Sunday 15 July 2018

स्पष्टीकरण 

हो पूछ रही
आधार अस्वीकृति का मेरी
आलेख असंगति का मेरी
मेरे विजड़न का अर्थ
पलायन की गाथा
क्यों आत्म -दैन्य से
झुका रहा मेरा माथा
जो दर्द शब्द से परे
न उसको कहलाओ
जो व्यथा -घाव भर रहा
न उसको सहलाओ
माना रंगणि, स्वीकार न पाया
वह मेँहदी से रचा हाथ
माना मेरे पग विचल  गये
चल सका न तेरे साथ साथ
माना पायल की रुनझुन पर
कल्पना -गीत ,प्रिय , बन न   सका
गोरी चन्दा की किरणें नांची बहुत
मगर हिम -श्वेत चँदोवा तन न सका
इसलिये भीरु ?
स्वीकार तुम्हारा सम्बोधन
गति शील बनूँ ?
स्वीकार तुम्हारा उद्बोधन
हूँ उत्तरदायी
यह समाज का न्यायालय
इसका प्रधान स्वीकार मुझे
इसका विधान स्वीकार मुझे
पर इतना तो अधिकार
मुझे भी दो रूपसि
जड़ -लौह शिलाओं से वन्दित
अभियुक्त सही
जो सत्य -खण्ड मैनें देखा है , जाना है
कह सकूं काव्य के माध्यम से
कुछ क्षण की ही
यह मुक्ति सही |
मैनें सोचा ,
कैसे गुलाब का फूल तोड़  लूँ गमले से
जब कहीं न कोई मेरी अपनी क्यारी है
यह छुई मुई की लता सलोनी संकोची
कैसे छू लूँ
जब मेरा यह स्पर्श काँच सा भारी है
मैनें सोचा
चाँदनी कपासी धरती पर सिर धुन धुन कर पछ्तायेगी
मैनें सोचा
यह कुहकिन ,प्रस्तर पिंजड़े में क्या राग बसन्ती गायेगी ?
ये हाथ
कि जिनमें हीरे नीलम झूलेंगें
हिमदात चन्द्रिका इन्दीवर पर झूल रही
यह रंग रंगीले नाखूनों की नख -साजी
मानों गुलाब की पतली क्यारी फूल रही
मैं कर न सका स्वीकार
सुनहरे हाथ
करूं  दूषित इनको
हल्दी की पीली लाली से
बर्तन की खुरचन काली से |
  माना तुमनें दो बार
मुझे बतलाया था
सीता का पति के साथ साथ
वन को जाना
कुछ याद नहीं
फिर भी  ,शायद , तुमनें मुझको
 समझाया था
युग -पुरुष काल से
सावित्री का टकराना
पर क्षुद्र बुद्धि मैं क्षुद्र प्राण
मैनें सोचा
इच्छित वनवास नहीं मेरा
मैं तो सदैव का वनवासी
चौदह वर्षों की बात नहीं
मैं तो युग युग का अधिवासी
मैं सत्यवान सा गत -वैभव
पर  राजपुत्र हूँ नहीं किसी अधियन्ता का
मैं एक वर्ष से अधिक अवधि का आकांक्षी
क्रम तोड़ न पाओगी तुम किसी नियन्ता का
सब ओर देख मैनें , सोचा
 मेरा दुख दैन्य तुम्हें अभिशप्त न कर जाये
तुम फूल सेज पर पलीं
गर्म धरती पर पड़ कुम्हलाओगी
तुम प्रिया रूप में मधुर
न पर
जीवन -संगिनि बन पाओगी
तुम खिलो किसी की बगिया में
लेटो गुलाब की सेजों पर 
तुम गुलदस्तों का फूल बनों
सज कर कंचन की मेजों पर
इसलिये शुभे
मैं कर न सका स्वीकार  सुनहरे हाथ
करूँ दूषित इनको
हल्दी की पीली लाली से
बर्तन की खुरचन काली से |





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