Friday 9 February 2018

गतांक से आगे -

                                           डा. शकुन्तला सिंगला नें तर्क को आगे बढ़ाते हुये कहा ," युग बदल गया है |  अब इस धरती को अधिक नर -नारियों की आवश्यकता नहीं है | जब मानव को अपनें अस्तित्व के  लिये वन्य पशुओं से लड़ाई लड़नी थी | जब प्राकृतिक आपदाओं से मानव जाति का बड़े पैमानें पर विनाश हो जाता था तब माता होनें का गौरव यही माना जाता था कि वह अधिक से अधिक सन्तान पैदा कर सके | उस समय जितनी जनसंख्या थी उससे काफी बड़ी जनसंख्या कृषि की उपज ,वनों और पशुओं की उपज के साथ मिलकर भूख से मुक्त रखी जा सकती थी | जीवन के अन्य साधन भी जुटाये जा सकते थे जैसे गृह ,वस्त्र और ईंधन आदि | आज परिस्थितियां बिल्कुल बदली हुयी हैं | हिन्दुस्तान के सन्दर्भ में तो आज जितनी आबादी है उसमें किसी बढ़ोत्तरी की गुंजाइश नहीं है | पति -पत्नी को एक सन्तान का आदर्श ही रखना चाहिये और यदि पुरानें संस्कार बहुत जोर मारें तो दो सन्तानों का आदर्श तो अनिवार्य ही होना चाहिये |
                                        डा. रजनी कान्त विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े हुये थे | उन्होंने तर्क दिया , " यदि हिन्दू केवल एक या दो सन्तान पैदा करते रहे और अन्य धर्म के माननें वाले मनमानी सन्तानें पैदा करते रहे तो कुछ ही दशकों बाद भारत हिन्दू बाहुल देश नहीं रहेगा और तब यहां पर वही सब कुछ होगा जो पाकिस्तान में हो रहा है | हमें भूलना नहीं चाहिये कि जिसे हम जनतन्त्र डिमोक्रेसी कहते हैं वह तभी इस देश में चल सकती है जब तक यह देश हिन्दू बाहुल रहेगा | अन्यथा हमारी धर्म निरपेक्ष व्यवस्था कूड़े में फेंक दी जायेगी और यहाँ कट्टर पन्थियों की तूती बोलेगी | "
                                      डा. भारद्वाज नें तर्क को एक नयी दिशा दी जब डा. सिंगला यह कह रही हैं कि हमें एक या दो सन्तानों से  आगे नहीं बढ़ना चाहिये तो वे तो न हिन्दुओं की बात कर रही हैं न मुसलमानों की ,न तो सिक्खों की ,न इसाइयों की , न पारसियों की , न पेंड़ पूजकों की | वे तो सारे हिन्दुस्तान में रहनें वाले भाई -बहनों को अपनें तर्क के दायरे में घेर रही हैं | हर धर्म और विश्वास के समझदार लोग उनकी बात का समर्थन करेंगें | मजहब मानव जाति   के कल्याण के लिये होते हैं और जो बात सारे संसार के लिये कल्याणकारी है उसे हर सच्चे इन्सान को स्वीकार करना चाहिये | बात चीत हो रही थी कि सुषुमा, अपर्णा  और प्रियम्बदा के साथ घर में दाखिल हुयी | वे अभी अभी विश्वविद्यालय की किसी बौद्धिक विलास वाले उत्सव से वापस आयी थीं | सुषुमा डा. शकुन्तला सिंगला की बड़ी बेटी थी और अंग्रेजी के एम. ए. फ़ाइनल में थी | प्रियम्बदा उसकी क्लास फैलो थी और मेरी बेटी अपर्णां अभी एम. ए. के प्रथम वर्ष में ही थी पर उसे इन  दोनों Seniors ने अपनें गोल में शामिल कर लिया था | आज सुषुमा का 22 वां जन्म दिन था और इसीलिये हम कई लोग वहां आमन्त्रित किये गये थे | कहना न होगा कि हम सबकी पत्नियां हमारे साथ थीं और वे अन्दर के डाइनिंग रूम में खानें -पीनें की व्यवस्था में लगी थीं | तीनों लडकियां हम सबको वहां बैठा देखकर नमस्कार कर अन्दर जाना चाहती थीं पर मेरा मन हो आया कि कुछ देर के लिये उनको उसी कमरे में रोककर उनके भी विचार जान लिये जांय | आखिर नयी पीढ़ी का तो वे ही प्रतिनिधित्व कर रही हैं | कई खाली पड़ी कुर्सियों की ओर इशारा करते हुये मैनें उनसे बैठनें को कहा और फिर सुषुमा की ओर  देखकर बोला , " बेटी सुषुमा तुम सब अभी अभी विश्वविद्यालय की विचारगोष्ठी से वापस आयी हो बात कुछ अटपटी सी लगेगी पर हम बड़े -बूढ़े यह जानना चाहते हैं कि क्या नव विवाहित दंपत्ति अपनी सन्तानों की सीमा एक या दो तक सुनिश्चित करें या उनकी संख्या पर कोई प्रतिबन्ध न लगाया जाये | डा. रजनीकान्त का मानना है कि ऐसा कर देनें से भारत हिन्दू बहुल देश नहीं रहेगा | हमें सोचना होगा कि क्या हिन्दू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों के अनुगामी छोटी सोच को देशव्यापी हित  की सोच में बदल नहीं सकते | बेटी सुषुमा तुम तीनों में सबसे प्रखर बुद्धि वाली और सीनियर हो | तुम अपनी राय दो | सुषुमा बोली , " अंकल आप मुझे अनावश्यक महत्व दे रहे हैं | प्रियम्बदा क्या मेरे से कम  है और अपर्णां तो अपनी झोली में कितनें  मैडल लिये  है | पर आपनें मुझसे कहनें  को कहा है तो मैं अपनें  विचार आप सबके सामनें  रखती हूँ मुझे विश्वास  है कि  प्रियम्बदा और अपर्णां मुझसे सहमत होंगीं | "
                               देखिये एक युग था जब कबीली संघर्षों में लाठी और फिर नुकीले और फिर धातु के और पैनें हथियारों का प्रयोग होता था | जिस कबीले में जितनें  अधिक लड़ाके  हों उतना ही अधिक से अधिक भूमि विस्तार वह कबीला पा जाता था | नारी तो उस समय सन्तान उत्पत्ति के लम्बे कार्य में अधेड़ उम्र तक लगी रहती थी | यही कारण है कि  हमारे संस्कारों में लड़कों का मूल्य लड़कियों से बढ़ गया | अब आप जानते हैं कि  भारत की धरती पर जो जनसंख्या है उससे अधिक का बोझ नहीं उठा सकती | स्वाभाविक है कि  उसे कुछ कम  कर दिया जाये  तो देश में कुछ अधिक खुशहाली हो जायेगी इसलिये मैं तो एक सन्तान  की ही पैरवी करना चाहती हूँ | मैनें कहा शाबास सुषुमा और फिर शकुन्तला सिंगला की ओर देखा उन्होंने सुषुमा से कहा , " अन्दर जा और आंटी लोगों के साथ खानें -पीनें की व्यवस्था देख ,दिल्ली से भी तेरी कुछ सहेलियां आयी हैं | उनसे अन्दर  जा कर मिल | "
                                      ' माटी  ' के पाठक शायद जानना चाहते होंगें कि विशाल राठी के सन्दर्भ में डा. शकुन्तला  सिंगला कहाँ से आ गयीं | महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी से नगर के जो महाविद्यालय जुड़े हुये  थे उन्हीं में से एक की प्राचार्या डा. शकुन्तला सिंगला भी थीं | वे स्वयं एक विचारशील और सन्तुलित व्यक्तित्व की महिला थीं | उनके पति भारत की विदेश सेवा में थे और इस समय कनाडा में भारत के हाई कमिश्नर के आफिस में ज्वाइन्ट सेक्रेटरी थे | वहीं से उन्होनें पुत्री को शुभकामनायें भेज दी थीं | सुषुमा से जो सहेलियां दिल्ली से आयी थीं उनमें एक थी दक्षिणी दिल्ली के इनकम टैक्स आफीसर की पत्नी जयन्ती | हम बता ही चुके हैं कि  सुनीता का भाई दिल्ली में इनकम टैक्स का  अफसर था | जयन्ती अपनें  साथ सुनीता  और उसके दोनों बच्चों को भी गाड़ी में बिठा लायी  थी | डिनर लेते समय जब सब परिवार इकठ्ठे हुये तो मैनें सुनीता और उसके दोनों बच्चों को देखा वह एक शालीन भारतीय नारी लग रही थी और उसके दोनों स्वस्थ सुन्दर बच्चे उसके माता होनें  के गौरव को बढ़ा रहे थे | मुझे उसमें किसी अहंकार का लेशमात्र भी  नहीं  दिखायी पड़ा फिर विशाल राठी उसे अहंकारी कैसे बता रहा है | कहीं  विशाल राठी स्वयं एक मिथ्या दंम्भ से ग्रसित तो नहीं है ? विशाल कविता -वविता लिखता है कुछ लेख -सेख  भी लिख लेता है | शायद उसे एक श्रेष्ठ साहित्यकार होनें का दंम्भ हो | और फिर पुरुष होने का अभिमान तो होता ही है | पति होनें  के नाते पत्नी को मेरे अनुसार ही चलना चाहिये यह मान्यता अधिकतर भारत के घरों में पायी जाती है | मैं टटोल कर सत्य तक कैसा पहुंचा जाये इसके लिये मौके की तलाश में लग गया | डिनर के बाद तय हुआ कि ड्राइंग  रूम में बैठकर एक -एक कप काफी ले ली जाये | अध्यापिका होनें  के नाते सुनीता भी डा. शकुन्तला सिंगला के साथ बैठक में आ गयी | शकुन्तला  जी नें सुनीता का परिचय हम सबसे सुनीता विशाल राठी के रूप में कराया | मैनें शकुन्तला  जी पूछा , ' विशाल राठी जी यूनिवर्सिटी कालेज के प्रोफ़ेसर हैं न ? उन्होंने स्वीकृति में सिर हिलाया | फिर मैनें सुनीता से पूछा कि विशाल राठी जी क्या कहीं काम में फंस गये हैं जो उनके साथ नहीं आये | सुनीता बोली अंकल सच तो यह है कि हम दोनों में कुछ वर्षों से बातचीत बन्द है | मैनें आश्चर्य से कहा , " आप अपना परिचय सुनीता विशाल राठी के रूप में देती हैं और विशाल राठी जी से आपकी बात चीत तक बन्द है ऐसा क्यों ? सुनीता बोली , " मैं स्वयं नहीं जानती शायद पुरुष होनें का दंभ्भ आड़े आ रहा है | या हो सकता है कि  दामाद होनें पर भारतीय पुरुष जिस अतिरिक्त सत्कार की मांग करता है वह सत्कार विशाल जी को मेरे पिता से न मिल रहा हो | जहां तक मेरे भाई का सवाल है मैंकुछ नहीं कह सकती पर उसकी अपनी अकड़ तो है ही | अब डा. रजनीकान्त बोले , " विशाल जी को मैं जानता हूँ | वे विद्वान पुरुष हैं | आप पिता के यहां से छोड़कर उनके साथ क्यों नहीं रहतीं ? सीता का आदर्श तो राम के साथ रहना ही था | "
                                             मैं चिन्तित  हो उठा सीता जी और मर्यादा पुरुषोत्तम राम को बहस के बीच में खींचकर डा. रजनीकान्त कहीं बात का बवण्डर न बना दें | पर सुनीता नें पूरे आत्मविश्वास के साथ उत्तर दिया , " देखिये आप जो कह रहे हैं वह न जानें किस युग की बात है | फिर मैं दो बच्चों की माँ हूँ कई वर्ष उनके साथ रहकर सहवास का सुख ले लिया है | मेरे दोनों बच्चे बसन्त कुन्ज दिल्ली में दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ रहे हैं | उन दोनों की पढ़ायी  का खर्चा ही इतना है विशाल जी झेल नहीं पायेंगें | मुझे दिल्ली में नौकरी करनें के लिये विवश होना पड़ा है फिर भी पिता जी की मदद के बिना पढ़ाई संम्भव नहीं है | आखिर आजकल हिन्दुस्तान की पढ़ाई जब तक अमेरिका या योरोप से कोई डिग्री न ले ली जाये आदर का पात्र नहीं बनती | सो  कल विदेश भेजनें के लिये  पैसा कहाँ से आयेगा | जहां तक विशाल जी के एक साल विदेश रहनें की बात है जब वे फ्रेन्च में सर्टिफिकेट लेनें  के लिये  गये  थे तो ये भी तो पिताजी के पैसे से ही संम्भव हो सका था | अब उनमें  निरर्थक पुरुष अभिमान क्यों जाग उठा है ? डा. रजनीकान्त बोले , " सुनीता जी आपकी बात में काफी वजन है | पर यदि आपके पिताजी विशाल जी को बुलायेंगें तभी तो वे वहां जा पायेंगें | सुनीता ने उत्तर दिया क्यों ? मैं जब तक उस घर में हूँ विशाल जी को वहां आनें  का पूरा हक़ है | रह गयी बात पिता जी के बुलानें  की सो उन्होनें एक बार फोन पर आनें को  कहा  भी था | सुनना चाहेंगें विशाल जी नें क्या उत्तर दिया ? हम सब चुप रहे शकुन्तला जी ने कहा चलो छोड़ो इन बातों को और सुषुमा को आवाज दी कि वह काफी ड्राइंग रूम में भिजवा दे | सुनीता बोली , " विशाल जी ने कहा , " सुनीता को लाख बार गर्ज हो तो मेरे पास आ जाये | नहीं तो मेरी तरफ से संम्बन्ध समाप्त है | मैं पति बनकर रहूँगा सुनीता का पिछलग्गू बनकर नहीं | "
                              पिता जी नें फोन रख दिया मेरे से बोले इस बूढ़े की इज्जत अब तुम्हारे हाँथ है भगवान नें दो पोते दे दिये हैं | शरीर की भूख को संयम के साथ साध लेना बेटी | इस अभिमानी पुरुष को नारी गौरव का पाठ पढ़ाना ही चाहिये | एक दिन भाई के सामनें भी यह सब बातें जा पहुंचीं | नयी पीढ़ी का प्रतीक मेरा आफीसर भाई मुझे तलाक ले लेनें के लिये मुझसे आग्रह करने लगा | मैनें कहा मैं सुनीता विशाल राठी रही हूँ , हूँ और आगे भी बनी रहूंगीं | उनकी पवित्र स्मृति  के रूप में उनके दो प्रतिनिधि पुत्र मेरे संरक्षण में हैं | कब तक वे मेरे से दूर रह सकेंगें | यदि उन्हें लेखक , विचारक होनें का अभिमान है तो मैं इन दोनों पुत्रों को लव -कुश की भांति बड़ा कर एक दिन उन्हें मातृत्व के महत्व से परिचित करा दूंगीं | तब वे जान जायेंगें कि नारी की देह की भूख माता बननें के लिये प्रकृति प्रदत्त होती है | पुरुष की भांति उत्तरदायित्व हीन इन्द्रिय विलास से उपजी वासना नारी की चेतना को ग्रसित नहीं करती |
                               सुनीता का उत्तर इतना सटीक और सकारात्मक था कि डा. रजनीकान्त को आगे बोलते नहीं बना | मैं मन ही मन सोचनें लगा कि विशाल की सारी सृजन शक्ति इस नारी की तेजस्विता के आगे धीमी पड़ जाती है | मैनें कहा बेटी सुनीता , " विशाल कभी -कभी तुम्हारे इस अंकल के घर आ जाता है | क्या मुझे अधिकार दोगी कि मैं तुम्हारे विषय में विशाल से कुछ बातें कर लूँ | " शकुन्तला जी नें  तुम्हें मेरा परिचय दे ही दिया होगा | सुनीता बोली , " पितृव्य आपकी गौरव गाथा मैं सुन चुकी हूँ | मेरा प्रणाम स्वीकार करें | मैं अपनें पिता जी तक आपका परिचय पहुँचाऊगीं | शीघ्र ही वे आपसे संम्पर्क करेंगें |
                             दो तीन दिन बाद विशाल घर पर आया | मैनें हँसते -हँसते कहा अरे राठी अपनें व्याह में मुझे नहीं बुला रहे हो | राठी बोला , " अग्रज आपके बिना मेरा व्याह हो जाये तो बहू किस घर में आयेगी | ' मैं जान गया कि विशाल नें अपनें नये व्याह की खबर अपनें चारो ओर इसलिये फैलायी है ताकि यह खबर सुनीता के कानों तक पहुँच जाय और सामाजिक  मान्यताओं के दबाव में वह विशाल से फोन पर बातचीत करे ताकि दोनों की सम्वाद शून्यता समाप्त हो जाये | पर इस चाल  में एक गहरा खोखलापन भी झाँक रहा था | मुझे लगा कि  विशाल अब सहन शक्ति की सीमा पार कर गया है | अब या तो वह टूट जायेगा या लचकीला बनकर सुनीता से संवाद साधनें की पहल करेगा | कहीं  ऐसा न हो कि इस दांव में वह स्वयं फंस जाये | मैं जानता था कि एकाध प्रौढ़ शिक्षित अविवाहित अध्यापिकायें उसकी ओर आँख लगाये हैं | विशाल अब यूनिवर्सिटी में एम. ए. के क्लासेज लेने लगा था बोला बड़े भाई , " कल क्लास में सिलविया पाथ  की मिरर शीर्षक कविता पढ़ायी थी | कविता नें मुझे झकझोर दिया | तीस पार करते ही नारी सौन्दर्य नारी देह को छोड़कर भग जानें को तत्पर हो जाता है |"  मैनें कहा विशाल सिलविया अपनें रूप के मोह में ग्रस्त थी | आत्म आसक्ति की यह कुंठा न जानें कितनें अत्यन्त प्रखर प्रतिभा संम्पन्न शिल्पियों , कलाकारों और चित्रकारों को घेर लेती है | हमें सदैव आत्म मंथन करते रहना चाहिये कि कहीं हम अपनी भ्रमित असाधारणता के कारण कोई भूल तो नहीं कर रहे हैं |
                                विशाल राठी नें मेरी ओर काफी देर तक देखकर कहा बड़े भाई आज आप कुछ बदले हुये टोन में बात कर रहे हैं | कहीं सुनीता का जादू तो आप पर चल नहीं गया | सुना है किसी पार्टी में जहां आप गये थे वह भी आयी थी | मैनें कहा विशाल , " she is very cultured lady. "विशाल बोला तो क्या सारा दोष मेरा ही है | मैनें कहा अरे विशाल दोष तुम्हारा नहीं मेरा भी है | हम सभी कवि , लेखक जो दो चार शब्द लिख ,बोल और रच लेते हैं अपनें को असाधारण मान लेते हैं | हम इस भ्रम में डूबे रहते हैं कि हम कालजयी पुरुष हैं और हमें प्यार करने वाली नारी हमारी लातों की मार को अपनी छाती पर पवित्र चिन्ह के रूप में स्वीकार करती चले | इस पौराणिक सन्दर्भ के माध्यम से मैं यह बताना चाहता हूँ कि हमारे पुरुष होनें का पाशविक शक्ति पर आधारित दंम्भ नारी तभी तक झेलेगी जब तक उसके वक्ष पर कोई शिशु नहीं खेलनें लगता | प्रकृति के इस महान कार्य के पूरा होते ही सहगामिनी नारी को एक ऊंचीं सीढ़ी पर खड़ा कर हमें समानता का स्तर देना होगा | जो असाधारण होनें का दावा करते हैं उन्हें जीवन  के सहज मार्ग से हटकर अलग खड़ा होना होगा | वे निरर्थक आत्म हनन को शहादत बनाकर कवितायें और गीत लिखते रहेंगें | जो सामान्य जीवन है वह चलता रहेगा | आँधियों के आवृत्त थोड़े काल के लिये ताण्डवी कोलाहल मचा सकते हैं पर अन्ततः वायु का मन्द संचालन ही सनातन रहेगा | प्रबल वर्षा में टूटी चट्टानें थोड़ा बहुत घिसकर , हटकर फिर कहीं स्थिर होंगीं और उनके ऊपर मार्ग बनते रहेंगें | विशाल मुझे लगता है सुनीता जो जीवन जी रही है वह भारत की सामान्य नारी का आदर्श जीवन है | उसे पौराणिक मिथकों से जोड़कर मत देखो | बाकी यदि तुम्हें अपनें जीनियस होनें का प्रमाण इसी बात में ढूढ़ना है कि तुम अपनें अहंकार में टूटकर रहोगे तो इस स्वतन्त्र निर्णय के लिये तुम स्वयं उत्तरदायी हो | तुमनें Cart sand Burd की कविता पढ़ी पढ़ायी होगी | मैं उसकी पहली कुछ पंक्तियाँ मैं तुम्हारी स्मृति के लिये दोहराता हूँ |
 " The people will live on.
The learning and blundering people will live on.
they will be tricked and sold and again sold
And go back to the nourishing earth for rooth olds,
The people so peculiar in renewal and come back,
You can't  laugh off their capacity to take it.
The man moth rests between his cyclonic dramas."
(क्रमशः )

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