Wednesday 28 March 2018

दोहरी जिन्दगी

हूँ एक जिन्दगी साथ तुम्हारे काट रहा
पर एक जिन्दगी और कहीं मैं जीता हूँ
तुम मेरे लिये  किसी की केवल छाँह रहीं
तुमसे चलकर मैं और कहीं पर जाता हूँ
तुमको समेट कर बाहों में सुधि के रथ पर
मैं पास खींचकर और किसी को लाता हूँ
केशों में गुम्फित बेला -पुष्पों की सुगन्धि
वन नीम -मंजरी की सुवास लहराती है
नासा -पुट रख उन केशों में जो पाया था
उसकी सुगन्ध प्राणों से कभी न जाती है
अधरों पर रखे अधर तुम्हारे सच मानों
मैं और किसी की अधर -सुधा को पीता हूँ
हूँ एक जिन्दगी साथ तुम्हारे काट रहा -------
तुमको मुस्कान समर्पित है ,तुम क्या जानों
निः शब्द रात की गहरायी में रोया हूँ
तुम पास पड़ीं परितृप्त -शिथिल जब सो जातीं
बाहों में बंधकर मैं भी कभी न सोया हूँ
विस्मृति के उन अनुराग -क्षणों में कभी कभी
जब अधर - दान देकर मुझको ठगती हो
संवरित लता सी वक्ष -वृक्ष का संम्बल ले
आन्दोलित होकर सोते सोते जगती हो
तब क्या जानों तुम अंक - शायिनी पास पड़ा
रस छींटों से मैं विरस   रेत सा रीता हूँ
हूँ एक जिन्दगी साथ तुम्हारे काट रहा --------
कुछ रूठ कभी तुम कहती हो जब प्राणनाथ ,
तकते ही रहते मुझे सदा कुछ बोलो ना
स्मृति के पंखों पर उड़ आते वही शब्द
' गुमसुम 'से बैठे आज अधर  अब खोलो ना
हूँ बहुत बार लड़ चुका स्वयं से मैं अब तक
इसलिये कि तुमको तुम करके मैं पा जाऊँ
माध्यम बननें की जगह तुम्हीं बन सको लक्ष्य
तुमसे कल का गुजरा संसार बसा पाऊँ
पढ़ सको गीत को आज राज यह कह देना ,
प्रिय , सुषमा होकर भी मैं  ही संगीता हूँ
हूँ एक जिन्दगी साथ तुम्हारे काट रहा
पर एक जिन्दगी  और कहीं मैं जीता हूँ |

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