Friday 11 May 2018

चाँद की मिट्टी 

अविश्लेष्य , संज्ञाहीन
उमड़ा है कोई भाव
आबद्ध मन - प्राण
अननुभूत , आह्लादक
एल.  एस. डी. तरंग
मारिजुआना किक
समवेत कीर्तन- स्वर
रति की चरमोपलब्धि
सभी साम्य झूठे हैं
शब्द अभी रूठे हैं |
दुहराये शब्दों को
क्षीण - प्राण काया में
बीता युग सिमटा है |
अन्धी सहस्त्राब्दियाँ
मर्दित - मानव मूल्य
नयी संवेदनायें , नव्यतर युग -मूल्य
चाँद की मिट्टी में अब उग आये हैं |
नया मन जन्मा है
टटकी सुवास लिये
ग्रीष्म की प्यास लिये
भावों की ताजी पौद फिर पनप आयी है |
हरी हरी घास की बिछावन सी
ईख की बाढ़ सी
बदली अषाढ़ सी
साहचर्य अतिरिक्त प्रणय की कल्पना
प्राण पर छायी है |
नयी संवेदना की पुलक तरंगों को
मन के हर कोनें से
बह -बह  कर आनें दो
सुरसरि बन जाने दो | 

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