Thursday 10 May 2018

इतिहास की गूँज 

मेरी अनास्था , मेरा अविश्वास , वेधक पराजय बोध
मेरे व्यक्तित्व की सहज अनुभूति है
सभी यह कहते हैं
किन्तु विश्लेषण तो इसको नकारता है
साफल्य -सोपानं मैनें भी लांघे हैं
ऊँचे कँगूरे चढ़ लेकर विश्वस्त भाव
नीचे जब देखा है तिर्यक कतार
अनगिनित उन सीढ़ियों की
जिनको चढ़ ढुलमुल डगों से मैं ऊपर आ पहुँचा हूँ
अपनें पौरष पर विश्वास नहीं होता है |
हर क्षण यह लगता है शायद कगूरा ढह जायेगा
क्योंकि वह आधार और वह सीढ़ियाँ
जिनपर से चढ़ कर मैं आया हूँ
युगों के पद मर्दन से हिलनें लगी हैं |
कैसे फिर मानूँ यह मेरा पराजय -बोध
मेरी असफलता की कुंठा से जन्मा है
मेरी अनास्था तो सफलता की दुहिता है
युग की व्यवस्था ही शायद मरणशील है
तभी तो मैं जीत कर भी हार से ग्रस्त हूँ
बूढ़े मछेरे सा एकाकी , दूर कहीं
जीवन समुद्र से महत उपलब्धि पा
 खूनी लुटेरों से लड़ता निःशस्त्र अडिग
तट तक मैं आ सकूँ
ऐसा विश्वास अभी मुझमें न जन्मा है |
किन्तु मैं  क्या केवल इकाई हूँ
या कि  पीत , राज -रोग ग्रसित
राष्ट्र चेतना का , ऊपर कगूरे पर लगा हुआ
मौसम -यन्त्र
सभी यह कहते हैं , मेरा पराजय -बोध
कल्पना -आरोपित है
और मैं भी चाहता हूँ
कल का युग बोल सके यही स्वर
मेरी अनास्था इतिहास की न गूँज बनें |


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