कवि उवाच
बड़बोलापन न कहा जाये तो कहूँ कि इस संग्रह की कवितायें ऐसे पाठकों की मांग करती हैं जो विकासक्रम में चिन्तन के एक विशिष्ट आधार पर आ खड़े हुये हैं | आभिजात्य की यह विकासवादी संकल्पना वर्ग या समूह से मुक्त मानवता के सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में की जा रही है | ऐसा नहीं है कि इन कविताओं में अन्तर्निहित चिन्तन सर्वथा अनूठा है या कि इनकी देहयष्टि सर्वथा निराले सांचों में ढली है पर इतना तो है ही कि इनमें कहीं कुछ ऐसा है जो इन्हें भीड़ से अलग एक इकाई के रूप में प्रतिष्ठित करता है | आपकी नजर का पैनापन इन कविताओं के बाँकपन को पकड़ सके इसके लिये धैर्य की अपेक्षा होगी | विचार सूत्र की एकतानता यदि खोजनें पर भी न मिले तो कवि को इससे सन्तोष ही होगा | उधार लिया हुआ कोई भी क्षण कम से कम चेतन धरातल पर --कवि के जीवन में सार्थक नहीं रहा है और ऐसा होते हुये भी यदि कोई संश्लिष्ट बिम्ब कविताओं के माध्यम से आप तक नहीं उभरता तो इसे कवि मानस का बिखराव ही मानना होगा | जिसे स्वीकार करनें में कवि कोई हेठी नहीं समझता | जो कुछ लिखा गया है उससे अच्छा क्यों नहीं लिखा गया या कब लिखा जा सकेगा आदि प्रश्न प्रबुद्ध पाठकों के लिये सुरक्षित हैं और कवि इनमें दखलन्दाजी न करने का मुखर आश्वासन देता है | पढ़कर आप जो भी कहेंगें सुननें के योग्य होगा पर बिना पढ़े कुछ कहनें का अधिकार राजनीति आप को दे तो दे पर साहित्य तो देता नहीं | कुछ डिगरीधारी आलोचकों नें संग्रह में आत्मकेन्द्रित एकोन्मुखी जीवन दर्शन पाने का दावा किया है | उनसे मेरा निवेदन है कि ' वासुकि वीणां ' की कवितायें अस्मिता का अहसास तो कराती हैं पर यह अहसास मरणोन्मुखी व्यक्तिवादी चिन्तन का भाग बनकर नहीं वरन समग्र मानव जाति के कालातीत चिन्तन का भाग बनकर ही उभरा है |
संग्रह की अनेक रचनायें पत्र -पत्रिकाओं तथा आकाशवाणीं द्वारा एक काफी बड़े वर्ग तक पहुँच चुकी हैं पर ' वासुकि वीणां ' में काफी कुछ ऐसा भी है जो आप तक पहली बार पहुंच रहा है | कहते हैं श्रष्टा का अहंकार नभ -चुम्बी होता है और इसीलिये कवि किसी से कभी कुछ माँगता नहीं पर यदि आप दे सकें तो कवि को वाद - मुक्त लेखन का अधिकार अवश्य दीजियेगा |
विष्णु नारायण अवस्थी
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बड़बोलापन न कहा जाये तो कहूँ कि इस संग्रह की कवितायें ऐसे पाठकों की मांग करती हैं जो विकासक्रम में चिन्तन के एक विशिष्ट आधार पर आ खड़े हुये हैं | आभिजात्य की यह विकासवादी संकल्पना वर्ग या समूह से मुक्त मानवता के सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में की जा रही है | ऐसा नहीं है कि इन कविताओं में अन्तर्निहित चिन्तन सर्वथा अनूठा है या कि इनकी देहयष्टि सर्वथा निराले सांचों में ढली है पर इतना तो है ही कि इनमें कहीं कुछ ऐसा है जो इन्हें भीड़ से अलग एक इकाई के रूप में प्रतिष्ठित करता है | आपकी नजर का पैनापन इन कविताओं के बाँकपन को पकड़ सके इसके लिये धैर्य की अपेक्षा होगी | विचार सूत्र की एकतानता यदि खोजनें पर भी न मिले तो कवि को इससे सन्तोष ही होगा | उधार लिया हुआ कोई भी क्षण कम से कम चेतन धरातल पर --कवि के जीवन में सार्थक नहीं रहा है और ऐसा होते हुये भी यदि कोई संश्लिष्ट बिम्ब कविताओं के माध्यम से आप तक नहीं उभरता तो इसे कवि मानस का बिखराव ही मानना होगा | जिसे स्वीकार करनें में कवि कोई हेठी नहीं समझता | जो कुछ लिखा गया है उससे अच्छा क्यों नहीं लिखा गया या कब लिखा जा सकेगा आदि प्रश्न प्रबुद्ध पाठकों के लिये सुरक्षित हैं और कवि इनमें दखलन्दाजी न करने का मुखर आश्वासन देता है | पढ़कर आप जो भी कहेंगें सुननें के योग्य होगा पर बिना पढ़े कुछ कहनें का अधिकार राजनीति आप को दे तो दे पर साहित्य तो देता नहीं | कुछ डिगरीधारी आलोचकों नें संग्रह में आत्मकेन्द्रित एकोन्मुखी जीवन दर्शन पाने का दावा किया है | उनसे मेरा निवेदन है कि ' वासुकि वीणां ' की कवितायें अस्मिता का अहसास तो कराती हैं पर यह अहसास मरणोन्मुखी व्यक्तिवादी चिन्तन का भाग बनकर नहीं वरन समग्र मानव जाति के कालातीत चिन्तन का भाग बनकर ही उभरा है |
संग्रह की अनेक रचनायें पत्र -पत्रिकाओं तथा आकाशवाणीं द्वारा एक काफी बड़े वर्ग तक पहुँच चुकी हैं पर ' वासुकि वीणां ' में काफी कुछ ऐसा भी है जो आप तक पहली बार पहुंच रहा है | कहते हैं श्रष्टा का अहंकार नभ -चुम्बी होता है और इसीलिये कवि किसी से कभी कुछ माँगता नहीं पर यदि आप दे सकें तो कवि को वाद - मुक्त लेखन का अधिकार अवश्य दीजियेगा |
विष्णु नारायण अवस्थी
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