Sunday 29 April 2018

विष -दंश

हूँ मिला रहा
हर कूप , वापिका , सरिता में
दो बूँद जहर
विषधर का फण ले नाचेगी
कुछ समय बाद
जीवन सागर की लहर  - लहर
फड़फड़ा
उगलकर झाग
मरेगी दनु - सन्तति
पथरायी आँखों वाली
नंगी लाशों के अम्बार
चाँदनी चूमेगी
मंडराते गिद्ध
न लाश नोचकर खायेंगें
आँखों में काजल आँज
भवानी घूमेगी |
फिर अन्तराल----------
इसलिये कि दंशित देहें
सड़ - सड़ गल - गल कर
पा प्रकृति प्रक्रिया का
अमृत- सिंचन पावन
बन जायें उर्वरक
उन अँकुओं को जन्मानें
जो विष को पीकर
नीलकंठ सा विहस सके |
उस नव - हरीतिमा  के गायक
फिर आयेंगें
मैं जहर - बुझी इस पीढ़ी का
उद्घोषक हूँ |
हाँ - मैं विप्लव का पोषक हूँ |

No comments:

Post a Comment