Friday, 4 May 2018

साक्षी आकाश 

पुष्प सज्जा से अलंकृत
घास की चौकोर चादर
शिशिर की उस शाम
मूक हम तुम
अनकहे भी कह गया कुछ
ज्योतिमय विखरी हँसी ले
नील - नभ अभिराम |
शब्द होगा ब्रम्ह
पर कब बाँध पाया
स्फुरित द्योतित अमर क्षण ,
काष्ठ मँजूषा सहेजेगी कहाँ से
भूमि - गर्भा वाहिय के अंगार कण |
मूक उस क्षण में गया मन पार
नभ के- काल के
अस्तित्व से अर्जित सकल व्यापार के -------------
देख आया
चेतना का अदि उद्गम
अमरता की राह
साक्षी आकाश
शब्दातीत होती चिर मिलन की चाह | 

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