गतांक से आगे -
अब प्राचार्य पद की इस दौड़ में एक नया मोड़ आ गया | नियुक्ति पत्र लेकर घर में हार्डबोर्ड पर लेटे -लेटे मैनें मन में एक योजना बनायी | मैं जिस किराये के मकान में रह रहा था उसी मुहल्ले में कालेज मैनेजमेन्ट कमेटी के प्रधान का निवास स्थान और कई कोठियां थीं | पद्म श्री सेठ श्री किशन दास कालेज मैनेजमेन्ट कमेटी के प्रधान थे | वे चौधरी वंशीलाल के दायें हाँथ थे और उनकी कैबिनेट में वरिष्ठ मन्त्री थे | मैनें सोचा कि इससे पहले कि मेरे कालेज के प्राचार्य प्रधान जी तक अपनी खबर पहुंचावें मैं स्वयं ही उनसे क्यों न मिल लूँ | मैं जानता था कि प्राचार्य महोदय तभी उन तक खबर पहुंचायेंगें जब उन्हें पता चल जायेगा कि उनका Appointment नहीं हुआ है और अवस्थी जी को प्राचार्य बना दिया गया है | उस शाम को पहली बार मैं कालेज के किसी प्रधान के घर मिलनें के लिये पहुंचा | सेठ जी , मेरे नाम से परिचित थे | संस्थाओं के समारोहों में कई बार मेरे को सुन चुके थे और यद्यपि वे वंशी लाल के साथ थे फिर भी पुरानें सच्ची काँग्रेसी विचारधारा से जुड़े थे | चपरासी नें मुझे उनके अन्तर्प्रकोष्ठ तक पहुंचाया | मैनें प्रणाम करके Appointment उनके सामनें रख दिया | वे बोले , " अवस्थी , पण्डित चिरन्जी लाल नें मेरे से तुम्हारे विषय में पूछा था | मैनें कहा था कि हमारे प्रिन्सिपल को रख लो | वे बोले प्रिन्सिपल को आप बनाये रखो | अवस्थी को हमें दे दो | मैनें कहा प्रधान जी आपकी संस्था में 20 वर्ष से ऊपर हो चुके हैं आप सब ने कभी भी मेरे ऊपर कभी कोई दबाव नहीं डाला आपकी संस्था में मैनें एक गौरव भरा जीवन जिया है | यदि आप न चाहें तो मैं ज्वाइन नहीं करूंगा | सेठ जी सच्चे अर्थों में धार्मिक व्यक्ति थे | उन्होंने कहा प्रोफ़ेसर साहब प्रिन्सिपली क्या बाजार में बिकती है और कौन है कालेज में जो Appointment ला सकता था | तुम्हारा अपना प्रिन्सिपल भी तो चित्त हो गया | वह जाता तो हम खुशी -खुशी उसे विदा कर देते | अब क्या करें , तुमको रोकें तो तुम्हारा भविष्य सुनहला कैसे होगा | हम तो अच्छे अध्यापक विशेषतः ब्राम्हण अध्यापक का दिली सम्मान करते हैं | मैनें कहा , "सर आप मुझे एक वर्ष की अवैतनिक छुट्टी दे दें | " मैं कल एक अप्लीकेशन आप के नाम प्राचार्य महोदय के माध्यम से पहुंचा दूंगा | आप उसे स्वीकार कर लेना | मैं परसों गौड़ कालेज ज्वाइन कर लूंगा | उन्होंने कहा ठीक है | हम और चिरन्जी लाल साथ ही रहे हैं | जैसा चाहोगे हो जायेगा |
अगले दिन मैनें प्रिन्सिपल जी को एक वर्ष की अवैतनिक छुट्टी के लिये अप्लीकेशन दे दी | उनको शाम को ही पता चल गया था कि मेरा नाम रिकमेन्ड होकर यूनिवर्सिटी तक पहुँच गया है और उनका नाम दूसरे स्थान पर रखा गया है | मैं और प्राचार्य जी व्यक्तिगत धरातल पर एक दूसरे से कभी भी टकराये नहीं थे और वे जानते थे कि कि मैनें अपने Application के लिये उनके खिलाफ कुछ भी नहीं कहा था | आज कई दशकों की दूरी के बाद भी मैं ईमानदारी से कहता हूँ कि यदि उन्होंने मुझे बता दिया होता कि वे भी एक Applicant हैं तो मैं किसी भी हालत में Application नहीं डालता | डा. पाठक एक अत्यन्त चतुर व्यक्ति थे उन्होंने मेरी अप्लीकेशन अपनी Recommendation के बाद मैनेजमेन्ट के प्रधान श्री किशन लाल जी के पास पहुंचा दी | सेठ जी से उन्होंने कहा कि छुट्टी मन्जूर कर ली जाय पर उसमें लिख दिया जाय कि यह छुट्टी Subject to the confirmation working commettee भी लिख दिया जाय | मुझे विश्वास था कि सेठ जी जो चाहेंगें वही Working commettee में पास होगा पर मुझे क्या पता था कि डा. पाठक अपनें स्वार्थ के पांसे मामा शकुनि की धूर्तता के साथ चला रहे थे | डा. पाठक से यह खबर पाकर कि मेरी छुट्टी मंजूर हो गयी है मैनें अगले दिन गौड़ कालेज में Joining report सबमिट कर दी और प्राचार्य की कुर्सी पर बैठ गया | उस दिन मध्यान्ह 2 बजे के बाद मैनें कालेज स्टाफ को कुछ देर के लिये संम्बोधित किया और उनके पूर्ण सहयोग की याचना की | कालेज स्टाफ में लगभग सभी मेरे परिचित थे और मुझे विश्वास था कि यूनियन के आन्दोलनों में मेरे साथ कन्धे से कंधा मिलाकर खड़े होनें वाले साथी मुझे निश्चय ही अपना सहयोग देंगें | अगले दिन विद्यार्थियों की एक मीटिंग पूर्वान्ह 10 बजे कालेज में आयोजित करनें की सूचना सूचनापट्ट पर चस्पा करवा दी और प्रत्येक क्लास में उसे सर्कुलर करवा दिया गया | इधर डा. पाठक जो गुल खिला रहे थे उसका मुझे कोई आभाष न था | मुझे क्या पता था कि डा. पाठक नें सब्जेक्ट टु द कन्फर्मेशन आफ वर्किंग कमेटी लिखवाकर अपनें लिये गौड़ कालेज के प्राचार्य होनें का रास्ता तलाशा था | श्री किशनदास यों तो कालेज मैनेजिंग कमेटी के प्रधान थे पर वे इसीलिये प्रधान थे क्योंकि मैनेजमेन्ट के भीतर वे किसी टोलीबाजी में विश्वास नहीं करते थे | जब डा. पाठक का Appointment हुआ था तब एक दूसरे प्रधान थे और एक दूसरा ग्रुप पावर में था | वह ग्रुप नहीं चाहता था कि डा. पाठक के खिलाफ अभियोग लग जाय और वे कालेज से निकाल दिये जांय | उस ग्रुप के कुछ प्रभावी सदस्यों नें डा. पाठक को गौड़ कालेज में भेज देनें की योजना बनायी थी इस प्रकार डा. पाठक की इज्जत बच सकती थी और वे बिना किसी चार्जशीट के कालेज से बाहर जा सकते थे | मैनेजिंग कमेटी के जो सम्मानित सदस्य डा. पाठक के लिये योजना बना रहे थे उनसे मेरा भी कोई द्वेष भाव नहीं था | वे मेरी योग्यता का सम्मान करते थे और जहां तक मैं समझता हूँ वे जानते थे कि किसी भी साक्षात्कार में मैं डा. पाठक के मुकाबले भारी पडूंगा | पर अब मैनेजिंग कमेटी में एक विशेष ग्रुप की इज्जत का सवाल था इसलिये मुझे किसी प्रकार ज्वाइन कर लेनें पर भी गौड़ कालेज से खींचकर अपनें कालेज में वापस लानें का एक कूटनीतिक खेल चल रहा था | एक हप्ते के बाद अगले इतवार को वर्किंग कमेटी की मीटिंग थी मुझे आभाष भी न था पद्म श्री सेठ श्री किशन दास द्वारा दी गयी जबान किसी भी प्रकार वापस हो सकती है | पर घटनायें एक नया मोड़ ले रहीं थीं | संसार के दो विश्व युद्ध घटनाओं के मोड़ के कारण ही हुये थे और चाहे Trozian War रहा हो या महाभारत का युद्ध सभी तो घटनाओं के मोड़ के कारण ही तो हुये थे | न जानें कितनें देशों की राजनीतिक घटनायें मोड़ के कारण बदलती रहती हैं | अफगानिस्तान ,ईरान, मिश्र सभी जगह तो ऐसा हो चुका है और अब लीबिया में भी तो यही घटित हो रहा है | सच पूछो तो पूरा अरब संसार ही एक दुश्चक्र में घिरा हुआ है | और विश्व की महानतम शक्ति U.S. A.( यूनाइटेड स्टेट आफ अमेरिका ) भी तो अपनी पूरी ताकत के बावजूद आर्थिक फिसलन की पगडण्डी पर पैर बढ़ा चुका है | दूर क्यों जांय भारत की घटनायें भी तो परिवर्तन के नये द्रश्यों की झलकें पेश करनें लगी हैं फिर मैं तो केवल एक व्यक्ति मात्र हूँ | प्रकृति के असंख्य जीवों में एक नगण्य निम्न मध्यम वर्ग का बुद्धि जीवी | मेरे साथ जो घटित हुआ वह न तो गणना योग्य है और न लिखनें योग्य पर जो घटित हुआ उसके पीछे जो कुत्सित तर्क दिये गये उनके लिये मन में कुछ असन्तोष अवश्य रहा पर अब तो समय के एक लंम्बे अन्तराल ने सभी कुछ भुलाकर विस्मृति के गर्त में डाल दिया है | स्मृतियाँ कुरेदने से कहीं मन की पीड़ा फिर से तो नहीं उमड़ पड़ेगी | बुढ़ापे में भी किस फिल्म के गीत की यह दो पंक्तियाँ स्मृति में उभर -उभर कर आ रही हैं |
" अब तक तो जो भी लोग मिले बे वफ़ा मिले
ऐसा न हो कि दर्द कोई फिर नया मिले | "
( क्रमशः )
अब प्राचार्य पद की इस दौड़ में एक नया मोड़ आ गया | नियुक्ति पत्र लेकर घर में हार्डबोर्ड पर लेटे -लेटे मैनें मन में एक योजना बनायी | मैं जिस किराये के मकान में रह रहा था उसी मुहल्ले में कालेज मैनेजमेन्ट कमेटी के प्रधान का निवास स्थान और कई कोठियां थीं | पद्म श्री सेठ श्री किशन दास कालेज मैनेजमेन्ट कमेटी के प्रधान थे | वे चौधरी वंशीलाल के दायें हाँथ थे और उनकी कैबिनेट में वरिष्ठ मन्त्री थे | मैनें सोचा कि इससे पहले कि मेरे कालेज के प्राचार्य प्रधान जी तक अपनी खबर पहुंचावें मैं स्वयं ही उनसे क्यों न मिल लूँ | मैं जानता था कि प्राचार्य महोदय तभी उन तक खबर पहुंचायेंगें जब उन्हें पता चल जायेगा कि उनका Appointment नहीं हुआ है और अवस्थी जी को प्राचार्य बना दिया गया है | उस शाम को पहली बार मैं कालेज के किसी प्रधान के घर मिलनें के लिये पहुंचा | सेठ जी , मेरे नाम से परिचित थे | संस्थाओं के समारोहों में कई बार मेरे को सुन चुके थे और यद्यपि वे वंशी लाल के साथ थे फिर भी पुरानें सच्ची काँग्रेसी विचारधारा से जुड़े थे | चपरासी नें मुझे उनके अन्तर्प्रकोष्ठ तक पहुंचाया | मैनें प्रणाम करके Appointment उनके सामनें रख दिया | वे बोले , " अवस्थी , पण्डित चिरन्जी लाल नें मेरे से तुम्हारे विषय में पूछा था | मैनें कहा था कि हमारे प्रिन्सिपल को रख लो | वे बोले प्रिन्सिपल को आप बनाये रखो | अवस्थी को हमें दे दो | मैनें कहा प्रधान जी आपकी संस्था में 20 वर्ष से ऊपर हो चुके हैं आप सब ने कभी भी मेरे ऊपर कभी कोई दबाव नहीं डाला आपकी संस्था में मैनें एक गौरव भरा जीवन जिया है | यदि आप न चाहें तो मैं ज्वाइन नहीं करूंगा | सेठ जी सच्चे अर्थों में धार्मिक व्यक्ति थे | उन्होंने कहा प्रोफ़ेसर साहब प्रिन्सिपली क्या बाजार में बिकती है और कौन है कालेज में जो Appointment ला सकता था | तुम्हारा अपना प्रिन्सिपल भी तो चित्त हो गया | वह जाता तो हम खुशी -खुशी उसे विदा कर देते | अब क्या करें , तुमको रोकें तो तुम्हारा भविष्य सुनहला कैसे होगा | हम तो अच्छे अध्यापक विशेषतः ब्राम्हण अध्यापक का दिली सम्मान करते हैं | मैनें कहा , "सर आप मुझे एक वर्ष की अवैतनिक छुट्टी दे दें | " मैं कल एक अप्लीकेशन आप के नाम प्राचार्य महोदय के माध्यम से पहुंचा दूंगा | आप उसे स्वीकार कर लेना | मैं परसों गौड़ कालेज ज्वाइन कर लूंगा | उन्होंने कहा ठीक है | हम और चिरन्जी लाल साथ ही रहे हैं | जैसा चाहोगे हो जायेगा |
अगले दिन मैनें प्रिन्सिपल जी को एक वर्ष की अवैतनिक छुट्टी के लिये अप्लीकेशन दे दी | उनको शाम को ही पता चल गया था कि मेरा नाम रिकमेन्ड होकर यूनिवर्सिटी तक पहुँच गया है और उनका नाम दूसरे स्थान पर रखा गया है | मैं और प्राचार्य जी व्यक्तिगत धरातल पर एक दूसरे से कभी भी टकराये नहीं थे और वे जानते थे कि कि मैनें अपने Application के लिये उनके खिलाफ कुछ भी नहीं कहा था | आज कई दशकों की दूरी के बाद भी मैं ईमानदारी से कहता हूँ कि यदि उन्होंने मुझे बता दिया होता कि वे भी एक Applicant हैं तो मैं किसी भी हालत में Application नहीं डालता | डा. पाठक एक अत्यन्त चतुर व्यक्ति थे उन्होंने मेरी अप्लीकेशन अपनी Recommendation के बाद मैनेजमेन्ट के प्रधान श्री किशन लाल जी के पास पहुंचा दी | सेठ जी से उन्होंने कहा कि छुट्टी मन्जूर कर ली जाय पर उसमें लिख दिया जाय कि यह छुट्टी Subject to the confirmation working commettee भी लिख दिया जाय | मुझे विश्वास था कि सेठ जी जो चाहेंगें वही Working commettee में पास होगा पर मुझे क्या पता था कि डा. पाठक अपनें स्वार्थ के पांसे मामा शकुनि की धूर्तता के साथ चला रहे थे | डा. पाठक से यह खबर पाकर कि मेरी छुट्टी मंजूर हो गयी है मैनें अगले दिन गौड़ कालेज में Joining report सबमिट कर दी और प्राचार्य की कुर्सी पर बैठ गया | उस दिन मध्यान्ह 2 बजे के बाद मैनें कालेज स्टाफ को कुछ देर के लिये संम्बोधित किया और उनके पूर्ण सहयोग की याचना की | कालेज स्टाफ में लगभग सभी मेरे परिचित थे और मुझे विश्वास था कि यूनियन के आन्दोलनों में मेरे साथ कन्धे से कंधा मिलाकर खड़े होनें वाले साथी मुझे निश्चय ही अपना सहयोग देंगें | अगले दिन विद्यार्थियों की एक मीटिंग पूर्वान्ह 10 बजे कालेज में आयोजित करनें की सूचना सूचनापट्ट पर चस्पा करवा दी और प्रत्येक क्लास में उसे सर्कुलर करवा दिया गया | इधर डा. पाठक जो गुल खिला रहे थे उसका मुझे कोई आभाष न था | मुझे क्या पता था कि डा. पाठक नें सब्जेक्ट टु द कन्फर्मेशन आफ वर्किंग कमेटी लिखवाकर अपनें लिये गौड़ कालेज के प्राचार्य होनें का रास्ता तलाशा था | श्री किशनदास यों तो कालेज मैनेजिंग कमेटी के प्रधान थे पर वे इसीलिये प्रधान थे क्योंकि मैनेजमेन्ट के भीतर वे किसी टोलीबाजी में विश्वास नहीं करते थे | जब डा. पाठक का Appointment हुआ था तब एक दूसरे प्रधान थे और एक दूसरा ग्रुप पावर में था | वह ग्रुप नहीं चाहता था कि डा. पाठक के खिलाफ अभियोग लग जाय और वे कालेज से निकाल दिये जांय | उस ग्रुप के कुछ प्रभावी सदस्यों नें डा. पाठक को गौड़ कालेज में भेज देनें की योजना बनायी थी इस प्रकार डा. पाठक की इज्जत बच सकती थी और वे बिना किसी चार्जशीट के कालेज से बाहर जा सकते थे | मैनेजिंग कमेटी के जो सम्मानित सदस्य डा. पाठक के लिये योजना बना रहे थे उनसे मेरा भी कोई द्वेष भाव नहीं था | वे मेरी योग्यता का सम्मान करते थे और जहां तक मैं समझता हूँ वे जानते थे कि किसी भी साक्षात्कार में मैं डा. पाठक के मुकाबले भारी पडूंगा | पर अब मैनेजिंग कमेटी में एक विशेष ग्रुप की इज्जत का सवाल था इसलिये मुझे किसी प्रकार ज्वाइन कर लेनें पर भी गौड़ कालेज से खींचकर अपनें कालेज में वापस लानें का एक कूटनीतिक खेल चल रहा था | एक हप्ते के बाद अगले इतवार को वर्किंग कमेटी की मीटिंग थी मुझे आभाष भी न था पद्म श्री सेठ श्री किशन दास द्वारा दी गयी जबान किसी भी प्रकार वापस हो सकती है | पर घटनायें एक नया मोड़ ले रहीं थीं | संसार के दो विश्व युद्ध घटनाओं के मोड़ के कारण ही हुये थे और चाहे Trozian War रहा हो या महाभारत का युद्ध सभी तो घटनाओं के मोड़ के कारण ही तो हुये थे | न जानें कितनें देशों की राजनीतिक घटनायें मोड़ के कारण बदलती रहती हैं | अफगानिस्तान ,ईरान, मिश्र सभी जगह तो ऐसा हो चुका है और अब लीबिया में भी तो यही घटित हो रहा है | सच पूछो तो पूरा अरब संसार ही एक दुश्चक्र में घिरा हुआ है | और विश्व की महानतम शक्ति U.S. A.( यूनाइटेड स्टेट आफ अमेरिका ) भी तो अपनी पूरी ताकत के बावजूद आर्थिक फिसलन की पगडण्डी पर पैर बढ़ा चुका है | दूर क्यों जांय भारत की घटनायें भी तो परिवर्तन के नये द्रश्यों की झलकें पेश करनें लगी हैं फिर मैं तो केवल एक व्यक्ति मात्र हूँ | प्रकृति के असंख्य जीवों में एक नगण्य निम्न मध्यम वर्ग का बुद्धि जीवी | मेरे साथ जो घटित हुआ वह न तो गणना योग्य है और न लिखनें योग्य पर जो घटित हुआ उसके पीछे जो कुत्सित तर्क दिये गये उनके लिये मन में कुछ असन्तोष अवश्य रहा पर अब तो समय के एक लंम्बे अन्तराल ने सभी कुछ भुलाकर विस्मृति के गर्त में डाल दिया है | स्मृतियाँ कुरेदने से कहीं मन की पीड़ा फिर से तो नहीं उमड़ पड़ेगी | बुढ़ापे में भी किस फिल्म के गीत की यह दो पंक्तियाँ स्मृति में उभर -उभर कर आ रही हैं |
" अब तक तो जो भी लोग मिले बे वफ़ा मिले
ऐसा न हो कि दर्द कोई फिर नया मिले | "
( क्रमशः )
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