गतांक से आगे -
इस्तेमाल होनें के बाद भौतिक संसार की सारी वस्तुयें कूड़ा -कचरा में बदल जाती हैं | तकनीकी विकास के इस दौर में कूड़ा -कचरा भी उत्पादन के साधन के रूप में इस्तेमाल होनें लगा है , गोबर , मल -मूत्र ,सड़े -गले छिलके ,सड़ते कीट -पतंग ,बदरंग पत्तियां और डाले गये सभी को आज का मानव ऊर्जा उत्पादन के लिये सफल -असफल प्रयोग में ला रहा है | अब टूटा -फूटा, गन्दा और बदसूरत प्लास्टिक Waste भी तकनीकी तरीके से परिवर्तित रूप में शहरों और कस्बों की सडकों का निर्माण करेगा | तकनीक की उछालें आसमान और पाताल दोनों ही ओर अपनी पैंगें फैला रही हैं | विश्व की बढ़ती मानव संख्या को बनाये रखनें के लिये मानव मष्तिष्क अपनी अपार क्षमताओं का संम्पूर्ण दोहन करनें की ओर प्रवृत्त है | पर इतना सब होनें पर भी अभी तक व्यापक पैमानें पर यह संम्भव नहीं हो सका है कि अस्सी को पार करनें वाले सभी नर -नारी अपनी यादगार को उतना ही चुस्त बनाये रखें जितनी चुस्ती उनके यौवन काल में देखनें को मिलती थी | भारत के जन साधारण तो सठियानें के बाद ही आधी परधी स्मृतियाँ खोनें लगते हैं और अस्सी छूते -छूते उन्हें चेहरों की पहचान भी नामों से चेहरों को जोड़कर स्मृति पटल पर नहीं ला पाती | उच्च पदस्त लोगों को लें तो उनमें भी अनेक उदाहरण ऐसे हैं जहां स्मृति विलोप कितनी ही बार -हास्यास्पद रूप ले लेती है | पूर्व प्रधान मन्त्री आदरणीय अटल जी हिन्दी भाषा के महानतम वक्ताओं में से हैं पर अपनें स्वस्थ जीवन के अन्तिम एक दो वर्षों में वह दो एक वाक्यों के बाद इतना विलम्ब देनें लगे थे | कि ऐसा लगनें लगा था कि काफी कुछ टटोलनें के बाद उन्हें उपयुक्त शब्द मिल पाते थे | उ. प्र. के एक पूर्व मुख्यमन्त्री जिनका नाम यदि मैं भूल नहीं रहा हूँ तो श्री रामप्रकाश था | कई बार कई समारोहों में अलग -अलग मंचासीन व्यक्तियों के नाम में उलट -फेर करते रहते थे | उनकी Reasoning पर कोई असर नहीं था पर उनकी स्मृति में नामों का गड्ड -बड्ड होनें लगा था | इन दिनों भारत के विदेश मन्त्री श्री एस. एम. कृष्णा भी कई बार अखबारों में चर्चा का विषय बन चुके हैं | वे अनजानें ही U.N.O.में पुर्तगाल की स्पीच हिन्दुस्तान की स्पीच के रूप में पढ़ लेते हैं और कुछ दिनों पहले पार्लियामेन्ट में पूछे गये एक सवाल के जवाब में एक पाकिस्तान में बन्द भारतीय नागरिक को हिन्दुस्तान के जेल में होनें की बात कह डाली थी | प्रधान मन्त्री जी को स्वयं उठकर पार्लियामेन्ट में पूछे गये सवाल का सही जवाब देना पड़ा था | विदेश के कुछ बड़े लोगों के भी कुछ अजीबो -गरीब स्मृति - विस्मरण के नमूनें किस्सा -कहानियों और चुटकलों में बदल चुके हैं | सच पूछो तो सूचनाओं का इतना अपार भण्डार मीडिया के माध्यम से और Information -Technology के सहारे हर पढ़े -लिखे आदमी तक पहुँच रहा है कि उसके दिमाग में सहेजकर रखना लगभग असंम्भव सा हो गया है | एक गाँव की स्मृति क्षेत्र से बढ़कर राज्य और देश तक पहुंचकर अपनी सीमायें खींच लेती थी पर अब देश की सामायें विश्व की सीमाओं में समाहित होनें लगी हैं और विश्व की सीमायें अन्तरिक्ष की सीमा हीनता में खो गयी हैं | नये -नये सौर मण्डल , नये -नये तारापथ , अनेकानेक छोटे- बड़े ग्रह , धूमकेतु और ज्योति शलाकायें सभी के वैज्ञानिक और गैर वैज्ञानिक नाम पढ़ने -सुननें को मिल रहे हैं | मानव आयु की अन्तिम दशाब्दियों में पहुंचे व्यक्ति को अगर यह सब कूड़ा -करकट लगे तो इसमें आश्चर्य ही क्या है | अब सर नेमों को ही ले लीजिये मुझे लगता है कि उनकी उपादेयता भी अब पहचान बनानें के लिये व्यर्थ होती जा रही है | सर नेमों की पहचान अब भ्रामक हो चुकी है | अब तो आँख की पुतलियों और अंगूठे तथा उँगलियों की पोरों की पहचानें ही भविष्य में सार्थकता का सूचक केतु बन जायेंगीं | चलिये छोड़िये भी पके हुये मन में मिठास और खटास की उठनें वाली इन तरंगों को | तो मैं बात कर रहा था डा. रश्मि अनेजा द्वारा अंग्रेजी में पूछे गये इस प्रश्न की कि क्या मैं प्राचार्य पद का भार -उसी सफलता से निर्वाहण कर सकूँगां जिस सफलता से मैनें अंग्रेजी के वरिष्ठ प्रवक्ता का पद भार वहन किया है | इसके उत्तर में मैनें क्या कहा मुझे याद नहीं पर इतना याद है कि मेरा उत्तर इतना सटीक अवश्य था कि उसनें प्रश्नकर्ता को मेरी क्षमता के विषय में आश्वस्त कर दिया | लगभग 20 -25 मिनट तक सवाल -जवाब चलते रहे और अन्त में प. चिरन्जी लाल ने मुझसे पूछा कि कालेज के को -एजूकेशन के विषय में मेरे क्या विचार हैं | उन्होंने कहा कि वे सोच रहे हैं कि कालेज के कला संकाय और वाणिज्य संकाय में इस सत्र से वह सह- शिक्षा प्रारंम्भ कर दें | उन्होंने कहा कि गौड़ ब्राम्हण विद्या प्रचारणीं सभा इस बात पर आग्रह कर रही है कि यदि उनकी लड़कियों के लिये अलग कालेज की व्यवस्था न हो सके तो कुछ वर्षों के लिये लड़कों के इस कालेज में ही सह -शिक्षा प्रारंम्भ कर दी जाय | आप सब जानते ही हैं कि उत्तर भारत के ब्राम्हण वर्ग में नारी पवित्रता और समाज में नारी के स्थान को लेकर अनेक प्रकार की विचारधारायें प्रचलित हैं |भारतीय जीवन दर्शन और पाश्चात्य जीवन दर्शन में कुछ मौलिक अन्तर है | सह -शिक्षा प्रारंम्भ कर देनें पर भी किसी भी क्लास में लड़कियों की बैठनें की व्यवस्था लड़कों के बैठनें की व्यवस्था से अलग कर बनानी होगी | कम से कम छोटे शहरों का सामाजिक दबाव यही चाहता है | | अभी तक भारतीय नारी को माता , भगनी , पुत्री या किसी अन्य अत्यन्त नजदीकी रिश्ते से जोड़कर ही देखा जाता है | नारी -मित्र की कल्पना एक दो प्रतिशत घरों में भले ही स्वीकृति कर ली गयी हो पर देशव्यापी विस्तार के सन्दर्भ में अभी इसकी आधकारिक स्वीकृति नहीं मिल पायी है | बातचीत में संम्भवतः तुलसी की कुछ पंक्तियों का भी उल्लेख हुआ कहाँ और कैसे और किस सन्दर्भ में मानस की इस चौपायी को पण्डित चिरन्जी लाल नें दोहराया -" पुत्रि पवित्र किये कुल दोऊ | सुजस , धवल जग कह सब कोऊ || "
पर इतना अवश्य याद है कि उन्होनें मुझसे चाहा कि मैं इस पंक्ति के सन्दर्भ को साक्षात्कार कमेटी के विद्वान सदस्यों के समक्ष उजागर करूँ | पण्डितों के जिस परिवार में मैं जन्मा था उसमें मानस का नित्यप्रति पाठ होना एक दैनिक क्रिया थी और जैसे -जैसे मैं बड़ा हुआ मुझे रामायण की प्रत्येक घटना और उसके संम्पूर्ण सन्दर्भ का पूरा ज्ञान होता चला गया | मैंनें किस तरह और कैसे सन्दर्भ को व्याख्यायित किया मुझे याद नहीं आता पर मुझे लगा -यदि यह मेरा भ्रम न हो -कि सुननें वाले अत्यन्त प्रभावित हुये | आज मैं जानता हूँ कि तुलसी रामायण की बहुत सी धारणायें अति आधुनिकता के सन्दर्भ में बेमानी हो गयी हैं पर दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है कि 2011 का सामाजिक सत्य 2012 में मिथ्या आडम्बर दिखायी पड़ता है | 60 वर्ष से चली आ रही संसदीय शासन व्यवस्था को 74 वर्ष का एक बूढ़ा दिल्ली के रामलीला मैदान में ललकार लगा रहा है और मांग कर रहा है कि यह व्यवस्था सरकारी खजानों को लूटनें -खसोटनें का साधन मात्र बन गयी है | प्रशासन व्यवस्था के परिवर्तन के साथ ही सामाजिक संम्बन्धों की पुनर्व्याख्या करनी होती है | इसलिये पण्डित चिरन्जी लाल के प्रश्न के उत्तर में मैनें जो कुछ कहा होगा वह शायद आज मुझे इतना समीचीन न लगे पर उस समय यह निश्चय ही मेरे जीवन की स्वीकृति मान्यता रही होगी | साक्षात्कार की समाप्ति के बाद मुझे कुछ देर बाहर के कक्ष में रुकनें के लिये कहा गया | अन्दर बैठे सम्मानित सदस्य कुछ विचार विमर्श करते रहे | कुछ देर बाद फिर बुलावा आया | विद्या प्रचारणीं सभा के चेयरमैन प. चतुर्भुज जी मेरी तरफ मुखातिब हुये | उन्होंने सीधा प्रश्न किया , अवस्थी जी कितनें दिनों में ज्वाइन कर लोगे ? मैं असमंजस में पड़ गया | मेरे कालेज के प्राचार्य डा.पाठक चयनित नहीं हुये थे | मुझे याद आया कि उन्होंने जाते -जाते मुझसे कहा था कि मुझे अपनी अप्लीकेशन Through proper channel डालनी चाहिये थी | कहीं अनुशासनात्मक कार्यवाही तो नहीं शुरू हो जायेगी ? फिर मन में आया कि एकदम स्तीफा देकर एक नये कालेज में ज्वाइन करना एक बहुत बड़ा जोखिम भरा कदम हो सकता है | खासकर जब मेरे कालेज के प्राचार्य के गौड़ मैनेजमेन्ट में समर्थक सदस्य कोई न कोई परेशानी खड़ी करनें में लग जायेंगें | बहुत सोचकर मैनें उत्तर दिया कि मैं शीघ्र से शीघ्र ज्वाइन करनें का प्रयास करूंगा | पर इस प्रयास में एकाध महीनें का समय लग भी सकता है | पण्डित चतुर्भुज नें कहा अरे अवस्थी , अपनी विरादरी है कल ज्वाइन कर ले | मैं बैठा हूँ | मैनें कहा पण्डित जी आप आदरणीय हैं कुछ समय तो दीजिये | बोले अच्छा फिर बड़े बाबू को बुलाकर कहा कि नियमानुसार Appointment Letter बनाकर उनके दस्तखत कराकर मुझे दे दिया जाय | यह नियुक्ति एक साल के प्रोवेशन पर हुयी थी क्योंकि विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार Confirm नियुक्ति नहीं हो सकती थी | इसके लिये विश्वविद्यालय से विशेष अनुमति लेनी होती थी |
(क्रमशः )
इस्तेमाल होनें के बाद भौतिक संसार की सारी वस्तुयें कूड़ा -कचरा में बदल जाती हैं | तकनीकी विकास के इस दौर में कूड़ा -कचरा भी उत्पादन के साधन के रूप में इस्तेमाल होनें लगा है , गोबर , मल -मूत्र ,सड़े -गले छिलके ,सड़ते कीट -पतंग ,बदरंग पत्तियां और डाले गये सभी को आज का मानव ऊर्जा उत्पादन के लिये सफल -असफल प्रयोग में ला रहा है | अब टूटा -फूटा, गन्दा और बदसूरत प्लास्टिक Waste भी तकनीकी तरीके से परिवर्तित रूप में शहरों और कस्बों की सडकों का निर्माण करेगा | तकनीक की उछालें आसमान और पाताल दोनों ही ओर अपनी पैंगें फैला रही हैं | विश्व की बढ़ती मानव संख्या को बनाये रखनें के लिये मानव मष्तिष्क अपनी अपार क्षमताओं का संम्पूर्ण दोहन करनें की ओर प्रवृत्त है | पर इतना सब होनें पर भी अभी तक व्यापक पैमानें पर यह संम्भव नहीं हो सका है कि अस्सी को पार करनें वाले सभी नर -नारी अपनी यादगार को उतना ही चुस्त बनाये रखें जितनी चुस्ती उनके यौवन काल में देखनें को मिलती थी | भारत के जन साधारण तो सठियानें के बाद ही आधी परधी स्मृतियाँ खोनें लगते हैं और अस्सी छूते -छूते उन्हें चेहरों की पहचान भी नामों से चेहरों को जोड़कर स्मृति पटल पर नहीं ला पाती | उच्च पदस्त लोगों को लें तो उनमें भी अनेक उदाहरण ऐसे हैं जहां स्मृति विलोप कितनी ही बार -हास्यास्पद रूप ले लेती है | पूर्व प्रधान मन्त्री आदरणीय अटल जी हिन्दी भाषा के महानतम वक्ताओं में से हैं पर अपनें स्वस्थ जीवन के अन्तिम एक दो वर्षों में वह दो एक वाक्यों के बाद इतना विलम्ब देनें लगे थे | कि ऐसा लगनें लगा था कि काफी कुछ टटोलनें के बाद उन्हें उपयुक्त शब्द मिल पाते थे | उ. प्र. के एक पूर्व मुख्यमन्त्री जिनका नाम यदि मैं भूल नहीं रहा हूँ तो श्री रामप्रकाश था | कई बार कई समारोहों में अलग -अलग मंचासीन व्यक्तियों के नाम में उलट -फेर करते रहते थे | उनकी Reasoning पर कोई असर नहीं था पर उनकी स्मृति में नामों का गड्ड -बड्ड होनें लगा था | इन दिनों भारत के विदेश मन्त्री श्री एस. एम. कृष्णा भी कई बार अखबारों में चर्चा का विषय बन चुके हैं | वे अनजानें ही U.N.O.में पुर्तगाल की स्पीच हिन्दुस्तान की स्पीच के रूप में पढ़ लेते हैं और कुछ दिनों पहले पार्लियामेन्ट में पूछे गये एक सवाल के जवाब में एक पाकिस्तान में बन्द भारतीय नागरिक को हिन्दुस्तान के जेल में होनें की बात कह डाली थी | प्रधान मन्त्री जी को स्वयं उठकर पार्लियामेन्ट में पूछे गये सवाल का सही जवाब देना पड़ा था | विदेश के कुछ बड़े लोगों के भी कुछ अजीबो -गरीब स्मृति - विस्मरण के नमूनें किस्सा -कहानियों और चुटकलों में बदल चुके हैं | सच पूछो तो सूचनाओं का इतना अपार भण्डार मीडिया के माध्यम से और Information -Technology के सहारे हर पढ़े -लिखे आदमी तक पहुँच रहा है कि उसके दिमाग में सहेजकर रखना लगभग असंम्भव सा हो गया है | एक गाँव की स्मृति क्षेत्र से बढ़कर राज्य और देश तक पहुंचकर अपनी सीमायें खींच लेती थी पर अब देश की सामायें विश्व की सीमाओं में समाहित होनें लगी हैं और विश्व की सीमायें अन्तरिक्ष की सीमा हीनता में खो गयी हैं | नये -नये सौर मण्डल , नये -नये तारापथ , अनेकानेक छोटे- बड़े ग्रह , धूमकेतु और ज्योति शलाकायें सभी के वैज्ञानिक और गैर वैज्ञानिक नाम पढ़ने -सुननें को मिल रहे हैं | मानव आयु की अन्तिम दशाब्दियों में पहुंचे व्यक्ति को अगर यह सब कूड़ा -करकट लगे तो इसमें आश्चर्य ही क्या है | अब सर नेमों को ही ले लीजिये मुझे लगता है कि उनकी उपादेयता भी अब पहचान बनानें के लिये व्यर्थ होती जा रही है | सर नेमों की पहचान अब भ्रामक हो चुकी है | अब तो आँख की पुतलियों और अंगूठे तथा उँगलियों की पोरों की पहचानें ही भविष्य में सार्थकता का सूचक केतु बन जायेंगीं | चलिये छोड़िये भी पके हुये मन में मिठास और खटास की उठनें वाली इन तरंगों को | तो मैं बात कर रहा था डा. रश्मि अनेजा द्वारा अंग्रेजी में पूछे गये इस प्रश्न की कि क्या मैं प्राचार्य पद का भार -उसी सफलता से निर्वाहण कर सकूँगां जिस सफलता से मैनें अंग्रेजी के वरिष्ठ प्रवक्ता का पद भार वहन किया है | इसके उत्तर में मैनें क्या कहा मुझे याद नहीं पर इतना याद है कि मेरा उत्तर इतना सटीक अवश्य था कि उसनें प्रश्नकर्ता को मेरी क्षमता के विषय में आश्वस्त कर दिया | लगभग 20 -25 मिनट तक सवाल -जवाब चलते रहे और अन्त में प. चिरन्जी लाल ने मुझसे पूछा कि कालेज के को -एजूकेशन के विषय में मेरे क्या विचार हैं | उन्होंने कहा कि वे सोच रहे हैं कि कालेज के कला संकाय और वाणिज्य संकाय में इस सत्र से वह सह- शिक्षा प्रारंम्भ कर दें | उन्होंने कहा कि गौड़ ब्राम्हण विद्या प्रचारणीं सभा इस बात पर आग्रह कर रही है कि यदि उनकी लड़कियों के लिये अलग कालेज की व्यवस्था न हो सके तो कुछ वर्षों के लिये लड़कों के इस कालेज में ही सह -शिक्षा प्रारंम्भ कर दी जाय | आप सब जानते ही हैं कि उत्तर भारत के ब्राम्हण वर्ग में नारी पवित्रता और समाज में नारी के स्थान को लेकर अनेक प्रकार की विचारधारायें प्रचलित हैं |भारतीय जीवन दर्शन और पाश्चात्य जीवन दर्शन में कुछ मौलिक अन्तर है | सह -शिक्षा प्रारंम्भ कर देनें पर भी किसी भी क्लास में लड़कियों की बैठनें की व्यवस्था लड़कों के बैठनें की व्यवस्था से अलग कर बनानी होगी | कम से कम छोटे शहरों का सामाजिक दबाव यही चाहता है | | अभी तक भारतीय नारी को माता , भगनी , पुत्री या किसी अन्य अत्यन्त नजदीकी रिश्ते से जोड़कर ही देखा जाता है | नारी -मित्र की कल्पना एक दो प्रतिशत घरों में भले ही स्वीकृति कर ली गयी हो पर देशव्यापी विस्तार के सन्दर्भ में अभी इसकी आधकारिक स्वीकृति नहीं मिल पायी है | बातचीत में संम्भवतः तुलसी की कुछ पंक्तियों का भी उल्लेख हुआ कहाँ और कैसे और किस सन्दर्भ में मानस की इस चौपायी को पण्डित चिरन्जी लाल नें दोहराया -" पुत्रि पवित्र किये कुल दोऊ | सुजस , धवल जग कह सब कोऊ || "
पर इतना अवश्य याद है कि उन्होनें मुझसे चाहा कि मैं इस पंक्ति के सन्दर्भ को साक्षात्कार कमेटी के विद्वान सदस्यों के समक्ष उजागर करूँ | पण्डितों के जिस परिवार में मैं जन्मा था उसमें मानस का नित्यप्रति पाठ होना एक दैनिक क्रिया थी और जैसे -जैसे मैं बड़ा हुआ मुझे रामायण की प्रत्येक घटना और उसके संम्पूर्ण सन्दर्भ का पूरा ज्ञान होता चला गया | मैंनें किस तरह और कैसे सन्दर्भ को व्याख्यायित किया मुझे याद नहीं आता पर मुझे लगा -यदि यह मेरा भ्रम न हो -कि सुननें वाले अत्यन्त प्रभावित हुये | आज मैं जानता हूँ कि तुलसी रामायण की बहुत सी धारणायें अति आधुनिकता के सन्दर्भ में बेमानी हो गयी हैं पर दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है कि 2011 का सामाजिक सत्य 2012 में मिथ्या आडम्बर दिखायी पड़ता है | 60 वर्ष से चली आ रही संसदीय शासन व्यवस्था को 74 वर्ष का एक बूढ़ा दिल्ली के रामलीला मैदान में ललकार लगा रहा है और मांग कर रहा है कि यह व्यवस्था सरकारी खजानों को लूटनें -खसोटनें का साधन मात्र बन गयी है | प्रशासन व्यवस्था के परिवर्तन के साथ ही सामाजिक संम्बन्धों की पुनर्व्याख्या करनी होती है | इसलिये पण्डित चिरन्जी लाल के प्रश्न के उत्तर में मैनें जो कुछ कहा होगा वह शायद आज मुझे इतना समीचीन न लगे पर उस समय यह निश्चय ही मेरे जीवन की स्वीकृति मान्यता रही होगी | साक्षात्कार की समाप्ति के बाद मुझे कुछ देर बाहर के कक्ष में रुकनें के लिये कहा गया | अन्दर बैठे सम्मानित सदस्य कुछ विचार विमर्श करते रहे | कुछ देर बाद फिर बुलावा आया | विद्या प्रचारणीं सभा के चेयरमैन प. चतुर्भुज जी मेरी तरफ मुखातिब हुये | उन्होंने सीधा प्रश्न किया , अवस्थी जी कितनें दिनों में ज्वाइन कर लोगे ? मैं असमंजस में पड़ गया | मेरे कालेज के प्राचार्य डा.पाठक चयनित नहीं हुये थे | मुझे याद आया कि उन्होंने जाते -जाते मुझसे कहा था कि मुझे अपनी अप्लीकेशन Through proper channel डालनी चाहिये थी | कहीं अनुशासनात्मक कार्यवाही तो नहीं शुरू हो जायेगी ? फिर मन में आया कि एकदम स्तीफा देकर एक नये कालेज में ज्वाइन करना एक बहुत बड़ा जोखिम भरा कदम हो सकता है | खासकर जब मेरे कालेज के प्राचार्य के गौड़ मैनेजमेन्ट में समर्थक सदस्य कोई न कोई परेशानी खड़ी करनें में लग जायेंगें | बहुत सोचकर मैनें उत्तर दिया कि मैं शीघ्र से शीघ्र ज्वाइन करनें का प्रयास करूंगा | पर इस प्रयास में एकाध महीनें का समय लग भी सकता है | पण्डित चतुर्भुज नें कहा अरे अवस्थी , अपनी विरादरी है कल ज्वाइन कर ले | मैं बैठा हूँ | मैनें कहा पण्डित जी आप आदरणीय हैं कुछ समय तो दीजिये | बोले अच्छा फिर बड़े बाबू को बुलाकर कहा कि नियमानुसार Appointment Letter बनाकर उनके दस्तखत कराकर मुझे दे दिया जाय | यह नियुक्ति एक साल के प्रोवेशन पर हुयी थी क्योंकि विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार Confirm नियुक्ति नहीं हो सकती थी | इसके लिये विश्वविद्यालय से विशेष अनुमति लेनी होती थी |
(क्रमशः )
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