गतांक से आगे -
खैर तो राकेश दोनों भाषायें तो जानता ही था | आल इण्डिया रेडियो रोहतक में Voice Test पास कर अस्थायी रूप से एनाउन्सर भी रह चुका था | भारत के कई भागों में छात्र जीवन में भ्रमण कर चुका था | पण्डाल के खचाखच भरे दर्शक समुदाय के बीच मंचीय अभिनय में पुरुष्कार अर्जित कर चुका था | मुझे उसके लिखित परीक्षा में सफल होनें के प्रति कुछ शंका अवश्य थी पर मैं भीतर से शत -प्रतिशत विश्वस्त था कि साक्षात्कार में वह अच्छा परफारमेंस देगा | देखनें सुननें में तो अब तक किसी नें दूसरे दर्जे पर खड़ा नहीं किया था और हुआ भी ऐसा ही | उसनें लौटकर बताया कि उससे जो भी प्रश्न पूछे गये उन सबका उसनें सटीक और तर्कपूर्ण उत्तर दिया है और आशा है कि वह मेरिट लिस्ट में आ जायेगा | फिर एक लंम्बा इन्तजार | फिर अखबारों में छपी मेरिट लिस्ट की सूची , फिर दो महीनें बीतनें के बाद यह सूचना कि वह बैंक आफ बड़ौदा के कोटे में रखा गया है और उसे बैंक आफ बड़ौदा से ही नियुक्ति पत्र मिलेगा | अब इस दिशा में Examination लेनें वाली एजेन्सी से कोई संम्पर्क न साधा जाय सीधा संम्पर्क बैंक आफ बड़ौदा से ही होगा | बैंक आफ बड़ौदा के हेड क्वार्टर में Appointees की लिस्ट भेज दी गयी | घर में थोड़ा -बहुत खुशी का माहौल माना गया कि अधिक से अधिक 2 -3 महीनें में तो नियुक्ति पत्र आ ही जायेगा | समय गुजरता गया | छै महीनें , सात महीनें ,आठ महीनें | कहीं कुछ घपला तो नहीं ? मन में शंकाओं के बादल छानें लगे | हिन्दुस्तान में सब कुछ संम्भव है | जो परीक्षार्थी मेरिट लिस्ट में नीचे हों उन्हें पैसे खाकर एप्वाइंटमेन्ट भेजा जा रहा हो जहां से कुछ मिलनें की उम्मीद न हो उन्हें नीचे ढकेल दिया गया हो और क्या पता यह कह दिया जाय कि सारी वैकेन्सीज भर गयी हैं | सब मिलाकर एक वर्ष से ऊपर हो चुका था इससे तो अच्छा होता कि मैं राकेश को डिवीज़न इम्प्रूवमेन्ट ही करनें देता | इसी समय मुझे एक पुराना विद्यार्थी राजीव बंसल मिल गया वह उस समय पंजाब नेशनल बैंक में संम्भवतः सर्किल मैनेजर के पद पर था | मैनें उससे आठ महीनें हो जानें पर भी नियुक्ति पत्र न मिलनें की बात कही , उसनें सब कागज़ देख लेनें के बाद मुझको राय दी कि मैं गवर्नमेन्ट आफ इण्डिया के फाइनेन्स डिपार्टमेन्ट में जो बैंकिंग सेल है उसके सेक्रेटरी को एक पत्र लिखूं | मैनें उससे सेक्रेटरी साहब का नाम और बैंकिंग सेल का पूरा पता लानें को कहा | अगले दिन वह सारी डिटेल मेरे पास पहुंचा गया | गुस्से में तो मैं भरा बैठा ही था मैनें अपनें पत्र में कुछ अत्यन्त तीखे शब्दों का प्रयोग किया होगा | आज मुझे इस बात पर खेद है कि मैनें इतना कड़ुआ सच अपनें नंगें रूप में क्यों लिख दिया | पर शायद उस पत्र के तीखेपन नें सेक्रेटरी साहब के भीतर हलचल मचा दी हो उन्होंने बैंक आफ बड़ौदा के एप्वाइंटमेन्ट सेल को संम्पर्क करवाया हो और इसीलिये कुछ दिनों के बाद उसके सकारात्मक परिणाम दिखायी पड़े |
ठीक याद नहीं आता कि उस पत्र में मैनें क्या लिखा था | संचार टेक्नालाजी उस समय लैण्ड लाइन से आगे नहीं बढ़ी थी और फिर सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी को एक साधारण कालेज अध्यापक फोन पर सीधा संम्पर्क साध भी तो नहीं सकता था | सेक्रेटरी साहब निश्चय ही एक चरित्रवान और भद्र पुरुष रहे होंगें | उनका पूरा नाम तो मुझे याद नहीं आता पर उनका सर नेम घोष था | निश्चय ही वे बंगाल से आये हुये एक बुद्धजीवी होंगें | मैनें शायद ऐसा कुछ लिख दिया था कि मनुष्य के जीवन की आयु सीमित होती है और जवानी के काम करनें के वर्ष भी थोड़े -बहुत ही होते हैं अब यदि एक वर्ष तक नियुक्ति पत्र की प्राप्ति ही नहीं होती तो क्या फिरदोसी वाली कहानी दोबारा दोहरायी जायेगी | ऐसा ही और बहुत कुछ रहा होगा | मुझे बताया गया था घोष साहब अत्यन्त ईमानदार और निष्ठावान अधिकारी हैं और निश्चय ही उनसे सीधा संम्पर्क न साधता तो क्या पता नियुक्ति पत्र कब मिलता और मिलता भी कि नहीं | बाद में राकेश नें मुझे बताया था कि मेरा भेजा हुआ पत्र बैंक के हेड आफिस से होता हुआ आज तक उसकी पर्सनल फाइल में सुरक्षित है | मुझे खुशी है कि भारत सरकार में कुछ ऐसे उच्च पदाधिकारी भी हैं जिनके ऊपर सच्चे और ईमानदार भारतीयों को गर्व हो सकता है | पर नियुक्ति पत्र के साथ एक नयी समस्या का प्रारंम्भ हो गया | राकेश को BOBके पंजाब डिवीजन के अन्तर्गत पोस्टिंग पर भेजा जा रहा था | पंजाब में इन दिनों भिंडरवाला हीरो बने हुये थे | सिक्ख आतंकवाद अपनें घृणित रूप में साम्प्रदायिक सोच को जन्म दे रहा था | गैर केशधारी हिन्दू पंजाब में अपनें को असुरक्षित महसूस कर रहे थे | प्रबुद्ध पाठक जानते ही हैं कि भारत की राजनीति में अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर पर सेना का अभियान और उसके पश्चात भारतवासियों के हृदय पर राज्य करनें वाली प्रधानमन्त्री इन्दिरागांधी की ह्त्या स्वतन्त्र भारत का सबसे दुखद अध्याय है | न जानें क्यों पंजाब के इस अस्थिर राजनीतिक वातावरण में मैंनें राकेश को भेजना उचित नहीं समझा | सोचा BOB के हेड क्वार्टर को एक अनुरोध भेजा जाय कि उसे दिल्ली या हरियाणा के क्षेत्र में कार्यरत किया जाय | बड़ा पुत्र होनें के नाते मुझे उसके सहारे की आवश्यकता है और दिल्ली और हरियाणा में रहकर वह मेरे संम्पर्क में आसानी से बना रह सकता है | मेरे इस पत्र के मिलनें के बाद हेड क्वार्टर्स में बैठे अधिकारियों को , जो शायद मेरे पहले पत्र के कारण नाराज हों अपनीं झेंप मिटानें का एक सु -अवसर मिल गया | उत्तर मिला दिल्ली और हरियाणा में पोस्टिंग नहीं मिल सकती कोई रिक्तियां नहीं हैं हाँ यदि मैं चाहूँ तो उसे उत्तर प्रदेश में भेजा जा सकता है | नवम्बर 16 , 2011 के अखबार में मुख्य पेज पर यह खबर छपी थी कि उ. प्र. की मुख्य मन्त्री मायावती उ. प्र. को चार भागों में बाटना चाहती हैं | यह हिस्से हैं अवध प्रदेश ,बुन्देलखण्ड , पूर्वान्चल और पश्चिम प्रदेश | मैं स्वयं उ. प्र. से हूँ और जिस समय की यह बात है उस समय तो उत्तरांचल भी उ. प्र. का भाग था | मैनें सोचा चलो उ. प्र. ही सही | जहां बाप पैदा हुआ है और पढ़ा है उसी प्रदेश में बेटा कार्यरत हो और घर बसाये तो अच्छा ही रहेगा | राकेश की पहली पोस्टिंग रायबरेली के किसी ग्रामीण अंचल में हुयी | | पिछले 65 वर्षों से पंजाब और हरियाणा का नागरिक होनें के नाते उ. प्र. का भौगोलिक नक्शा अब मेरी मानसिक आँखों के आगे स्पष्ट उभर कर नहीं आ रहा है | मैं नहीं कह सकता कि रायबरेली का जिला पूर्वान्चल में होगा या अवध प्रदेश में या बुन्देलखण्ड में | हाँ इतना अवश्य है कि वह पश्चिम प्रदेश में तो होगा नहीं | मेरे अन्तर्मन में शायद यह बात रही हो कि मैं एकाध वर्ष में राकेश को दिल्ली के आस पास बुला लूंगा | रोहतक में मेरा एक छोटा -मोटा घर बनकर पूरा होनें वाला था सोचा एकाध वर्ष में राकेश के लिये किसी जीवन सहधर्मिणीं की तलाश की जाय पर कहते हैं कि शादी -व्याह विधाता के घर रचे जाते हैं | रायबरेली का एक प्रतिष्ठित शुक्ल परिवार शायद राकेश को अपनें क्षेत्र में आनें का इन्तजार ही कर रहा था |
( क्रमशः )
खैर तो राकेश दोनों भाषायें तो जानता ही था | आल इण्डिया रेडियो रोहतक में Voice Test पास कर अस्थायी रूप से एनाउन्सर भी रह चुका था | भारत के कई भागों में छात्र जीवन में भ्रमण कर चुका था | पण्डाल के खचाखच भरे दर्शक समुदाय के बीच मंचीय अभिनय में पुरुष्कार अर्जित कर चुका था | मुझे उसके लिखित परीक्षा में सफल होनें के प्रति कुछ शंका अवश्य थी पर मैं भीतर से शत -प्रतिशत विश्वस्त था कि साक्षात्कार में वह अच्छा परफारमेंस देगा | देखनें सुननें में तो अब तक किसी नें दूसरे दर्जे पर खड़ा नहीं किया था और हुआ भी ऐसा ही | उसनें लौटकर बताया कि उससे जो भी प्रश्न पूछे गये उन सबका उसनें सटीक और तर्कपूर्ण उत्तर दिया है और आशा है कि वह मेरिट लिस्ट में आ जायेगा | फिर एक लंम्बा इन्तजार | फिर अखबारों में छपी मेरिट लिस्ट की सूची , फिर दो महीनें बीतनें के बाद यह सूचना कि वह बैंक आफ बड़ौदा के कोटे में रखा गया है और उसे बैंक आफ बड़ौदा से ही नियुक्ति पत्र मिलेगा | अब इस दिशा में Examination लेनें वाली एजेन्सी से कोई संम्पर्क न साधा जाय सीधा संम्पर्क बैंक आफ बड़ौदा से ही होगा | बैंक आफ बड़ौदा के हेड क्वार्टर में Appointees की लिस्ट भेज दी गयी | घर में थोड़ा -बहुत खुशी का माहौल माना गया कि अधिक से अधिक 2 -3 महीनें में तो नियुक्ति पत्र आ ही जायेगा | समय गुजरता गया | छै महीनें , सात महीनें ,आठ महीनें | कहीं कुछ घपला तो नहीं ? मन में शंकाओं के बादल छानें लगे | हिन्दुस्तान में सब कुछ संम्भव है | जो परीक्षार्थी मेरिट लिस्ट में नीचे हों उन्हें पैसे खाकर एप्वाइंटमेन्ट भेजा जा रहा हो जहां से कुछ मिलनें की उम्मीद न हो उन्हें नीचे ढकेल दिया गया हो और क्या पता यह कह दिया जाय कि सारी वैकेन्सीज भर गयी हैं | सब मिलाकर एक वर्ष से ऊपर हो चुका था इससे तो अच्छा होता कि मैं राकेश को डिवीज़न इम्प्रूवमेन्ट ही करनें देता | इसी समय मुझे एक पुराना विद्यार्थी राजीव बंसल मिल गया वह उस समय पंजाब नेशनल बैंक में संम्भवतः सर्किल मैनेजर के पद पर था | मैनें उससे आठ महीनें हो जानें पर भी नियुक्ति पत्र न मिलनें की बात कही , उसनें सब कागज़ देख लेनें के बाद मुझको राय दी कि मैं गवर्नमेन्ट आफ इण्डिया के फाइनेन्स डिपार्टमेन्ट में जो बैंकिंग सेल है उसके सेक्रेटरी को एक पत्र लिखूं | मैनें उससे सेक्रेटरी साहब का नाम और बैंकिंग सेल का पूरा पता लानें को कहा | अगले दिन वह सारी डिटेल मेरे पास पहुंचा गया | गुस्से में तो मैं भरा बैठा ही था मैनें अपनें पत्र में कुछ अत्यन्त तीखे शब्दों का प्रयोग किया होगा | आज मुझे इस बात पर खेद है कि मैनें इतना कड़ुआ सच अपनें नंगें रूप में क्यों लिख दिया | पर शायद उस पत्र के तीखेपन नें सेक्रेटरी साहब के भीतर हलचल मचा दी हो उन्होंने बैंक आफ बड़ौदा के एप्वाइंटमेन्ट सेल को संम्पर्क करवाया हो और इसीलिये कुछ दिनों के बाद उसके सकारात्मक परिणाम दिखायी पड़े |
ठीक याद नहीं आता कि उस पत्र में मैनें क्या लिखा था | संचार टेक्नालाजी उस समय लैण्ड लाइन से आगे नहीं बढ़ी थी और फिर सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी को एक साधारण कालेज अध्यापक फोन पर सीधा संम्पर्क साध भी तो नहीं सकता था | सेक्रेटरी साहब निश्चय ही एक चरित्रवान और भद्र पुरुष रहे होंगें | उनका पूरा नाम तो मुझे याद नहीं आता पर उनका सर नेम घोष था | निश्चय ही वे बंगाल से आये हुये एक बुद्धजीवी होंगें | मैनें शायद ऐसा कुछ लिख दिया था कि मनुष्य के जीवन की आयु सीमित होती है और जवानी के काम करनें के वर्ष भी थोड़े -बहुत ही होते हैं अब यदि एक वर्ष तक नियुक्ति पत्र की प्राप्ति ही नहीं होती तो क्या फिरदोसी वाली कहानी दोबारा दोहरायी जायेगी | ऐसा ही और बहुत कुछ रहा होगा | मुझे बताया गया था घोष साहब अत्यन्त ईमानदार और निष्ठावान अधिकारी हैं और निश्चय ही उनसे सीधा संम्पर्क न साधता तो क्या पता नियुक्ति पत्र कब मिलता और मिलता भी कि नहीं | बाद में राकेश नें मुझे बताया था कि मेरा भेजा हुआ पत्र बैंक के हेड आफिस से होता हुआ आज तक उसकी पर्सनल फाइल में सुरक्षित है | मुझे खुशी है कि भारत सरकार में कुछ ऐसे उच्च पदाधिकारी भी हैं जिनके ऊपर सच्चे और ईमानदार भारतीयों को गर्व हो सकता है | पर नियुक्ति पत्र के साथ एक नयी समस्या का प्रारंम्भ हो गया | राकेश को BOBके पंजाब डिवीजन के अन्तर्गत पोस्टिंग पर भेजा जा रहा था | पंजाब में इन दिनों भिंडरवाला हीरो बने हुये थे | सिक्ख आतंकवाद अपनें घृणित रूप में साम्प्रदायिक सोच को जन्म दे रहा था | गैर केशधारी हिन्दू पंजाब में अपनें को असुरक्षित महसूस कर रहे थे | प्रबुद्ध पाठक जानते ही हैं कि भारत की राजनीति में अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर पर सेना का अभियान और उसके पश्चात भारतवासियों के हृदय पर राज्य करनें वाली प्रधानमन्त्री इन्दिरागांधी की ह्त्या स्वतन्त्र भारत का सबसे दुखद अध्याय है | न जानें क्यों पंजाब के इस अस्थिर राजनीतिक वातावरण में मैंनें राकेश को भेजना उचित नहीं समझा | सोचा BOB के हेड क्वार्टर को एक अनुरोध भेजा जाय कि उसे दिल्ली या हरियाणा के क्षेत्र में कार्यरत किया जाय | बड़ा पुत्र होनें के नाते मुझे उसके सहारे की आवश्यकता है और दिल्ली और हरियाणा में रहकर वह मेरे संम्पर्क में आसानी से बना रह सकता है | मेरे इस पत्र के मिलनें के बाद हेड क्वार्टर्स में बैठे अधिकारियों को , जो शायद मेरे पहले पत्र के कारण नाराज हों अपनीं झेंप मिटानें का एक सु -अवसर मिल गया | उत्तर मिला दिल्ली और हरियाणा में पोस्टिंग नहीं मिल सकती कोई रिक्तियां नहीं हैं हाँ यदि मैं चाहूँ तो उसे उत्तर प्रदेश में भेजा जा सकता है | नवम्बर 16 , 2011 के अखबार में मुख्य पेज पर यह खबर छपी थी कि उ. प्र. की मुख्य मन्त्री मायावती उ. प्र. को चार भागों में बाटना चाहती हैं | यह हिस्से हैं अवध प्रदेश ,बुन्देलखण्ड , पूर्वान्चल और पश्चिम प्रदेश | मैं स्वयं उ. प्र. से हूँ और जिस समय की यह बात है उस समय तो उत्तरांचल भी उ. प्र. का भाग था | मैनें सोचा चलो उ. प्र. ही सही | जहां बाप पैदा हुआ है और पढ़ा है उसी प्रदेश में बेटा कार्यरत हो और घर बसाये तो अच्छा ही रहेगा | राकेश की पहली पोस्टिंग रायबरेली के किसी ग्रामीण अंचल में हुयी | | पिछले 65 वर्षों से पंजाब और हरियाणा का नागरिक होनें के नाते उ. प्र. का भौगोलिक नक्शा अब मेरी मानसिक आँखों के आगे स्पष्ट उभर कर नहीं आ रहा है | मैं नहीं कह सकता कि रायबरेली का जिला पूर्वान्चल में होगा या अवध प्रदेश में या बुन्देलखण्ड में | हाँ इतना अवश्य है कि वह पश्चिम प्रदेश में तो होगा नहीं | मेरे अन्तर्मन में शायद यह बात रही हो कि मैं एकाध वर्ष में राकेश को दिल्ली के आस पास बुला लूंगा | रोहतक में मेरा एक छोटा -मोटा घर बनकर पूरा होनें वाला था सोचा एकाध वर्ष में राकेश के लिये किसी जीवन सहधर्मिणीं की तलाश की जाय पर कहते हैं कि शादी -व्याह विधाता के घर रचे जाते हैं | रायबरेली का एक प्रतिष्ठित शुक्ल परिवार शायद राकेश को अपनें क्षेत्र में आनें का इन्तजार ही कर रहा था |
( क्रमशः )
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