Tuesday 6 February 2018

गतांक से आगे-

My dearest daughter,

पत्र पढ़कर एक लम्बे समय तक न जानें कहाँ खोया रहा | अपनें को खो देनें की यह प्रक्रिया शायद 10 -15  मिनट ही रही हो पर जब मैं चेतनता के सहज स्तर पर आया तब मुझे लगा कि मैं शताब्दियों की मानसिक दौड़ लगा चुका हूँ | जो कल सच था वह आज भी सच है वैसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता पर सभ्य समाज संरचना के कुछ आधार इतनें सुनिश्चित हैं कि उनके बिना किसी सभ्य समाज के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती | सनातनता का यह भाव ही भारत की सनातन विचारधारा को अमरता की घूँट पिलाता रहता है | पर जो भारत का सत्य है वह सभी विश्व सभ्यताओं का सत्य हो ऐसा कम से कम अभी तक संम्भव नहीं हो सका है | जीवन शैलियों के प्रयोग और परीक्षा चल रही है और जवानी में अदम्य मनोवेगों से जन्मी अनेक भ्रामक मान्यतायें रुपहली छवियों की श्रष्टि करती चली जा रही हैं | इसे हम अपना दुर्भाग्य ही कहेंगें कि पश्चिम की सुनहली ललक नें हमें तुम्हारी जैसी निराली आत्म शक्ति संम्पन्न बेटी को विदेश भेजनें के लिये बाध्य किया | रोमेन के माँ बाप भले ही भारतीय मूल के हों पर ऐसा लगता है कि वे एक दोगली संस्कृति के गुलाम हो गये हैं | संसार के अधिकाँश व्यक्ति जीवन मूल्यों की स्पष्ट अवधारणायें जान ही नहीं पाते और उनका लचर व्यक्तित्व आस पास के सामयिक प्रभावों से खण्डित -विखण्डित होता रहता है | मेरा यह द्रढ़ विश्वास है कि योरोप और अमरीका में भी बहुसंख्यक नर -नारी वैवाहिक पवित्रता के प्रति प्रतिबद्धित होते हैं | हाँ अत्यन्त धनी और अत्यन्त निम्न स्तर के कुछ लोग समाज की मुख्य धारा से अलग थलग पड़कर उल्टी सीधी जीवन शैलियाँ अपना लेते हैं | इसके दो मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं | किसी देश का एक अत्यन्त छोटा वर्ग नंगी पूंजीवादी व्यवस्था के अतिचार और अनाचार से उत्पन्न अवैध धन संचयन के कारण एक ऐसे मनोरोग से ग्रस्त हो जाता है जिसे पशुत्व आरोपण के रूप में अभिहित किया जा सकता है | केवल जीवन ही सत्य है , केवल यौवन का बन्दन हीन विलास ही जीवन है ,केवल तकनीकी सभ्यता की नयी खोजों से इन्द्रिय उद्दीपन की प्रक्रिया ही जीवन है ऐसा पशु चिन्तना का आरोपण घिनौनें अति धनी समाज को मर्यादाहीन बना देता है | अत्यन्त निम्न स्तर पर सभ्यता की स्वीकृति मार्गों पर चलना संम्भव ही नहीं हो पाता | क्योंकि इस क्षीण दुर्बल वर्ग को जीवन यापन की विवशता , नैतिकता और अनैतिकता के बीच कोई विभाजक रेखा खींचनें ही नहीं देती | शरीर बेचकर पेट भरना और पेट भरकर शरीर बेचना क्रिया - प्रतिक्रिया का यह क्रम अपरिहार्य रूप से इस निम्न स्तरीय समाज में चलता रहता है | इस निम्नतर समाज की विवशता को प्रशासनिक क्षमता के द्वारा या जनतान्त्रिक चेतना के उन्नयन के द्वारा थोड़ा बहुत सुधारा भी जा सकता है | पर अत्यन्त उच्च वर्ग का नंगा भ्रष्टाचार और यौवन कदाचार तो जुगुप्सा के अतिरिक्त और किसी भाव को मन में उपजा ही नहीं सकता | मैं नहीं जानता कि रोमेश के पिता उस अति धनी पथभ्रष्ट समाज में पैसे के बल पर शामिल हो पाये हैं या वे किसी ऐसे मानसिक रोग से ग्रसित हैं जिसके लिये उपचार के यौगिक साधनों के उपचार की तलाश करनी होगी | जो भी हो तुमनें जो देखा -सुना  है वो ठोस जमीनी सत्य है | और इसे क्षणिक प्रवाह कहकर झुठलाया नहीं जा सकता | अब इस सबसे मुक्ति का क्या मार्ग है ? बेटी सुनन्दा सबसे पहले इसको तो तुम्हें अपनें अन्तर में ही तलाशना होगा | हाँ मैं यह  मानता हूँ कि समझौता यदि मूल अस्तित्व पर ही आघात करता है तो समझौते का प्रश्न ही नहीं उठता | कई शताब्दी पहले भारत के महानतम कवि सन्त नें मीरा बाई को जो मार्ग दिखाया था वो मार्ग जहां तक मैं समझता हूँ आज भी चुननें के लायक है |
नाते , नेह राम के मनियत
सुह्रद सुसेक जहां लव
अंजन कहा आँख जो फुटियत
बहुतक कहव कहाँ लौ
           बेटी सुनन्दा अंग्रेजी साहित्य की प्रखर अध्येता होनें के साथ साथ तुमनें हिन्दी के भक्त कवियों का भी गहरा अध्ययन किया है | मुझे याद आता है कि तुमनें एक बार अमेरिका के महाकवि इमरसन की ब्रम्हा शीर्षक कविता को पढ़कर मुझे सुनाया था और कहा था कि इस कविता में उपनिषदों का सार छिपा हुआ है | तो मैं चाहूंगा कि मीराबाई को बतायी गयी राह में ' राम ' शब्द को तुम नारी पवित्रता के साथ संम्बन्धित कर लो अब यदि तुम पत्नी ही नहीं रहीं और तुम्हें नगर वधू बननें पर विवश कर दिया जाय तो जो संम्बन्ध तुम्हें ऐसा करनें के लिये विवश कर रहे हैं उनको एक झटके से तोड़ देना ही उचित रहेगा | रही बात तलाक के लिये रोमेन्द्र के राजी न  होनें की | तो द्रढ़ता के साथ उसे और उसके माता -पिता को स्पष्ट बता दो कि तुम्हें विवश होकर उन  नर पशुओं की सच्चायी कोर्ट कचहरी में बतानी पड़ेगी | द्रढ़ता के साथ और आत्मगौरव से दीपित तुम्हारे शब्दों की झंकार निश्चय ही उन्हें अपनें झूठे गौरव का उजड़ता संसार दिखा देगी और तब शायद आपसी सहमति से तलाक की समस्या का हल निकल आयेगा | बेटी सुनन्दा यह बात ध्यान रखना कि तुमनें पास के जिस कबूतर फ़्लैट में आश्रय लिया है वह भी सुरक्षित नहीं है | तुम तो अभी बहुत छोटी हो तुम क्या जानों की मैनें अपनें कालेज के पढ़ायी के दिनों में अपनें एक मित्र की माँ से लन्दन के अजीबो -गरीब किस्से सुने थे | उनकी बेटी रुपाली तुम्हारी ही तरह रूपवान और प्रतिभा संम्पन्न तथा प्रखर व्यक्तित्व की धनी थी | उन्होंने उसे लन्दन के सुनहले ख़्वाबों की चकाचौंध से प्रेरित होकर वहां बसे एक स्थायी भारतीय परिवार में व्याह दिया था | कुछ महीनों बाद तुम्हारी ही तरह उसके जीवन मूल्य भी वैश्या संस्कृति के बाजारू मूल्यों से टकराने लग गये | उसनें अलग रहनें की सोची | लन्दन के उसके घर में उसके ससुर के भारतीय मूल के एक मित्र जो उसके ससुर से 10 -15 वर्ष बड़े थे आते -जाते थे | उन्हें वह दादा मानकर अपनी मानसिक पीड़ा की बात बताने लगी | उन्होंने पूरी सहानुभूति के साथ रूपाली की मदद करनी चाही | और उसे पड़ोस में स्वतन्त्र रूप से एक कबूतरी फ़्लैट में रहनें को कहा | और आश्वासन दिया कि वह उसके लिये शीघ्र ही कोई अच्छा काम जुटा देंगें | पहली ही रात्रि में नशे में धुत और स्काच की एक बोतल जाकेट के नीचे छिपाये वे लड़खड़ाते कदमों से फ़्लैट के दरवाजे पर खड़े होकर दरवाजा खोलनें की जिद करनें लगे | रूपाली नें कहा Grandpa आप होश में नहीं लगते सुबह आना | बूढ़ा कामुक बोला बड़ी सती साध्वी बनती है मैं तेरे लिये जो कुछ करूंगा उसकी कीमत नहीं चुकायेगी | आखिर रूपाली को शोर -गुल मचाकर उस वृद्ध अन्ध कामुक को फ़्लैट के दरवाजे से खदेड़ना ही पड़ा | यह सब मैं तुम्हें इसलिये लिख रहा हूँ कि तुम भेड़ियों की बस्ती में अकेली पड़ गयी हो | और घिनौनें सैक्स सौदागरों की यह चमक भरी पाश्चात्य बस्तियां कहीं तुम्हें मरण धर्मिता के दर्शन को स्वीकार करनें पर विवश न कर दें | तुम अंग्रेजी साहित्य में प्रथम श्रेणीं में परास्नातक हो | कानूनी व्याह के बल पर तलाक के बाद भी तुम्हें इंग्लैण्ड में रहनें का स्थायी अधिकार मिल सकता है | वहां तुम्हारी जैसी प्रतिभाशाली नारियों के लिये प्रतियोगिता के गुणवत्ता परक मुकाबले में कोई न कोई उपलब्धि हासिल हो जायेगी | हाँ यदि तुम भारत आना चाहती हो तो तुम्हारे पिता का अधिकार तुम पर सबसे पहले है | पर यदि तुम अपनें इस पितृव्य को पिता का स्थान देना चाहो तो यह मेरा गौरव ही होगा | भूलना नहीं कि कोई  दिन ऐसा नहीं होता जब अपर्णां और प्रियम्बदा तुम्हारी बातें न करती हों | लिखती रहना | भारत की अक्षत अस्मिता तुममें प्रतिविम्बित है | ब्रिटेन की सामरिक शक्ति से पराभूत होकर भी भारत की सांस्कृतिक गरिमा अभी तक अपराजेय है और वह दिन दूर नहीं है जब भूला भटका पश्चिम फिर से हमारे द्वार पर शरण पानें के लिये आतुर हो उठेगा |
                     ढेर भर आशीर्वाद भेज रहा हूँ | अंजली में समेट कर रख सकोगी न | पत्र की समाप्ति करते करते रात्रि घनी हो आयी थी | अपर्णा की माँ दूध का ग्लास लिये हुये स्टडी रूम  में आ खड़ी हुयी बोली किसको लिख रहे हो ? अपनी उल्टी सीधी बातों सें हर किसी को न जानें कहाँ भटकाते रहते हो | हंस कर चुप रहनें के अतिरिक्त और मैं कह भी क्या सकता था |
                    महीनें पर महीनें बीतते गये और एक दिन डिमांस्ट्रेटर जी नें मुझे बताया कि सुनन्दा नें रोमेन की सहमति से तलाक पा लिया है | कि उसनें ब्रिटिश एयरलाइन्स में होस्टेस के पद के लिये इन्टरव्यूह दे दिया है | , कि उसका सेलेक्शन हो जायेगा ऐसा उसे पूरी उम्मीद है | कुछ महीनें और बीते उस दिन शायद रविवार था और शायद मैं घर पर ही उपस्थित था | एक बड़ी  चमचमाती गाड़ी दिन के ग्यारह बजे द्वार के सामनें आकर रुकी | सुनन्दा स्वयं ड्राइव कर रही थी और उसकी बगल में एक शोभन , सुसंस्कृत ,शालीन और विचारवान नवयुवक बैठा हुआ था | गाड़ी से उतरकर नवयुवक के साथ अन्दर आकर उन दोनों नें हमें प्रणाम किया | सुनन्दा बोली , " पितृव्य मैं ब्रिटिश एयरलाइन्स में होस्टेस हो गयी हूँ यह हमारी दिल्ली की पहली फ्लाइट थी | दो दिन का ब्रेक है | यह मेरे मित्र अभिनव बनर्जी हैं | ब्रिटिश एयरलाइन्स में ग्राउण्ड इन्जीनियर हैं इनके पिता श्रीकान्त बनर्जी External Affairs Ministry में ज्वाइन्ट सेक्रेटरी हैं | दिल्ली में इनका मकान है | वहीं से ड्राइव करके आ रही हूँ आपका आशीर्वाद लेनें के लिये | और उसनें आवाज लगायी अरी अपर्णां कहाँ है जल्दी आ तुझे अपनें जीजा से मिला दूँ | और फिर अभिनव और सुनन्दा खिलखिलाकर हंस पड़े | शुभ्र उज्ज्वल हंसी , जीवन सहभागिता का सच्चा मैत्री भाव | हे प्रभु भारतीय संस्कृति की अमर प्रेम पर आधारित दाम्पत्य कथायें हर काल ,हर युग में गूंजती रहें |
                                   एक सुखद पटाक्षेप नित परिवर्तित काल की एक संक्षिप्त मुद्रा के रूप में ही लिया जाना चाहिये | दुख की चिन्तन धारा के बीच सुखदायी पटाक्षेप जीवन को असहनीय होनें से बचा लेते तभी तो तीर्थकर गौतम ने कहा था जन्म -मृत्यु की गोद में बैठकर ही आता है | सुनन्दा की सफलता की यह कहानी उसकी मौसी माँ  को कैसी लगी इसे जान पाना मनोविश्लेषकों के लिये भी एक चुनौती है | पर कुछ आरसे के बाद पता लगा कि सुनन्दा नें अपनें भाई रजत को भी इंग्लैण्ड बुलवा भेजा | उसके डिमांस्ट्रेटर पिता के न चाहते हुये भी रजत नें सुनन्दा के पास रहकर ब्रिटेन  में मेडिकल पढ़ाई की योजना बना ली अब जब कभी सुनन्दा के पिता कालेज में मुझसे मिलते तो अपनें अकेलेपन और अपनी मानसिक व्यथा की अभिव्यक्ति में लग जाते थे | कभी -कभी वे चपरासी भेजकर मुझे अपनें कैमेस्ट्री के विभागीय कक्ष में बुला लेते विषेशतः जब वे अकेले होते और मुझसे सुनन्दा और रजत की बातें करते रहते | मुझे लगनें लगा कि कोई गहरा अपराध भाव उनकी चेतना को ग्रसित करता चला जा रहा है | एक दिन उन्होंने बताया कि उन्हें स्वप्न में सुनन्दा और रजत की माँ मिली थी  और उन्हें अपनें पास बुला रही थी | कालेज के पास ही चारो ओर ऊंची चहरदीवारी से घिरा चितास्थल था जहां पर स्वर्ग और नरक के अनेक चित्र प्रस्तर मूर्तियों द्वारा प्रदर्शित किये गये थे | मृत्यु के देवता यमराज की भैंसे पर आरूढ़ एक विशाल आकृति भी वहां मूर्ति कला का एक अनोखा द्रश्य प्रस्तुत करती थी | एक दिन निरुद्देश्य मैं चितास्थल के पास वाली सड़क से गुजर रहा था तो मैनें देखा कि डिमांस्ट्रेटर साहब यमराज की मूर्ति के पास नीचे बैठे आँख बन्द करके न जानें कहाँ खो गये हैं | जैसा कि मैं पहले बता चुका हूँ उनकी पहली पत्नी सुनन्दा की माँ की मृत्यु के समय का शरीर नीला पड़ गया था | लोगों नें  काना फूसी की थी कि शायद उन्हें जहर दिया गया था | तो क्या रसायन शास्त्र का यह वरिष्ठ डिमांस्ट्रेटर किसी अपराध बोध के बोझ से टूट रहा है | सुनन्दा की माँ उसे क्यों बुला रही है | सुनन्दा की मौसी अभी तक किसी सन्तान को जन्म नहीं दे पायी है | सुनन्दा की माँ दो बच्चों की माँ कैसे बनी | क्या इन सब घटनाओं में कोई रहस्य छुपा हुआ है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि डिमांस्ट्रेटर साहब के मन के अन्दर Death Wish पलनें लगी हो | मित्र के नाते मुझे उनसे कुछ बात करनी होगी | शायद मानसिक उथल -पुथल के इन क्षणों में वे मुझे अपनें अन्तर्मन की एक झांकी प्रस्तुत कर दें और हुआ भी ऐसा ही | उस दिन दोपहर बाद तीन बजे से लेकर 6  बजे तक उनके कक्ष में उनसे की गयी बातचीत में पाये गये संकेतों नें मुझे आभाष दे दिया कि कोई दारुण घटना घटनें जा रही है |
क्रमशः

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