Saturday 13 October 2018

     समानान्तर कथा जाल

                  जर्मनी में प्रचलित जन कथा जो फेथफुल जान के नाम से जानी जाती है और दक्षिण भारत में प्रचलित राम और लक्ष्मण की पुरानी जन कथा में अद्दभुत समानता पायी जाती है। यह राम और लक्ष्मण महाकाब्य रामायण के राम और लक्ष्मण नहीं हैं। भले ही उनकी वफादारी और मित्रता महाकाव्यीय स्तर की हो। ऐसा लगता है कि जब आर्यों के विभिन्न कबीले अलग -अलग दिशाओं में चल पड़े तो उनके पास जनकथाओं का एक सम्मिलित भण्डार था एक कबीला गंगा और सिंन्ध की ओर चल पड़ा और दूसरा राइन और एल्बे की ओर।
                             इन कबीलों के पास जनकथा के मूल तत्व स्मृति में उपस्थित थे। एक अत्यन्त सुन्दरी राजकुमारी का चित्र के द्वारा या स्वप्न के द्वारा महान शक्तिशाली युवक राजकुमार के द्वारा देखा जाना। उस राजकुमारी की तलाश में अपने एक अत्यन्त विश्वश्त शूरवीर और शक्तिशाली साथी के साथ निकल पड़ना। घने जंगलों के बीच खुंखार पशुओं से मुठभेंड़ और रोमांचक विजय। ऊँचाई पर स्थित अभेद्य किले में बंद राजकुमारी तक पहुँचने के लिये आस -पास की गहरी जल भरी वर्तुल खदान में खुंखार जन्तुओं से लड़कर पार करने का प्रयास और किले की अभेद्य दीवालों पर चढ़कर करिश्मायी ढंग से अन्तर प्रवेश। प्रेम और मिलन और फिर दूर गये किसी अपावन शक्ति से जो किले में राजकुमारी को बन्द कर उसे विवश कर रहा था। जान लेवा मुकाबला विजय और विश्वश्त मित्र के साथ अपने राज्य की ओर प्रत्यागमन। रास्ते  में किसी पक्षी जोड़े की आपस में हुई बात चीत को सुनना। यह पक्षी चाहे  काग युग्म हो चाहे रात घुमन्तू उल्लू के प्रजाति के चाहे शुक -शुकी का जोड़ा हो या फिर हँस युग्म। राजकुमार का विश्वस्त मित्र उन सबकी भाषा का व्याख्याता विशारद तो होना ही  चाहिये  ताकि उनकी सूनी हुई बातों को वह समझ सके और राजकुमार और राजकुमारी को आने वाले संकठों से बचा सके। ऐसा करने में भले ही उसके प्राण जायँ या वह पथ्थर के रूप में बदल जाय इसकी उसे कोई चिन्ता नहीं होती और फिर अन्त में सुखद समाप्ति के पटाक्षेप का आयोजन होता है। सुखद पटाक्षेप का आयोजन अभिनीत हो जर्मनी की Faithful john शीर्षक नामक कहानी में राजकुमार सौन्दर्य सुन्दरी के चित्र को अपने पिता के महल की चित्र वीथिका में देखता है। राजा ने राज्य के अत्यन्त वीर और विश्वाश पात्र नवयुवक जान को चित्र वीथिका की रखवाली करने को कहा था। और उसे स्पष्ट निर्देश दिया था कि राज कुमार को कभी चित्र बीथिका में घुसने न दिया जाय और यदि वह आग्रह करे तो उसे सैनिकों द्वारा बन्दी बना लिया जाय पर जान था जो अपने बचपन के साथी राजकुमार के लिए एक क्या सैकड़ों जानें निछावर कर सकता था। सौन्दर्य सुन्दरी की तलाश में राज कुमार और जान दोनों एक नाव पर कीमती आभूषण और वस्त्र लाद  कर  व्यापारी के वेश में निकलते हैं। राजकुमारी के देश के पास समुद्र के किनारे नाव लंगर डालती है। नगर भर में आभूषणों ,वस्त्रों और प्रसाधन के सर्वथा नये साधनों से भरी नाव की चर्चा होने लगती है। राजकुमारी भी सैनिकों की रक्षा में नाव तक आती है। सैनिक किनारे खड़े होते हैं। राजकुमार नाव के अन्तिम हिस्से में चारो ओर से घिरे रेशम के एक गुम्मद नुमा विश्राम स्थल में बैठा है। फेथफुल जान राजकुमारी को भिन्न -भिन्न आभूषण दिखाता है और फिर उसे नाव में भरे विशाल आभूषण और वस्त्रों को देखने के लिये नाव पर चढ़ आने को कहता है। एक -एक करके देखती और आश्चर्य करती राजकुमारी और उसकी विश्वाश प्राप्त सहेली नाव पर आगे बढ़ती है। रेशमी गुम्बद को थोड़ा सा उठाकर राजकुमार राजकुमारी को देखता है और फिर जान को कुछ इशारा करता है अचानक तेजी से नाव चल पड़ती है और सैनिक जान ही नहीं पाते कि क्या हो रहा है। राजकुमारी और उसकी सुन्दरी सहेली आभूषणों को कलाईयों और गले में पहन -पहन कर देख रही है और बहाना कर रही है कि उन्हें नाव के चलने का पता ही नहीं है। शायद राजकुमारी ने भी राजकुमार का चित्र कहीं देखा हो या उसकी वीरता की चर्चा कहीं सुनी हो तो अब नाव को आगे तिरने दीजिये और आगे कौव्वा और कव्वी की बात चीत सुनकर फेथफुल जान के कारनामों की कहानी जानने  के लिये जर्मनी के कथा साहित्य पर नजर डालिये वहाँ अनेक छिपे रत्न आपको दिखाई पड़ जायेंगे। फिलहाल दक्षिण में प्रचलित जनकथा जिसे फेथफुल लक्ष्मण के नाम से अभिहित किया जा सकता है की ओर ले चलते हैं। राम ने किस प्रकार दक्षिणांचल की सौंदर्य सामग्री को लक्ष्मण की योजना से प्राप्त किया।
         इसका पूरा विवरण दक्षिण की कथा संग्रहों में आप पा सकते है। अभी तो हम राम और लक्ष्मण के साथ उनके गृह वापसी के दौरान क्या घटा इसकी चर्चा करना चाहेंगे। फेथफुल जान की तरह वफादार लक्ष्मण भी पक्षियों की भाषा का ज्ञाता है। राजकुमार और राजकुमारी रथ पर आगे जा रहे हैं। अश्वारोही लक्ष्मण रथ के कुछ पीछे आसपास सावधानी से देखता हुआ प्रेमी युगुल की रक्षा कर रहा है। अचानक एक पेंड़ की डाल पर बैठे दो उल्लुओं की बातचीत उसके कान में पड़ती है। नर उल्लू मादा उल्लू से कहता है कि राजकुमार और उसकी नवविवाहिता पत्नी पर तीन भयानक खतरे आने वाले हैं। पहला ख़तरा तो अभी कुछ देर बाद आयेगा जब एक बरगद के पेड़ की सड़कर गिरने वाली डाल उनके रथ पर गिरेगी। मादा उल्लू पूछती है कि दूसरा ख़तरा कौन सा आयेगा। नर उल्लू बताता है जब वह अपने नगर से पहले एक मेहराब के नीचे से गुजरेंगे तो वह मेहराब उन पर टूट कर गिरेगी। मादा उल्लू ने आगे तीसरे खतरे की बात जाननी चाही तो नर उल्लू बोला कि उसे आगे साफ़ -साफ़ दिखायी नहीं पड़ता ।  मादा उल्लू ने कहा   कि वह कोशिश करती है और देख कर बतायेगी फिर कुछ देर की चुप्पी हो गयी फिर मादा उल्लू बोली अरे यह तो एक काला नाग है जो राजकुमारी को काटने के लिये आगे बढ़ रहा है। नर उल्लू ने पूछा कि ऐसा कब और कहाँ होगा  ? मादा उल्लू बोली राजकुमार और राजकुमारी यानि राजा और रानी दोनों अपने शयन कक्ष में सो रहे होंगे। वफादार लक्ष्मण बाहर कुछ दूरी पर खड़ा होकर कभी स्फटिक शिला में बैठ कर उनकी सुरक्षा में जाग रहा होगा। एक काला नाग शिला के पास के भूतल में छिपे गुफा द्वार से निकलकर शयन कक्ष की ओर बढ़ता है और कपाटों की नीचे की सन्धि से शयन कक्ष की ओर घुस जाता है। रात्रि का तीसरा पहर है। राजकुमार और राजकुमारी प्रणय के बाद गहरी निद्रा में मग्न हैं। यह क्या सर्प ने राजकुमारी के मथ्थे पर दंश देने के लिये फन उठाया। पर यह मैं क्या देखती हूँ सजग लक्ष्मण पट खोलकर आ पहुचा और उसने अपनी कटार से विषधर का सिर अलग कर दिया। पर हाय -हाय विषधर के  मुँह की लार के साथ खून का कुछ अंश राजकुमारी के मथ्थे पर जा गिरा पर राजकुमारी अभी भी गहरी निद्रा में है। वह किसी गहरे स्वप्न लोक में डूबी है। नर उल्लू ने कहा तो अब क्या होगा। मादा उल्लू बोली कि वफादार लक्ष्मण नें अपने हाथ से विष भरे उस खून को साफ़ करना चाहा तो राजकुमारी जग जायेगी और उसे शक हो जायेगा कि फेथफुल लक्ष्मण के मन में कोई पाप छिपा है ।  नर उल्लू ने पूछा तो फिर लक्ष्मण को क्या करना चाहिये। मादा उल्लू ने कहा कि लक्ष्मण राजकुमारी के मथ्थे पर रेशम का एक हल्का रुमाल डाल दे। और जहाँ पर विष मिश्रित रक्त का बूँद पडा है उसे धीरे से अपनी जिव्हा से चाट ले। नर उल्लू ने कहा ऐसा करने में राजकुमारी जग भी तो सकती है। और फिर वफादार लक्ष्मण के म्रत्त्यु की आशंका भी तो है। मादा उल्लू बोली इसके आगे मुझे कुछ दिखायी नहीं देता अब सब कुछ होनहार पर निर्भर है। अश्वारोही लक्ष्मण ने नर और मादा उल्लू जोड़े के यह सब बातें सुनी और पूरी तरह समझ लीं तीनो खतरों में उसे क्या करना है यह तो उसने जान लिया पर यदि राज कुमारी जग गयी या राजकुमार जग गये तो उस पर क्या शक करेंगे इसे पूरी तरह से समझने में वह असमर्थ रहा ।  ,उसे विश्वास  था कि उसके निश्च्छल व वफादारी के उच्चतम आदर्श पर राजा (राजकुमार ) को कोई शक नहीं होगा। पर नियति के खेल को कौन जानता है । उल्लू जोड़े की सारी बातें आदर्श सखा लक्ष्मण नें पेंड़ की छाल काट कर बनाये गये एक पट्ट पर लिख लीं अन्त में उसमें   लिख दिया कि यदि उस पर राजा को कोई सन्देह हो जाता है तो काल के अधिष्ठाता नरसिंह उसे तुरन्त पथ्थर की मूर्ति में बदल दें। यदि विश्व की पवित्र शक्तियां उसे पथ्थर में नहीं बदलती तो पवित्र भावनाओं का सदैव के लिये अन्त हो जायेगा।

            सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा उल्लू जोड़े के बीच बातचीत में बताया गया था। लक्ष्मण ने वट  वृक्ष की डाल  गिरने से पहले ही अपनी शक्ति के बल पर रास्ते से अलग खींच कर खड़ा कर दिया और उसे दूसरे मार्ग से खींच कर फिर राह पर ले आया। मेहराब के नीचे से गुजरते हुये रथ पर जब मेहराब गिरने को हुई तो उसने घोड़े पर खड़े होकर अपने हाँथों से मेहराब को तब तक गिरने से रोके रखा जब तक उनका रथ मेहराब के नीचे से निकल नहीं गया और अब तीसरे खतरे की बारी आ गयी। फूलों से सजे सुवासित शयन कक्ष में राजा और रानी के मिलन की अविस्मर्णीय रात। स्वर्गीय आनन्द की अनुभूति फिर गहरी निद्रा में स्वप्न संचरण। नियति के प्रतीक के रूप में नागराज का आना फन  उत्तोलन और कटार  से  उनका विखन्डीकरण। सभी कुछ उल्लू युग्म ने देख लिया था। अब अपने वस्त्र के नीचे से पेंड़ की छाल की पट्टिका पर लिखी गोलाकार आकृति में लिपटी पाती आदर्श लक्ष्मण नें अपने वस्त्र के नीचे से निकाली और उसे राजकुमार के सिरहाने रख दिया आदर्श लक्ष्मण जानता था कि आगे जो होगा वह नियति के हाँथ में है। उसने रेशम की झीनी पट्टिका राजकुमारी के मत्थे पर डाली। विष मिला रक्त पट्टिका के ऊपर उभर कर आ गया। उसे जिव्हाग्र से चाट कर जैसे ही उसने सिर उठाया उसने देखा कि राजा (राजकुमार ) जाग गये हैं राजकुमार की आँखों में विस्मय के साथ सन्देह भी था और थी एक भर्त्सना जो लक्ष्मण के ह्रदय को शूल के तरीके से भेद गयी। उसने आँखें बंद कीं और काल पुरुष नरसिंह का स्मरण किया। क्षण मात्र में ही वह खड़ा -खड़ा पत्थर  की मूर्ति में बदल गया। लक्ष्मण के चरित्र पर सन्देह करने वाला राजकुमार जिसे राम राजा कहकर पुकार सकते हैं। अपने  मुँह को दोनों हांथों से ढके सोच में पड़ा था , वह सोच रहा था क्या लक्ष्मण भी वासना के दलदल में फँसकर मित्र घात कर सकता है। उसने कुछ प्रश्न आँखें खोलकर लक्ष्मण की ओर फेंकें पर कोई उत्तर न मिला यह क्या लक्ष्मण तो हिलता -डुलता ही नहीं। राम राजा उठे राजकुमारी को उठाया रानी और राजा दोनों नें हाँथ का स्पर्श करके पाया कि वहाँ लक्ष्मण नहीं बल्कि लक्ष्मण की प्रस्तर मूर्ति खडी है। अचानक राम राजा की निगाहें सिरहाने के पास रखी पाती पर पड़ी। राजा और रानी दोनों नें ही उल्लू युग्म द्वारा दिये गये खतरे की पूर्व सूचना और उनके निवारण के लिये लक्ष्मण द्वारा किये प्रयत्नों की जानकारी पायी। सब कुछ जानकर राजकुमार और राजकुमारी फूट -फूटकर रो पड़े। हे श्रष्टि के नियन्ता यह हमनें क्या कर डाला हमें पाप मुक्ति दो युगों -युगों तक लक्ष्मण की पवित्रता व वफादारी घर -घर में चर्चा का विषय रहेगी पर युगों -युगों तक मुझे प्रायश्चित्त की अग्नि में जलना पड़ेगा। प्रस्तर की मूर्ति केचरणों के  पास बैठकर राज कुमार और राजकुमारी नें प्रार्थना की मित्र लक्ष्मण मुझे नर्क की व्यथा से उबार लो। मेरे क्षणिक सन्देह को युगों -युगों के पश्चाताप में मत बदलो कुछ अवधि तो निश्चित करो। हे मित्र ,हे सखा ,हे बन्धु मुझे मुक्ति का मार्ग तो दिखाओ। आश्चर्यों का आश्चर्य तब हुआ जब मूर्ति नें पलकें हिलायीं और एक गहरा गड़गड़ाता स्वर निकला जैसे नरसिंह की दहाड़ हो राजन जब आपके और राजकुमारी के संयोग से पहली सन्तान का जन्म होगा और जब वह घुटनों से चलकर मेरा पहला स्पर्श करेगी तब मैं अपनी नर आकृति पा जऊँगा। इसमें कितना समय लगेगा यह नियति का विधान है और फिर वह दैवी वाणी सपाट सन्नाटे में बदल गयी।

              अब यह पाठकों के  हाथ में है कि प्रस्तर मूर्ति लक्ष्मण को कब नर काया में बदल दें दरअसल यह उनके हाथ में नहीं उनकी परिवार योजना की परिधि में आने वाला विचारणीय प्रश्न है। नव दम्पतियों के अलग -अलग उत्तर हो सकते है।  लेखक तो राम राजा और लक्ष्मण सखा की दक्षिण भारतीय कहानी में दिये गये काल प्रसार को ही आप तक पहुँचा कर आपसे आज्ञां लेना चाहेगा।

                    आठ वर्ष गुजर गये और तब हँसता मुस्कराता स्वर्ग प्रसून सा एक शिशु रानी की गोद में आया। अभी कुछ समय सीमा और बाकी थी। कुछ पखवारे और कुछ मॉस और बीते और फिर उस शयन कक्ष में घुटनों के बल चलकर आनन्द की किलकारी गूँज उठने लगी और एक दिन जब राजा और रानी उसे गोद में उठाने के लिये आगे बढ़े तो उस दिब्य शिशु में न जाने कहाँ की शक्ति आ गयी। किलकारी मारता हुआ वह घुटनों के बल तेजी से चल पड़ा और उसने प्रस्तर मूर्ति के चरणों पर अपने दोनों हाँथों से स्पर्श किया। एक अद्दभुत घटना घटी मूर्ति की पलकें हिलीं और क्षण के सतांश में प्रस्तर मूर्ति नर काया में बदल गयी। रक्त स्पन्दन प्रारम्भ हुआ। मूर्ति नें झुक कर शिशु को हाँथो में  उठाया और उसके दिब्य मस्तक पर एक अमिट चुम्बन की छाप लगा दी। आप सब जानना चाहेंगे कि फेथफुल जान की जर्मन कहानी में क्या कुछ ऐसा ही घटित होता है जैसा दक्षिणावर्त की भारतीय कहानी में , दोनों सभ्यताओं के अन्तर और समानता की चर्चा हम आप तक फिर कभी पहुँचायेंगे। आप चाहें तो दक्षिण के इन लक्ष्मण को लक्ष्मण रेखा से भी जोड़कर देख सकते हैं। 

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