पिया - मिलन
रखने को अपना दिया वचन
प्रियतम से मिलनें नदी पार
मैं पहुँच न पाया कभी ,क्योंकि
पुल खोज खोज मैं गया हार |
थे रहे बीतते यों ही दिन
मैं काम काज में उलझ गया
पुल बननें की फिर खबर मिली
सोचा अब मसला सुलझ गया |
बन ठन कर तेल फुलेल लगा
मैं चला प्रिया से मिल आने
देखा कटाव के पार खड़ी -
वह सस्मित गाती थी गानें |
फिर कोई पल में पैर तीर सा
पहुँच गया था नदी पार
तब कुसुम- लता सी झूल उठी
बाहों का देकर हृदय - हार
था वक्ष , वक्ष से मिला अधर
अधरों से मिलकर हुये लाल
द्रढ़ कन्धों पर नर के झूमे -
नारी के मोहक बाल -जाल |
मैं खड़ा देखता रहा हाय !
अपना सुख का संसार ढ़हा
क्षण -भर में पुल हो खण्ड -खण्ड
जल के प्रवाह में बिखर बहा |
जो पैर पार कर जाते हैं -
जग सरिता का दुर्गम प्रवाह
उनकी चट्टानी छाती पर -
नारी की टिकती अमिट चाह |
रखने को अपना दिया वचन
प्रियतम से मिलनें नदी पार
मैं पहुँच न पाया कभी ,क्योंकि
पुल खोज खोज मैं गया हार |
थे रहे बीतते यों ही दिन
मैं काम काज में उलझ गया
पुल बननें की फिर खबर मिली
सोचा अब मसला सुलझ गया |
बन ठन कर तेल फुलेल लगा
मैं चला प्रिया से मिल आने
देखा कटाव के पार खड़ी -
वह सस्मित गाती थी गानें |
फिर कोई पल में पैर तीर सा
पहुँच गया था नदी पार
तब कुसुम- लता सी झूल उठी
बाहों का देकर हृदय - हार
था वक्ष , वक्ष से मिला अधर
अधरों से मिलकर हुये लाल
द्रढ़ कन्धों पर नर के झूमे -
नारी के मोहक बाल -जाल |
मैं खड़ा देखता रहा हाय !
अपना सुख का संसार ढ़हा
क्षण -भर में पुल हो खण्ड -खण्ड
जल के प्रवाह में बिखर बहा |
जो पैर पार कर जाते हैं -
जग सरिता का दुर्गम प्रवाह
उनकी चट्टानी छाती पर -
नारी की टिकती अमिट चाह |
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