गतांक से आगे -
हाँ अगले रविवार वर्किंग कमेटी की मीटिंग होनी थी | राजनीतिक अखाड़े के न जानें कितनें दांव पेंच वर्किंग कमेटी की मीटिंगों में ईजाद किये जाते हैं | वर्किंग कमेटी का ही एक भारी भरकम नाम हाई कमाण्ड भी है | राजनैतिक पार्टियों का हाई कमाण्ड एक ही पार्टी की विचारधारा से जुड़े शीर्ष नेतृत्व से गठित होता है इसलिये उसके निर्णय छोटे -मोटे आन्तरिक विरोधों के बावजूद सर्वसम्मति से पास मान लिये जाते हैं | पर भारत के गैर सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानों में परिस्थितियां विरोधी टकराव की स्थिति उत्पन्न कर देती हैं | वर्किंग कमेटी के गठन में जाति आधारित उच्च शिक्षा संस्थाओं में भिन्न -भिन्न विचारधारा वाले अपेक्षाकृत समृद्ध लोगों को स्थान मिलता है | उत्तर भारत के राज्यों में जाति व्यवस्था सिन्दबाद के बूढ़े की तरह समाज के गले को अपनी लौह टांगों से जकड़कर मृतप्राय करती जा रही है | आजादी के एक बहुत लंम्बे काल के बाद भी जाति गणना का भूत बोतल की डाट खोलकर फिर से निर्बन्ध कर दिया गया है | उसका धूमायित नव -भेदी आकार सामाजिक चेतना को आच्छादित कर निस्तेज बना रहा है | 1931 के बाद 2011 में शुरू हुयी जाति गणना काफी कुछ मायनों में हमें फिर से मध्ययुगीन चिन्तना की ओर लौटा रही है | पर क्या किया जाय बौने राजनीतिज्ञ इस सत्य को स्वीकार करनें के लिये चिन्तना का वह अवसर नहीं पा सके हैं जिस स्तर पर हर नर -नारी को प्रकृति के समान कृति के रूप में स्वीकार किया जाता है | हाँ तो महाविद्यालय की वर्किंग कमेटी की रविवार वाली मीटिंग में भी जातिगत आधारित लिये गये निर्णय ने मेरी मानव समानता की सहज स्वीकृति को एक गहरा झटका दिया | वर्किंग कमेटी के एजेन्डे पर मेरी दो वर्ष की अवैतनिक छुट्टी पर विचार होना था और साथ ही मेरे एक सहयोगी प्रो ० बनारसी दास गुप्ता की दो वर्ष की अवैतनिक छुट्टी पर भी विचार किया जाना था | प्रो० बनारसी दास लुधियाना में अपनें भाई द्वारा चलायी जा रही एक फैक्ट्री के मैनेजर पद पर जाना चाहते थे | और मैं गौड़ महाविद्यालय रोहतक के प्राचार्य पद के लिये दो वर्ष का चुनौती भरा परीक्षण करनें के लिये अपनें को प्रस्तुत कर रहा था | वर्किंग कमेटी के प्रधान पद्म श्री सेठ श्री किशन दास के कहनें पर मैनें गौड़ महाविद्यालय के प्राचार्य पद का भार तो संम्भाल लिया था पर मेरी छुट्टी की दरख्वास्त पर अन्तिम फैसला वर्किंग कमेटी की मीटिंग में ही होना था | पद्म श्री सेठ श्री किशन दास भारत के शीर्ष उद्योगपति जिन्दल परिवार से संम्बन्धित थे | ' माटी ' के पाठकों को यह बताने की कोई अनिवार्यता मुझे नहीं लगती कि उद्योगपति जिन्दल और बंशी लाल के पुत्र सुरेन्द्र सिंह हवाई जहाज की दुर्घटना में दिवंगत हो चुके हैं | जिन्दल जी की पत्नी सावित्री जिन्दल इस समय भारत के सबसे धनी शीर्ष पांच पूंजीपतियों में हैं और उनका बेटा नवीन जिन्दल कुरुक्षेत्र से लोकसभा के सदस्य हैं | सुरेन्द्र जी की पत्नी किरन चौधरी इस समय हरियाणा की हूडा सरकार में मन्त्री के पद पर आसीन हैं | पद्म श्री सेठ श्री किशन दास चौधरी वंशीलाल के मुख्य मन्त्री काल में एक वरिष्ठ कैबिनेट स्तर के मन्त्री थे | सावित्री जिन्दल की पुत्री उनके बेटे सेठ मनमोहन गोयल को व्याही है | यह सब लिखनें का कारण सिर्फ यह है कि प्रधान पद्म श्री सेठ श्री किशनदास का दिया गया वचन मेरे लिये पूरे विश्वास का कारण था और मैं आश्वस्त था कि वर्किंग कमेटी में मेरे दो वर्ष की अवैतनिक छुट्टी स्वीकार कर ली जायेगी | वैश्य कालेज में अब तक मैं 20 वर्ष से ऊपर की सेवायें दे चुका था और जहां तक मैं समझता हूँ मैं अध्यापन और अध्यापनें पर सभी क्षेत्रों में प्रशंसा का पात्र माना गया था | दरअसल मैं स्तीफा देकर भी गौड़ महाविद्यालय में ज्वाइन करनें के लिये प्रस्तुत हो गया होता यदि उस समय के मेरे प्राचार्य डा.पाठक नें मुझे विश्वविद्यालीय संविधान की इस धारा से जोर देकर अवगत न कराया होता कि मैनें बिना परमीशन लिये प्राचार्य पद के लिये अप्लीकेशन क्यों डाल दी | मानव मन का गहन विश्लेषक न होनें के नाते मैं उस समय यह नहीं जान सका था कि डा. पाठक एक कुटिल चाल चल रहे हैं |और उनके भीतरी व्यक्तित्व में मामा शकुनि का कोई अंश छिपा हुआ है |
तो वर्किंग कमेटी की मीटिंग में प्रो ० बनारसी दास गुप्ता की छुट्टी मंजूर हो गयी | और मेजर विष्णु नारायण अवस्थी की छुट्टी नामंजूर हो गयी | मीटिंग के पश्चात डा. पाठक नें चपरासी भेजकर मुझे घर से बुलवाया बोले ," अवस्थी जी क्या करें बनियों का कालेज है | बनारसी की छुट्टी मंजूर हो गयी | वह गुप्ता है न | आपकी छुट्टी नामंजूर हो गयी | हम लोग ब्राम्हण हैं न ,मुझे आश्चर्य हुआ | मैनें डा. पाठक को बताया कि प्रधान जी नें मुझे वचन दिया था और इसी कारण मैनें गौड़ ब्राम्हण विद्यालय में प्राचार्य पद काकार्य भार संम्भाल लिया है | अब मैं प. चिरन्जी लाल और प. वासुदेव शर्मा को क्या जवाब दूंगा ? अब तो मुझे स्तीफा देना ही पड़ेगा | डा. पाठक नें अपनापे से भरी हुयी एक हंसी के साथ एक सलाह दी कि मैं स्तीफा न दूँ | और गौड़ महाविद्यालय के प्राचार्य का पद छोड़कर वापस कालेज में आ जाऊँ | वहां की ज्वाइनिंग रिपोर्ट फड़वा दूँ | और छै दिन की मेरी छुट्टी कैजुअल लीव में बदल दी जायेगी | मेरी सर्विस में कोई ब्रेक नहीं आयेगा | वे बोले मैं आपके साथ हूँ | आपकी प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आयेगी | मैं आज तक किसी वर्किंग कमेटी के मेम्बर या पदाधिकारी के घर नहीं गया था जो भी मुलाकातें हुयी थीं वर्किंग कमेटी के दफ्तर में ही होती थीं | अब मैनें लाला श्रीकृष्ण दास के घर पर जाकर उनसे मिलनें की बात प्राचार्य जी से कही | डा. पाठक नें कहा कोई आवश्यकता नहीं है | घर आकर मैनें पुनः विचार किया और सोचा कि एक बार माननीय सेठ जी से मिल ही लिया जाय | उनके परिवार से संम्बन्धित कालेज के एक विद्यार्थी के साथ उनसे मिलनें पहुंचा | मैनें उनसे जानना चाहा कि उनकी वचन बध्यता के बावजूद मेरी छुट्टी नामंजूर कैसे हो गयी | उन्होंने कहा देखो प्रोफ़ेसर साहब तुम एक उम्दा इन्सान हो | यह दुनिया बहुत धूर्त है | अरे वह तुम्हारा पाठक है न , वह खुद गौड़ कालेज में जाना चाहता है | यहां कुछ ताकतवर लोग उसके विरोधी हो गये हैं क्योंकि वह कुछ लोगों की चापलूसी करता है | उसनें वर्किंग कमेटी में अपनें समर्थकों से अड़ंगा लगवा दिया | लक्ष्मी चन्द्र , जगमोहन और रामदास अड़ गये कि हम अवस्थी को छुट्टी नहीं देंगें अगर वो ब्राम्हणों के बीच ही जाना चाहता है तो स्तीफा दे दे | बिना इजाजत के उसनें अप्लीकेशन क्यों डाली अगर जिद करेगा तो हम उसका पी. एफ. भी रोक लेंगें | हमारा कालेज गौड़ कालेज से लाख गुना अच्छा है | हमनें क्या उसे कभी कोई तकलीफ दी है आदि -आदि | सेठ जी नें फिर सहज भाव से मुझे विश्वास में लेते हुये कहा अवस्थी तुम वापस आ जाओ | कौन जानता है एक दिन यह कालेज ही तुम्हें प्राचार्य पद के लिये मनुहार करके मनानें लगे | मैनें अब दूसरा प्रश्न पूछा | प्रो० बनारसी गुप्ता को छुट्टी क्यों मंजूर हुयी ? कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके कालेज की वर्किंग कमेटी जातिगत चिन्तना के संकीर्ण दायरे में घिर गयी हो | अपनी सारी संकीर्णता और राजनीतिक प्रभुत्व के बावजूद सेठ किशनदास एक नायाब इन्सान थे | उन्होंने कहा , " अवस्थी तुम बहुत पढ़े लिखे हो , विद्वान मानें जाते हो | मैं इतना पढ़ा -लिखा नहीं हूँ पर राजनीति में रहनें के कारण जमीनी असलियत से परिचित हूँ | हिन्दुस्तान में जाति के बिना क्या किसी की कोई पहचान बन सकती है | मैनें कहा लाला जी पण्डित नेहरू को लीजिये | वे बोले उनकी दूसरी बात है | उन पर गांधी जी का हाँथ था | फिर भी वे आखिर तक पण्डित जी ही रहे | खैर छोड़ो इन बातों को | कल सोमवार को कालेज ज्वाइन कर लेना | मैं चिरन्जी लाल जी से बात कर लूंगा | घर वापस आ कर मैं भारतीय समाज की जटिल संरचना के विवेचन में बहुत देर तक खोया रहा | मैं ब्राम्हण हूँ इस नाते क्या मैं कुछ विशिष्ट हूँ ? बनारसी अग्रवाल है इस नाते क्या वह इन्सानियत के किसी अलग पायदान पर खड़ा है | उसका पायदान ऊँचा है या मेरा पायदान | अतीत से न जानें कितनें ऋषियों के गुरु गंम्भीर स्वर मेरी चिन्तना को झंकृत करनें लगे | तो क्या सभी महापुरुषों द्वारा मानव समानता का स्वीकार किया गया सिद्धान्त असत्य पर आधारित है | क्या हमारे जन्म का निर्धारण प्रकृति के गूढ़ रहस्य के पीछे छिपे किसी नियामक सत्ता के द्वारा होता है | नर -नारी के मिलन का माध्यम क्या एक बहाना मात्र है ? क्या हमारा आचरण जन्म की आकस्मिक घटना से प्रभावित होता है | नेहरू जी ब्राम्हण होकर मान्साहारी थे और गांधी जी नें तो भूल से यदि कभी मांस गृहण भी कर लिया तो उनके उदर में मेमनें की आवाज गूँज उठी थी | अरे यह क्या ? धत्त तेरे की ? मन में निराला की यह पंक्तियाँ कहाँ से उभर आयीं |
" बापू यदि तुम मुर्गा खाते
तो क्या तुमको भजते होते
ऐरे गैरे नत्थू खैरे | '
अब क्या किया जाय ? आखिर सोमवार को गौड़ महाविद्यालय जाकर अपनें कान्टीन्यू न करनें की बात प्रधान वासुदेव शर्मा से तो करनी ही होगी | अगर उन्होंने कन्फर्म एप्वाइंटमेन्ट देनें की बात कही और साथ ही एक दो इन्क्रीमेन्ट का प्रलोभन भी दिया तो क्या करना होगा ? इसी बीच गौड़ महाविद्यालय का चपरासी दरवाजे पर आकर दस्तक देनें लगा | बोला प्रधान जी कालेज में आये हैं | आपको बुलाया है शायद उन्हें मीटिंग के फैसले का पता चल गया है | लाला जी का फोन उन तक पहुंचा था | कहते थे अवस्थी को मुझे वापस दे दो | डा. पाठक को ले जाओ | प्रधान जी आपको छोड़ने को तैय्यार नहीं हैं | सात -आठ के बीच का टाइम हो रहा था | रात का अन्धेरा झुकने लगा | कपड़े डालनें लगा , मनीषा दौड़ती हुयी आयी बोली अम्मा नें कहा है जल्दी लौट आना | पिछली कई रातों से सोये नहीं हो | तन्दुरस्ती की कीमत पर हमें प्रिन्सिपली नहीं चाहिये | पर क्या हमारे चाहनें या न चाहनें से संसार में कुछ घटित होता है | गगन गंगा में नये तारापथों की श्रष्टि , उल्कापातों के नये आवेग , भूचालों की सर्वान्तकाली हलचलें क्या मानव की इच्छाओं से संचालित होती हैं ? और तो और दबे कदमों से आती हुयी मृत्यु की आहट क्या हम कभी इच्छापूर्वक सुननें को आतुर होते हैं | जो आना है वह तो आना ही है | घटनाओं के क्रम को व्यक्ति , समाज या विश्व सभी स्तरोँ पर हम अपनी संचालन शक्ति से संधानित नहीं कर सकते | मुनि नाथ नें महानायक भरत से ठीक ही कहा था -
" सुनहु भरत भावी प्रबल ,बिलख कहैयु मुनि नाथ
हानि , लाभ ,जीवन , मरण , जस , अपजस विधि हाँथ | "
( क्रमशः )
हाँ अगले रविवार वर्किंग कमेटी की मीटिंग होनी थी | राजनीतिक अखाड़े के न जानें कितनें दांव पेंच वर्किंग कमेटी की मीटिंगों में ईजाद किये जाते हैं | वर्किंग कमेटी का ही एक भारी भरकम नाम हाई कमाण्ड भी है | राजनैतिक पार्टियों का हाई कमाण्ड एक ही पार्टी की विचारधारा से जुड़े शीर्ष नेतृत्व से गठित होता है इसलिये उसके निर्णय छोटे -मोटे आन्तरिक विरोधों के बावजूद सर्वसम्मति से पास मान लिये जाते हैं | पर भारत के गैर सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानों में परिस्थितियां विरोधी टकराव की स्थिति उत्पन्न कर देती हैं | वर्किंग कमेटी के गठन में जाति आधारित उच्च शिक्षा संस्थाओं में भिन्न -भिन्न विचारधारा वाले अपेक्षाकृत समृद्ध लोगों को स्थान मिलता है | उत्तर भारत के राज्यों में जाति व्यवस्था सिन्दबाद के बूढ़े की तरह समाज के गले को अपनी लौह टांगों से जकड़कर मृतप्राय करती जा रही है | आजादी के एक बहुत लंम्बे काल के बाद भी जाति गणना का भूत बोतल की डाट खोलकर फिर से निर्बन्ध कर दिया गया है | उसका धूमायित नव -भेदी आकार सामाजिक चेतना को आच्छादित कर निस्तेज बना रहा है | 1931 के बाद 2011 में शुरू हुयी जाति गणना काफी कुछ मायनों में हमें फिर से मध्ययुगीन चिन्तना की ओर लौटा रही है | पर क्या किया जाय बौने राजनीतिज्ञ इस सत्य को स्वीकार करनें के लिये चिन्तना का वह अवसर नहीं पा सके हैं जिस स्तर पर हर नर -नारी को प्रकृति के समान कृति के रूप में स्वीकार किया जाता है | हाँ तो महाविद्यालय की वर्किंग कमेटी की रविवार वाली मीटिंग में भी जातिगत आधारित लिये गये निर्णय ने मेरी मानव समानता की सहज स्वीकृति को एक गहरा झटका दिया | वर्किंग कमेटी के एजेन्डे पर मेरी दो वर्ष की अवैतनिक छुट्टी पर विचार होना था और साथ ही मेरे एक सहयोगी प्रो ० बनारसी दास गुप्ता की दो वर्ष की अवैतनिक छुट्टी पर भी विचार किया जाना था | प्रो० बनारसी दास लुधियाना में अपनें भाई द्वारा चलायी जा रही एक फैक्ट्री के मैनेजर पद पर जाना चाहते थे | और मैं गौड़ महाविद्यालय रोहतक के प्राचार्य पद के लिये दो वर्ष का चुनौती भरा परीक्षण करनें के लिये अपनें को प्रस्तुत कर रहा था | वर्किंग कमेटी के प्रधान पद्म श्री सेठ श्री किशन दास के कहनें पर मैनें गौड़ महाविद्यालय के प्राचार्य पद का भार तो संम्भाल लिया था पर मेरी छुट्टी की दरख्वास्त पर अन्तिम फैसला वर्किंग कमेटी की मीटिंग में ही होना था | पद्म श्री सेठ श्री किशन दास भारत के शीर्ष उद्योगपति जिन्दल परिवार से संम्बन्धित थे | ' माटी ' के पाठकों को यह बताने की कोई अनिवार्यता मुझे नहीं लगती कि उद्योगपति जिन्दल और बंशी लाल के पुत्र सुरेन्द्र सिंह हवाई जहाज की दुर्घटना में दिवंगत हो चुके हैं | जिन्दल जी की पत्नी सावित्री जिन्दल इस समय भारत के सबसे धनी शीर्ष पांच पूंजीपतियों में हैं और उनका बेटा नवीन जिन्दल कुरुक्षेत्र से लोकसभा के सदस्य हैं | सुरेन्द्र जी की पत्नी किरन चौधरी इस समय हरियाणा की हूडा सरकार में मन्त्री के पद पर आसीन हैं | पद्म श्री सेठ श्री किशन दास चौधरी वंशीलाल के मुख्य मन्त्री काल में एक वरिष्ठ कैबिनेट स्तर के मन्त्री थे | सावित्री जिन्दल की पुत्री उनके बेटे सेठ मनमोहन गोयल को व्याही है | यह सब लिखनें का कारण सिर्फ यह है कि प्रधान पद्म श्री सेठ श्री किशनदास का दिया गया वचन मेरे लिये पूरे विश्वास का कारण था और मैं आश्वस्त था कि वर्किंग कमेटी में मेरे दो वर्ष की अवैतनिक छुट्टी स्वीकार कर ली जायेगी | वैश्य कालेज में अब तक मैं 20 वर्ष से ऊपर की सेवायें दे चुका था और जहां तक मैं समझता हूँ मैं अध्यापन और अध्यापनें पर सभी क्षेत्रों में प्रशंसा का पात्र माना गया था | दरअसल मैं स्तीफा देकर भी गौड़ महाविद्यालय में ज्वाइन करनें के लिये प्रस्तुत हो गया होता यदि उस समय के मेरे प्राचार्य डा.पाठक नें मुझे विश्वविद्यालीय संविधान की इस धारा से जोर देकर अवगत न कराया होता कि मैनें बिना परमीशन लिये प्राचार्य पद के लिये अप्लीकेशन क्यों डाल दी | मानव मन का गहन विश्लेषक न होनें के नाते मैं उस समय यह नहीं जान सका था कि डा. पाठक एक कुटिल चाल चल रहे हैं |और उनके भीतरी व्यक्तित्व में मामा शकुनि का कोई अंश छिपा हुआ है |
तो वर्किंग कमेटी की मीटिंग में प्रो ० बनारसी दास गुप्ता की छुट्टी मंजूर हो गयी | और मेजर विष्णु नारायण अवस्थी की छुट्टी नामंजूर हो गयी | मीटिंग के पश्चात डा. पाठक नें चपरासी भेजकर मुझे घर से बुलवाया बोले ," अवस्थी जी क्या करें बनियों का कालेज है | बनारसी की छुट्टी मंजूर हो गयी | वह गुप्ता है न | आपकी छुट्टी नामंजूर हो गयी | हम लोग ब्राम्हण हैं न ,मुझे आश्चर्य हुआ | मैनें डा. पाठक को बताया कि प्रधान जी नें मुझे वचन दिया था और इसी कारण मैनें गौड़ ब्राम्हण विद्यालय में प्राचार्य पद काकार्य भार संम्भाल लिया है | अब मैं प. चिरन्जी लाल और प. वासुदेव शर्मा को क्या जवाब दूंगा ? अब तो मुझे स्तीफा देना ही पड़ेगा | डा. पाठक नें अपनापे से भरी हुयी एक हंसी के साथ एक सलाह दी कि मैं स्तीफा न दूँ | और गौड़ महाविद्यालय के प्राचार्य का पद छोड़कर वापस कालेज में आ जाऊँ | वहां की ज्वाइनिंग रिपोर्ट फड़वा दूँ | और छै दिन की मेरी छुट्टी कैजुअल लीव में बदल दी जायेगी | मेरी सर्विस में कोई ब्रेक नहीं आयेगा | वे बोले मैं आपके साथ हूँ | आपकी प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आयेगी | मैं आज तक किसी वर्किंग कमेटी के मेम्बर या पदाधिकारी के घर नहीं गया था जो भी मुलाकातें हुयी थीं वर्किंग कमेटी के दफ्तर में ही होती थीं | अब मैनें लाला श्रीकृष्ण दास के घर पर जाकर उनसे मिलनें की बात प्राचार्य जी से कही | डा. पाठक नें कहा कोई आवश्यकता नहीं है | घर आकर मैनें पुनः विचार किया और सोचा कि एक बार माननीय सेठ जी से मिल ही लिया जाय | उनके परिवार से संम्बन्धित कालेज के एक विद्यार्थी के साथ उनसे मिलनें पहुंचा | मैनें उनसे जानना चाहा कि उनकी वचन बध्यता के बावजूद मेरी छुट्टी नामंजूर कैसे हो गयी | उन्होंने कहा देखो प्रोफ़ेसर साहब तुम एक उम्दा इन्सान हो | यह दुनिया बहुत धूर्त है | अरे वह तुम्हारा पाठक है न , वह खुद गौड़ कालेज में जाना चाहता है | यहां कुछ ताकतवर लोग उसके विरोधी हो गये हैं क्योंकि वह कुछ लोगों की चापलूसी करता है | उसनें वर्किंग कमेटी में अपनें समर्थकों से अड़ंगा लगवा दिया | लक्ष्मी चन्द्र , जगमोहन और रामदास अड़ गये कि हम अवस्थी को छुट्टी नहीं देंगें अगर वो ब्राम्हणों के बीच ही जाना चाहता है तो स्तीफा दे दे | बिना इजाजत के उसनें अप्लीकेशन क्यों डाली अगर जिद करेगा तो हम उसका पी. एफ. भी रोक लेंगें | हमारा कालेज गौड़ कालेज से लाख गुना अच्छा है | हमनें क्या उसे कभी कोई तकलीफ दी है आदि -आदि | सेठ जी नें फिर सहज भाव से मुझे विश्वास में लेते हुये कहा अवस्थी तुम वापस आ जाओ | कौन जानता है एक दिन यह कालेज ही तुम्हें प्राचार्य पद के लिये मनुहार करके मनानें लगे | मैनें अब दूसरा प्रश्न पूछा | प्रो० बनारसी गुप्ता को छुट्टी क्यों मंजूर हुयी ? कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके कालेज की वर्किंग कमेटी जातिगत चिन्तना के संकीर्ण दायरे में घिर गयी हो | अपनी सारी संकीर्णता और राजनीतिक प्रभुत्व के बावजूद सेठ किशनदास एक नायाब इन्सान थे | उन्होंने कहा , " अवस्थी तुम बहुत पढ़े लिखे हो , विद्वान मानें जाते हो | मैं इतना पढ़ा -लिखा नहीं हूँ पर राजनीति में रहनें के कारण जमीनी असलियत से परिचित हूँ | हिन्दुस्तान में जाति के बिना क्या किसी की कोई पहचान बन सकती है | मैनें कहा लाला जी पण्डित नेहरू को लीजिये | वे बोले उनकी दूसरी बात है | उन पर गांधी जी का हाँथ था | फिर भी वे आखिर तक पण्डित जी ही रहे | खैर छोड़ो इन बातों को | कल सोमवार को कालेज ज्वाइन कर लेना | मैं चिरन्जी लाल जी से बात कर लूंगा | घर वापस आ कर मैं भारतीय समाज की जटिल संरचना के विवेचन में बहुत देर तक खोया रहा | मैं ब्राम्हण हूँ इस नाते क्या मैं कुछ विशिष्ट हूँ ? बनारसी अग्रवाल है इस नाते क्या वह इन्सानियत के किसी अलग पायदान पर खड़ा है | उसका पायदान ऊँचा है या मेरा पायदान | अतीत से न जानें कितनें ऋषियों के गुरु गंम्भीर स्वर मेरी चिन्तना को झंकृत करनें लगे | तो क्या सभी महापुरुषों द्वारा मानव समानता का स्वीकार किया गया सिद्धान्त असत्य पर आधारित है | क्या हमारे जन्म का निर्धारण प्रकृति के गूढ़ रहस्य के पीछे छिपे किसी नियामक सत्ता के द्वारा होता है | नर -नारी के मिलन का माध्यम क्या एक बहाना मात्र है ? क्या हमारा आचरण जन्म की आकस्मिक घटना से प्रभावित होता है | नेहरू जी ब्राम्हण होकर मान्साहारी थे और गांधी जी नें तो भूल से यदि कभी मांस गृहण भी कर लिया तो उनके उदर में मेमनें की आवाज गूँज उठी थी | अरे यह क्या ? धत्त तेरे की ? मन में निराला की यह पंक्तियाँ कहाँ से उभर आयीं |
" बापू यदि तुम मुर्गा खाते
तो क्या तुमको भजते होते
ऐरे गैरे नत्थू खैरे | '
अब क्या किया जाय ? आखिर सोमवार को गौड़ महाविद्यालय जाकर अपनें कान्टीन्यू न करनें की बात प्रधान वासुदेव शर्मा से तो करनी ही होगी | अगर उन्होंने कन्फर्म एप्वाइंटमेन्ट देनें की बात कही और साथ ही एक दो इन्क्रीमेन्ट का प्रलोभन भी दिया तो क्या करना होगा ? इसी बीच गौड़ महाविद्यालय का चपरासी दरवाजे पर आकर दस्तक देनें लगा | बोला प्रधान जी कालेज में आये हैं | आपको बुलाया है शायद उन्हें मीटिंग के फैसले का पता चल गया है | लाला जी का फोन उन तक पहुंचा था | कहते थे अवस्थी को मुझे वापस दे दो | डा. पाठक को ले जाओ | प्रधान जी आपको छोड़ने को तैय्यार नहीं हैं | सात -आठ के बीच का टाइम हो रहा था | रात का अन्धेरा झुकने लगा | कपड़े डालनें लगा , मनीषा दौड़ती हुयी आयी बोली अम्मा नें कहा है जल्दी लौट आना | पिछली कई रातों से सोये नहीं हो | तन्दुरस्ती की कीमत पर हमें प्रिन्सिपली नहीं चाहिये | पर क्या हमारे चाहनें या न चाहनें से संसार में कुछ घटित होता है | गगन गंगा में नये तारापथों की श्रष्टि , उल्कापातों के नये आवेग , भूचालों की सर्वान्तकाली हलचलें क्या मानव की इच्छाओं से संचालित होती हैं ? और तो और दबे कदमों से आती हुयी मृत्यु की आहट क्या हम कभी इच्छापूर्वक सुननें को आतुर होते हैं | जो आना है वह तो आना ही है | घटनाओं के क्रम को व्यक्ति , समाज या विश्व सभी स्तरोँ पर हम अपनी संचालन शक्ति से संधानित नहीं कर सकते | मुनि नाथ नें महानायक भरत से ठीक ही कहा था -
" सुनहु भरत भावी प्रबल ,बिलख कहैयु मुनि नाथ
हानि , लाभ ,जीवन , मरण , जस , अपजस विधि हाँथ | "
( क्रमशः )
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