Wednesday, 9 May 2018

अलगाव 

भीड़ से आबद्ध
अविकच ,असम्प्रत्त
मेरे अछूते प्राण --------------
तेज चाकू से कटे ----बेलाग |
उपचार निभ रहा
रूढ़ि वल्कल में छिपा
रस  - स्निग्ध मर्म |
सतही सम्बन्ध
निष्प्राण से मशीनी स्वर
काष्ठ के मृत परत छूकर लौट जाते हैं
केन्द्रस्थ मैं -----केवल मैं
याकि अवकाश देकर
कौंधती स्मृति मेरी ही निजता की
जो कुछ क्षण
किसी अन्य की धरोहर थीं
उन कुछ क्षणों में ही
क्षणातीत , देहातीत
होकर मैं जिया था |
अब तो मैं सीपीबद्ध
किसी पनडुब्बे के खातिर
सुरक्षित ------------------------

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