Saturday 13 October 2018

      जनकथाओं का नीतिशास्त्र

                 हितोपदेश की इस कहानी से भारत के सभी शिक्षित -अशिक्षित परिचित ही होंगे क्योंकि यह कहानी बूढ़ी दादियों -नानियों और संस्कृत के पण्डितों के मुँह से न जाने कितनी बार भारत के घर -घर में दोहरायी जा चुकी है। कहानी में एक सर्व सीधा ब्राम्हण जो अपनी पीठ पर एक बकरी को लादे लिये जा रहा था तीन धूर्तों द्वारा एक सुनिश्चित मक्कारी भरी चाल के द्वारा ठग लिया जाता है। ब्राम्हण के रास्ते में यह तीनो धूर्त थोड़ी -थोड़ी दूरी का अन्तर दे कर खड़े हो जाते हैं। रास्ते में जब सरल ब्राम्हण बकरी को पीठ पर लादे हुये गुजरता है तो किनारे पर खड़ा पहला ठग उसे सम्बोधित करते हुये कहता है ,"पण्डित राज आप अपनी पीठ पर कुत्ते को लादे क्यों लिये जा रहें हैं ?"पण्डित भोले राम आश्चर्य में अपना मुँह मोड़कर पीठ पर लदी बकरी के मुँह की ओर देखते हैं ,आश्वस्त हो जाते हैं कि वे कुत्ते को नहीं वरन बकरी को ही पीठ पर लादे हैं। नाराज होकर ठग से कहते हैं ,"तुझे ठीक से नहीं दीखता। अपनी आँखों का इलाज़ करवा ले ,तुझे बकरी  कुत्ता दिखायी पड़ती है।"ठग मुस्करा कर कहता है ,पण्डित जी आँखें आपकी खराब हैं। उम्र बढ़ रही है। मुझे क्या । आप कुत्ते को पीठ पर लाद  कर जहाँ चाहें ले जाइये। पण्डित भोले राम लगभग ५० गज आगे बढ़ते हैं। पीठ का बोझा उन्हें कुछ थकाने लगा है। अब रास्ते के किनारे खड़ा दूसराधूर्त  ठग उन्हें राम -राम करता है और कहता है ,"अरे पण्डित जी आप अपनी पीठ पर कुत्ते को लादे हुये कहाँ ले जा रहें हैं। पण्डित जी फिर अपना मुँह मोड़कर पीठ की ओर देखते हैं उन्हें बकरी का ही मुँह दिखायी पड़ता है। "दूसरे ठग से कहते हैं ,"तेरा दिमाग खराब हो गया है। तुझे बकरी कुत्ता दिखायी पड़ती है ।" पण्डित जी और आगे बढ़ जाते हैं। ५० गज के बाद तीसरा धूर्त रास्ते के किनारे खड़ा मिलता है उसने पण्डित भोले राम से कहा ,"कमाल है पण्डित जी आप कितनी दूर से अपनी पीठ पर कुत्ता लाद  कर लायें हैं। हो सकता है इसने आपकी पीठ पर थोड़ा बहुत जल छिड़क दिया हो। " पण्डित जी आग बबूला हो गये फिर मुड़कर पीठ की ओर देखा। काफी देर तक  से लदे -लदे बकरी का मुँह उन्हें कुछ बदला सा लगा। उन्हें लगा कि बकरी नें में -में के बजाय क्याऊँ -क्याऊँ किया। उन्हें लगा कि तीन भले चन्गे आदमियों नें जो बात कही है उसमें सच्चई अवश्य होगी। शायद वे ही गल्ती पर हैं। उन्हें लगा कि उनकी पीठ पर कुछ नमी सी है। धत्त तेरे की ," साला पीठ पर लदे लदे टांग उठा रहा है। दस कदम आगे चलकर पण्डित जी नें बकरी को अपनी पीठ से उठाकर झाड़ी में फेक दिया और अपनी राह चले गये। सोचते गये ," छिः -छिः घर जाकर तुरन्त नहाना पड़ेगा। कितनी गलती हो गयी ऑंखें भी कितना धोखा दे देती हैं पीठ पर लदे -लदे शक्तिहीन बकरी झाड़ी में गिरकर उठने की तैय्यारी कर रही थी। पण्डित जी कुछ दूर आगे निकल गए थे। अब क्या था तीनो ठगों ने मिलकर बकरी हड़प कर ली। हितोपदेश की यह कहानी मुस्लिम आक्रमण के पहले ही घुमन्तू विद्वानों के द्वारा अरब देशों में पहुच चुकी थी और वहां से थोड़ा बहुत फेर बदल के साथ यह कहानी योरोप के लगभग सभी देशों में अपने बदले रूपों में देखने को मिलती है।

                                                      हितोपदेश की कहानी का मूल आधार अभी तक भारत के सामान्य जन व्यवहार में स्वीकृत किया जा रहा है। तीन बार कही हुयी बात अब भी प्रामाणिक मानी जाती है। यदि कोई तिरबाचुक शपथ उठा लेता है तो ऐसा माना जाता है कि शपथ तोड़ने पर अद्रश्य नैतिक शक्तियाँ उसके लिए दण्ड विधान की योजना बना लेती हैं। आइये अब जर्मन में प्रचलितएक  लोक कथा पर भी निगाह डाल लें।

                                                    कहानी का कलेवर बदला हुआ है और उसमें भी तीन की संख्या पर अधिक बल दिया गया है। तीन सयाने चोर या ठग जिन्होंने बिना हिंसा किये अपनी धूर्तता से बहुतों को ठगा -लूटा था अपने आस -पास के क्षेत्र में अपने काइयापन के लिए चर्चित हो रहे थे। जिन दिनों की यह बात है उस समय गाँव के आस -पास घनी मात्रा में जंगल ,झाड़ियाँ ,त्रण ,गुल्म, लतायें और विटप आच्छादन हुआ करते थे। चौर्य कार्य में उस्ताद माने जाने वाली इस तिकड़ी में बीस वर्षीय एक नवयुवक शामिल होने की प्रार्थना लेकर आया। तिकड़ी बोली कि उसे तभी शामिल किया जायेगा जब वह अपनी उस्तादी साबित कर दे और दिखा दे कि वह तिकड़ी में शामिल होने योग्य है। पास ही के गाँव से एक किसान जिसे धन की कुछ जरूरत आ पड़ी थी अपना एक बैल लेकर बाजार में बेचने जा रहा था। धूर्तों की तिकड़ी नें चुनौती दी कि अगर वह नवयुवक इस बैल को हिंसा के बिना किसान से हथिया ले तो वह पहली परीक्षा में पास हो जायेगा। किसान  के पास तीन बैल है। एक बैल खोकर वह  दूसरा बैल बेचने के लिये आयेगा और यदि दूसरा भी खो गया तो मजबूर होकर तीसरा बैल भी बाजार में बेचना चाहेगा। यदि ऐसा होता है तो आगे वे दोनों बैल भी बिना हिंसा किये हथियाने पड़ेंगे। यदि वह नवयुवक ऐसा कर लेता है तो वह तिकड़ी में तो  शामिल होगा ही साथ ही वह सबका सरदार मान लिया जायेगा। कठिन चुनौती थी पर धूर्त राज बनने के लिये श्रेष्ठ बुद्धि का नकारात्मक प्रयोग एक अनिवार्यता बन गयी थी।

नवयुवक नें एक चाल सोची उसने बढ़िया नक्काशी किया हुआ एक जूता तैयार करवाया। जूता इस कुशलता के साथ तैयार किया गया था कि उसे दांयें या बाएँ किसी भी पैर में पहन लिया जाये। बिना जूता पहने किसान अपने बैल को झाड़ियों के बीच बने रास्ते से बाजार की ओर ले जा रहा था। धूर्त परीक्षार्थी नें रास्ते में नक्काशीदार जूता रख दिया और झाड़ियों में छिप गया। किसान नें पास पहुँच कर जूते को देखा और बहुत खुश हुआ पर अकेले एक जूते को लेकर क्या करता। वह बैल को लेकर आगे चल पड़ा। धूर्त परीक्षार्थी जो जो झाड़ियों में छिपा था निकल कर बाहर आया जूता उठाया और फिर झाड़ियों में से झुककर गुजरता हुआ एक छोटे रास्ते से किसान से आगे उसी रास्ते पर पहुच गया जिस पर किसान अपने बैल को लिये जा रहा था। उसने वह जूता रास्ते पर रख दिया और छिप कर पास ही झाड़ियों में जा बैठा। किसान वहाँ पहुचा उसने जूता देखा और फिर खडा होकर सोचने लगा पीछे छूटा हुआ जूता और  यह जूता दोनों का जोड़ा कितना अच्छा रहेगा। उसने बैल को एक पेंड़ की लटकी डाली   से बाँध दिया और पीछे पड़े जूते को उठाने के लिये लौट पड़ा। कहना न होगा कि इस बीच धूर्त परीक्षार्थी नें बैल को खोलकर झाड़ियों के बीच छिपे रास्ते से निकाल कर धूर्त तिकड़ी के अड्डे पर पंहुचा दिया। पेड़ों ,लताओं और झाड़ियों से घिर कर यह अड्डा पास होकर भी सर्वथा सुरक्षित था और यहीं पर उस धूर्त तिकड़ी द्वारा ठगा गया माल -टाल पत्थरों से ढकी भूमिगत गुफा में इकठ्ठा किया गया था। धूर्त परीक्षार्थी पहली परीक्षा में पास हो गया।

                                                                 बेचारा किसान  करता क्या न करता कुछ दिन बाद दूसरा बैल लेकर बाजार की ओर चल पड़ा। धूर्तता की यह एक नयी चाल दिखाने का एक मौक़ा आ गया। रास्ते में एक पेंड़ की डाल  परअपने पन्जे से डाल को दबाकर धूर्त परीक्षार्थी उल्टा  लटक गया कालाबाज तो वह था ही उसने यह नाटक इसलिये किया कि शायद किसान उसे मुसीबत में फंसा देखकर कुछ मदद देने की सोचे। पर किसान अब होशियार था। उसने देखी अन देखी कर अपनी राह पकड़ी । धूर्त परीक्षार्थी सीधा होकर सावधानी से कूदकर झाड़ियों के बीच छिपे रास्ते से किसान से आगे निकल आया और फिर उसी मुद्रा में रास्ते के पास के एक डाल में लटक गया। किसान अबकी बार कुछ देर रुका। धूर्त नवयुवक के याचना भरे मुख पर एक निगाह डाली फिर न जाने क्या सोचकर आगे चल पड़ा उसके थोड़ा आगे जाते ही धूर्तता की सरदारी का परीक्षार्थी फिर सीधा होकर सावधानी से नीचे कूंदा। झाड़ियों से ढके एक शार्ट कट से तेजी से चलकर किसान से आगे उसी राह पर आकर रास्ते में खड़े एक पेंड़ की डाल से उसी मुद्रा में लटक गया। रास्ते में उसने अपने चेहरे पर मिट्टी और पत्तियों को मसल कर एक हरी सलेटी परत चढ़ा ली थी। किसान ने उसे देखा। ताज्जुब में आ गया। उसने सोचा कि यह एक ही आदमी है या कोई अलग -अलग आदमी हैं। चेहरे को देखने पर उसे कुछ समझ में नहीं आया  उसने सोचा थोड़ा पीछे जाकर वह देख ले कि दूसरा आदमी अभी लटका है या नहीं। सौ -पचास कदम का फासला ही तो है।बैल कहाँ भागकर जायेगा। बैल को वहीं छोड़कर वह पीछे लौट पड़ा अब क्या था बिजली की तेजी से बैल की रस्सी धूर्त राज के हाँथ में आ गयी और दूसरा बैल भी तिकड़ी के अड्डे में पहुच गया। किसान के पास अब रह ही क्या गया था? क्या करे घर में तो बीज भी नहीं थे यह तो अच्छा ही हुआ कि वह लकड़ी के हल से खेत पहले ही जोत चुका था। अब अगर उसमें बीज पड़ जायँ तो उसमें कुछ फसल हो जायेगी। फसल होने पर फिर बैल ले लिया जायेगा। अब इस तीसरे बैल को बेचकर बीज  का और फसल होने तक  कुछ खाने -पीने का इन्तजाम किया जाये बड़ी सोच विचार के बाद एक दिन किसान अपने तीसरे बैल को लेकर बाजार की ओर चल पड़ा अन्तिम परीक्षा की घड़ी आ  गयी। धूर्तों की तिकड़ी की सरदारी अब पास ही दिखलायी पड़ने लगी। पर कौन सी चाल चली जाये। धूर्त परीक्षार्थी बुद्धि का तेज तो था ही पशुओं की बोलियाँ बोलने में भी अपना सानी नहीं रखता था हमारे पाठक शायद यह न जानते हों कि हर गाय बैल के रम्भानें में एक समानता दिखायी पड़ती है ।  पर हर रभ्भांस दूसरे रभ्भास से कुछ भिन्नता भी रखती है। धूर्त परीक्षार्थी नें किसान के दोनों बैलों की रभ्भांस को प्रयास करके अपनी आवाज के जादू में बाँध लिया था। अबकी बार उसने किसान को आगे राह पर जाने दिया। वह छिप  कर पीछे -पीछे चलता रहा। जब किसान उस जगह से आगे निकल गया जहाँ से उसका दूसरा बैल ठगा गया था तो धूर्त परीक्षार्थी एक अत्यन्त घनी छैलदार झाड़ी के भीतर छिपकर बैठ गया।। वहां से उसने बैल की आवाज निकाली। किसान को लगा कि उसका बैल जिसे वह विडी कहकर पुकारता था बोल रहा है। उसने कहा विडी -विडी।   धूर्त परीक्षार्थी नें दो तीन आवाजें निकाल  कर किसान की पुकार का उत्तर दिया और फिर उसने एक दूसरे प्रकार की रभ्भास निकाली। किसान को लगा कि उसका बैल किडी भी दूसरे बैल विडी के साथ है। उसने सोचा कि दोनों बैल कहीं जंगल में भटक गये होंगें और अब कहीं शायद इसकी झोपड़ी की तलाश में झाड़ियों के बीच भूले -भटके हैं। उसका मन प्रसन्नता से भर गया तीसरे बैल की रस्सी एक डाल से लटकाकर वह पीछे लौटकर उसी झाड़ियों के बीच भटक रहे दोनों बैलों को लेने के लिये मुड़ा। अब क्या था आनन-फानन तीसरा बैल भी झाड़ियों की खर -खर के बीच न जाने कहाँ से तिकड़ी के अड्डे पर पहुच गया। धूर्त परीक्षार्थी शत -प्रतिशत अंक लेकर उतीर्ण हो चुका था।
                  तीनो धूर्त शर्त के मुताबिक़ उसे अपना सरदार मानने पर मजबूर थे। सरदार होने का मतलब था कि उसे वह सब माल -टाल दिखाना होगा जो उन तीनो नें बहुत लम्बे समय से अपनी धूर्तता के बल पर ठग -लूट कर इकट्ठा किया था। धूर्त परीक्षार्थी केवल तीन बैल लाकर ही सोना -चांदी और रत्नों के भण्डार का मालिक होने जा रहा था। कैसे बर्दाश्त किया जाय उन तीनों ने मिलकर एक सांठ -गाँठ की सरदारी परीक्षा पास धूर्त नवयुवक को चतुरायी पूर्वक रास्ते से हटा दिया जाय। जर्मन कहानी का यह बदला हुआ स्वरूप सोमदेव भट्ट की हितोपदेश वाली भोलेराम ब्राम्हण की कहानी से काफी कुछ भिन्न है पर तीन की संख्या पर अत्यधिक बल होने के कारण ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं इन दोनों कहानियों का मूल स्रोत एक ही रहा होगा । इसी प्रकार की एक कहानी नार्वे में भी प्रचलित है जिसे Shifty Sandy के नाम से जाना जाता है। योरोप के कई अन्य देशों में भी इसी प्रकार की मिलती जुलती कहानियां सामान्य घरों के बीच सुनी -सुनायी जाती हैं। ऐसा लगता है कि अलग -अलग दिशाओं में आर्यों के भिन्न -भिन्न कबीले हजारों वर्ष पहले जब नये -नये भू भागों की तलाश में चल निकले तो उन सबके पास कथाओं की एक सम्मिलित पूँजी थी जो बाद में बढ़ -फैलकर भिन्न रूपों और भिन्न भौगोलिक परिस्थतियों में विस्तार की अतिशयता पा गयीं। कथाओं के इस तुलनात्मक अध्ययन पर हम फिर कभी प्रकाश डालना चाहेंगे। इस सन्धर्भ में यूनान ,मिस्र ,परशिया और बेवीलोन की कथाओं को भी समावेशित किया जायेगा। पर अभी तो आप सब यह जानना चाहेंगे कि तिकड़ी की सरदारी का इम्तिहान पास करने वाला धूर्तराज नवयुवक तिकड़ी के रास्ते से हटा या नहीं हटा और जर्मन कहानी का जन कथात्मक पटाक्षेप किस भांति अभिनीत हुआ। तो आइये संक्षेप में पटाक्षेप की ओर बढ़ें।
                  कौआ तिकड़ी नें सोचा कि सबसे पहले उन्हें अपने छिपे खजाने को इस स्थल से उठाकर कहीं और छिपाना होगा। अभी तक उनके सरदार होने वाले धूर्तराज का खिताब जीतने वाले नवयुवक को उनके खजाने का पता नहीं था पर जब वह शैतान के चित्र को सामने रखकर नवयुवक को सरदार बनाकर अपनी शपथ ले लेंगे तो उन्हें भूतल के गर्भ में छिपे अपने खजाने का पता उसे बताना ही होगा । पर खजाने को ले जाने के लिये उन्हें एक गाड़ी चाहिये बैल तो उनके पास हैं हीं उन्हें कहीं से ठगकर गाड़ी लानी होगी । उन्होंने उस नवुवक से कहा कि वे कुछ दिनों के लिये किसी ऐसे काम पर जा रहें हैं जो यह साबित कर दे कि वे नवयुवक सरदार के साक्षी होने योग्य हैं। नवयुवक सरदार को उन्होंने  वहीं रूककर स्थान और बैलों की देखभाल करने को कहा। बुद्धिमत्ता की नाप तौल में पशुओं के संसार में कुत्ते और घोड़े बैलों से और अन्य पशुओं से बाजी मार गये  हैं। पर बैल भी है जो अपने मालिक की वफादारी पूरी तरह निभाते हैं ,उसकी आवाज को पहचानते हैं और उसके सुख -दुःख में शरीक होते हैं। तीनो बैल तिकड़ी के उस अड्डे में बंधे रहकर बहुत बेचैन महसूस करते थे। मोटी रस्सी तुडाकर भागांन मुमकिन न था पर उनकी पशु खोपड़ियां किसी मौके का इन्तजार कर रहीं थीं। धूर्त राज नवयुवक  जिसने अपनी चालों से सरदार का पद जीत लिया था अब अकेले में पड़ा -पड़ा कुछ सोचा करता था। वह भीतर ही भीतर जान गया था कि तिकड़ी उसे रास्ते से हटा देने की तरकीब खोज रही है पर जर्मनी के उस शिफील्ड नामक वन्य इलाके के शेरिफ माइकेल हेनरिच कुछ और ही प्लान बना रहे थे।                               

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