Saturday 17 February 2018

गतांक से आगे -

                                                     आत्मानन्द की पत्नी नें घर जाकर शालिनी के कमरे में पहुँच कर शालिनी को निर्मम वाणों के घाव दिये इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है पर निश्चय ही उसनें यह कहा होगा कि शालिनी को राकेश के पिता के सामनें सारी बातें अगली शाम साढ़े सात बजे बतानी हैं तब शालिनी के मन में एक अत्यन्त गहरे पश्चाताप का भाव उठा होगा | जिस झूठ को डा. वर्मा नें उसे अपनी माँ के सामनें कहनें पर मजबूर किया था उस झूठ को भला वह राकेश के पिता के सामनें कैसे दुहरा सकेगी जब उसनें माँ से डा. वर्मा द्वारा गढ़ी हुयी झूठी कहानी बतायी थी तो क्षण भर को उसे भ्रम हो गया था कि यदि राकेश के पिता राकेश को राजी कर लें और यदि वह हाँ कर दे तो शगुन होनें से पहले ही वह अपनें प्राण त्याग देगी और इस प्रकार राकेश इस दोष से बरी हो जायेगा | पर जब माँ नें उससे कहा कि राकेश उसे अपनी बहिन के रूप में लेता है और जब राकेश के पिता के सामनें उसे वह झूठ कहना होगा जो डा. वर्मा के कुटिल दिमाग से उत्पन्न हुआ था तो वह चेतना शून्य सी हो गयी | उसनें सोचा कि यदि उसके उदर में कोई शिशु आ भी गया हो उस पाप के फल को जीनें का कोई हक़ मिलता है या नहीं ? और फिर वह शिशु डा. वर्मा जैसे कमीनें इन्सान की पौध हो तो उसे पालनें का क्या अर्थ ? पर वह भी तो निर्दोष नहीं है | हाय यह मैनें क्या किया | आगन्तुक शिशु यदि मेरे उदर में है तो अबार्शन द्वारा उसे समाप्त कर देना मल के ढेर में दब जानें जैसा घृणित कार्य है | ऐसा मैं कैसे कर सकती हूँ ? और यदि डा.  वर्मा मौक़ा पाकर अबार्शन करवा भी  दे और मेरा व्याह हो भी जाय तो मैं सदैव के लिये जिसके साथ व्याही जाऊँ उसको धोखा देती रहूँ यह क्या किसी भारतीय नारी के लिये संम्भव हो सकता है | और फिर डा. वर्मा जैसा कुत्ता उसकी प्रारंम्भिक गल्ती का फायदा उठाकर सदैव उसे काटनें दौड़ेगा तो वह उसे कैसे दुत्कार पायेगी ? और यदि दुत्कार भी देती है तो यह इन्सानी दरिन्दा उसे जब चाहे अपमानित कर समाज के लिये घृणा की वस्तु बना सकता है | उस सारी रात अन्तर्मन्थन की इस पीड़ा नें एक पल के लिये  भी शालिनी की पलकें बन्द  नहीं होनें दीं | उसके मानस पटल पर कुछ वर्ष पहले के वह चित्र उभर आये जब वह अपर्णा के साथ हंसती ,खेलती ,दौड़ती रहती थी | हाय राकेश जिसे मैं भाइयों से अधिक आदर और प्यार देती रही हूँ उसे अपनें जाल में फँसानें के लिये मैनें डा. वर्मा का साजिश का हिस्सा बनना क्यों स्वीकार कर लिया ? पर अब माँ के सामनें कैसे बताऊँ कि मैनें जो कुछ कहा वह सब झूठ है | और यदि वह सब झूठ है तो सच क्या है ? सच तो बताना ही पड़ेगा | डा. वर्मा जैसा काइयाँ अपनें को दोष मुक्त करनें के लिये कितनी ही तिकणम भरी चालें खेलेगा | बड़े भाई कहीं खून -खराबा न कर दें | धिक्कार है मेरे जीवन को ,मुझे मृत्यु की गोद में जाना ही चाहिये | वही गोद अब मुझे शान्ति की नीन्द दे सकती है | पर कैसे मरूँ ? कालेज जानें का बहाना करके रेल के नीचे कटना कितना दर्दनाक होगा | फिर क्या करूं ? अरे हाँ , अखबारों में पढ़ा है कि गेंहूं को घुनों और कीटों से सुरक्षित रखनें के लिये सल्फास की जो गोलियां आती हैं उनके खानें से आदमी मर जाता है | हाँ ठीक है अभी कुछ दिन पहले ही तो मैनें गेहूं के बड़े टब में थोड़े गेंहूं हटाकर एक कपड़े में बांधकर सल्फास की गोलियां डाली हैं | स्टूल पर खड़ी होकर मैं टब के सिरे पर पहुँच जाउँगीं और हाँथ से खगाल कर गोलियां निकाल लूंगीं | पानी से गोलियां निगल लेती हूँ | दुनिया वालो मुझे क्षमा करना | माँ बाप से मैं क्या क्षमा माँगूँ ?मेरी जैसी पुत्री से वे सदैव घृणा करते रहें | यही मेरा प्रायश्चित्त होगा | पर कहीं ऐसा न हो कि गोलियों का जहर असरदार साबित न हो | कहीं जिन्दा बच गयी तो कैसी छीछा लेदर होगी | नहीं ,नहीं मैं सारी की सारी गोलियां लील लेती हूँ | हाय नारी जीवन भी कितनी विडम्बना से भरा है | महावीर बाबा , हे महावीर पवन पुत्र मेरे सम्मान की रक्षा करना , मुझे मर जानें देना हाँ इतनी प्रार्थना अवश्य है कि फिर मुझे किसी लड़की के रूप में जन्म न लेना पड़े | मुझे अधिकाँश मनुष्य पशु प्रवृत्ति के ही लगे जिनके लिये नारी केवल भोग्या है | सहचारिणीं नहीं हाँ एक गल्ती हो गयी मरनें से पहले मुझे डा. कुसुम वर्मा को सब कुछ बता देना चाहिये था पर अब क्या हो सकता है गोलियां तो निगल ही ली हैं |
                              लगभग आधा घण्टे बाद शालिनी के कमरे से ओ -ओ की आवाज आनें लगी | माँ नें सुना चिल्लाकर बोली क्या है शालिनी उठी क्यों नहीं ? पर जब ओ ओ करके उल्टी का क्रम शुरू हुआ तो माँ समझ गयी कि कुछ अनहोनी हो गयी है | दौड़कर कमरे में आयी देखा शालिनी के बिस्तरे  पर उल्टियों की गन्दगी बिखरी हैउसके मुंह से झाग निकल रहा है | आँखें फटी -फटी छत की ओर देख रही हैं | वह घबरा कर चिल्लायी रामू के बप्पा शालिनी के कमरे में आओ शालिनी नें सल्फास की गोलियां खा ली हैं | जिस कपड़े में गोलियां बंधी थीं वह वहीं पास ही पड़ा था | सारा घर इकठ्ठा हो गया | पहली पहुँच डा. वर्मा तक की गयी क्योंकि वही सबसे नजदीक रहने वाले डा. थे | वे आये शालिनी को बेहोशी हालत में देखा | बोले मेरे बस  का केश नहीं है | आख़िरी समय है | मेडिकल कालेज ले जाओ | क्या पता कि शायद पुलिस केस बन जाये | शालिनी के पिता और भाइयों नें अत्यन्त शीघ्र व्यवस्था करके शालिनी को मेडिकल कालेज के इमरजेन्सी वार्ड में पहुंचाया | शालिनी की माँ और एक भाभी साथ गयी | डाक्टरी उपचार प्रारंम्भ हुआ | अटेण्ड करनें वाली लेडी डा. नें बताया कि बचनें की पच्चीस प्रतिशत उम्मीद है | विष यदि पूरी तरह सिस्टम से निकल गया तो पांच सात दिनों में स्वस्थ हो जायेगी | पाचन प्रणाली को साफ़ होनें के प्रयत्न होने लगे | पहले पतले दस्त आये फिर न जानें कैसे शौच और मूत्र द्वारों से रक्त आनें लगा | नर्सेज को इनाम देनें की बात कहकर शालिनी के पिता नें उन्हें और अधिक कर्तव्यरत होनें के लिये प्रेरित किया और फिर सहसा शालिनी की पलकें हिलनें लगीं | ऐसा लगा उसको होस आ गया है | लगभग आधा घण्टे बाद उसनें पलकें खोलीं और उठनें का प्रयास किया उसे लगा कि उसकी जननेन्द्रियों से रक्त स्त्राव हो रहा है | उसनें बाथ रूम जानें की बात कही | सीनियर नर्स उसके साथ बाथरूम में गयी | दरअसल अटेन्डेन्ट लेडी डा. और सीनियर नर्स को आभाष हो गया था कि कहीं कुछ अशुभ घटा है और इसीलिये शायद पेशन्ट नें सल्फास की गोलियां खायी हों | बाथ रूम में कमोड पर बैठनें के पहले ही असह्य पीड़ा के कारण शालिनी झुक कर जमीन पर गिर सी गयी | रक्त स्त्राव हुआ और भूमि पर एक मोटे अंगूठे जैसा आकृतिहीन मांस पिण्ड गिर गया | शालिनी अचेत हो गयी | सीनियर नर्स नें दूसरी नर्स को बुलाकर उसकी मदद से शालिनी को उठाकर कमरे में पलंग पर लिटा  दिया | अधोभाग में आवश्यक उपचार व्यवस्थायें की गयीं | लगनें लगा कि शालिनी सो गयी है पर उसकी सांस नियमित होती जा रही है | लगभग आधा घण्टे बाद उसनें फिर आँखें खोलीं और पानी की मांग की | डाक्टरी देख रेख में कोई सुरक्षित पेय उसे दिया गया और शालिनी नें फिर आँखें बन्द कर लीं | लगभग आधा घण्टे बाद उसनें फिर पलकें खोलीं पास बैठी नर्स से पूछा कि वह कहाँ है | नर्स ने बताया कि वह मेडिकल कालेज के इमरजेन्सी वार्ड में है | शालिनी नें माँ से मिलनें की इच्छा जाहिर की | माँ , भाभी , बन्धु ,बान्धव बाहर के बिस्तर बरामदे में बैठे ही थे | नर्स नें बाहर आकर बताया कि शालिनी को होश आ गया है और उसकी माँ उससे मिल सकती है | आँखों में आंसू भरे माँ अन्दर आयी और शालिनी के पलंग के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी | बेटी के सिर पर हाँथ रखा | शालिनी की आँखों से आंसू झर बह रहे थे | पलकें गीली थीं | उसनें अपनें मत्थे पर रखे माँ के हाँथ को हाँथ उठाकर छूने की कोशिश की पर हाँथ पूरी तरह उठ नहीं पाया | नर्स नें कहा बस अब आप बाहर चलिये | अभी यह बहुत कमजोर है | कुछ घण्टे बाद इसके शरीर में कुछ शक्ति आ जायेगी | हम लोग इसकी पूरी तरह से देखभाल करेंगें | फिर नर्स नें धीरे से कहा , " कि क्या आप नहीं जानतीं थीं कि आपकी बेटी को एक -दो महीनें का गर्भ है | " शालिनी से दूर हटकर नर्स नें शालिनी की माँ को अपनें साथ बाथ रूम में ले जाकर आकृति रहित उस मांस पिण्ड को दिखाया जो सात -आठ महीनें के लम्बे दौरान में माँ के पेट में नर या नारी शिशु की पूरी आकृति पा जाता | माँ आश्चर्य में पड़ गयी | यदि ये शिशु राकेश के बिन्दु से जन्मा है और उसके पिता नें संम्बन्ध लेनें से इन्कार कर हमारे परिवार का तिरस्कार किया है तो हम प्रोफ़ेसर साहब को दिन में तारे दिखा देंगें | पर यदि ऐसा होता तो शालिनी क्यों प्रोफ़ेसर साहब के सामनें अपनी बात कहनें की हिम्मत नहीं कर पायी | आखिर यदि उसका दोष है तो राकेश का भी तो दोष है | यदि शालिनी की बात जो उसनें मुझे बतायी है सच है तो प्रोफ़ेसर साहब रिश्ते से इन्कार कैसे कर सकते थे ? उन्हें तो एक आदर्श इन्सान के रूप में देखा जाता है | पर यदि राकेश इन सब घटना काण्ड में शामिल नहीं है तो यह सब कैसे घटित हुआ | शालिनी और कहीं तो आती जाती नहीं थी | हाँ डा. कुसुम वर्मा के साथ वह अवश्य लम्बी बैठकें करती रहती थी | हे भगवान मेरी बेटी को ठीक करके लम्बा जीवन दें | अभी मैं उससे कुछ नहीं पूछूँगीं | कुछ दिन बाद उसके स्वस्थ्य होनें पर ही इन बातों की चर्चा का प्रयास करूँगीं | क्या पता शालिनी स्वयं ही अपनी ओर से सब कुछ बता डाले | शालिनी के पिता को भी अभी इस संम्बन्ध में कुछ बताना न होगा | डा. साहब कहते थे कि शालिनी को पूरा होश आ जानें पर पुलिस इन्सपेक्टर उसका बयान लेंगें क्योंकि यह आत्महत्या का मामला है | आत्महत्या के लिये किसनें उकसाया ? आत्महत्या का प्रयास क्यों किया गया ? यदि शालिनी किसी को दोषी ठहराती है तो न्याय की प्रक्रिया अपनी पूरी जटिलताओं के साथ प्रारंम्भ हो जायेगी और यदि गर्भपात की बात बाहर चली गयी तो परिवार की कितनी बदनामी होगी | लेडी डा. और नर्स को जिस प्रकार हो अपनी ओर मिलाना होगा ताकि गर्भ का संम्बन्ध आत्मघात के प्रयास से न जुड़े |
                              इमरजेन्सी वार्ड में शालिनी को अटेण्ड करनें वाली लेडी डा. एक सुशिक्षित और आदर्श उपचारिका थी | माता होंनें के कारण वह जानती थी कि किसी भी नारी की  सबसे बड़ी शक्ति इस बात से आँकीं जाती है कि व्याह से पहले उसका किसी पुरुष से संम्बन्ध सम्पर्क न हो पर वह यह भी जानती थी कि आज के समाज में बहुत सी युवा होती हुयी लड़कियों के लिये ऐसा संम्भव नहीं हो पाता भूल हो जानें पर एक बार सुधार का मौक़ा मिलना ही चाहिये | क्या पता पतन के बाद का उत्थान इतना महान हो कि दुनिया चमत्कृत रह जाय | उसकी कई सहेलियों के साथ ऐसा ही तो घटा था | पर आज वे कितनी ऊँचाई पर हैं | उसनें  मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि वह शालिनी पर अवैध गर्भ धारण करनें का चार्ज नहीं लगनें देगी | एक रात के विश्राम के बाद और ग्लूकोज की कई बोतलें चढ़ जानें के बाद शालिनी संम्भल गयी | ग्लूकोज हट गया अब उसे तरल खान -पान पर डाल दिया गया | पुलिस इन्सपेक्टर बयान लेनें के  पहले भी कई बार आ चुका था | लेडी डा. नें माँ  के से दुलार से शालिनी को बता दिया था कि उसका बयान लिया जायेगा और उससे गोलियां खानें का कारण पूछा जायेगा | वह यदि पुलिस को सच न बताना चाहे तो कोई ठीक लगनें वाला बहाना ढूढ़ ले | शालिनी नें कमजोर धीमी आवाज में अपनें ऊपर कृपा करनें वाली लेडी डा. से पूछा कि वह क्या कहे ? उसनें कहा सच बात तो आप जानती ही हैं | दूर पर मैं उस चरित्रहीन डाक्टर को अपनें जीवन से काटकर फेंक देना चाहती हूँ जिसनें मुझे पथभ्रष्ट किया अब और क्या कारण हो सकता है | लेडी डा. नें पूछा कि वह किस क्लास में पढ़ती है शालिनी नें बताया कि वह बी. एस. सी. सेकेण्ड इयर की विद्यार्थी है | लेडी डा. नें पूछा कि उसकी अर्धवार्षिक परीक्षा के परिणाम कब निकले थे | शालिनी नें बताया कि लगभग एक सप्ताह पहले अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम क्लास में घोषित किया गया था और वह मैथेमेटिक्स में फेल हो गयी थी | जब वह क्लास में गयी तो उसकी सहेलियों नें उसका मजाक उड़ाया था | लेडी डा. नें कहा कि वह ऐसा ही बयान दे दे पर किसी सहेली का नाम न ले | वह कह दे कि आत्मग्लानि के कारण उसका मन असफल जीवन जीनें के लिये राजी नहीं हुआ और उसनें आत्महत्या करनें की कोशिश की | पुलिस इन्सपेक्टर नें काफी पूँछ तांछ की पर शालिनी के पिता पहुंच वाले आदमी थे सब कुछ शान्त हो गया | पांच दिनों के बाद शालिनी को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी | उसे घर लाया गया | अगले दिन राकेश अपनें पिता और माता के साथ शालिनी को देखनें के लिये आत्मानन्द जी के घर आया | जब वह माता पिता के साथ देखकर जानें लगा तो शालिनी नें उसे इशारे से रोककर पास पड़ीकुर्सी पर बैठनें को कहा फिर बोली , " भैय्या अपनी इस गन्दी बहन को माफ़ कर देना | " राकेश ताज्जुब में पड़ गया | बोला , " शालिनी मैनें क्या तुझे कभी अपर्णां से कम समझा है | कौन सी गल्ती की है तूनें जिसके लिये तुझे माफ़ कर दूँ | उतार -चढ़ाव तो आते ही रहते हैं | जीकर जीवट के साथ कुछ करके दिखा दे तेरा भाई राकेश तेरे साथ हर कदम पर खड़ा होगा | " यह कहकर वह तेजी से कमरे से बाहर निकल गया | सभी कोई मिलनें आये | नहीं आये तो डा. वर्मा और उनकी पत्नी कुसुम वर्मा | कुछ दिन बाद शालिनी नें माँ से पूछा क्या कुसुम जी कहीं गयी हुयी हैं | तो उन्होनें बताया कि जिस दिन वह अस्पताल में भर्ती हुयी थी उसी दिन रात को डा. वर्मा और उनकी पत्नी डा. कुसुम में घण्टों तक कहा -सुनी होती रही | कुछ साफ़ तो सुनायी नहीं पड़ा पर रात को दो -तीन बजे जाकर आवाजें बन्द हुयीं | अगले दिन डा. कुसुम वर्मा अपनें दोनों बच्चों को लेकर अपनें पिता के पास फतेहाबाद में चली गयी हैं | और फिर एक दो दिन के बाद डा. वर्मा नें अपना सारा सामान एक ट्रक में लदवाकर किसी दूसरे शहर में रहकर प्रेक्टिस करनें का मन बना लिया है | मकान खाली पड़ा है | हाँ कल शाम को आठ बजे डा. कुसुम वर्मा का सिरसा से फोन आया था वे तुम्हारे विषय में पूछ रही थीं | कहती थीं कि किसी शादी व्याह में उन्हें उस तरफ आना है तब शालिनी से मिल जायेंगीं | उन्होंने तुम्हें छोटी बहन  कहकर आशीर्वाद भी दिया है |
                                  और फिर तीन चार दिन के बाद एक गाड़ी द्वार पर आ खड़ी हुयी | डा. कुसुम वर्मा नें अपनें दोनों बच्चों के साथ घर में प्रवेश किया | शालिनी के माता पिता और भाभियों से मिलकर वह शालिनी के कमरे में आकर बैठ गयी | उसनें इच्छा प्रकट की वह शालिनी से एकान्त में कुछ बात करना चाहती है | घर के और सदस्य अपनें अपनें कमरे में चले गये  और डा. कुसुम वर्मा और शालिनी में क्या बात हुयी इसे मैं पूरी तरह नहीं जानता | हाँ बीच -बीच में शालिनी की दबी सिसकी भी अवश्य सुनायी पड़ जाती थी | वापस जानें से पहले न जानें डा. कुसुम वर्मा के मन में क्या आया कि वह राकेश की माँ से मिलनें मेरे घर में चली आयीं | उससे पहले वे कभी भी मेरे घर में नहीं आयी थीं | संयोग ही था जब वे घर पर आयीं तो अपर्णां की सहेलियां प्रियम्बदा और प्राची भी वहां उपस्थित थीं | डा. कुसुम वर्मा नें राकेश की माँ को प्रणाम करके कहा माता जी चाँद में दाग हो सकता है पर आपका बेटा राकेश सर्वथा निर्दोष है | फिर हंसकर बोलीं ," अपर्णां को संम्भाल कर रखना | इसपर न जानें कितनें भौरें मडरा रहे हैं | | चांदी की घण्टियों की रुनझुन आवाज खिलखिलाहट भरी समवेत हंसी घर में गूँज गयी | अपर्णां की माँ ने डा. कुसुम वर्मा के दोनों बच्चों को कुछ दिया पर क्या दिया यह मैं नहीं जानता पर राकेश की माँ नें जो मुझे बताया उसनें फिर मेरे मन को तमाम प्रश्न चिन्हों से भर दिया | उसनें बताया कि प्रियम्बदा और राकेश का पूरा Dramitic Troupe उत्तरांचल के रामनगर में अंतर्राज्यीय प्रतिस्पर्धा के लिये विश्वविद्यालय की ओर से भेजा जा रहा है ,कि प्रियम्बदा ,अपर्णा के साथ यही बतानें घर आ गयी है और राकेश यूनिवर्सिटी में Youth Welfare डिपार्टमेन्ट में कुछ फाइनेन्स लेनें के लिये रुका हुआ है | और बाद में अपर्णा की माँ नें  धीमें से कहा डा. कुसुम वर्मा आयी थीं और सीढ़ियों पर उतरते समय उन्होंने धीरे से मुझे बताया था कि उन्होंने डा. वर्मा से Divorce लेने के लिये अप्लीकेशन लगा दी है | फिर हंसकर बोली यह Divorce क्या चीज होती है राकेश के पापा ?
(क्रमशः )

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