Thursday, 1 March 2018

होले की हूल

होली है, होला है, नीचे की सड़क पर |
विकट वेष तरुणों के होठों पर
चुनी हुयी गालियां हैं
चरस और सिगरेट से उठता हुआ
धुएँ का गोला है --होला है ---
होली सत्तरहवीं वर्षगाँठ स्वतन्त्रता की |
नेता लोग कहते हैं चमक रहा भारत है
फील गुड फैक्टर को फील ग्रेट करना ही
उनकी महारत है |
इतनें अल्पकाल में गगन धरा पर
कहीं लाया जा सकता है ?
यह तो सर्वविदित है , चढ़कर दिव्य -रथ पर ही |
स्वप्न -स्वर्ग पाया जा सकता है |
जर्मनी , जापान , इजरायल छोटे हैं
भारत महान है
उसकी परंम्परा में आज भी जान है |
 आज भी लाल लटकाये जीभ
काली माँ खप्पर में धर्म -भीख लाती है
आज भी मन्दिर के कोनें में देवदासी
भक्तों की थपकन पा जीवित मर जाती है
हर आध घण्टे में एक सती जलती है
हाँ धर्म -पीठ में गर्भ -गृह होता है
सुबक सुबक कर थक राम के सहारे ही
भूखा शिशु लक्ष लक्ष गृहों में सोता है
जो कुछ है उसे सहो -अपनी परंम्परा है
राम जब चाहेंगें दाया हो जायेगी
भाग्य के धनी हैं जो आज भी सुखी हैं वे
चाहेंगें गिरधर जब छाया हो जायेगी |
खिलनें दो दीवाली को क्षीरनाथ की
छटा होली का शिखर पुरुष अलमस्त
भोला है --होला है ----------------
दस सहस्त्र बरसों में सुबक सुबक रोया है
चून का घोल पी श्रम -शिशु सोया है
दस सहस्त्र वर्षों से भूखा प्रहलाद
लाल लपटें पी जाता है
दस सहस्त्र वर्षों में श्रम -शिशु
सर्वभक्षी होली में जलकर जी जाता है |
सामनें छत पर
बन्दर बन्दरिया के जोड़े को
मिलनें दो
बन -नर आधुनिक विधान कहता है
होली के दूल्हे का सच्चा
सहबोला है | होला है |




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