Thursday, 3 May 2018

नारी मूल्याँकन 

और कि यह
प्रोफ़ेसर , पंडित ,  कलाकार , कवि
सृष्टिकार सब
जो
प्रसाद से , तुर्गनेव से
पंत , नीत्से और पिकासो से
नीचे है बात न करते
देख कहीं लेते निज पथ पर
रूपगर्विता
ऐसी रमणीं
सीख चुकी है जो
आधुनिका का पहरावा
जहां उग्र की या जोला की
कला मूर्त हो कर रह जाती
तो
चाल बदलते
चुपके चुपके मन के भीतर
हाल बदलते
कालर पर की गर्द भगाते
कंठ -लंगोटी खींच सजाते
और कहीं नेता गण हों तो
मत्थे पर की सीधी टोपी ,
कर देती जो घाव
अगर पड़ जाये किन्हीं मांसल अंगों पर ,
तिरछी करते
और
उसी दिन
कला - भवन में , ज्ञान - कक्ष में
संसद में
सर्वोदय के कल्याण -पक्ष में
भाषण देते
'  नारी पूज्य महान
भोग की नहीं वस्तु है | '




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