स बनने की | प्रो ० विश्वबन्धु ने देखा कि मोलड़ अच्छी ड्राइविंग कर लेता है और उसका ड्राइविंग लाइसेन्स बन जाना चाहिये | कई महीनों तक मोलड़ ड्राइविंग लाइसेंस के चक्कर में भटकता रहा | भाइयों का न तो उसकी तरफ कोई ध्यान था और न वे उसे टैक्सी ड्राइवर बनाना चाहते थे | एक दिन मोलड़ प्रो ० विश्वबन्धु के घर पहुंचा और उनके पैर छूकर कहा कि वे उसका ड्राइविंग लाइसेन्स बनवा दें | वह जानता था कि एस. डी .एम . साहब प्रो ० विश्वबन्धु के दोस्त हैं | मोलड़ की सरलता और स्वभाव के भोलेपन ने प्रो ० विश्वबन्धु को प्रभावित किया | ड्राइविंग लाइसेन्स बन गया | फिर कुछ दिन के बाद मोलड़ प्रो ० विश्वबन्धु के पास आया | पैर छूकर बोला क़ि वह कलकत्ता जा रहा है | उसकी माँ ने अपने जेवर गहनें देकर उसे एक अच्छी -खासी रकम दी है और कहा है कि वह अपनी मौसी के पास कलकत्ता चला जाय वहां उसका अच्छा काम है मोलड़ के माँ की एक बहन कलकत्ता व्याही थी और उसके मौसा टैक्सियों के धन्धे में थे | प्रो ० विश्वबन्धु ने उसे आशीर्वाद दिया पर मन में मोलड़ की सफलता पर सन्देह करते रहे | इस घटना को लगभग सात -आठ वर्ष बीत चुके हैं शायद दस भी हो गये हों | आज मोलड़ से मिलकर और उसकी बात सुनकर प्रो ० विश्वबन्धु को द्रढ निश्चय और कर्म की सफलता पर विश्वास करने का एक नया उदाहरण मिल गया | यह तो रही मोलड़ की कहानी पर प्रो ० विश्वबन्धु को तो अपने साथ लाये हुये बिहारी नवयुवक को अपनी धर्मपत्नी से मिलवाना ही था | मोलड़ ने पूछ लिया कि उनके साथ का छोकरा कौन है ? और कहाँ से है ? प्रो ० विश्वबन्धु बताना तो नहीं चाहते थे पर मोलड़ के स्वभाव की सरलता और उसकी निश्च्छलता ने उन्हें कुछ कुछ भी छिपाने न दिया | | सब कुछ सुनकर मोलड़ ने कहा कि वे इस बिहारी छोरे को तुरन्त भगा दें | अपनी धर्मपत्नी रामप्यारी की ओर देखकर बोला कि आपकी यह बहू घर का सब काम -काज संभ्भालेगी | दोनों बच्चे मेरे साथ बड़े भाई के यहां रहेंगें | फिर अपनी पत्नी से बोला छोटू -मोटू की माँ आज मैं जो कुछ भी हूँ प्रोफ़ेसर साहब की वजह से हूँ | इनके चरणों की धूल लो | भीतर जाकर माता जी को पालागन करो | मैं जब तक भाई के घर पर बच्चों के साथ हूँ तुम्हें इसी घर में रहना है | बड़ों की सेवा करना और घर का काम -काज अपने हाँथ से करना | यही हमारे माँ -बाप और हमारे बड़ों ने हमें सिखाया है | बोलो तुम इस परीक्षा में पास हो सकोगी कि नहीं ? रामप्यारी ने मुस्कराकर पति की ओर देखा और बोली आपनें क्या फेल होने के डर से पढ़ाई छोड दी थी ? मैं आपके बच्चों की माँ हूँ आप प्रथम श्रेणीं में पास हुये थे तो मैं मैरिट में अपना स्थान बनाऊँगीं | प्रो ० विश्वबन्धु सुनकर गद्गद हो गये | उन्हें लगा कि भारत की संस्कृति अभी जीवित है और गृह कार्य उतना ही पवित्र है जितनी ईश्वर पूजा | इस विचारधारा को फिर से नवजीवन मिल सकता है | मोलड़ के माध्यम से प्रो ० विश्वबन्धु ने समाजशास्त्र का एक नया सत्य खोज लिया {
समस्या आ खड़ी हुयी | सफाई और पोछा तो सिंहपुर के बाल्मीकी घरों की बेटी सुनीता करती रही है और इस परिवारिक उत्सव के समय भी कर जायेगी | पर बर्तनों का क्या होगा | तितरी और फुल्ला बिहार अपने घर छठ मनाने के लिये चले गए हैं | फुल्ला रिक्शा चलाता था ,मजदूरी करता था और तितरी बर्तनों की सफाई का काम करती थी कैसे चमका देती थी बर्तनों को धो -पोंछकर | बिल्कुल ऐसे जैसे अभी नये खरीदे गये हों | अपने काम में होशियार थी और स्वभाव की सरल और मिलनसार | इतना काम था उसके पास कि बहुत से घरों से उसे काम न करने की माँफी मागनी पड़ती थी |अब दोनों कुछ दिनों के लिये अपने गाँव वैरागीपुर चले गये हैं | बिहार के बक्सर जिले में गंगा के इस पार उ ० प्र ० का छोर है और उस पार बिहार की पूर्वी सीमाँ रेखा | छठ पर्व का इतना सामाजिक महत्व है कि हम सब के बहुत कहने पर भी फुल्ला और तितरी घर न जानें का मन नहीं बना पाये बोले पन्द्रह दिन बाद वे लौट ही आयेंगें | सभी से मिलना -जुलना हो जायेगा | गन्ना चूसने का मौक़ा भी मिलेगा भगवान् सूरज की पूजा करेंगें नाचेंगे -गायेंगें और हाँ छठ पर बनें ठेकुआ का स्वाद ही निराला होता है | अब तितरी तो चली गयी प्रो ० विश्वबन्धु के आगे समस्या आ खड़ी हुयी | दीवाली के बाद गोवर्धन और फिर भैय्या दूज और ठीक भैय्या दूज के बाद उनकी शादी की पच्चीसवीं वर्षगाँठ | प्रो ० साहब की पत्नी रेणुका जिद कर बैठी कि शादी की सिल्वर जुबली मनायेंगें आप अपने मित्रों को सपत्नीक बुलाइये मैं अपनी सहेलियों को सपति बुलाऊंगीं बड़ा लड़का एम ० टेक ० कर रहा है | अपने दोस्तों को ले आयेगा उससे छोटी दोनों लड़कियाँ इन्जीनियरिंग कालेज में अपने साथ पढ़नें वाली छात्राओं को निमन्त्रित करेगी | नाते -रिश्तेदार , सगे -सम्बन्धी ,भाई -बान्धव ,भौजे ,साली ,सलहजे सभी को बुलाया जायेगा | काफी बड़ा उत्सव रहेगा | भगवान् का दिया सब कुछ है दिल खोलकर खर्च करेंगें | भीतर से न चाहते हुये भी प्रो ० विश्वबन्धु को बच निकलने का कोई मार्ग नहीं मिला | शादी -शुदा सभी व्यक्ति जानते हैं कि पच्चीस वर्ष साथ -साथ रहने के बाद शादी का उल्लास इतना धीमा पड़ जाता है कि सिल्वर जुबली मनानें की बात भी मन की उदासी को दूर नहीं कर पाती | पुरुष होने के नाते मैं नारी मनोविज्ञान का पण्डित नहीं हूँ और न हीं कह सकता कि नारी के प्रारम्भिक शादी उल्लास में कोई कमी आती है या नहीं पर पुरुष होने के नाते मुझे ऐसा अनुभव होता है कि उल्लास की जगह एक प्रकार की थकान सी मन को घेरने लगती है | सामाजिक मान्यताओं की परिपाटी हमें अपना कर्तव्य निर्वाहण करने की ओर प्रेरित अवश्य करती है किन्तु उसमें आन्तरिक आनन्द का सहज आवेग नहीं होता | खैर तो निश्चय हो गया कि रजत जयन्ती मनाई जायेगी | नाते -रिश्तेदार ,साली -सलहजें ,खानदानी -सम्बन्धी ,काफी दूर दराज से घर आयेंगें | हो सकता है उनमें से कई दो -चार दिन के लिये घर में रुक जांय | सिल्वर जुबली के दिन तो आने वाले सभी मेहमानों के लिये या तो किसी होटल में प्रबन्ध कर लिया जायेगा या घर पर ही | घर में ही खानें -पीने की आवभगत का कॉन्ट्रेक्ट दे दिया जायेगा | सर्विस भी उन्हींकी और सामिग्री भी उन्हीं की | पर यदि साली -सलहजें उत्सव के बाद भी घर पर ठहर गयीं तो चौका -बर्तन कौन करेगा | खाना बना लेना तो उल्टा -सीधा हो जायेगा क्योंकि उनमें खाते -पीते घरों की स्त्रियां उसमें अपनी हेठी नहीं समझती हिन्दुस्तानी टाइप के खानें में बर्तनों के साफ़ धुलने पोछनें की बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है | चौका -बर्तन करना दासी कर्म के नाम से जाना जाता है | तितरी होती तो कोई बात नहीं थी | उसके चले जानें पर भी घर के चार -पांच प्राणियों का काम दोनों लडकियां मिलजुल कर कर सकती थीं | सफाई और पोछा के लिये तो सुविधा मिल ही रही थी पर अब क्या इन्तजाम किया जाय | प्रो ० विश्वबन्धु ने सोचा क्यों न दिहाड़ी पर काम करने वाली एक मजदूर स्त्री को दो -चार दिन के लगा लिया जाय | बातचीत की तो उसने कहा कि वह तीन सौ रुपया रोज लेती है पर वह चौका -बर्तन का काम नहीं करेगी | क्योंकि वह छोटा काम है | प्रो ० विश्वबन्धु ने समाजशास्त्र का गहरा अध्ययन किया था उनके शोध प्रबन्ध का विषय था ' प्राचीन भारत में श्रम की समस्या '| यह जानकार चकित रह गये कि ईंट और गारा ढोना एक ऊँचें दर्जे का काम है जबकि चौका -बर्तन करना एक घटिया स्तर का काम है | उन्होंने एक अपढ़ मजदूरिन से इस सत्य की प्राप्ति की | प्राचीन भारत के अपने शोध में उन्होंने जोर देकर कई प्रमाणों के साथ यह बात सिद्ध की थी कि भोजन की पवित्रता ,और भोजन बनाने के स्थान और पात्रों की स्वच्छता पर प्राचीन ऋषियों -मुनियों का सबसे अधिक ध्यान रहता था | प्रसिद्ध कवियत्री महादेवी वर्मा ने भी कहीं यह लिखा है कि कुछ ऊँचें ब्राम्हण तो लकड़ियां ढोने के बाद ही यानि उन्हें पूरी तरह स्वच्छ करके भोजन बनाने के लिये अग्नि में रखते थे | रसोई की इतनी स्वच्छता और पवित्रता रखने वाला भारत अब चौका बर्तन के काम को हेय समझनें लगा है | यह जानकार उनके ज्ञान में वृद्धि हुयी | उन्हें महसूस हुआ कि उनके समाजशास्त्र का अध्ययन अभी अधूरा है | उन्होंने अपनी पत्नी को विश्वास में लेकर यह जानना चाहा कि क्या वह और उनकी दोनों लडकियां इस काम को सम्भाल नहीं सकतीं | पत्नी ने झिड़क कर कहा तुम्हें इतनी भी समझ नहीं है कि बाहर वालों के सामने हम ऐसा काम करेंगीं | प्रो ० विश्वबन्धु ने कहा ठीक है तो मैं कर लूंगा | बर्तन पड़े रहने देना मैं देर रात अन्धेरे में चुपके से साफ़ कर दिया करूँगा | पत्नी ने गुस्से भरी नजर उनपर डालकर जो बात की वह उनकी छाती में तीर की तरह भिद गयी | प्रोफ़ेसर बनते हो ,कहते हो कई लोगों को नौकरी दिलवा दी है अब चार दिन के लिये किसी काम वाली का इन्तजाम नहीं कर सकते | जमुना प्रसाद का क्या हुआ उसको बुला लो |
प्रो ० विश्वबन्धु चुप रह गये | वे कैसे बताते कि जमुना प्रसाद रिटायर होकर गोरखपुर अपने गाँव में चला गया है | कि उसकी पत्नी और बच्चे तो कभी उसके साथ आये ही नहीं थे ,कि वह नौकरी के कारण उनके शहर में पड़ा था | रिटायर होते ही अपने घर गाँव चला गया | बात यह थी कि पिछले एक दो काम -काजों में जमुना प्रसाद ने आकर सफाई के कामों की पूरी जिम्मवारी सम्भाल ली थी | प्रो ० विश्वबन्धु जी की धर्मपत्नी इसी मुगालते में रह रही थीं |
आइये इस सम्बन्ध में कुछ गहरायी से विचार कर लें | समाजशास्त्री कहते हैं कि आर्थिक स्वतंत्रता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं होता | समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर होने के नाते प्रो ० विश्वबन्धु अपने क्लासेस और तमाम सभाओं में यही बात दोहराते रहते थे | उन्हें लगा कि यदि आर्थिक परतन्त्रता पूरी तरह से ख़त्म हो गयी तो भारत का मध्य वर्ग मानसिक कुंठाओं का शिकार हो जायेगा क्योंकि उसे यानि मध्यवर्गीय स्त्रियों को घरेलू काम -काज के लिये मदद करने वाले सस्ते हाँथ नहीं मिल पायेंगें | उन्होंने पहली बार गहराई से पंजाब ,हरियाणां और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मध्यवर्गीय परिवारों पर नजर डाली उन्हें लगा सभी घरों में बिहार ,पूर्वी उ ० प्र ० ,झारखण्ड ,छत्तीसगढ़ या मध्य प्रदेश से घरेलू कामकाज के लिये जरूरत मन्द स्त्रियों या किशोर वय के लड़कों की उपस्थिति अनिवार्य बन गयी है | सफेदपोश पढ़े -लिखे स्थानीय नवयुवक और नवयुवतियों की टोलियां बेकार हैं और सड़कों पर निरुदेश्य चहलकदमी करती रहती हैं | दूसरी तरफ घरेलू कामकाज के लिये लेबर की इतनी जरूरत है कि उसकी मांग ही पूरा नहीं हो पाती | कोई भी स्त्री जो श्रम कर सकती है और घरेलू काम को छोटा नहीं समझती एक छोटी -मोटी नौकरी से अधिक कमाई करने की क्षमता की अधिकारिणीं है | केन्द्रीय सरकार के मनरेगा प्रोग्राम का आधा परधा पैसा छोटे -मोटे खाऊ नेताओं के मुंह में जा रहा है फिर भी उसने श्रम के बाजार में एक गहरा उलट फेर कर दिया है | अब बिहारी या झारखण्डीय मजदूर ,राज ,पशुरक्षक या खेती किसनई का माहिर अपनी कीमत पहचान गया है | हो सकता है शीघ्र ही वह समय आ जाय जब एक औरत किसी दफ्तर या काल सेन्टर से जितना कमा कर लावे उतना सब उसे चौका -बर्तन और सफाई पोंछा में खर्च देना पड़े | प्रो ० विश्वबन्धु ने ऐसे दिन के आने की सच्चाई को स्वीकार करना शुरू किया और निश्चय किया कि वे अपनी लड़कियों को रसोईं और रसोईं से सम्बन्धित प्रत्येक काम में उतनी ही निपुणतां देना चाहेंगें | पर अब उन्होंने सोचा कि यह तो रही शोध के लिये मिलने वाली सामग्री पर समस्या का तात्कालिक हल कहाँ से ढूढ़ निकाला जाय | उन्होंने अपने कुछ मित्रों से बात की | मित्रों ने उन्हें बताया कि वह तो खुद ही तंग हैं | जिस दिन सफाई वाली नहीं आती उन्हें स्वय ही सुबह या शाम के धुँधलके में झाड़ू -पोछा करना पड़ता है और अगर बर्तन किसी दिन न धुल सके तो वे स्वयं ही अपने खानें के लिये कुछ बर्तन धो मांज कर तैय्यार कर लेते हैं | कई मित्रों की पत्नियां काम में लगी थीं उनकी कठिनायी को तो विश्वबन्धु जी थोड़ा बहुत समझ सके पर जिन्हें दिनभर घर में ही रहना था और जिनका अधिकाँश समय टी ० वी ० में ही कटता था वे भी इसी सामन्ती मनोवृत्ति की शिकार थीं | मैं तो अमरीका नहीं गया पर मेरे एक मित्र बताते हैं कि अमरीकी समाज में यद्यपि सम्पन्नता अपनी चरमस्थिति पर है पर घरेलू काम -काज के लिये श्रम इतना दुर्लभ हो गया है कि आप अपनी पूरी तनख्वाह लगाकर भी सार्थक मदद नहीं पा सकते |
प्रो ० विश्वबन्धु को लगा कि सारा गुड़ -गोबर हो रहा है | आखिरकार उन्होंने एक बिहारी लड़के से बात की दिखने में वह 16 -17 का लग रहा था पर वैसे वह 20 -22 का था | उसने कहा कि वह 300 /-रोज लेगा साथ ही दोनों पहर का खाना और यदि रात में भी उसकी जरूरत हुयी तो उसके सोने के स्थान और बिस्तरों का प्रबन्ध | मरता क्या न करता | प्रो ० विश्वबन्धु उसे अपने साथ घर ले आये | अभी उसे घर दिखा ही रहे थे कि सड़क पर एक नाटा काला भारी शरीर का नवयुवक अपनी पत्नी और चार पांच वर्ष के दो बच्चों के साथ सड़क पर जाता दिखाई पड़ा | उसने जैसे ही प्रो ० विश्वबन्धु को देखा दौड़कर उनके पैर छुये | कुछ देर बाद प्रो ० साहब ने उसे पहचाना और कहा मोलड़ ,तुम काफी मोटे हो गये हो | अब कहाँ हो ? मोलड़ ने अपने साथ वाली स्त्री की ओर देखकर कहा कि वह उसकी धर्मपत्नी राम प्यारी है | रामप्यारी ने दोनों हाँथ जोड़ प्रो ० विश्वबन्धु को प्रणाम किया | प्रो ० विश्वबन्धु ने फिर पूछा मोलड़ तुम अब कहाँ हो ?कई वर्षों बाद दिखायी पड़े | इधर कहाँ जा रहे हो ? मोलड़ ने बताया कि वह इन दिनों कलकत्ता में है | दो दिन पहले अपने बड़े भाई की लड़की की शादी में यहां आया था | गाड़ी गोकर्ण मन्दिर के पास खड़ी है | संकट मोचन हनुमान के दर्शन करके वह पैदल चलकर माता मन्दिर में दर्शन करने जा रहा है | प्रो ० विश्वबन्धु ने जानना चाहा कि कलकत्ता में वह क्या कर रहा है और यहां और कितने दिन ठहरेगा | मोलड़ ने बताया कि कलकत्ता में उसकी ट्रेवेल एजेन्सी है | उसके पास महानगर कलकत्ता के आस -पास बसे परगना क्षेत्र में बसों के कई रुट का लाइसेन्स है | उसके पास दस बारह बसों का फ़ीट है | अभी वह चार पांच दिन यहां और रुकेगा | सभी रिश्तेदारों से मिल जुलकर पुरानी यादों को नयी ताजगी देकर वापस जायेगा ,अब मोलड़ की भी एक कहानी है | कहना ही पडेगा |
लाला घासी राम का सबसे छोटा बेटा मोलड़ दसवीं पास कर 11 वीं में भर्ती हुआ था | देखने सुनने में वह अधिक सुशोभन नहीं था | रंग भी गहरा सांवला और काठी भी छोटी- मोटी | पर पढ़ाई में तेज था | 10 वीं में प्रथम श्रेणीं में पास हो गया था | प्रो ० विश्वबन्धु राजा घासी राम के बगल में रहते थे | मोलड़ शुरू -शुरू में उनके ज्ञान के आतंक से डरकर उनसे कतराता रहता था | पर जब एक दिन प्रो ० विश्वबन्धु ने सामने आते मोलड़ को रोककर पूछा कि उसका मोलड़ नाम कैसे पड़ा | तो वह शर्मा गया | दरअसल हरियाणवी में मोलड़ का अर्थ भोला ,बुद्धिहीन ,और अधपगले के सेन्स में लिया जाता है | अपने स्वभाव के भोलेपन और रंग तथा काठी के अप्रभावी होने के कारण स्कूल के उसके साथी उसे मोलड़ कहने लगे थे | उसका स्कूली नाम मूलचन्द्र था पर अब वह मोलड़ के नाम से ही जाना जाने लगा था | मोलड़ ने संकोच छोड़कर प्रो ० विश्वबन्धु को बताया था कि वह मोलड़ है इसीलिये लोग उसे मोलड़ कहते हैं | फिर लाला घासीराम के परिवार को अभाग्य ने आ घेरा | अचानक एक सुबह जब वह घूम कर आये और नाश्ता करने जा रहे थे तो उनकी छाती में दर्द उठा और इसके पहले कि कोई डाक्टर लाया जाय वह यह संसार छोड़कर चल बसे | मोलड़ चार भाइयों में सबसे छोटा था | दो बड़ी बहनें और दो बड़े भाई ब्याहे जा चुके थे | लाला घासीराम के संसार छोडनें केएक दो महीनें बाद ही घर में कलह का सूत्रपात हो गया | मण्डी में एक किराने की दुकान से घर का साजबाज चल रहा था | भाइयों में बटवारा शुरू हो गया | मोलड़ की माँ बड़े भाई के हिस्से में आयी पर बड़े भाई ने अब उसकी पढ़ाई के खर्च को अनावश्यक समझा | उसने मोलड़ से कहा कि बनिया के बेटे के लिये 10 तक की पढ़ाई काफी है अब वह कोई काम धन्धा सीखे | मोलड़ के कुछ दोस्त अच्छे घरों से थे उनके घर गाड़ियां थीं | मोलड़ उनके साथ रहकर ड्राइव करने की छोटी -छोटी बातें सीख चुका था | उसने तय किया कि वह ड्राइवर बनेगा ,समय पाकर टैक्सी खरीदेगा और फिर यदि भगवान् ने मदद की तो ट्रेवल एजेन्सी चलायेगा | हल्दी ,धनिया और मिर्चा बेचने का बनिया दर्शन उसके मन को नहीं भाया | अब समस्या आयी ड्राइविंग लाइसेन्स बनने की | प्रो ० विश्वबन्धु ने देखा कि मोलड़ अच्छी ड्राइविंग कर लेता है और उसका ड्राइविंग लाइसेन्स बन जाना चाहिये | कई महीनों तक मोलड़ ड्राइविंग लाइसेंस के चक्कर में भटकता रहा | भाइयों का न तो उसकी तरफ कोई ध्यान था और न वे उसे टैक्सी ड्राइवर बनाना चाहते थे | एक दिन मोलड़ प्रो ० विश्वबन्धु के घर पहुंचा और उनके पैर छूकर कहा कि वे उसका ड्राइविंग लाइसेन्स बनवा दें | वह जानता था कि एस. डी .एम . साहब प्रो ० विश्वबन्धु के दोस्त हैं | मोलड़ की सरलता और स्वभाव के भोलेपन ने प्रो ० विश्वबन्धु को प्रभावित किया | ड्राइविंग लाइसेन्स बन गया | फिर कुछ दिन के बाद मोलड़ प्रो ० विश्वबन्धु के पास आया | पैर छूकर बोला क़ि वह कलकत्ता जा रहा है | उसकी माँ ने अपने जेवर गहनें देकर उसे एक अच्छी -खासी रकम दी है और कहा है कि वह अपनी मौसी के पास कलकत्ता चला जाय वहां उसका अच्छा काम है मोलड़ के माँ की एक बहन कलकत्ता व्याही थी और उसके मौसा टैक्सियों के धन्धे में थे | प्रो ० विश्वबन्धु ने उसे आशीर्वाद दिया पर मन में मोलड़ की सफलता पर सन्देह करते रहे | इस घटना को लगभग सात -आठ वर्ष बीत चुके हैं शायद दस भी हो गये हों | आज मोलड़ से मिलकर और उसकी बात सुनकर प्रो ० विश्वबन्धु को द्रढ निश्चय और कर्म की सफलता पर विश्वास करने का एक नया उदाहरण मिल गया | यह तो रही मोलड़ की कहानी पर प्रो ० विश्वबन्धु को तो अपने साथ लाये हुये बिहारी नवयुवक को अपनी धर्मपत्नी से मिलवाना ही था | मोलड़ ने पूछ लिया कि उनके साथ का छोकरा कौन है ? और कहाँ से है ? प्रो ० विश्वबन्धु बताना तो नहीं चाहते थे पर मोलड़ के स्वभाव की सरलता और उसकी निश्च्छलता ने उन्हें कुछ कुछ भी छिपाने न दिया | | सब कुछ सुनकर मोलड़ ने कहा कि वे इस बिहारी छोरे को तुरन्त भगा दें | अपनी धर्मपत्नी रामप्यारी की ओर देखकर बोला कि आपकी यह बहू घर का सब काम -काज संभ्भालेगी | दोनों बच्चे मेरे साथ बड़े भाई के यहां रहेंगें | फिर अपनी पत्नी से बोला छोटू -मोटू की माँ आज मैं जो कुछ भी हूँ प्रोफ़ेसर साहब की वजह से हूँ | इनके चरणों की धूल लो | भीतर जाकर माता जी को पालागन करो | मैं जब तक भाई के घर पर बच्चों के साथ हूँ तुम्हें इसी घर में रहना है | बड़ों की सेवा करना और घर का काम -काज अपने हाँथ से करना | यही हमारे माँ -बाप और हमारे बड़ों ने हमें सिखाया है | बोलो तुम इस परीक्षा में पास हो सकोगी कि नहीं ? रामप्यारी ने मुस्कराकर पति की ओर देखा और बोली आपनें क्या फेल होने के डर से पढ़ाई छोड दी थी ? मैं आपके बच्चों की माँ हूँ आप प्रथम श्रेणीं में पास हुये थे तो मैं मैरिट में अपना स्थान बनाऊँगीं | प्रो ० विश्वबन्धु सुनकर गद्गद हो गये | उन्हें लगा कि भारत की संस्कृति अभी जीवित है और गृह कार्य उतना ही पवित्र है जितनी ईश्वर पूजा | इस विचारधारा को फिर से नवजीवन मिल सकता है | मोलड़ के माध्यम से प्रो ० विश्वबन्धु ने समाजशास्त्र का एक नया सत्य खोज लिया {
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