Monday, 29 April 2019

                                                                                 लाल टोपी 

                 कल्लू खां  के घर पिछली रात को पांचवीं सन्तान ने  जन्म लिया | अल्ला -ताला  के नियम क़ानून बहुत अजीबो- गरीब होते हैं | बहुत सी बातें समझ के परे जान पड़ती हैं | कल्लू खां एक छोटी सी दुकान में टेलर मास्टर का काम करते हैं | आजकल खाते -पीते घर के लड़के -लडकियां ज्यादातर रेडीमेड कपडे पहननें लगे हैं | सिलाई के काम से कल्लू मियाँ का  गुजारा मुश्किल से चलता है | उनके काम में उनकी बीबी जोहरा भी कुछ मदद कर देती है | काज बनानें और बटन टांकनें में तो वह माहिर ही है | अब कटिंग की नयी डिजाइनें भी उसने सीख ली  हैं  पर शादी के पिछले आठ- नौ साल में वह पाँच सन्तानों को जन्म दे चुकी है | बच्चों का बोझ भी इतना बड़ा हो गया है कि उसे दम मारनें की फुरसत नहीं | कल्लू मियाँ के चाहनें पर भी अब वह सिलायी के काम -काज में हाँथ नहीं बटा पाती | खर्चा बढ़ रहा है और आमदनी घट रही है | सप्ताह में जुमें के दिन कल्लू मियाँ पीर की मजार पर जाते हैं | उन्हें उम्मीद है कि पीर साहब तरक्की का कोई न कोई जादुई रास्ता खोल देंगें | अभी तक कोई रास्ता खुलता नहीं दिखायी पड़ता था  पर उस दिन उर्दू के एक अखबार में खबर पढ़कर उन्हें अन्धेरे में रोशनी की एक झलक दिखायी दी कल्लू मियाँ ने पढ़ा कि उनके राज्य उ ० प्र ० में इलेक्शन की पूरी तैय्यारी हो चुकी है | समाजवादी पार्टी को हजारों लाल रंग की ख़ास किस्म की टोपियों की जरूरत है और कांग्रेस को भी सफ़ेद नेहरू गान्धी टोपियां ही पार उतार सकती हैं | बहुजन समाज पार्टी का नीला झण्डा और हाथी निशाँन और भारतीय जनता पार्टी का कई दलों वाला कमल तो माँग में रहेंगें ही साथ ही कई छोटी - मोटी पार्टियों के उम्मीदवार भी अपने चुनाव चिन्हों की प्रदर्शनी करना चाहेंगे | पार्टियों के अलावा सैकड़ों आजाद उम्मीदवार भी कुछ दिनों की अखबारी शोहरत हासिल करने की जोड़ -तोड़ करेंगें ऐसे में यदि चुनावी काम का ठेका मिल जाय तो ढेर सारी कमाई की जा सकती है पर ठेका मिलना कल्लू खां जैसे साधारण टेलर की तकदीर में लिखा नहीं होता | ऐसे ठेके तो पैसे वाली पार्टियां ही ले पाती है और अकेले पैसा होने से ही काम नहीं चलता इसके लिये सियासी तिकड़म लगाने की भी जरूरत होती है | कल्लू मियाँ का दिमाग इधर -उधर दौड़ने लगा | तदवीर करनें से ही तकदीर बनती  है जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो जुमें  के  दिन पीर साहब की मजार पर पहुंचे |
                             चुनाव के लिये नाम भरने की तारीख नजदीक आ रही थी और स्वाभाविक था कि पीर साहब की मजार पर माथा टेकनें और मन्नत मांगनें के लिये रसूलगंज  के उम्मीदवार अपने सहयोगियों के साथ इकठ्ठे हुये  , इन्हीं उम्मीदवारों में अहमद मियाँ भी थे | कल्लू खां नें अहमद मियाँ के विषय में काफी कुछ सुन रखा था | अहमद मियाँ ने भी एक छोटी सी दुकान से टेलर मास्टरी का काम शुरू किया था पर खुदा के रहमों फजल से उनका काम बढ़ता चला गया | उनका हुनर ,उनकी ईमानदारी और उनकी मिलनसारिता नें उन्हेँ बड़े -बड़े लोगों के घरों तक पहुंचा दिया अब शहर के हर कोनें में उनकी बड़ी -बड़ी दुकानें हैं जिन पर सैकड़ों प्रशिक्षित टेलर मास्टर का  काम करते हैं | अहमद मियाँ तो सिर्फ गाड़ी में बैठकर दुकानों का बस इंस्पेक्शन भर करते हैं और जहां कुछ जरूरत होती है वहां रहनुमाई कर देते हैं या हिदायत दे देते हैं |  इससे पहले  कल्लू मियाँ ने अहमद मियाँ से कभी मुलाक़ात न की थी पर उस दिन जब वे मजार  पर अपनी बड़ी गाड़ी से उतरे तो कल्लू खां उन्हें देखकर दंग  रह गया || उनका गोल-मटोल शरीर और चमकता चेहरा और सिर के ऊपर लगी ख़ास किस्म की दुपल्ली टोपी उन्हें एक निराली शान दे रही रही | कीमती शेरवानी और पाजामी में वे किसी नवाब से कम नहीं लगते थे | अपनी बड़ी गाड़ी से उतरकर वे कुछ देर इस बात के लिए बाहर खड़े थे कि उनका ड़्राइवर उतरकर उन्हें उनका सोने की मूठवाला बेंत पकड़ावे | कल्लू मियाँ ने आदाब अर्ज किया और कार के पिछले खुले दरवाजे से हाथ बढ़ाकर अन्दर से लपककर उनका बेंत उठाकर उन्हें पकड़ा दिया | अहमद मियाँ ने उनकी ओर देखकर जानना चाहा कि वे कौन हैं | कल्लू खां ने बताया कि वे एक अदना से टेलर मास्टर हैं और शहर के मीरगंज में उनकी एक छोटी सी दुकान है , पीर साहब की मजार पर हर जुमें  को आते हैं  और ये पीर साहब की मेहरबानी से ही मुमकिन हो सका है  कि वे अहमद मियाँ जैसे शहर के अमीर और इज्जतदार शक्सियत से मुलाक़ात कर सके हैं || अहमद मियाँ सुनते रहे और बेंत के सहारे धीरे -धीरे चलकर मजार तक पहुँचें |
                              पीर साहब की मजार पर भीड़ तो हर जुमे को होती ही थी पर उस दिन की भीड़ का  तो कोई अन्दाजा ही नहीं था | अहमद मियाँ को ही इतनें लोग घेरे थे कि कल्लू खां उनसे और बात करने का मौक़ा न पा सके पर उसने हिम्मत न हारी जब वे वापस गाड़ी में बैठने जा रहे थे तो वह उनके साथ पीछे -पीछे भीड़ में सेवाभाव से चलता रहा | गाड़ी में बैठकर अहमद मियाँ ने उसकी ओर देखा और फिर न जानें क्या सोचकर बोले  कल्लू मास्टर मेरे बँगले पर कल सबेरे दस बजे आ जाना | बँगला जानते हो न ? कल्लू ने हाँथ जोड़कर सलाम किया और कहा कि वह खिदमत में हाजिर होगा | अब कल्लू मियाँ को अहमद मियाँ के बँगले का पूरा अन्दाज़ा नहीं था पर उसने होशियारी बरतते हुये यह बात अहमद मियाँ को नहीं बतायी | वे जानते थे कि किसी भी इज्जतदार मुसलमान भाई से अहमद भाई के बंगले का पता चल जायेगा | कल्लू मियाँ को यकीन हो गया कि पीर साहब ने उनकी तरफ अपनी कृपा भरी निगाह फेर दी  है | इस बात को कहने की आवश्यकता नहीं है कि जो व्यक्ति पैसे से पैसा बनाना नहीं जानता वह कभी राजनीति का सफल खिलाड़ी नहीं हो सकता |
                                अहमद मियाँ 6 X 8 फुट की दुकान  से निकल कर एक एकड़ के दायरे में बनें बंगले तक  पहुंचें थे | राजनीति उनके लिये अपना व्यापार बढ़ाने का एक साधन थी | किसी एक राजनीतिक पार्टी से उनकी प्रतिबद्धता नहीं थी | राष्ट्रीय  और क्षेत्रीय सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख सूत्रधारों के नजदीकी लोगों से उनकी जान -पहचान थी | हर इलेक्शन उनके लिये लाखों रुपये की कमाई का साधन बनता था | टेलरिंग पेशे में उन्हें एक उस्ताद के रूप में जाना जाता था और वे देखकर ही अच्छे कारीगर की पहचान कर लेते थे | कहना न होगा कि हर पार्टी से झण्डे ,चुनावी निशाँन , और पार्टी की विशेष पहचान वाले पहिरावे का थोक ठेका ले लिया करते थे और अपनी वीसों दुकानों से शर्तों और समय के मुताबिक़ रेगुलर सप्लायी करते रहते थे | इतनी दुकानें होने पर भी कई बार काम का इतना रश होता था कि इसको पूरा करना कठिन होता था | अहमद भाई इस तलाश में रहते थे कि कोई ईमानदार और हुनरमन्द टेलर मिल जाय तो उसकी सुपरवाइजरी में 10 -15 मशीनें खरिदवा कर एक नयी दुकान चलवा दी जाय जहां पर ठेके का नियमित कार्य चलता  रहे अब इसे पीर साहब की मेहरबानी कह लीजिये या हिन्दुस्तान में जम्हुरियत का खेल कहिये या खुदा की नियामत कहिये या घटनाओं का संयोग कहिये कि कल्लू मियाँ की तकदीर उड़ान भरने लगी ,उनकी बनाई लाल टोपी  ने कमाल कर दिखाया | अखिलेश के सिर पर लगकर वह उ ० प्र ० की सिरमौर बन गयी | कल्लू मियाँ का काम चल निकला अब उनके नीचे नौ दस कारीगर काम करते थे | धीरे -धीरे मकान के पास पड़े एक टूटे -फूटे मकान को भी उन्होंने खरीद लिया और एक बड़ी  इमारत तैयार होने लगी | कल्लू मियाँ की बीबी जोहरा अब बच्चे बड़े हो जानें से लालन -पालन के दबाओं से मुक्त होने लगी | उसका शरीर भर गया और कल्लू मियाँ द्वारा तैयार डिजाइनदार कुर्ता -सलवार में वह काफी सुगढ़ दिखायी पड़ने लगी | सबसे छोटी सन्तान यानि 5 वर्ष का इमरान अपनी भूरी आँखों और पुष्ट शरीर में उछलता -कूदता एक रईस की सन्तान सा दिखायी पड़ने लगा | कल्लू मियाँ हर शुक्रवार को अकेले पीर साहब की मजार पर जाते थे फिर बीबी के साथ जानें लगे | कई महीनों में एकाधबार अहमदमियाँ के बंगले में जाकर सलाम मार आते थे | ज्यादा बातचीत नहीं होती थी | जब कभी अहमदमियाँ के बंगले पर जाते तो उन्हें कुछ सूना -सूना सा लगता | नौकर चाकर कई थे | खादिमाये भी कई थीं | एकाधबार ऊपर के  छज्जे में खड़ी बेगम साहिबा की झलक भी मिली थी पर छोटे बच्चे कभी देखने को नहीं मिले | कल्लू मियाँ सोचते थे कि शायद बच्चे और कहीं पल -पुस  रहे हों | एक दिन उन्होंने अहमदमियाँ के पास सलाम करने के लिये आये रफीक भाई से अहमद मियाँ के परिवार के विषय में कुछ जानना चाहा | रफीक भाई भी एक टेलर थे  और अहमदमियां की मेहरबानी से सम्पन्न हो गये  थे | रफीक भाई ने बताया कि अहमद मियाँ के कोई सन्तान नहीं हुयी है कि शादी के 20 -25 वर्ष हो गये  है | दो बीबियाँ हैं न पहली बीबी से कोई सन्तान हुयी न दूसरी बीबी से | अहमद भाई अब किसी को गोद लेने की सोच रहे हैं | कल्लू मियाँ ने भीतर ही भीतर खुदा के द्वारा बनायी निराली -निराली किस्मत की विचित्रता को गहरायी से अनुभव किया | या खुदा ,जिसको सन्तान की आवश्यकता है उसके पास सन्तान नहीं और जिसे अधिक सन्तान की आवश्यकता नहीं थी उसके घर सन्तान पर सन्तान भेजने का सिलसिला जारी | कल्लू मियाँ ने यह सब इसलिये सोचा क्योंकि उनकी जोहरा अब छठी बार माँ बननें वाली थी | और फिर एक दिन एक बहुत बड़ी चमचमाती गाड़ी कल्लू मियाँ के नये मकान के सामने खड़ी हुयी | कल्लू मियाँ लपककर बाहर आये तो उन्होंने पाया कि अहमद भाई और उनकी बड़ी बीबी दोनों गाड़ी से उतर रहे हैं | ड्राइवर ने आगे से उतरकर पीछे की खिड़की खोल दी है | कल्लू मियाँ ने लपककर उनदोनों का खैरमकदम किया कहा अल्ला ताला का शुक्र अहमद भाई और बड़ी बीबी ने आकर मेरे झोपड़े को इबादत की जगह बना दी | कल्लू मियाँ के बहुत आग्रह पर एक दो काजू मुंह में डालकर और चाय का आधा प्याला पीने के बाद अहमद भाई ने कल्लू मियाँ से सकुचाते हुये कहा कल्लू भाई तुम एक बेहतर इन्सान हो मैं आज तुम्हारे पास कुछ मांगनें आया हूँ बोलो जो मांगूंगा दे सकोगे | कल्लू मियाँ को विश्वास नहीं हुआ कि अहमद भाई को दुनिया में किस चीज की कमी है | वैसे भी वे अहमद भाई के अहसान के नीचे तो दबा ही था उसने कहा परवर दिगार ने आपको सब कुछ दे रखा है अहमद भाई आप मुझसे कुछ मांगनें की बात करते हैं अहमद भाई मैं आप पर अपनी जिन्दगी निछावर कर सकता हूँ | मुझ जैसे अदना इन्सान को आपनें कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया | अहमद भाई ने कहा देखो कल्लू मियाँ मेरी बड़ी बीबी आयशा तुम्हारी बीबी जोहरा के पास कुछ मांगनें गयी है अगर उसे उसकी माँगी हुयी अमूल्य निधि मिल जाती है तो वह तुम्हारी बीबी को साथ लेकर नीचे आयेगी | उसके बाद तुम्हें अपनी मन्जूरी देनी होगी |
                                                कुछ दिनों बाद शहर के हर बड़े अखबार में कई फोटुओं के साथ यह खबर छपी कि अहमद मियाँ ने कल्लू खां के पांचवें पुत्र इमरान को गोद ले लिया है | कि इमरान ही उनकी सारी जायदाद का वारिस होगा | कि कल्लू मियाँ  ही अब अहमद भाई के सारे व्यापार की देखरेख करेंगें और फिर नीचे दो पंक्तियों में लिखा था कि पीर साहब की मजार पर एक आलीशान दरगाह बनायी जायेगी जहां हर पीर ,फ़कीर और ईमानदार जरूरतमन्द को खुदा की नियामत हासिल होगी | 2019 के चुनाव ने लाखों परिवारों के लिये कल्याणकारी योजनायें प्रदान की हैं पर अहमद भाई और कल्लू मियाँ के इस निःस्वार्थ मित्रता से बहुत से लोग अवगत नहीं हैं 'माटी 'चाहेंगी कि कल्लू मियाँ के इस भाग्य परिवर्तन की कहानी को इलेक्शन के इतिहास में सुरक्षित रखा जाय | कितनी खुशी की बात है कि छठी सन्तान के रूप में जोहरा ने एक हष्ट -पुष्ट गोरे  और भूरी आँखों वाले बेटे को जन्म दिया है | कल्लू मियां ने इस बेटे का नाम रियाज अहमद रखकर अहमद भाई के प्रति अपनी कृतज्ञता का पुरुजोर अजहर किया है | जम्हुरियत में निष्पक्ष चुनाव से ही सामान्य जनों की तकदीरें बदलती हैं | निष्पक्ष चुनाव में भाग लेना खुदा की इबादत से कम  नहीं है | अल्ला -ताला  को लाख -लाख बार सलाम  |
                           

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