गतांक से आगे -
पण्डित वासुदेव शर्मा भी हरियाणा राज्य के राजनीतिक क्षितिज पर एक सशक्त व्यक्तित्व बनकर उभर रहे थे | मैं ठीक से स्मरण नहीं कर पाता कि किस मुख्यमन्त्री के काल में वे एक मन्त्री के पद पर भी आसीन हुये थे | पर हरियाणा के प्रथम मुख्यमन्त्री के समधी होनें के कारण हरियाणा के ब्राम्हण समाज में उनका एक शीर्ष स्थान था और अभी तक उनकी ईमानदारी और चरित्र को लेकर कहीं भी कुछ अशुभ सुननें में नहीं आया था | स्वाभाविक था कि उन्हें यह अच्छा नहीं लगा कि उनके द्वारा चयनित अध्यापक उनके कालेज के प्राचार्य पद के भार को संम्भालनें के बजाय अपनें पुरानें कालेज में विभागाध्यक्ष के कार्य को तरजीह दे | जैसा कि मैनें सोचा था उन्होंने प्रोवेशन के बजाय मुझे कन्फर्म एप्वाइंटमेन्ट देनें की बात कही और साथ ही दो अतिरिक्त इन्क्रीमेन्ट देनें का वचन भी दिया | उनकी बातों में ब्राम्हण अपनत्व की झलक भी थी और उन्होंने चाहा कि मैं अपनी प्रतिभा और अपनी सेवायें हरियाणा के ब्राम्हण समाज को समर्पित करूं | संम्भवतः मेरे अन्तर में भी यही ललक थी पर अपनें छै दिन के कार्यकाल में मुझे कुछ ऐसे कटु -तिक्त अनुभव हुये थे कि मैं ब्राम्हण समाज की सेवा को एक आदर्श के रूप में न लेकर एक छलना भरी ललक के रूप में लेनें लगा था | हुआ यूं था कि जब मैनें गौड़ कालेज के प्राचार्य का पदभार संम्भाला तो उसके दो एक दिन बाद विश्वविद्यालय की परीक्षायें प्रारंम्भ होनी थीं | पहला प्रश्न पत्र बी. ए. के अन्तिम वर्ष के छात्रों का अंग्रेजी का था | उन दिनों अंग्रेजी के दो प्रश्नपत्र ए. और बी. हुआ करते थे | प्रश्न पत्र ए. में निर्धारित पाठ्य पुस्तकों से प्रश्न पूछे जाते थे और पेपर बी. में जनरल इंगलिश के ज्ञान की परीक्षा होती थी | मैं ठीक से नहीं जानता कि अब परीक्षा की यही व्यवस्था चल रही है या उसमें अब कोई परिवर्तन कर दिया गया है | अभी तक गौड़ महाविद्यालय में आर्ट्स फैकल्टी ही थी | कॉमर्स फैकल्टी की प्रस्तावना बन चुकी थी | विज्ञान फैकल्टी का खर्चा अभी तक मैनेजमेन्ट की पकड़ से बाहर था | अंग्रेजी के पेपर के एक दिन पहले मेरे प्रिन्सिपल के दफ्तर में पांच ,छै कद्दावर नवयुवक चपरासी की बात न मानकर अन्दर आ गये | उनमें से एक ने बताया कि वह कालेज के छात्र संगठन का प्रधान है | मैनें जानना चाहा कि अब जब कि उनकी परीक्षायें हो रही हैं वे मेरे से क्या मांग करनें आये हैं | विद्यार्थी प्रधान नें कहा कि अंग्रेजी के पेपर में बीते सत्र में उनकी पढ़ायी ठीक से नहीं हुयी है | कई कारण बताये गये उसनें कहा कि बिना नक़ल के बी. ए. का एकाध विद्यार्थी ही पास हो पायेगा | उसनें बताया कि जब फ्लाईंग स्क्वाएड आयेगा तो पहले से ही सिखाये हुये चपरासी प्रिन्सिपल को सूचना दे जायेंगें | और फिर सभी कमरों में यह Alert दे दिया जायेगा कि फ्लाईंग स्क्वाएड आ रहा है | नक़ल के कागज़ इकठ्ठे कर लिये जायेंगें | पूरी ईमानदारी दिखायी जायेगी | कुछ समय बाद जब फ्लाईंग स्क्वाएड दूसरे कालेज में चला जायेगा तो गाइड के फटे हुये पन्ने फिर से हर एक परीक्षार्थी के पास पहुँच जायेंगे | जरूरत पड़ी तो कालेज का ही कोई शिक्षक ब्लैक बोर्ड पर उत्तर लिख देगा | | कमरे के दरवाजे बन्द कर दिये जायेंगें और लड़के उसको उतार लेंगें फिर ब्लैक बोर्ड वहां से हटा लिया जायेगा | दरवाजे खुल जायेंगें और यदि फ्लाईंग स्क्वाएड दुबारा भी आता है तो उसे कुछ भी गलत होता नहीं दिखायी पडेगा | यानि यूनिवर्सिटी की तरफ से कोई आव्जर्वर आया तो उसे प्रिन्सिपल के कमरे में रोककर कोल्ड ड्रिन्क और चाय के सहारे विद्यार्थियों तक सूचना पहुंचा दी जायेगी | इस प्रकार अंग्रेजी का रिजल्ट अच्छा हो जानें पर कालेज का नाम बढ़ेगा | बिरादरी की शान बढ़ेगी और आनें वाले सत्रों में विद्यार्थियों की संख्या में काफी इजाफा हो जायेगा | मैनें जानना चाहा कि क्या यही सब पहले भी होता था तो उन्होंने बताया कि पहले प्रिन्सिपल साहब भी अंग्रेजी के ही प्रोफ़ेसर थे और उन्होंने ही इन सब बातों का इतनी सावधानी से इन्तजाम किया था कि किसी को कानों कान खबर नहीं होती थी | और पूरी नक़ल चलती रहती थी | मैनें जानना चाहा कि क्या मैनेजमेन्ट को भी इन बातों का पता था तो उन लड़कों नें बताया कि अब जो प्रधान हैं वे अभी एक दो महीनें पहले चुने गये हैं | वे शायद यह कुछ नहीं जानते पर गौड़ ब्राम्हण कालेज के जो मैनेजर हैं वे पहले कालेज के मैनेजर थे उन्हें सब पता है | यदि मैं चाहूँ तो उनसे फोन पर बात कर लूँ | उनका नाम , पता और फोन नम्बर प्रिन्सिपल की मेज पर ग्लास की शीट के नीचे रखा हुआ है | यह सब सुनकर मैं स्तंम्भित रह गया | राज्य की एक मात्र ब्राम्हण संस्था का सरंक्षण प्राप्त इतना घोर नैतिक पतन | भीतर कहीं इस बात का भी अहसास हुआ कि नव निर्वाचित प्रधान निश्चय ही एक चरित्रवान व्यक्ति हैं तभी तो विद्यार्थी उन तक पहुंचनें की हिम्मत नहीं कर सके हैं | मुझे याद आया कि इन्टरव्यूह में वासुदेव जी नें मुझसे कहा था कि कंकड़ों के ढेर से उन्हें हीरे तलाशने हैं और वे हीरे के पारखी के रूप में मुझे प्राचार्य पद का भार सौंपना चाहते हैं | फिर यह विद्यार्थी मेरे पास क्यों आये ? कहीं ऐसा तो नहीं कि पराजित पार्टी एक चाल चलकर मुझे बदनामी के घेरे में फांसने का प्रयास कर रही हो और क्या पता यह पार्टी डा. पाठक को इन सब कामों के लिये उपयुक्त प्राचार्य मान रही हो और उनको लानें के षड्यन्त्र में कुचक्रों की सृष्टि कर रही हो | उन विद्यार्थियों नें मुझे आग्रह किया कि मैं पुरानें मैनेजर साहब को फोन कर लूं क्योंकि वे उनसे मिलकर आये थे और उन्होंने उनसे कहा था कि प्रिन्सिपल को बोल दें कि वह उन्हें फोन कर लें | इन विद्यार्थियों की टोन ने मुझे भीतर से उत्तेजित कर दिया | मैं उन्हें अपना कमरा छोड़नें के लिये कहनें ही वाला था इसी बीच फोन की घण्टी घन -घना उठी | दूसरी तरफ से पूर्व मैनेजर साहब बोल रहे थे -अरे अवस्थी तू पण्डित होकर पण्डितों का नाश करेगा | अंग्रेजी में नक़ल नहीं करायेगा तो एक भी लड़का पास नहीं होगा | भर्ती नहीं होगी तो कालेज कहां से चलेगा | रहनें दो बड़ी -बड़ी बातों को | हमनें दुनिया देखी है सभी नक़ल कराते हैं | अभी कृष्ण मूर्ती जी जो मिनिस्टर हैं उनका भी फोन आया था कि प्रिन्सिपल को बोल दें अभी नया -नया आया है , उसको समझ नहीं है | मैनें अपनें क्रोध को सयंत किया कहा -जनाब अगर प्रिन्सिपल होनें का अर्थ यही है जो आप बता रहे हैं तो मैं यह ताज आपको लौटाता हूँ | आप इन्टरव्यूह कमेटी में नहीं थे | पण्डित चिरन्जी लाल और पण्डित वासुदेव जी नें मेरा सिलेक्शन किया है उनसे बात कर लेता हूँ | कल इस गद्दी पर जिस किसी को चाहें बिठा दें | पूर्व मैनेजर साहब कुछ सकुचा गये | बोले उनसे कुछ मत कहना वे गान्धीवादी पवित्रता की बात करते हैं | मौके की बात है हम चुनाव हार गये | उनको भी देख लूंगा | जो तेरे मन में आवे करे | पर भूलना नहीं कि हमारे ही हांथों से तुम्हारा कन्फर्मेशन होगा | इससे पहले कि आगे कुछ कहते मैनें फोन पटक दिया | सोचा कहीं गुस्से में कहीं कोई गाली मुंह से न निकल जाय | बच्चों को बाहर जानें के लिये कड़े स्वर में आदेश देकर मैनें पाया कि कुछ हेकड़ी के बाद मेरी आवाज के तीखेपन और मेरे इस वाक्य नें कि , " I am going to hand over you all to the Superintindent of polic. " उन सबको भयभीत कर दिया और वे बाहर निकल गये | कुछ देर के बाद मुझे मेरा सयंम मुझे वापस मिल गया | मैनें चतुर्भुज जी को फोन मिलाया | उन्होंने कहा अवस्थी हम तुम्हारे साथ खड़े हैं | हमें सैकड़ों कंकड़ नहीं चाहिये एक हीरा बहुत है | इस ब्राम्हण संस्था को प्रदेश की सर्वोत्तम संस्था बनाना है | हम तुम्हें राज्य के लिये नहीं बलिदान के लिये लाये हैं | झेल सकोगे अपावनता का यह बज्र भ्रष्टाचार की लड़ाई में सबसे पहला आघात तो तुम्हें ही झेलना होगा | अरे प्रिन्सिपल साहब ,पाठक तो कितनी सिफारिशें लगवा चुका है | जो जीवन भर गन्दगी के ढेर पर बैठा हो उसे मल की बदबू भी इत्र की सुगन्ध जैसी प्यारी लगनें लग जाती है | मेरा मन गर्व से भर उठा | तो ब्राम्हण विरादरी में अभी कुछ सच्चे ब्राम्हण पुत्र भी हैं , परशुराम , दधीच और दांडायन की परंम्परा अभी निर्जीव नहीं हुयी है | हुतात्माओं की पंक्ति में खड़ा होना भी तो एक सौभाग्य ही है |
वर्किंग कमेटी नें मेरे अवैतनिक दो वर्षीय अवैतनिक प्रतिवेदन को नामंजूर कर मुझे एक पेशोपेश में डाल दिया था | चतुर्भुज जी की बातों नें और उनके कन्फर्मेशन वाले प्रस्ताव नें मुझे फिर से साहस दिया और मैनें सुनिश्चित किया कि मैं अपना स्तीफा देकर गौड़ ब्राम्हण के प्राचार्य पद की चुनौती स्वीकार करूंगा | पर जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ घटनायें क्यों और कैसे संचालित होती हैं इसकी कोई सर्वथा तर्क संगत व्याख्या नहीं की जा सकती | अगले दिन जब मैं अपना स्तीफा लेकर प्राचार्य के कक्ष में इस आग्रह के साथ पहुंचा कि वे इसे तुरन्त मंजूर करवा दें तो उन्होंने बताया कि पिछली शाम उन्हें सस्पेन्शन का नोटिस मिल गया है और उन्हें यह कालेज छोड़ना पड़ेगा | उन्होंने यह भी कहा कि शायद प्रधान जी और वर्किंग कमेटी के अन्य सदस्य मुझसे इस बात के लिये आग्रह करें कि मैं गौड़ कालेज न जाकर इसी कालेज के कार्यकारी प्राचार्य का पदभार स्वीकार कर लूँ | आगे जैसी व्यवस्था होगी देखा जायेगा | मैनें सोचा भी नहीं था कि इतनी शीघ्रता के साथ प्रिन्सिपल डा. पाठक का कैरियर दांव पर लग जायेगा | गैर सरकारी कॉलेजों की राजनीति में दखल देनें वाले तिकड़मी प्राचार्यों की नियति का यही अन्त होता है | इसके पहले भी डा. पाठक म. प्र. के किसी कालेज के प्राचार्य पद से बहिष्कृत हो चुके थे | पर मैनेजमेन्ट के इस या उस सेक्शन से सांठ -गाँठ करनें की उनकी आदत नें उनके सामनें फिर एक अनिश्चितता खड़ी कर दी | अपनें कमरे में एकान्त में उन्होंने मुझसे एक विनय भरी आवाज में कहा -देखो छोटे भाई मैनें तुम्हारा कभी कोई अहित नहीं किया है अपनें स्वार्थ में मैं कुछ भूल कर बैठा और मैनें तुम्हारे प्राचार्य बननें के रास्ते में कुछ रुकावटें डालीं | मुझे इस बात का अफ़सोस है मैं भी मध्य उ. प्र. से हूँ नौकरी करनें म. प्र. चला गया था वहीं से कामर्स में डाक्ट्रेट की | प्रिन्सिपल के पद तक पहुंचा फिर मैनेजमेन्ट के झगड़े में पड़ गया | यहां अप्लीकेशन डाली | कुछ एप्रोच लगाये | सिलेक्शन हो गया | अब जिस ग्रुप नें मुझे सिलेक्ट किया था उसके पास पावर नहीं है | दूसरा ग्रुप पावर में है | मुझे यह कालेज छोड़ना ही पड़ेगा | अथवा मेरे ऊपर उल्टा -सीधा गमन का चार्ज लगा दिया जायेगा | जिस ग्रुप नें यहां मेरा सिलेक्शन किया था उसकी पहुँच गौड़ कालेज के मैनेजमेन्ट तक है | छोटे भाई अगर तुम वहां न जाओ तो मेरा काम बन सकता है | अभी तुम्हारी काफी वर्षों की नौकरी है | प्रिन्सिपल बन ही जाओगे | मुझे विश्वास है इसी कालेज में तुम एक दिन रेगुलर प्रिन्सिपल होंगे और शायद सफलता का अनूठा इतिहास रचोगे | देखो अवस्थी जी कहनें में बहुत संकोच हो रहा है पर मैं भी कान्यकुब्ज ब्राम्हण हूँ | अवस्थी , पाठकों और बाजपेइयों का एक ही गोत्र होता है | मैं सड़क पर खड़ा हो जाऊँगा तो बड़ी आफत हो जायेगी |
मेरा मन भर आया | मैनें कहा आप मेरे अग्रज हैं | कमियां हर इन्सान में होती हैं पर आज आपनें अपना आन्तरिक दुख मुझ पर प्रकट किया है मैं आपके मार्ग में बाधा नहीं बनूंगा | मैनें अपना स्तीफा वहीं फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया | मन में निर्णय कर लिया कि वैश्य कालेज ही मेरी कर्मस्थली का एक मात्र क्षेत्र बनेगा | मन में एक निर्मल शान्ति छा गयी , उसी रात मैं एक गहरी नीन्द का सच्चा सुख प्राप्त कर सका | मनुष्य कितना लाचार है | अपनें को कितना बड़ा होनें का अभिमान पाले फिरता है पर क्या एक तृण मात्र वायु के प्रत्येक हल्के से हल्के झकोरे पर चलायमान नगण्य तृण कण | कामायनी के रचियता नें महामानव के मन में भी तो अहंकार के विस्फोट को इसी चिन्तन के शीत जल से शान्त किया था |
" देव न थे वे , देव न हैं हम
सब परिवर्तन के पुतले
हाँ कि गर्व रथ में तुरंग सा
जो चाहे जितना जुत ले | "
मेरे न चाहनें पर भी नगर भर में , विशेषतः ब्राम्हण समाज में यह चर्चा तो चल ही निकली कि प्रोफ़ेसर अवस्थी नें हरियाणा राज्य के एक मात्र ब्राम्हण कालेज गौड़ ब्राम्हण कालेज रोहतक के कन्फर्म प्राचार्य पद को ठुकरा दिया | कोई प्रशंसा कर रहा था कोई निन्दा पर चर्चा चारो ओर थी | और जहां तक मैं समझता हूँ कि नगर की वैश्य विरादरी के प्रतिष्ठित लोगों के बीच भी इस घटना नें मेरी एक उज्वल छवि कायम कर दी | उन्हें लगा कि उनके कालेज में एक ऐसा अध्यापक भी है जिसे पा लेना नगर के दूसरे कालेज अपनें लिये शान की बात मानते हैं | आज सोचता हूँ हम क्या पाते हैं , क्या खोते हैं , क्या सहेजते हैं और क्या लुटाते हैं यह सब क्या केवल हमारे निर्णय पर आधारित है | समर्पण के भाव में कितना सुख है | छोड़ दो अपनें को जीवन सागर की लहरों पर वृन्तच्युत पत्र की भांति | तिरनें दो तरंगायित लहरों की मौज पर |किसी पुरानें फिल्म का यह गीत क्यों अच्छा लगनें लगा है ?
" मैं जिन्दगी का साज बजाता चला गया
हर फ़िक्र को धुयें में उड़ाता चला गया
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया | "
(क्रमशः )
पण्डित वासुदेव शर्मा भी हरियाणा राज्य के राजनीतिक क्षितिज पर एक सशक्त व्यक्तित्व बनकर उभर रहे थे | मैं ठीक से स्मरण नहीं कर पाता कि किस मुख्यमन्त्री के काल में वे एक मन्त्री के पद पर भी आसीन हुये थे | पर हरियाणा के प्रथम मुख्यमन्त्री के समधी होनें के कारण हरियाणा के ब्राम्हण समाज में उनका एक शीर्ष स्थान था और अभी तक उनकी ईमानदारी और चरित्र को लेकर कहीं भी कुछ अशुभ सुननें में नहीं आया था | स्वाभाविक था कि उन्हें यह अच्छा नहीं लगा कि उनके द्वारा चयनित अध्यापक उनके कालेज के प्राचार्य पद के भार को संम्भालनें के बजाय अपनें पुरानें कालेज में विभागाध्यक्ष के कार्य को तरजीह दे | जैसा कि मैनें सोचा था उन्होंने प्रोवेशन के बजाय मुझे कन्फर्म एप्वाइंटमेन्ट देनें की बात कही और साथ ही दो अतिरिक्त इन्क्रीमेन्ट देनें का वचन भी दिया | उनकी बातों में ब्राम्हण अपनत्व की झलक भी थी और उन्होंने चाहा कि मैं अपनी प्रतिभा और अपनी सेवायें हरियाणा के ब्राम्हण समाज को समर्पित करूं | संम्भवतः मेरे अन्तर में भी यही ललक थी पर अपनें छै दिन के कार्यकाल में मुझे कुछ ऐसे कटु -तिक्त अनुभव हुये थे कि मैं ब्राम्हण समाज की सेवा को एक आदर्श के रूप में न लेकर एक छलना भरी ललक के रूप में लेनें लगा था | हुआ यूं था कि जब मैनें गौड़ कालेज के प्राचार्य का पदभार संम्भाला तो उसके दो एक दिन बाद विश्वविद्यालय की परीक्षायें प्रारंम्भ होनी थीं | पहला प्रश्न पत्र बी. ए. के अन्तिम वर्ष के छात्रों का अंग्रेजी का था | उन दिनों अंग्रेजी के दो प्रश्नपत्र ए. और बी. हुआ करते थे | प्रश्न पत्र ए. में निर्धारित पाठ्य पुस्तकों से प्रश्न पूछे जाते थे और पेपर बी. में जनरल इंगलिश के ज्ञान की परीक्षा होती थी | मैं ठीक से नहीं जानता कि अब परीक्षा की यही व्यवस्था चल रही है या उसमें अब कोई परिवर्तन कर दिया गया है | अभी तक गौड़ महाविद्यालय में आर्ट्स फैकल्टी ही थी | कॉमर्स फैकल्टी की प्रस्तावना बन चुकी थी | विज्ञान फैकल्टी का खर्चा अभी तक मैनेजमेन्ट की पकड़ से बाहर था | अंग्रेजी के पेपर के एक दिन पहले मेरे प्रिन्सिपल के दफ्तर में पांच ,छै कद्दावर नवयुवक चपरासी की बात न मानकर अन्दर आ गये | उनमें से एक ने बताया कि वह कालेज के छात्र संगठन का प्रधान है | मैनें जानना चाहा कि अब जब कि उनकी परीक्षायें हो रही हैं वे मेरे से क्या मांग करनें आये हैं | विद्यार्थी प्रधान नें कहा कि अंग्रेजी के पेपर में बीते सत्र में उनकी पढ़ायी ठीक से नहीं हुयी है | कई कारण बताये गये उसनें कहा कि बिना नक़ल के बी. ए. का एकाध विद्यार्थी ही पास हो पायेगा | उसनें बताया कि जब फ्लाईंग स्क्वाएड आयेगा तो पहले से ही सिखाये हुये चपरासी प्रिन्सिपल को सूचना दे जायेंगें | और फिर सभी कमरों में यह Alert दे दिया जायेगा कि फ्लाईंग स्क्वाएड आ रहा है | नक़ल के कागज़ इकठ्ठे कर लिये जायेंगें | पूरी ईमानदारी दिखायी जायेगी | कुछ समय बाद जब फ्लाईंग स्क्वाएड दूसरे कालेज में चला जायेगा तो गाइड के फटे हुये पन्ने फिर से हर एक परीक्षार्थी के पास पहुँच जायेंगे | जरूरत पड़ी तो कालेज का ही कोई शिक्षक ब्लैक बोर्ड पर उत्तर लिख देगा | | कमरे के दरवाजे बन्द कर दिये जायेंगें और लड़के उसको उतार लेंगें फिर ब्लैक बोर्ड वहां से हटा लिया जायेगा | दरवाजे खुल जायेंगें और यदि फ्लाईंग स्क्वाएड दुबारा भी आता है तो उसे कुछ भी गलत होता नहीं दिखायी पडेगा | यानि यूनिवर्सिटी की तरफ से कोई आव्जर्वर आया तो उसे प्रिन्सिपल के कमरे में रोककर कोल्ड ड्रिन्क और चाय के सहारे विद्यार्थियों तक सूचना पहुंचा दी जायेगी | इस प्रकार अंग्रेजी का रिजल्ट अच्छा हो जानें पर कालेज का नाम बढ़ेगा | बिरादरी की शान बढ़ेगी और आनें वाले सत्रों में विद्यार्थियों की संख्या में काफी इजाफा हो जायेगा | मैनें जानना चाहा कि क्या यही सब पहले भी होता था तो उन्होंने बताया कि पहले प्रिन्सिपल साहब भी अंग्रेजी के ही प्रोफ़ेसर थे और उन्होंने ही इन सब बातों का इतनी सावधानी से इन्तजाम किया था कि किसी को कानों कान खबर नहीं होती थी | और पूरी नक़ल चलती रहती थी | मैनें जानना चाहा कि क्या मैनेजमेन्ट को भी इन बातों का पता था तो उन लड़कों नें बताया कि अब जो प्रधान हैं वे अभी एक दो महीनें पहले चुने गये हैं | वे शायद यह कुछ नहीं जानते पर गौड़ ब्राम्हण कालेज के जो मैनेजर हैं वे पहले कालेज के मैनेजर थे उन्हें सब पता है | यदि मैं चाहूँ तो उनसे फोन पर बात कर लूँ | उनका नाम , पता और फोन नम्बर प्रिन्सिपल की मेज पर ग्लास की शीट के नीचे रखा हुआ है | यह सब सुनकर मैं स्तंम्भित रह गया | राज्य की एक मात्र ब्राम्हण संस्था का सरंक्षण प्राप्त इतना घोर नैतिक पतन | भीतर कहीं इस बात का भी अहसास हुआ कि नव निर्वाचित प्रधान निश्चय ही एक चरित्रवान व्यक्ति हैं तभी तो विद्यार्थी उन तक पहुंचनें की हिम्मत नहीं कर सके हैं | मुझे याद आया कि इन्टरव्यूह में वासुदेव जी नें मुझसे कहा था कि कंकड़ों के ढेर से उन्हें हीरे तलाशने हैं और वे हीरे के पारखी के रूप में मुझे प्राचार्य पद का भार सौंपना चाहते हैं | फिर यह विद्यार्थी मेरे पास क्यों आये ? कहीं ऐसा तो नहीं कि पराजित पार्टी एक चाल चलकर मुझे बदनामी के घेरे में फांसने का प्रयास कर रही हो और क्या पता यह पार्टी डा. पाठक को इन सब कामों के लिये उपयुक्त प्राचार्य मान रही हो और उनको लानें के षड्यन्त्र में कुचक्रों की सृष्टि कर रही हो | उन विद्यार्थियों नें मुझे आग्रह किया कि मैं पुरानें मैनेजर साहब को फोन कर लूं क्योंकि वे उनसे मिलकर आये थे और उन्होंने उनसे कहा था कि प्रिन्सिपल को बोल दें कि वह उन्हें फोन कर लें | इन विद्यार्थियों की टोन ने मुझे भीतर से उत्तेजित कर दिया | मैं उन्हें अपना कमरा छोड़नें के लिये कहनें ही वाला था इसी बीच फोन की घण्टी घन -घना उठी | दूसरी तरफ से पूर्व मैनेजर साहब बोल रहे थे -अरे अवस्थी तू पण्डित होकर पण्डितों का नाश करेगा | अंग्रेजी में नक़ल नहीं करायेगा तो एक भी लड़का पास नहीं होगा | भर्ती नहीं होगी तो कालेज कहां से चलेगा | रहनें दो बड़ी -बड़ी बातों को | हमनें दुनिया देखी है सभी नक़ल कराते हैं | अभी कृष्ण मूर्ती जी जो मिनिस्टर हैं उनका भी फोन आया था कि प्रिन्सिपल को बोल दें अभी नया -नया आया है , उसको समझ नहीं है | मैनें अपनें क्रोध को सयंत किया कहा -जनाब अगर प्रिन्सिपल होनें का अर्थ यही है जो आप बता रहे हैं तो मैं यह ताज आपको लौटाता हूँ | आप इन्टरव्यूह कमेटी में नहीं थे | पण्डित चिरन्जी लाल और पण्डित वासुदेव जी नें मेरा सिलेक्शन किया है उनसे बात कर लेता हूँ | कल इस गद्दी पर जिस किसी को चाहें बिठा दें | पूर्व मैनेजर साहब कुछ सकुचा गये | बोले उनसे कुछ मत कहना वे गान्धीवादी पवित्रता की बात करते हैं | मौके की बात है हम चुनाव हार गये | उनको भी देख लूंगा | जो तेरे मन में आवे करे | पर भूलना नहीं कि हमारे ही हांथों से तुम्हारा कन्फर्मेशन होगा | इससे पहले कि आगे कुछ कहते मैनें फोन पटक दिया | सोचा कहीं गुस्से में कहीं कोई गाली मुंह से न निकल जाय | बच्चों को बाहर जानें के लिये कड़े स्वर में आदेश देकर मैनें पाया कि कुछ हेकड़ी के बाद मेरी आवाज के तीखेपन और मेरे इस वाक्य नें कि , " I am going to hand over you all to the Superintindent of polic. " उन सबको भयभीत कर दिया और वे बाहर निकल गये | कुछ देर के बाद मुझे मेरा सयंम मुझे वापस मिल गया | मैनें चतुर्भुज जी को फोन मिलाया | उन्होंने कहा अवस्थी हम तुम्हारे साथ खड़े हैं | हमें सैकड़ों कंकड़ नहीं चाहिये एक हीरा बहुत है | इस ब्राम्हण संस्था को प्रदेश की सर्वोत्तम संस्था बनाना है | हम तुम्हें राज्य के लिये नहीं बलिदान के लिये लाये हैं | झेल सकोगे अपावनता का यह बज्र भ्रष्टाचार की लड़ाई में सबसे पहला आघात तो तुम्हें ही झेलना होगा | अरे प्रिन्सिपल साहब ,पाठक तो कितनी सिफारिशें लगवा चुका है | जो जीवन भर गन्दगी के ढेर पर बैठा हो उसे मल की बदबू भी इत्र की सुगन्ध जैसी प्यारी लगनें लग जाती है | मेरा मन गर्व से भर उठा | तो ब्राम्हण विरादरी में अभी कुछ सच्चे ब्राम्हण पुत्र भी हैं , परशुराम , दधीच और दांडायन की परंम्परा अभी निर्जीव नहीं हुयी है | हुतात्माओं की पंक्ति में खड़ा होना भी तो एक सौभाग्य ही है |
वर्किंग कमेटी नें मेरे अवैतनिक दो वर्षीय अवैतनिक प्रतिवेदन को नामंजूर कर मुझे एक पेशोपेश में डाल दिया था | चतुर्भुज जी की बातों नें और उनके कन्फर्मेशन वाले प्रस्ताव नें मुझे फिर से साहस दिया और मैनें सुनिश्चित किया कि मैं अपना स्तीफा देकर गौड़ ब्राम्हण के प्राचार्य पद की चुनौती स्वीकार करूंगा | पर जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ घटनायें क्यों और कैसे संचालित होती हैं इसकी कोई सर्वथा तर्क संगत व्याख्या नहीं की जा सकती | अगले दिन जब मैं अपना स्तीफा लेकर प्राचार्य के कक्ष में इस आग्रह के साथ पहुंचा कि वे इसे तुरन्त मंजूर करवा दें तो उन्होंने बताया कि पिछली शाम उन्हें सस्पेन्शन का नोटिस मिल गया है और उन्हें यह कालेज छोड़ना पड़ेगा | उन्होंने यह भी कहा कि शायद प्रधान जी और वर्किंग कमेटी के अन्य सदस्य मुझसे इस बात के लिये आग्रह करें कि मैं गौड़ कालेज न जाकर इसी कालेज के कार्यकारी प्राचार्य का पदभार स्वीकार कर लूँ | आगे जैसी व्यवस्था होगी देखा जायेगा | मैनें सोचा भी नहीं था कि इतनी शीघ्रता के साथ प्रिन्सिपल डा. पाठक का कैरियर दांव पर लग जायेगा | गैर सरकारी कॉलेजों की राजनीति में दखल देनें वाले तिकड़मी प्राचार्यों की नियति का यही अन्त होता है | इसके पहले भी डा. पाठक म. प्र. के किसी कालेज के प्राचार्य पद से बहिष्कृत हो चुके थे | पर मैनेजमेन्ट के इस या उस सेक्शन से सांठ -गाँठ करनें की उनकी आदत नें उनके सामनें फिर एक अनिश्चितता खड़ी कर दी | अपनें कमरे में एकान्त में उन्होंने मुझसे एक विनय भरी आवाज में कहा -देखो छोटे भाई मैनें तुम्हारा कभी कोई अहित नहीं किया है अपनें स्वार्थ में मैं कुछ भूल कर बैठा और मैनें तुम्हारे प्राचार्य बननें के रास्ते में कुछ रुकावटें डालीं | मुझे इस बात का अफ़सोस है मैं भी मध्य उ. प्र. से हूँ नौकरी करनें म. प्र. चला गया था वहीं से कामर्स में डाक्ट्रेट की | प्रिन्सिपल के पद तक पहुंचा फिर मैनेजमेन्ट के झगड़े में पड़ गया | यहां अप्लीकेशन डाली | कुछ एप्रोच लगाये | सिलेक्शन हो गया | अब जिस ग्रुप नें मुझे सिलेक्ट किया था उसके पास पावर नहीं है | दूसरा ग्रुप पावर में है | मुझे यह कालेज छोड़ना ही पड़ेगा | अथवा मेरे ऊपर उल्टा -सीधा गमन का चार्ज लगा दिया जायेगा | जिस ग्रुप नें यहां मेरा सिलेक्शन किया था उसकी पहुँच गौड़ कालेज के मैनेजमेन्ट तक है | छोटे भाई अगर तुम वहां न जाओ तो मेरा काम बन सकता है | अभी तुम्हारी काफी वर्षों की नौकरी है | प्रिन्सिपल बन ही जाओगे | मुझे विश्वास है इसी कालेज में तुम एक दिन रेगुलर प्रिन्सिपल होंगे और शायद सफलता का अनूठा इतिहास रचोगे | देखो अवस्थी जी कहनें में बहुत संकोच हो रहा है पर मैं भी कान्यकुब्ज ब्राम्हण हूँ | अवस्थी , पाठकों और बाजपेइयों का एक ही गोत्र होता है | मैं सड़क पर खड़ा हो जाऊँगा तो बड़ी आफत हो जायेगी |
मेरा मन भर आया | मैनें कहा आप मेरे अग्रज हैं | कमियां हर इन्सान में होती हैं पर आज आपनें अपना आन्तरिक दुख मुझ पर प्रकट किया है मैं आपके मार्ग में बाधा नहीं बनूंगा | मैनें अपना स्तीफा वहीं फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया | मन में निर्णय कर लिया कि वैश्य कालेज ही मेरी कर्मस्थली का एक मात्र क्षेत्र बनेगा | मन में एक निर्मल शान्ति छा गयी , उसी रात मैं एक गहरी नीन्द का सच्चा सुख प्राप्त कर सका | मनुष्य कितना लाचार है | अपनें को कितना बड़ा होनें का अभिमान पाले फिरता है पर क्या एक तृण मात्र वायु के प्रत्येक हल्के से हल्के झकोरे पर चलायमान नगण्य तृण कण | कामायनी के रचियता नें महामानव के मन में भी तो अहंकार के विस्फोट को इसी चिन्तन के शीत जल से शान्त किया था |
" देव न थे वे , देव न हैं हम
सब परिवर्तन के पुतले
हाँ कि गर्व रथ में तुरंग सा
जो चाहे जितना जुत ले | "
मेरे न चाहनें पर भी नगर भर में , विशेषतः ब्राम्हण समाज में यह चर्चा तो चल ही निकली कि प्रोफ़ेसर अवस्थी नें हरियाणा राज्य के एक मात्र ब्राम्हण कालेज गौड़ ब्राम्हण कालेज रोहतक के कन्फर्म प्राचार्य पद को ठुकरा दिया | कोई प्रशंसा कर रहा था कोई निन्दा पर चर्चा चारो ओर थी | और जहां तक मैं समझता हूँ कि नगर की वैश्य विरादरी के प्रतिष्ठित लोगों के बीच भी इस घटना नें मेरी एक उज्वल छवि कायम कर दी | उन्हें लगा कि उनके कालेज में एक ऐसा अध्यापक भी है जिसे पा लेना नगर के दूसरे कालेज अपनें लिये शान की बात मानते हैं | आज सोचता हूँ हम क्या पाते हैं , क्या खोते हैं , क्या सहेजते हैं और क्या लुटाते हैं यह सब क्या केवल हमारे निर्णय पर आधारित है | समर्पण के भाव में कितना सुख है | छोड़ दो अपनें को जीवन सागर की लहरों पर वृन्तच्युत पत्र की भांति | तिरनें दो तरंगायित लहरों की मौज पर |किसी पुरानें फिल्म का यह गीत क्यों अच्छा लगनें लगा है ?
" मैं जिन्दगी का साज बजाता चला गया
हर फ़िक्र को धुयें में उड़ाता चला गया
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया | "
(क्रमशः )
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