Friday 16 February 2018

गतांक से आगे -

                                      यौवन का उफान जब अपनें जोश पर होता है तब तट की सीमायें ढह जाती हैं | पुराकाल में संयमन की प्रचुर संम्भावनायें थीं क्योंकि इन्द्रिय आकर्षण और वंचक प्रलोभन के उद्दीपनों का लगभग अभाव सा था | अब नगरों की छोटी -छोटी गलियों में भी इन्द्र  सभा सजनें लगी है | दीर्घ या अनन्त जीवन की कामना अपनें पंख समेटकर मस्ती भरी कुछ थिरकनों में अवगुंठित होनें लगी है | क्षण ही सत्य है जो तात्कालिक है , जो प्रवहमान चेतना का स्थिर बिन्दु है वहीं पर टिक जानें और उस अनुभव का भरपूर आस्वादन ही मानव जीवन का लक्ष्य बन गया है | देह का सत्य आत्मा के सत्य को बौना कर नभमापी पैगामें भर रहा है | रंग -बिरंगें अनुभव पानें की ललक अवांछित और मिथकीय कल्पना परियों के सुनहले पंखों पर उड़ान लगानें लगी है | इन्द्रिय प्रलोभन के यह दुर्दमनीय थपेड़े न जानें कितनें स्थिर प्रज्ञों को दोलायित कर देते हैं | कुछ ऐसा ही घटित हुआ था बड़ा बाजार के उस मुहल्ले में जिस किराये के मकान में मेरा उन दिनों निवास हो रहा था उससे सटे दाहिनें ओर के एक घर के बाद एक उच्चकुलीन ब्राम्हण परिवार रह रहा था | परिवार के मुखिया आत्माराम शर्मा चार पुत्रों और एक पुत्री के पिता थे | उनकी पत्नी चन्द्रा देवी अपनें झगड़ालू स्वभाव के कारण सारे मुहल्ले में चर्चा का विषय बनी रहती थी | भारतीय परिवेश में चार पुत्रों की माँ होना गर्व भरे सौभाग्य की बात होती है और सबसे छोटी एक पुत्री चार भाइयों के बीच अत्यन्त  लाड़ -प्यार के साथ पल पोसकर बड़ी हुयी थी | आत्माराम जी के पास काफी पैतृक संम्पत्ति थी | चल और अचल पैतृक संम्पत्ति के मालिक आत्माराम जी साहित्यिक प्रवृत्ति के थे | कई बार अपनी तुकबन्दियों को सुनानें के लिये वे मेरे पास आ जाया करते थे | मैं भी उनकी थोड़ी -बहुत प्रशंसा कर देता था| क्योंकि साहित्य के प्रति अनुराग रखनें वाला कोई भी व्यक्ति मुझे साहित्य का अध्यापक होनें के नाते अपना नजदीकी सा लगता था | आत्माराम जी के दो पुत्रों का व्याह हो चुका था बाकी दोनों पुत्र भी इक्कीस और चौबीस के रेन्ज में थे | लड़की अठ्ठारह की होकर उन्नीसवीं में पड़ी थी | लड़की से बड़े दोनों लड़कों की शादी से पहले वे शालिनी की शादी कर लेना चाहते थे | वर की तलाश जारी थी और अप्रत्यक्ष रूप से कई बार उन्होंने यह कहना चाहा था कि शालिनी को मेरे बड़े पुत्र राकेश की सहगामिनी के रूप में स्वीकृति मिल जाय यद्यपि स्पष्ट कोई बात चीत नहीं हुयी थी  पर हम जानते थे कि राकेश हर द्रष्टि से उन्हें योग्य लगता है | पर अनेक नाटकों का नायक अपनें ख़्वाबों में कितनी ही नायिकाओं की तस्वीर संजोये हुये था और उसे बी. ए. में पढ़ रही शालिनी में कहीं कुछ भी ऐसा नहीं लग रहा था जो उसके जीवन में रंग भर दे | यों शालिनी असाधारण न होकर भी मध्यवर्गीय परिवारों में प्रशंसा पानें लायक रूप रंग रखती थी पर उसमें कलाकार युवतियों की सी भाव भंगिमायें देखनें में नहीं आती थीं | आत्माराम जी के घर से सटे दाहिनें पार्श्व में किन्हीं डा. वर्मा नें पूरा घर किराये पर ले रखा था |  उनकी पत्नी भी बी. ए. एम. एस. थी |  डा. वर्मा एम. बी.बी. एस. थे | निचली मंजिल पर सड़क पर खुलनें वाले कमरे में उन्होंने अपना क्लीनिक खोल लिया था और मुहल्ले में उनकी प्रेक्टिस चल निकली थी | कुसुम वर्मा एक बच्चे की माँ थी | उनकी पुत्री अब चार वर्ष की होने जा रही थी | डा. वर्मा देखनें में एक शोभन नवयुवक थे | और एम. बी. बी. एस. तो वे थे ही | सड़क पर आते -जाते जब वे क्लीनिक से बाहर अपनें स्कूटर पर कहीं जाते हुये मिल जाते तो आपस में नमस्कार हो जाया करता था | कभी -कभी मुझे ऐसा लगता था कि डा. वर्मा की आँखों में अतृप्त वासना की झलकियां दिखायी  पड़  रही हैं | कुसुम वर्मा संम्भवतः दूसरे प्रसव की ओर बढ़ रही थीं और डा. वर्मा के मन में उठी नारी शरीर की सानिध्य लालसा को पूरा नहीं कर पा रही थी | शायद इन्हीं परिस्थितियों  में कुसुम वर्मा के साथ वाले मकान में रहनें वाली आत्माराम की पुत्री शालिनी नें कुसुम वर्मा को बड़ी बहिन के रूप में अपना लिया | रोज का आना -जाना प्रारंम्भ हो गया | आत्माराम जी निश्चिन्त थे क्योंकि पड़ोसी डाक्टरी डिग्रियां पाये हुये थे और वे समाज के लिये  अच्छे आचरण के आदर्श बन जानें की क्षमता रखते थे | पर जैसा कि मैं प्रारंम्भ में कह चुका हूँ वासना का मायाजाल आकर्षण के इतनें जटिल फन्दे  डाल देता है कि उनमें सजग से सजग व्यक्ति को उलझा लेनें की क्षमता रहती है | कुसुम वर्मा के दिन चढ़नें लगे | शालिनी उन्नीस -बीस की हो गयी थी | स्नातक कक्षाओं में प्यार संम्बन्धी कवितायें और कहानियां पढ़ायी ही जाती हैं | चार भाइयों के बीच पली इस लड़की से छेड़ -खान करनें की हिम्मत भला किसको हो सकती थी पर अनुभव के अभाव में शालिनी को भटक जानें का ख़तरा था |आत्माराम जी को शालिनी के भीतर उठते हुये उस वासना चक्र का आभाष नहीं पाया जो कुसुम के पति डा. वर्मा हंस बोलकर अप्रत्यक्ष रूप से कच्ची तरुणायी पाये शालिनी के मानस लोक में जगा रहे थे | जैसे -जैसे प्रसव काल नजदीक आता गया शालिनी डा. कुसुम के घर की कई जिम्मेदारियां संम्भालनें लगी | एकान्त के अवसर मिलनें लगे | पहले अन्जानें बनकर डा. वर्मा नें वक्ष स्पर्शन किया | शर्मीली हंसी जो प्रतिरोध रहित थी नें उनका साहस और बढ़ा दिया | वक्ष से ओष्ठ चुम्बन तक पहुँचना अधिक दुष्कर कार्य न था | एक डा. की झूठी प्यार की बातें जिनमें अपनी डा. पत्नी के प्रति अवज्ञा का भाव भी होता था | शालिनी के मन में वासना के नये आवृत्त रचनें लगी | एकान्त के अवसर थे ही | शारीरिक मिलन निर्वाध गति से चल निकला | शालिनी को लगा कि पुरुष का स्पर्श और डा. पुरुष द्वारा खेली जानें वाली रति क्रीड़ायें स्वर्गिक सुख से भरी हैं | कुसुम वर्मा को अभी तक इस बात का आभाष नहीं हो पाया था कि उनके डा. पति उनके साथ दगाबाजी कर रहा है | दो तीन महीनें बाद डा. कुसुम वर्मा एक पुत्र की माँ बन गयीं | कुछ समय और बीता अब उन्होंने एक पढ़ी लिखी नौकरानी की व्यवस्था कर ली और क्लीनिक में बैठनें लगी | घर में नौकरानी के आ जानें और कुसुम वर्मा के काम संभ्भालनें  के बाद एकान्त के अवसर कम हो गये | डा. वर्मा का रोमान्टिक मिजाज मिलन के मौके तलाश करनें लगा | जिस कालेज में शालिनी पढ़ रही थी उसी के पास के एक पार्क में पूर्व टाइम पर मिलना जुलना प्रारम्भ हुआ | एक दिन भाई के किसी दोस्त नें दोनों को पार्क के बीच बनी लता कुटी में दोनों को हँसते बोलते देखा | खबर घर तक पहुंचीं | आत्माराम जी सजग हो गये | भाइयों नें मुस्तैदी बढ़ा दी | कालेज और घर इसके अतिरिक्त शालिनी का और कहीं आना जाना बन्द हो गया | डा. वर्मा भी आदर्श आचरण का चोंगा पहनकर क्लीनिक पर बैठनें लगे | ऐसा लग रहा था कि सभी कुछ ठीक -ठाक हो जायेगा | पर कहते हैं प्रकृति के कुछ अनिवार्य नियम हैं और वे नियम मनुष्यों की चतुरायी से सोची हुयी सभी योजनाओं को विफल कर देते हैं | एक दो महीनें और बीते और शालिनी को लगा कि शायद वह माँ बननें का पथ पर अग्रसर हो रही है | एक शाम वह किसी बहानें  डा. कुसुम वर्मा के घर गयी और कुछ क्षण का एकान्त पाकर उसनें डा. वर्मा से यह बात बतायी सब सुनकर डा. वर्मा को मानों सांप काट गया | उन्होंने आश्वासन दिया कि वे कुछ इन्तजाम करेंगें | पर अब शालिनी का बाहर आना -जाना बन्द था | क्या किया जाय ? डा. वर्मा का सारा कैरियर दांव पर लग गया | जान जानें का ख़तरा भी मुंह बाये सामनें खड़ा हो गया और जेल के सिकचों के पीछे बन्द होनें की विभीषका भी सामनें खड़ी हो गयी | इन्द्रिय सुख के पिछले कुछ महीनों के उल्लास बिन्दु शूल बनकर अन्तर मन को छेदने लगे | पाप अन्तरात्मा के पश्चाताप में ही धुलकर ही साफ़ हो सकता है | उसे छिपाने के लिये किये गये यत्न न जानें कितनी गलीज गलियों में चक्कर लगवा देते हैं | डा. वर्मा में आत्मा का वह बल कहाँ था कि वह अपनें अपराध को सहज स्वीकार कर अपनी डा. पत्नी से क्षमा माँगते और शालिनी की माँ के सामनें विनय प्रार्थना कर अपनी मुक्ति का कोई समाधान खोजते | फिर एक दिन जब शालिनी का माँ घर में डा. कुसुम के बेटे को गोद में लेनें के लिये आयी तो शालिनी भी उसके साथ आ गयी | | कुसुम कुछ देर के लिये ऊपर चली गयी  और डा. वर्मा को शालिनी से एकान्त में बात करनें का मौक़ा मिल गया  अपनें डा. होनें  का गलत फायदा उठाते हुये कि वह हमेशा के लिये बदनाम हो जायेगी क्योंकि उसनें उनका नाम लिया तो वह साफ़ नकार जायेंगें और उसे दोष देंगें कि अपना पाप छिपानें के लिये वह एक इज्जतदार डाक्टर को फंसाने की कोशिश कर रही है | अनुभवहीन मुसीबत में फंसी कच्ची तरुणायी में फिसल जानें वाली एक लड़की रोनें के अलावा और कर ही क्या सकती है | डा. वर्मा नें धूर्तता की एक और चाल फेंकी बोले देखो शालिनी तुम अपनी माता जी से कहो कि वह जो प्रोफ़ेसर साहब का बड़ा लड़का है तुम उससे प्रेम करती हो और तुम दोनों का शारीरिक मिलन हो गया है यह भी कह देना कि पिछले महीनें तुम्हें मासिक धर्म नहीं हुआ है | पिताजी पर दबाव डालकर तुम्हारी माँ प्रोफ़ेसर साहब के पास शादी का पैगाम भिजवायें जहां तक उम्मीद है वह मान जायेंगें क्योंकि तुम पढ़ी लिखी सुन्दर लड़की हो  , चार भाइयों की बहन हो और तुम्हारे पिता अपनें समाज के खाते -पीते सम्मानित व्यक्ति हैं आगे मैं सब संम्भाल लूंगा | हम दोनों डाक्टर  हैं किसी को कानों कान पता न चल पायेगा | शालिनी रोनें लगी उसनें कहा मैं इतनी झूठी बात कैसे कह दूँ ? मैं जहर खा लूंगीं पर राकेश को इस पाप का दोषी कभी नहीं बनाऊँगीं | डा. वर्मा नें कुटिलता भरी हंसी हंसकर कहा अरे शालिनी पाप वाप  की बातें सभी पुरानी बातें हैं | किसी को क्या पता कि तेरे पेट में बच्चा आ गया है एक दो महीनें तो पहचान होती ही नहीं यदि बाहर मेरे साथ आती -जातीं तो मैं गर्भ पात करवा देता | जो जो मैनेँ कहा है वैसा कर और कोई रास्ता नहीं है | डा. कुसुम ऊपर से नीचे उतर रही थीं पीछे अपनी गोद में अपनें नन्हें मुन्हें  को लिये शालिनी की माँ  भी उतर रही थी | शालिनी उठकर जीनें के नीचे खड़ी हो गयी और अपनी माँ के साथ घर वापस आ गयी |
                                        सारा दिन वह अपनें कमरे में चारपायी पर लेटकर रोती रही | कई बार माँ नें टोंका कि वह कालेज क्यों नहीं गयी क्या तबियत खराब है ? शाम को माँ उसके कमरे में आयी माथे पर हाँथ रखकर कहा बुखार उखार तो नहीं है | शालिनी नें कहा बड़ा दर्द हो रहा है | माँ बोली छूने ऊनें के समय दर्द वर्द तो होता ही रहता है | सब ठीक हो जायेगा अब शालिनी को कुछ हिम्मत हुयी उसनें कहा अम्मा मैं एक बात कहना चाहती हूँ और फिर हांथों से मुँह ढककर रोनें लग गयी | माँ नें बार -बार आग्रह किया कि वह जो कहना चाहे वह कहे रो क्यों रही है और तब धीरे- धीरे रोते सिसकते शालिनी नें धूर्त डा. वर्मा की उन बातों को दोहरा दिया जो डा. वर्मा शालिनी के मुंह से माँ के सामनें कहलवाना चाहते थे | झूठ कितनी ही होशियारी से बोला क्यों न जाय हमेशा लंगड़ा होता है और अपनें पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता पर शालिनी की माँ  को ऐसा लगा कि लड़की बड़ी हो गयी है और क्या पता कि एकाध महीना यदि टल भी गया तो अभी कोई ख़ास बात न हो अगर शादी की बात तय हो जाय तो वह महीनें के भीतर ही शादी कर देंगें | भगवान का दिया हुआ अपनें पास सब कुछ है | लड़की के चार भाई हैं | फ्रोफेसर साहब का घर भर देंगें | उनके पास तो उनका मकान तक नहीं है क्या हुआ उनके बच्चे पढ़ने में काफी तेज और देखनें सुननें में ठीक हैं | हमारे अपनें बच्चे भी तो कुछ कम नहीं हैं और राकेश तो मुझे सदैव माँ कहकर प्रणाम करता ही है | आत्माराम जी तो पहले ही संम्बन्ध के लिये खुलकर बात करनें की योजना बना रहे थे | पत्नी के कहनें पर उन्हें और बल मिल गया और उस दिन शाम को सात -आठ के बीच वह मेरे पास सीढ़िया चढ़कर बैठके में आ गये | विश्वविद्यालय की कई सुन्दर लड़कियों के साथ उठनें -बैठनें और अभिनय करनें वाला राकेश एक छोटे -मोटे हीरो के रूप में अपनी पहचान बना रहा था मैं जानता था कि वह इस प्रस्ताव को कभी स्वीकार नहीं करेगा | पर एक सम्मानित पड़ोसी के प्रस्ताव को तिरस्कार से ठुकरा देना मुझे अच्छा न लगा | मैनें कहा मैं राकेश की माँ से बात करूंगा आप कल शाम को मुझसे मिलना | मैं जानता था कि राकेश की माँ एक कान्यकुब्ज घरानें से आयी हैं और उसकी छोटी -मोटी शिक्षा नें उसे इतनी समझ नहीं दी है कि वह ब्राम्हणों के अनेक खण्डों में बंटे वर्गीकरण को समान रूप से देख सकें | राकेश की माँ के पास रसोईं में बैठकर मैंनें उससे  आत्मानन्द शर्मा द्वारा लाये गये शादी के प्रस्ताव को उसके सामनें स्वीकृति या अस्वीकृति के लिये रखा | छूटते ही वह बोली हम कान्यकुब्ज बीस बिस्वा हैं शर्मा -वर्मा  लोगों के घर से आयी हुयी लड़की को हम अपनी बहू नहीं बनायेंगें | मैनें कहा आत्मानन्द जी खाते -पीते आदमी हैं | लड़की के चार भाई हैं | तुम यहाँ अपनें क्षेत्र से बाहर रह रही हो | रिश्ता हो जाय तो यहां कोई अपना सगा संम्बन्धी तो हो जायेगा | उसनें आगे कहा अपना राकेश हजारों में एक है | शालिनी उसके मुकाबले क्या है ? मैनें हँसते हँसते कहा अरे अपर्णा की माँ कोई रिश्ता थोड़ा  ही लिये ले रहा हूँ | तुम मेरी एक बात मानों आज राकेश जब घर आये तो उसको टटोल कर देखना कि वो अपनी शादी के विषय में क्या विचार रखता है | अगले दिन मेरी पत्नी नें मुझे जो कुछ बताया उसे अपनी स्मृति के आधार पर कुछ इसप्रकार लिखना चाहूंगा |
माँ - बेटा राकेश अब  तुम बड़े हो गये हो | मेरी उमर बढ़ रही है | घर का काम -काज मुझसे नहीं सम्हलता | मुझे एक बहू चाहिये |
राकेश -अम्मा आज तुम ये कैसी उल्टी -सीधी बातें कर रही हो | क्या बात है ? क्या पिताजी से कुछ खटपट हो गयी है ? माँ  माँ उनकी बात छोड़ो वे तो कभी सीधे बात ही नहीं करते | अरे पड़ोस के आत्मानन्द आये थे अपनी लड़की की शगुन की बात कर रहे थे |
राकेश - कौन आत्मानन्द ,शालिनी के पिता | अरे अम्मा शालिनी को तो मैं बहिन के अतिरिक्त और कुछ मानकर चल ही नहीं सकता | अभी मुझे कुछ बन जानें दो | फिर जहां कहोगी वहां से तुम्हारी सेवा के लिये किसी को ला दूंगां | अजीब बात है शालिनी के पिता को यह क्या सूझा ?
माँ - तुम्हारे पिता नें मुझे तुमसे बात करनें के लिये कहा था | क्योंकि आत्मानन्द जी उनपर बहुत दबाव डाल रहे हैं | अब मैं उन्हें स्पष्ट रूप से कहलवा दूंगीं कि वे अपनी लड़की के लिये अन्य कोई वर तलाश कर लें | शालिनी राकेश की बहिन है और बहन बनकर रहेगी | अपर्णा भी तो उसे छोटी बहन सहेली के रूप में ही लेती है |
                      अगले दिन सायंकाल को आत्मानन्द जी और उनकी पत्नी दोनों घर पर आ गये | मैं असमंजस में पड़ गया क्योंकि आत्माराम जी की पत्नी का झगड़ालू स्वभाव मैं कई बार देख चुका था | मैनें राकेश की माँ को आवाज देकर बैठके में बुला लिया | आत्माराम की पत्नी नें कहा मेरे घर में क्या कोई कमी है | शालिनी में क्या दोष है | आप हमारा संम्बन्ध स्वीकार क्यों नहीं कर रही हैं | राकेश की माँ नें कहा कोई जबरजस्ती है आपके पास सब कुछ है पर हम अभी शादी करनें की सोचते ही नहीं | शादी कोई बच्चों का खिलवाड़ है | हमारे बच्चे जब कुछ बन जायेंगें तब शादी की बात सोचेंगें | शालिनी की माँ इस उत्तर के लिये तैय्यार नहीं थी | मैनें शान्ति का पुट देते हुये आत्मानन्द जी से कहा कि वे हमारे सम्मानित पड़ोसी हैं | उन्होंने अपनी लड़की का हाँथ मेरे लड़के को देनें की बात कहकर मेरा सम्मान बढ़ाया है पर राकेश शालिनी को छोटी बहन के रूप में लेता है और यही संम्बन्ध सबसे पवित्र संम्बन्ध होता है | हम आदर्श पड़ोसी बनकर रहेंगें | यह हमारा कमिटमेन्ट है | अब शालिनी की माँ नें कहा कि उसे कल का कुछ समय दिया जाय क्योंकि वह शालिनी को मुझसे मिलवाना चाहती है | राकेश की माँ उस समय उठकर अन्दर चली गयी थी और यह बात मेरे अकेले में शालिनी की माँ नें मुझसे कही | आत्मानन्द जी वहां बैठे थे | उन्होंने शंकालु होकर शालिनी की माँ से पूछा कि शालिनी प्रोफ़ेसर साहब से क्यों मिलना चाहती है | प्रोफ़ेसर साहब हमारे मित्र हैं | मित्र बनकर रहेंगें | हम अपनी लड़की का रिश्ता और कहीं खोज लेंगें | शालिनी इसमें बीच में कहाँ से आ जाती है | शालिनी की माँ नें तेज आवाज में कहा , " तुम तुकबन्दी के अलावा और कुछ करना जानते हो | बाप दादा की सम्पत्ति पर मौज कर रहे हो | अपना कुछ कमाया नहीं | यह तो कहो मेरे दो बड़े बेटे ठेकेदारी का काम करनें लगे हैं तो कोई कमी महसूस नहीं होती शालिनी जो कुछ कहना चाहती है उसे प्रोफ़ेसर साहब के सामनें कहेगी | मैं आपके पास अकेले में उसे लेकर कल शाम साढ़े सात बजे हाजिर हूंगीं | उसकी बात सुन लेना फिर जो फैसला करोगे उस पर विचार किया जायेगा | "
                            शालिनी की माँ के कर्कश स्वर में मुझे कुछ अभद्रता की झलक मिली पर चूंकि मैं समस्या के उलझाव से कतई परिचित ही नहीं था इसलिये मैनें हाँथ जोड़कर नमस्कार किया | वे दोनों सीढ़ियां उतरकर अपनें घर चले गये | घर जाकर शालिनी की माँ नें शालिनी से क्या कहा यह मैं नहीं जानता पर अगले दिन जब मैं कालेज से लौटा तो मुझे मेरी पत्नी नें खबर दी कि शालिनी नें सल्फास की गोलियां खा ली हैं , कि वह जीवन और मरण के बीच में झूल रही है | कि वह मेडिकल के इमरजेन्सी वार्ड में भरती की गयी है , कि अगर भगवान का हाँथ होगा तभी उसके बचनें की उम्मीद है | समस्या से सर्वथा अपरिचित होनें के कारण मेरे दिमाग में शून्यता का बोझ भरा हुआ दबाव बढ़ने लगा | मुझसे मिलनें से पहले ही शालिनी नें यह सब क्यों किया ? क्या राकेश का इस घटना से कोई संम्बन्ध तो नहीं है ? कितना आश्चर्यजनक है यह संसार ? कितनी कुटिल हैं मानव संम्बन्धों की परिभाषायें , वासना के घिनौनें घेरे हमारे किशोरों और तरुणों को कितनी सहजता से अपनेँ घेराबन्दी में ले लेती हैं पर शालिनी तो एक मृदुभाषी सरल स्वभाव की छात्रा लगती है | विवाह के प्रस्ताव और आत्महत्या के प्रयास इन दोनों के बीच के संम्बन्ध की कड़ी कैसे तलाशी जाय ? प्रभु शालिनी के प्राणों की रक्षा करना | शालिनी के मुंह से सब कुछ जाननें का अवसर देना | यदि मेरा रक्त दोषी है तो मैं अपनी जीवन की निरर्थकता का बोझ वहन करते हुये कब तक जी सकूँगां ?
(क्रमशः )

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