Sunday 20 May 2018

ललकार लगा मेरी वाणी 

सारे जीवन की असफलता स्वीकार मुझे
अभिशापित जीवन ही मैं जीता जाऊँगा
है शपथ त्रसित मानवता की मुझको साथी
हर घूँट गरल का हँस  हँस पीता  जाऊँगा
जब तक शरीर में साँस , साँस में दम बाकी
नीलाम नहीं होनें दूँगा अपनी वाणीं
बाजारी मोल तोल से हो आजाद सदा
गाती  जायेगी मेरी कविता कल्याणीं |
माना कि अकेला  स्वर मेरा
सब पर अधिकार न पायेगा
बिक चुकी आज की दुनिया में
थोड़ा सा प्यार न पायेगा
पर सत्य पनपता नहीं अन्धेरे खेतों में
सोनें की खाद  न कोई फसल उगाती है
चाँदी की हँसिया बोझ गले का बन जाये
पर उससे  कोई फसल न काटी  जाती है |
बिकनें वाले बिकते ही हैं
पर कहीं -कहीं धन झुकता है 
हहराते नद का मद प्रवाह
 पर्वत से टकरा रुकता है
वाणीं बिकनें को नहीं
मिली जन - मन की कथा सुनाने को
वाणीं झुकने को नहीं
मिली गिरतों का भाग्य जगानें को |
वाणीं का बल पा न्याय -भाव
मद - सत्ता से टकराता है
वाणीं के हाँथों संवर रोष
विद्रोही  स्वर बन जाता है |
वाणीं ने राज्य उलट डाले
वाणीं ने सृष्टि सजायी  है
फणधर के नाथ लगानें  को
वाणीं ने वेणु बजायी है |
इसलिये , लिये  वाणीं का बल
मैं विघटन से टकराऊँगा
स्वर की लयता से गूंथ बाँध
मैं भाव -सृष्टि रच जाऊँगा |
हो प्रखर मुक्त मेरी वाणीं
साहस बटोर कर लायेगी
घुन - खायी अर्थ - व्यवस्था से
गज -बल लेकर टकरायेगी |
दो चार स्वरों के साथ
नकारेगी बहुमत का रूढ़ि - जाल
गौरव द्विति से मण्डित होगा
मानवता का माथा विशाल |
ललकार लगा मेरी वाणीं
भारत की सड़ी जवानी को
ललकार लगा मेरी वाणीं
मरदानी झाँसी  रानी को |
ललकार लगा , हुँकार उठे
फिर तरुण रक्त की लाली में
ललकार लगा - सुषुप्ति भगे
सो रहे देश के माली में |
वाणीं के पुत्रो , उठो
छोड़ दो मुसाहिबों की बातें
पायल की रुनझुन , लालपरी
मतवाली पागल रातें |
सोनें - चाँदी की होड़ छोड़
अब भेरी नाद बजाओ
अभिनन्दन गीत समाप्त करो
विप्लव के गीत सजाओ |
हर एक दिशा से फहराता
आ रहा प्रलय का पानी
फिर नयी सृष्टि रचनें को
कोई तो नाव बचानी |
आने वाले सैलाब शपथ है
मुझे तुम्हारे पानी की
कल के भविष्य है शपथ मुझे
फिर उठती हुयी जवानी की |
वाणीं का लेकर खड्ग
काट दूँगा धोखे का स्वर्ण जाल
वाणीं का लेकर वज्र
चूर्ण हो वृत्रासुर का लाल भाल |
अस्सी घावों को लिये अडिग
हांथों में लोच न आयेगी
ध्रुव से ध्रुव तक लूँ माप
मगर पैरों में मोच न आयेगी |
जनता की थाती वाणीं है
विश्वासघात , मर जाना है
घावों को लेकर कर्मभूमि में
गिरना भी तर जाना है
जब तक शरीर में सांस सांस में दम बाकी
नीलाम नहीं होने दूंगा अपनी वाणीं |
सारे जीवन की असफलता स्वीकार मुझे  ----------------








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