Monday 5 February 2018

गतांक से आगे -

                                        तो अब सुनन्दा ,प्रियम्बदा साथ साथ रेडियो स्टेशन से हँसती खिलखिलाती निकला करेंगीं और राकेश उनके बीच क्या एक प्रहरी का काम करेगा ऐसा ही कुछ  मैनें राकेश की माँ से कहा होगा तभी तो उसनें हंसकर कहा था कि तुम भी तो सारी जिन्दगी एक लाठी लिये पहरा ही देते रहे हो कि कहीं कोई चोर दरवाजे से घुस न आवे | मेरा बेटा ऐसा नहीं है | जो भी कदम उठायेगा वह नीतिसंगत और घर की मर्यादा के अनुकूल होगा | तो अब प्रियम्बदा और  सुनन्दा में हास -परिहास के साथ नयी तरुणायी के रोमांचक अनुभवों को भी होड़ भरी प्रतियोगिता न लग जाय | पर इससे पहले कि कुछ उल्लेखनीय घटित होता सुनन्दा के पिता नें एम. ए. के द्वितीय वर्ष में ही उसकी शादी सुनिश्चित कर दी | अंग्रेजी के एक विज्ञापन में इंग्लैण्ड में एक स्थायी रूप से बस गये एक सुनन्दा के जातीय परिवार नें किसी पढ़ी -लिखी लड़की की मांग की | लड़का किसी इन्जीनियरिंग मैन्युफैक्चरिंग  कम्पनी में एक्ज़ीक्यूटिव था | उन दिनों विदेश में जानें का इतना क्रेज था कि जिस किसी को भी यह मौक़ा मिलता उसे वह ईश्वर के वरदान के रूप में लेता था | शादी हो गयी और सुनन्दा लन्दन हो आयी | एक बार वापस आकर उसनें एम. ए. फ़ाइनल का एक्जाम दे दिया और फिर लन्दन चली गयी | अपनें एम. ए. पढ़ाई के दौरान वह कई बार मुझसे मिली थी और मैं समझता हूँ कि प्रतिभाशाली छात्रा होनें के नाते मेरे प्रति उसके मन में सम्मान का एक भाव उत्पन्न हो पाया था | एम. ए. अंग्रेजी का परीक्षा परिणाम आनें पर सुनन्दा की मौसी नें उसे बधायी देते हुये बता दिया था कि उसनें परीक्षा में 62  प्रतिशत से अधिक नम्बर लिये हैं | लगभग चार महीनें बाद बात चीत के दौरान सुनन्दा के डिमांस्ट्रेटर पिता नें मुझे बताया कि सुनन्दा के साथ लन्दन में बड़ा दुर्व्योहार किया जा रहा है | उन्होंने कहा कि सुनन्दा नें भारतीय लड़की होनें के नाते काफी कुछ बर्दाश्त किया है पर अब बात हद से बाहर गुजर चुकी है | लगता है कि सुनन्दा को तलाक लेना होगा | यह सब बातें सुननें के बाद मुझे लगा कि पश्चिम की चकाचौंध अपनें भ्रामक मायाजाल में न जानें कितनी भारतीय तरुणियों को पति -पत्नी संम्बन्ध के पवित्रतम रिश्ते को व्यापारिक समझौते के रूप में देखनें को विवश कर रही है | अभी तक ई -मेल ,और एस. एम.एस. का ज़माना नहीं आया था | और उस दिन मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब लन्दन से भेजा गया हवाई डाक से चलकर सुनन्दा का एक पत्र मेरे नाम आ पहुंचा | शायद सुनन्दा नें अपनें पिता को यह बात बता दी थी कि वह अपनें जीवन के कुछ निजी मामलों में मेरा मार्ग दर्शन चाहती है  और इसलिये मुझे अलग से लिख रही है | प्रथम श्रेणीं में अंग्रेजी में परास्नातक उपाधि प्राप्त सुनन्दा एक शालीन , आकर्षक और प्रखर बुद्धि संम्पन्न तरुणीं थी | उसनें अपनें पत्र में जीवन संम्बन्धी कुछ ऐसे गहरे प्रश्न उठाये थे जिनका उत्तर पानें में मैं अपनें को असमर्थ पा रहा था | परिनिष्ठित अंग्रेजी में लिखा हुआ सुनन्दा का  पत्र मेरे द्वारा स्वीकृत पारम्परिक उच्च कुलीन मर्यादाओं को गहरी चोंट पहुंचा रहा था पर उसमें कुछ ऐसा भी था जिसकी सच्चायी से इनकार नहीं किया जा सकता था | ' माटी ' के विज्ञ पाठकों के लिये अंग्रेजी में लिखे इस पत्र का हिन्दी अनुवाद देना इसलिये आवश्यक हो जाता है क्योंकि आज का प्रत्येक दशक प्रगति के नाम पर मानव संम्बन्धों की इतनी जटिलतायें पैदा कर रहा है कि उनकी पूरी समझ के बिना निकटम संम्बन्धों की समग्र और सकारात्मक सोच का उपज पाना असंम्भव सा लगता है |
पूज्य पितृव्य ,
                             लन्दन के एक कबूतर कक्ष में विवश पड़ी अपनी मानस पुत्री की चरण वन्दना स्वीकार करें | मेरे व्याह में रोमन को आपनें देखा ही था कितना भोला और निष्कपट लग रहा था | उसके पिता और माता तो उसके चरित्र की प्रशंसा करते थकते ही नहीं थे | कितनी आशायें लेकर और आप सबका ढेर सारा आशीर्वाद लेकर मैं लन्दन आयी थी | हवाई जहाज का वह मेरा पहला सफर था | डैने फैलाये उस यान्त्रिक नभ खग की छाती पर बैठकर मुझे लगा था कि अब सितारे मेरे पड़ोसी बन गये  हैं | पितृव्य , मैनें आपसे और भारत की दादियों , नानियों से सदा यही शिक्षा पायी थी कि पति और पत्नी का संम्बन्ध संसार का सबसे पवित्रतम संम्बन्ध है और नारी का शरीर श्रष्टि की संम्पूर्ण पवित्रता को अपनें में समाहित किये हुये है | आप कहा करते थे कि पत्नी के शरीर पर पति का तब तक कोई अधिकार नहीं है जब तक पत्नी स्वयं उस अधिकार के प्रति आग्रहशील न हो | यहाँ आकर कुछ ही दिनों में मैनें पाया कि रोमेन तो केवल एक मंच पर बैठा एक नजरबट्टू है | उसके अधेड़  पिता की शराबी आँखों की हिंसक लालिमा मुझे अपने में लील लेनें के लिये आतुर है | कई बार उनके अभद्र और शालीनता शून्य व्यवहार नें मुझे रोमेन से सब कुछ कहनें को विवश किया | पर उसनें जो तर्क दिया उसे सुनाना मैं अपनें जीवन का सबसे घिनौना कार्य समझती हूँ | उसकी बातों का निचोड़ यह निकला था कि नारी का शरीर उपभोग की वस्तु है और जब गर्भ निरोधक सामग्रियां सहज उपलब्ध हैं तो फिर प्राकृतिक इच्छाओं का दमन सामाजिक मान्यताओं पर एक निरर्थक कुर्बानी के अतिरिक्त और क्या है | मुझे लगा कि उस परिवार में शारीरिक संम्बन्धों का कोई पुनीत ताना -बाना ही नहीं है | पितृव्य आपसे क्या कहूँ मैनें कुछ ऐसा देखा सुना कि मुझे उस परिवार में रहनें में घिन लगनें लगा | रोमेन की माँ बुढ़ापे में भी निरन्तर मेरी माँ न बनकर मेरी सहेली बननें का स्वांग करती दिखायी पड़ीं | मुझे शक होनें लगा कि कहीं वे रोमेन की सगी माँ न हों | इसके अतिरिक्त मैनें अपनें आस -पास यह देखा कि बीस वर्ष की उम्र तक पहुंचने के पहले ही न जानें कितनी किशोरियां माँ बनती हैं या Abortion के लिये बाध्य होती हैं | मुझे तो रोमेन के दोस्तों में एक भी ऐसा नहीं मिला जो काम तृप्ति को बाथ रूम की अनिवार्य प्रक्रियाओं के अतिरिक्त और कुछ समझता हो | एक दिन रोमेन नें मुझसे कहा कि उसका मन कुछ नवीनता माँगता है और वह चाहेगा  कि मैं उसके एक खेल में साझीदार बनूँ | इस खेल में पति और पत्नी का अदलाव -बदलाव होगा और इसमें पांच छै दम्पति युगल शामिल होंगें | मेरे रोम रोम में घृणां फूट उठी | क्या इसी जीवन क लिये मुझे लन्दन में व्याहा गया | क्या योनि के अतिरिक्त नारी का और कोई जीवन नहीं है | अधिकाँश विलायती नवयुवक और जिनमें काफी संख्या में भारतीय थे मुझे मूत्रेन्द्रीय के आसपास चक्कर लगानें वाले ही दिखायी पड़े | यहां के भारतीय नवयुवकों में भीष्म पितामह की बातें फूहड़ हंसी का आधार बनती हैं | और विवेकानन्द का स्मरण सिर्फ उनकी अंग्रेजी के लिये किया जाता है | पितृव्य मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि नारी को बुद -बुद करते संड़ांध भरे कीचड़ में एक कीड़े की भांति घुट -घुट कर जीना अच्छा रहेगा या फिर पति पत्नी के अमर संम्बन्धों की सारी कहानियां भूलकर जीवन मार्ग पर एकाकी चलकर अमर मूल्यों को पुनः जीवित करना उचित रहेगा | आपका उत्तर मिलनें पर मैं अपनें भविष्य के मार्ग का चयन करूँगीं | मैं जानती हूँ कि आप जो भी सुझाव देंगें वे कहीं न कहीं मेरे अन्तरमन की गूँज में ध्वनित चेतनता के अनुसार ही होगा | न जानें क्यों मुझे निरन्तर यह  अहसास होता है कि मेरे संस्कारों का सृजन आपके द्वारा ही रूपायित हुआ है | पितृव्य अपनी इस मानस पुत्री को समय निकालकर कुछ लिखना अवश्य |
                                अभी मैं यह नहीं जानती कि आप मुझे कौन सा मार्ग चुननें को कहेंगें पर मैं यह बता देना चाहती हूँ कि तलाक का मार्ग भी सहज नहीं है क्योंकि इसके लिये मुझे रोमेन के आचरण के प्रति कुछ ऐसा कहनें को बाध्य होना पड़ेगा जिसके बिना कहे मैं उस परिवार से छुटकारा चाहती हूँ पर वह परिवार मुझे अपनें कटीले और चतुरायी से संगुफित तार -जाल में घेरे हुये है | फिलहाल मैनें रोमेन के पैतृक मकान के पास ही एक छोटी सी कबूतर की दर्बे नुमां फ़्लैट किराये पर ली है | जहां से ये पत्र आपको लिख रही हूँ | पितृव्य मैं जीवन मरण के बीच झूलता हुआ जीवन जी रही हूँ | विश्वास है आपसे पायी संजीवनी सुधा  मुझे मृत्यु के डैनों से उबार देगी |
                                                    शत कोटि नमन के साथ सुनन्दा !
                         अत्यन्त परिमार्जित अंग्रेजी में लिखा गया पत्र मुझे भीतर तक झकझोर गया | सुनन्दा की आंसू भरी डबडबायी आंखें , उसका मासूम चेहरा , उसका दीप्त भाल सभी कुछ मेरे अन्तर में उभर आये | बेटी अपर्णा को आवाज देकर एक ग्लास पानी पीकर रात्रि के प्रथम पहर  में मैं अपने स्टडी रूम में जा बैठा | पेन उठाकर डायरी के पन्नें पर पहला सम्बोधन लिखा |
My Dearest Daughter,..................
क्रमशः 
                                          

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