Thursday 8 February 2018

गतांक से आगे -

                                          मैं जिस क्षेत्र में शिक्षा जगत से संम्बन्धित रहा हूँ उसमें राठी सरनेम अधिकतर या तो किसान वर्ग से संम्बन्धित है या फिर श्रमिक वर्ग से जुड़ा है | मैं विशाल राठी को भी संम्पन्न कृषक वर्ग से ही आया हुआ समझता था | पर उसनें मुझे बताया कि वह राजस्थान से है और वैश्य है | उसका मूल नाम विशाल बंसल है और वह रथी उपनाम से कविता लिखता रहा है | यूनिवर्सिटी कालेज पहले गवर्नमेन्ट कालेज था | सरकारी शिक्षा अनुभाग में प्रवक्ता के पद पर उसका चयन विशाल बंसल के नाम से ही हुआ है | पर एक लम्बे समय से उसनें अपने नाम के आगे से बंसल हटाकर रथी लिखना शुरू कर दिया है जो अब राठी बन गया है | इस सरनेम के कारण उसकी पहुँच हरियाणा के राजनीतिक क्षेत्रों में सरलता से हो जाती है और रोहतक जिले के कृषक बाहुल क्षेत्र में भी उसकी पहचान कृषक वर्ग में बन जाती है | मैनें पूछा तो तुम्हारा पहला संम्बन्ध वैश्य परिवार से ही हुआ होगा | विशाल नें बताया कि सुनीता गोयल घर की थी | उसके पिता लखपति राय काफी बड़े व्यापारी हैं | उनका तिलहन और दलहन का व्यापार उत्तर भारतीय विस्तार पा चुका है | मैनें बड़े भाई के भाव से उससे जानना चाहा कि संम्बन्ध विच्छेद के क्या कारण थे | उसनें कहा सारे कारणों का एक कारण था सुनीता का अहंकार | करोड़पति बाप की बेटी को अपनें रूप का घमण्ड तो था ही अपनें भाई का भी रौब दिखाती थी जो दक्षिणीं दिल्ली में इनकम टैक्स आफीसर है | मैनें जानना चाहा कि उसकी शादी इतनें बड़े घर में कैसे हो गयी तो उसके स्वाभिमान को चोट लगी | उसनें कहा बड़े भाई , " मैं क्या देखनें सुननें में बुरा हूँ और क्या मेरी नौकरी क्या कोई घटिया नौकरी है | ठीक है मेरे पिताजी कापी , किताबों और स्टेशनरी की छोटी सी दुकान करते थे और मेरी बहिन भी ज्यादा पढ़ी लिखी न होकर साधारण घर में व्याही है पर मैं तो लेखक ,विचारक , प्राध्यापक हूँ | मैं नये विचारों और मानव समानता का समर्थक हूँ | इनकम टैक्स का आफीसर मेरे लिये आदर्श नहीं हो सकता और उसकी पत्नी डिप्टी सुपरिटेन्डेन्ट की बेटी है तो उससे मुझे क्या | मेरी कोई अपराधी पृष्ठ भूमि तो है नहीं | अब सुनीता अगर मुझसे दो पुत्र प्राप्त कर मुझसे एक अलग पहचान बनाना चाहती है तो मैं उससे भिक्षा मांगनें उसके द्वार पर क्यों जाऊं | एक कालेज के प्राध्यापक का जितना बड़ा आर्थिक दायरा होता है उस दायरे में यदि वह रहना चाहती है तो  मेरी आर्थिक कमजोरी की हंसी उड़ाकर बाप के घर क्यों चली जाती | रोटी का जुगाड़ मैं कर सकता हूँ | पांच सितारा होटलों में ठहरानें  और घुमानें की दम मेरे में नहीं है | और मैं इन बातों को मानव जीवन की कोई उपलब्धि भी नहीं मानता | विशाल राठी की इस तार्किक शैली नें मुझे प्रभावित किया | मुझे लगा कि वह एक बेहतर इन्सान है और मित्रता के काबिल है पर उसनें पीनें की जो लत डाल रखी है वह कहीं उसे भीतर से कमजोर न कर दे | मैनें अपनें जीवन के अनुभव से कई बार यह पाया है कि यदि इच्छा शक्ति दुर्बल हो जाती है तो फिर उसे द्रढ़ करनें के लिये गहरे आत्म सयंम की आवश्यकता होती है | आत्मसयंम न होनें पर तमाम प्रकार के नशों के लत टूटे हुये व्यक्तित्व को कुछ समय के लिये तीव्रगामी होनें का भ्रम पैदा करते हैं | पर धीरे धीरे टूटन की निरन्तरता उन्हें उस स्थल पर छोड़ देती है जहां वे निष्क्रिय लोथ के समान दया के पात्र बनकर रह जाते हैं | पर क्या किया जाय | राठी यदि 40 के अन्दर है संसार काफी बड़ा है क्यों न उसके लिये जीवन साथी की तलाश की जाय | कुछ ही वर्षों के बाद वह यौवन की देहरी को पार हो जायेगा और फिर नीरज जी की यह पंक्तियाँ उसके क्षुधित मन पर मरहम का कार्य करनें लगेंगीं |
"और हम खड़े -खड़े मोड़ पर अड़े -अड़े
कारवाँ गुजर गया गुब्बार देखते रहे |"
                                                               पर क्यों न एक बार सुनीता के परिवार वालों से संम्बन्ध साधा जाय | मैनें विशाल से इस संम्बन्ध में बात की | तो उसने कहा बड़े भाई आप सुनीता को नहीं जानते दरअसल जिसे हम अति धनी वर्ग कहते हैं उस वर्ग की सुन्दर स्त्रियों से आपका परिचय न के बराबर है | सुनीता को अब सन्तान की कामना नहीं है | शारीरिक सुखों के लिये उसके पास साधनों की कोई कमी नहीं है और भगवान राम के इस देश का अधिकाँश तरुण वर्ग मुझे उनके मार्ग पर कभी भी चलता नहीं दिखायी पड़ा | पति -पत्नी की जिस आदर्श की बात आप कर रहे हैं वह युग बीत गया | आप मुझे अपनी राह चलनें दें हाँ मैं इतना चाहूंगा कि यदि मेरे विषय में चरित्र स्खलन की कोई शिकायत आप तक पहुंचे तो उसे सच न मान लीजियेगा | मुझसे स्पष्टीकरण मांग लेना |
                                        और फिर एक दिन मैनें सुना कि विशाल राठी एक नया व्याह रचानें जा रहा है | कौन जानता था कि नियति चक्र ब्याह के बहानें विशाल को किस ओर खींचें लिये जा रहा है | जो घटित होना है वह तो घटित होता ही है ऐसा आजीवक मानते थे | जो बुद्ध कालीन विचाधारा से पहले के चिन्तक थे | और ऐसा आज भी माना जाता है भले ही उसे माननें के पीछे अर्ध वैज्ञानिक व्याख्याओं की दीवाल खड़ी कर दी जाय | सुनन्दा के  पिता नें कैमिस्ट्री लैब से कैसे और किस प्रकार अपनें जीवन का अन्त करनें के लिये कोई रासायनिक मिश्रण तैय्यार  किया इसे मैं नहीं जानता जितना जानता हूँ वह यह है कि स्वाभाविक हृदयगति रुकनें से उनकी मृत्यु की बात उजागर हुयी | मेरे अन्दर के किसी बहुत गहरे संजोये कक्ष में उनकी याद आज भी संचित है | सुनन्दा आज दो स्वस्थ्य बच्चों की माँ है पर अभी तक मुझे उसके केशों में चांदी का कोई तार दिखायी  नहीं पड़ता | इधर एकाध वर्ष से बनर्जी की चर्चा भी सुननें में नहीं आयी है | तो क्या कोई नया गुल खिल रहा है | क्या वरिष्ठ डिमांस्ट्रेटर जी के कही हुयी बात सच होकर रहेगी ? अरे मैं कहाँ भटक गया |
                                विशाल राठी से हटकर सुनन्दा तक जा पहुंचा | लगता है स्मृतियाँ अब एक सजी -सजायी कतार में न आकर कट -कट कर खण्ड चित्रों में आनें लगी हैं | जब सुनी -सुनायी विवाह की तिथि का कोई कार्ड मेरे पास नहीं आया तो मैनें विशाल को फोन पर एक दिन घर आनें का बुलावा दिया | जानना चाहा कि धरती का कौन सा नारी रत्न उसकी परख में खरा उतरा है | विशाल बोला , " आदरणीय सर , मैनें बीच में ही टोंक दिया अरे विशाल केवल आदरणीय काफी था या केवल सर ही काफी था दोनों को कैसे जोड़ रहे हो तो बोला बड़े भाई यह हिन्दुस्तानी अंग्रेजी है | Respected Sir का अनुवाद मैनें आगे कहा सर का अनुवाद तो किया नहीं तो बोला जनाब और श्रीमान के झगड़े में मैनें दोनों को छोड़ दिया | सर अपनी जगह पर कायम है | बोला मेरी शादी हो और आप न बुलाये जांयें ऐसा क्या कभी संम्भव हो सकता है | बात कुछ और ही है | फिर बोला गुरूजी अज्ञेय की यह पंक्तियाँ मुझे इन दिनों बहुत अच्छी लग रही हैं |
                                " बंचना है चाँदनीं सित
                                   झूठ यह आकाश का निर्वाधि गहन प्रस्तार
                                   मूत्र सिंचित मृत्तिका के वृत्त में
                                   तीन पैरों पर खड़ा
                                    धैर्य धन गदहा | "
 (क्रमशः )

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