Wednesday 28 March 2018

सार्थक क्षण

दो चार कदम का साथ माँगता हूँ रंगिणि
उत्साह नहीं जीवन भर साथ निभानें का
दो बोल प्यार के मेरे लिये बहुत होंगें
लंम्बी गाथा तो एक बोझ बन जाती है
दो फूल हार के मेरे लिये बहुत होंगें
सतलड़ी पाँव में उलझ -उलझ तन जाती है
वह गीत पिघल वह जाय प्राण जिसके स्वर में
अन्यथा अर्थ क्या प्रिये गीत के गानें का
दो चार कदम का साथ ----------------
बस एक हंसी ही जीवन भर का मूल्य शुभे
बस एक द्रष्टि ही बनती अडिग सहारा है
है एक मिलन ही अन्तिम परिणिति कांक्षा की
प्रिय मुझे टूट कर गिरनें वाला तारा है
इस माटी में जो खिले पुष्प भाते मुझको
उद्योग नहीं आकाश -कुसुम के लानें का
दो चार कदम का साथ ------------------------
बन बनकर मिटनें वाली लहर मुझे भाती
क्षण की सरगर्मी पर जीनें की चाव -मुझे
जो घटता बढ़ता चाँद मुझे वह भाता है
गतिहीन कला से कभी न रहा लगाव मुझे
जब तक प्राणों में प्यास मिलन की तृप्ति मधुर
अन्यथा अर्थ क्या पास प्रिया के जानें का
दो चार कदम का साथ ------------------------
जीवन तो रंगिणि सरिता है नित -प्रवहमान
हर मोड़ गोद में नयी दिशा के सोता है
ऊसर धरती पर रस की छींट विरस होतीं
सफला धरती पर कृषक बीज नित बोता है
जब तक चल पाऊं साथ साथ हो प्राणों का
अधिकार नहीं है झूठे कदम मिलानें का
दो चार कदम का साथ -------------------------

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