Sunday, 5 May 2019

                     शब्द भेदी बाण की मार करने में सम्पूर्णतः की उपलब्धि पाये हुये कुछ महानायकों की गाथायें हिन्दी भाषा -भाषी भारतीय जनों के प्रत्येक घर में गूंजती रहती हैं | मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पिता श्री महापुरुष दशरथ अपनें शब्द भेदी बाण के अप्रतिम कौशल के कारण ही एक भयानक श्राप से ग्रसित हो गये थे | और दिल्ली के अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के शब्द भेदी बाण की कौशल गाथा चन्द्र वरदायी के साथ जुड़कर भारत के शौर्य की अमर कहानी बन ही चुकी है | पर मैं शब्द भेदी बाण को उसके सीधे अर्थों में न लेकर एक लांक्षणिक अभिव्यंजना के रूप में ले रहा हूँ | शब्द भेदी बाण मैं उन शब्दों को समझता हूँ जिनमें बाण की भेदक शक्ति निहित रहती है | ऐसे सार्थक शुभ फलक वाले रचनात्मक शब्दों की नुकीली चोंट 'माटी  'अपनें कलेवर में संयोजित करना चाहती है जो उसके पृष्ठों से विकीर्णित होकर अन्तस्थल तक प्रवेश कर जाय और वहां धूमिलता ला दे | चेतना स्थलों को छिन्न -भिन्न कर उन्हें फिर से दीप्तिमान बना सके | भारत की आर्ष परम्परा में लिखित और वाचित दोनों ही प्रकारो में शब्दों का प्रयोग उज्वल सोपानों की ओर प्रेरित करने के लिये ही होता रहा है | निरन्तरता के उन सहस्त्रों वर्षों के दीर्घ काल में कुछ समय के लिये गिराव के झकोरे भी लगते रहे हैं पर सम्पूर्ण रूप से उन्नयन की प्रक्रिया ही मां संस्कृत और पुत्री हिन्दी की सनातन प्रक्रिया रही है | इन दोनों भाषाओं में और सच पूछो तो संस्कृत जन्मी और प्रभावित अन्य सभी भारतीय भाषाओं में नग्न वासना भी शब्दों के परिशोधन से गुजर कर कंचन की भांति चमकती दिखायी पड़ती है और इन्द्रिय विलास से ऊपर उठकर आत्म उन्नयन का साधन बननें में समर्थ हो जाती है | ललित साहित्य ही तो वह संजीवनी बूटी है जो मरणासन्न समाज को जीवित कर जीवन संग्राम में एक विजेता के रूप में परिवर्तित कर देती है |पिछली कई शताब्दियों से भारतीय होनें का गौरव हमें इतनी अधिक दीप्ति नहीं दे सका है कि हम विश्व को अपनी प्रभा से चमत्कृत कर सकें | इसका मुख्य कारण रहा है हमारा पराधीन होना  | पराधीनता राष्ट्रीय गौरव के लिये अभिशाप बन जाती है | हम अपनी भाषा ,अपनी संस्कृति ,अपनी जीवन शैली और अपनें आर्थिक उपादानों को सहज सन्तोष भरी द्रष्टि से नहीं देख पाते | विजेता कौमें अपनी भाषा ,जीवन शैली , और जीवन द्रष्टि विजित कौमों पर लाद देती हैं | मानव सभ्यता में इस प्रकार के उतार -चढ़ाव किसी भी प्रखर समालोचक बुद्धि की पकड़ में सहज रूप से आ जाते हैं | एक अत्यन्त दीर्घ काल तक हिन्दी भाषा की उपेक्षा सत्ता पोषित समाज के द्वारा होती रही है | स्वतन्त्रता के बाद भी शिखर पर बैठा हुआ नव कुलीन पूंजीवादी समाज विदेशी भेष -भूषा और विदेशी भाषा व्यवहार को अपनी श्रेष्ठता के रूप में प्रदर्शित करनें में लगा है | इसका हमें डटकर मुकाबला करना पड़ेगा | अधिक सम्पन्न घरों में विशेषतः विदेशों में बसे भारतीयों के घरों में अपनी मात्र भाषा का प्रयोग घर के उन छोटे -मोटे कामों के लिये ही किया जाता है जो सामान्य सामाजिक द्रष्टि में ऊँचे कार्य नहीं मानें जाते हैं | यही कारण है कि उन घरों में पली हुयी नयी पीढ़ियां अपनी मातृ भाषाओं के प्रति हीन भाव से देखनें लगती हैं | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रथम महारथी ने ,जो  कहा था वह आज भी कितना सार्थक है | इसे 'माटी ' के प्रखर पाठक ,विवेचक सहज रूप से गृहण कर सकते हैं |
                  " निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कर मूल
                     बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को शूल |"
अपनी मातृ भाषा में दक्षता प्राप्त किये बिना अंग्रेजी का ज्ञान बखारनें वाले दंभ्भी साहित्यकारों को ' माटी  'एक ललकार लगाती है | भारत की मातृभाषाओं में विश्व स्तर का साहित्य उपस्थित है | हिन्दी में बहुत कुछ ऐसा है जिसे रचना सौष्ठव और चेतना परिष्करण के सन्दर्भ में विश्वस्तरीय साहित्य के समकक्ष रखा जा सकता है | हम चाहते हैं कि ऐसी श्रेष्ठ रचनायें जो प्रकाशन के माध्यम से हिन्दी भाषा -भाषी विज्ञ समाज के समक्ष नहीं आ सकी हैं | 'माटी ' के माध्यम से आपके समक्ष पहुँच जायें | हिन्दी भाषा -भाषी पूँजीपतियों और आर्थिक द्रष्टि से समर्थ उच्च पदस्थ अधिकारियों से 'माटी ' यह मांग करती है कि वे अपनी मातृ भाषा की सेवा में सहयोग के लिये आगे आवें | भाषा की सेवा किन्हीं भी अर्थों में मन्दिर की पूजा से कम नहीं होती | इससे लोक व परलोक दोनों ही संवरते हैं | भारत के सामरिक शौर्य की अचूक वेधकता जो गणतन्त्र दिवस पर प्रदर्शित हो ही गयी है पर शब्द भेदी अचूक बाणों की वेधकता अभी हिन्दी भाषा के समर्थ शिल्पियों के लिये संशय का विषय बनी हुयी है | शब्दों में वाणों की वेधकता समेट कर प्राणों की ऊर्जावान धड़कन को संचालित और नियन्त्रित करनें के लिये ' माटी ' अपनी प्रतिबद्धता दोहराती है | इस दम -ख़म के लिये आपका सहयोग ही हमारा सम्बल है और हमारा सखेतक भी | 

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