Friday, 23 February 2018

गतांक से आगे -

                                         माना जा रहा है कि डिमोक्रेसी ही मानव जाति के लिये सर्वोत्तम शासन व्यवस्था है | नेपाल के हिन्दू सम्राट ज्ञानेन्द्र साधारण नागरिक का जीवन जी रहे हैं | अरब देशों में मिश्र और ट्यूनेशिया सत्ता परिवर्तन देख ही चुके हैं | लीबिया , यमन और सीरिया में भी हलचल भरी लहरें पूरे उफान पर हैं | यह दूसरी बात है कि डिमोक्रेसी की अपनी अलग -अलग परिभाषायें हैं | चीन का एकल पार्टी तन्त्र डिमोक्रेसी को नये ढंग से परिभाषित कर रहा है | ईराक , अफगानिस्तान और पकिस्तान कई वर्षों से भीषण नर संहार के दौर से गुजर रहे हैं, पर डिमोक्रेसी इन सब देशों में भी किसी न किसी रूप में जमीन पर खड़ी है | भारत का जनतन्त्र तो कम से कम एशिया और अफ्रीका के महाद्वीपों में एक मिशाल के रूप में पेश किया जाता रहा है | भारत की सबसे महानतम सफलता यही मानी जा रही है कि वहां जनतन्त्र सुरक्षित है | चुनाव निष्पच्छ हैं और सेना राजनीति से कोई संम्बन्ध नहीं रखती | अब अगर अंग्रेजी भाषा में सर्वमान्य डिमोक्रेसी की परिभाषा हम हिन्दी में कहना चाहें तो कहेंगें कि जनतन्त्र जनता द्वारा , जनता के लिये  , किये जानें वाला जनता का शासन है | भाषाविद जनता को सीधे -साधे शब्दों में आम लोगों को समूह के रूप में लेते हैं | हाँ , चुनाव की प्रक्रिया आम और ख़ास के भेद नहीं करती | हर वयस्क नर -नारी यानि भारतीय सन्दर्भ में 18 वर्ष से ऊपर का नागरिक समाज अपनी इच्छानुसार स्वतन्त्र बोट  डालनें का अधिकारी है | अधिक पढ़ -लिख जानें से सीधी -सीधी बातें भी काफी उलझनों से भरी दिखायी पड़ती हैं | मुझे याद आता है कि एन. सी. सी.के एक कैम्प आयोजन के संम्बन्ध में मैनें विद्यार्थियों को तम्बुओं के रख -रखाव में कुछ स्वतन्त्रता देने की बात कही थी | मेरी बात पर कर्नल समरजीत सिंह जी नें मिलेट्री लहजे में एक चुटीला पर मर्यादित रिमार्क किया था | उन्होंने कहा था कि मैं स्वतन्त्रता को मनमौजीपन के साथ जोड़ रहा हूँ | जबकि सेना में जो कुछ भी है सभी अनुशासित और व्यवस्थित है | कर्नल साहब की बात में काफी वजन था | क्योंकि उनके सितारे काफी वजनदार थे | पर मैं सोचता हूँ कि ब्रम्हाण्ड की रचना के पीछे भी एक ऐसी व्यवस्था है जिसे थियरी में बांधा जा सकता है | पर अब तक जितनी थियारियाँ बाँधी गयी हैं वह सब उलट वासी ही दिखायी पड़ती हैं | क्या स्वतन्त्र इच्छा भी मात्र शब्दों का जोड़ -तोड़ ही है ? आखिर हमारी इच्छा की स्वतन्त्रता क्या हमारे आस -पास के परिवेश से सर्वथा अलग हटकर पनप सकती है | हमारे जन्म की परिस्थितियां , हमारे जातीय या क्षेत्रीय संम्बन्ध और हम पर जानें या अन्जानें लादे गये राष्ट्रीय हित  के आरोपित मूल्य सभी कुछ तो हमारी स्वतन्त्रता को सीमित करता है | अस्तित्ववादी विचारक यह दावा करते हैं कि मानव के पास जो सबसे बड़ी विरासत है वह है Free Will यानि स्वतन्त्र चयन की छूट | किन्हीं भी दो या दो से अधिक परिस्थितयों या जीवन पद्धतियों या आचरण प्रक्रियाओं में से किसी एक को चुनना व्यक्ति की अपनी स्वतन्त्र इच्छा पर निर्भर है | यहां तक तो बात ठीक लगती है | पर चुनाव की यह बहु मार्गीय धारायें हमें उसी परिवेश से मिलती हैं जहां हम पले -बढ़े हैं | साधनों का अभाव , निर्देशन की छूट और उत्कर्षीकरण की अप्राप्ति सभी कुछ तो हमारी स्वतन्त्र इच्छा शक्ति को बन्धक बना लेते हैं | पर इन दार्शनिक गहराइयों में उतर कर झांकनें पर घटना के धरातल पर जो घटित हुआ था वह अनकहा ही रह जायेगा | भाषा के शब्द अति अपव्यय का शिकार हो चुके हैं | ग्राम सभाओं से लेकर पंचायत विधान परिषदें और लोक सभायें सभी आम लोगों का प्रतिनिधि बननें का दावा करती है | तकनीकी अर्थों में उनका दावा  सच भी है पर चुनाव में जब सफल महान हो जाता है और असफल तिरष्कृत तो भाषायी दुर्पयोग मर्यादाओं की मांग करनें  लगता है | जीवन प्रत्येक क्षण परिवर्तित हो रहा है | यह सत्य इतिहास के दौर से आज तक अनन्त  बार दुहराया गया है  पर यह परिवर्तन विकास की इस प्रतिक्रिया से जुड़ा है कि जो जन्मा है अवश्य मरेगा , कि  जिसका आदि है उसका अन्त  अवश्य होगा | आज हम जिस युग में रह रहे हैं उसमें जन्म से लेकर मृत्यु तक होनें  वाला शारीरिक परिवर्तन और उम्र की दौर में घटित होनें  वाला मानसिक परिवर्तन उतनें  महत्वपूर्ण नहीं रहे हैं जितना कि टेक्नालॉजी से आनें  वाला परिवर्तन | टैक्नालाजी शब्द को उसके व्यापक अर्थों में देखना -परखना होगा | इसमें सूचना प्रद्योगकीय , आवागमन की सुलभता , शरीर संरचना का रहस्योद्घाटन , और लिंगीय विषमता का विलुप्तीकरण इन सबको शामिल करना होगा | इस सन्दर्भ में अगर हम चुनाव की निष्पच्छता को देखें तो चुने हुये प्रतिनिधि जनता के सच्चे प्रतिनिधि नहीं कहे जा सकते | गणितीय आंकड़ों  और सांख्यकीय के बल पर यह बात सिद्ध की जा सकती है पर ऐसा करना इस समय मुझे विषयान्तर  ही लगता है | मैं नहीं जानता कब और कैसे मंचीय भाषण की थोड़ी बहुत निपुणता मुझे हासिल हो गयी थी पर इस निपुणता नें मुझे चुनाव के छोटे -मोटे अखाड़ों में मुझे ले उतारा है | अध्यापन के सबसे प्रारंम्भिक दौर में भी मैं उ. प्र. के कासगंज जिले के अराजकीय विद्यालयों की यूनियन का प्रधान निर्वाचित हुआ था | बाद में भी पंजाब में आकर महाविद्यालीय संघ में निर्वाचन की कई कठिन घड़ियों से गुजरना पड़ा है | राजनीति में सफल होनें  की कहानियां अखबार के पन्नें भरती रहती हैं | आज कल फिल्म स्टार , क्रिकेट के खिलाड़ी  और अर्द्धनंगीं मॉडलें अखबारी पन्नों पर चमक -दमक बिखेरती रहती हैं | पर सामान्य स्तर  पर भी हममें से अधिकाँश अपनें -अपनें  पेशों में कठिन परिस्थितियों से जूझते हैं | वहां पायी जानें वाली सफलता भी न केवल आत्मविश्वास को बढ़ावा देती है बल्कि तैय्यारी  की वह जमीन भी रच देती है जिस पर खड़े होकर आप ऊंचीं जिम्मेदारियों को निभा सकते हैं | मुझे यह कहनें में अत्यन्त  संकोच हो रहा है कि मैं अपनें महाविद्यालय में पांच चुनावों में सर्वाधिक मतों से प्रेसीडेन्ट चुना गया हूँ और किसी भी बार मैनें 70  के आसपास के स्टाफ से कभी भी हाँथ जोड़कर वोट नहीं मांगा है | राज्य स्तर  पर भी कार्यकारणीं नें मुझे अयाचित सदस्यता प्रदान करनें का टिकाऊ गौरव प्रदान किया है | यह सब कहनें  का अर्थ केवल इस बात को उजागर करना है कि यद्यपि मैं चुनाव को किसी उम्मीदवार   की श्रेष्ठता या अश्रेष्ठता से जोड़कर नहीं देखता फिर भी चुनावी सफलता को अधिकारों के सन्दर्भ में नकारा नहीं जा सकता |  निष्पच्छ चुनाव करा देना किसी उम्मीदवार के चुनाव जीत लेनें  की अपेक्षा एक बहुत अधिक दुष्कर कार्य है | सच तो यह है कि पक्षधरता के द्वारा ही चुनाव जीता जा सकता है | निष्पच्छता किसी को सफल चुनाव अधिकारी बना सकती है पर चुनाव प्रत्याशी नहीं | यह सब कहते -कहते मेरे मन में मुख्य चुनाव आयुक्त शेषन की याद उभर आती है | अपनें जमानें में वे अखबारों के पन्नों पर अपनी निर्भीकता और निष्पच्छता के बल पर छाये रहते थे | राजनीति के बड़े -बड़े दिग्गज उनकी लपेट से बचकर निकलना चाहते थे | पर शेषन जी चुनाव के मैदान में कभी भी बाजी नहीं मार सके राष्ट्रपति पद के लिये एक क्षेत्रीय पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने अपना कद काफी छोटा कर लिया था और अब तो  शायद केरल में रोटरी क्लब के प्रधान के नाते छोटी -मोटी समाज सेवा में लगे हैं | इलेक्शन कमीशन में इतनें व्यक्तिगत आक्षेप और गरमागरम मुठभेड़ें होती रही हैं कि उनका विस्तृत विवरण बचकानी विस्मय गलियों से गुजरता दिखायी पड़ेगा | मुख्य चुनाव आयुक्त लिंगदोह भी काफी चर्चा का विषय रहे हैं और अन्ना हजारे की नागरिक समिति से भी उनका नाम जोड़ा जा चुका है | पर निष्पच्छ अन्ना हजारे भी संम्भवतः अभी तक चुनाव की प्रक्रिया से पूरी तरह परिचित नहीं हैं और अगर परिचित हैं तो पूर्व प्रधान मन्त्री मनमोहन सिंह की भांति अप्रत्यक्ष चुनाव का मार्ग ही चुननें की सोचेंगें | हाँ उन दिनों कुरेशी जी सातवें आसमान पर चढ़ा दिये  गये  थे | पश्चिमी बंगाल और तमिलनाडु दोनों ही जगह हुये  उलट फेर नें उनकी निष्पच्छता को और उजागर कर दिया था | पर कौन जानें किस घड़ी वख्त का बिगड़े मिजाज | चलिये छोड़िये भी इन हवाई उड़ानों को | तो बात हो रही थी छात्र यूनियन के पदाधिकारियों के चुनाव की | हरियाणा और हिमांचल प्रदेश बननें  से पहले पंजाब का विशाल प्रान्त सारी उच्च शिक्षा संस्थाओं को पंजाब विश्वविद्यालय से संम्बन्धित किये हुये  था | और आजादी के उन प्रारंम्भिक दशकों में महाविद्यालय की छात्र यूनियनें एक काफी संघर्ष भरा माहौल तैय्यार  कर देती थीं | उस समय तक विद्यार्थियों की सेन्ट्रल काउन्सिल जो हर क्लास की छात्र संख्या के अनुपात से चुनें गये प्रतिनिधियों से जुड़कर बनती  थी गतिशील नहीं हो पायी थी | छात्र नेताओं को चार पदों के लिये चुनाव लड़ना पड़ता था | ये पद थे प्रधान , उप -प्रधान , सचिव और सहसचिव | मैं जिस कालेज में अध्यापनरत था उसकी छात्र संख्या लगभग 2000  के आस -पास थी | कैश्योर्य पार कर कच्ची जवानी के द्वार पर खड़े इन तरुणों को अनुशासन में रखना एक चुनौती बनकर खड़ी थी | जब मैं विद्यालय में अध्यापक के नाते प्रविष्ट हुआ था तो छात्र संख्या 1000 -1200  के आसपास थी पर कुछ ही वर्षों में प्रबन्धकारणीं की संचालन क्षमता और प्राचार्य मनोहर लाल अग्रवाल की प्रशासनिक क्षमता नें छात्र संख्या को बढ़ाकर 2000  के आस -पास ला दिया था | इस बीच प्राचार्य मनोहर लाल  अग्रवाल को राजस्थान के जयपुर में स्थित अग्रवाल कालेज नें प्राचार्य पद संम्भालनें का न्योता दिया | उन्होंने यह निमन्त्रण स्वीकार कर लिया | अब रिक्त प्राचार्य पद के लिये कई जोड़ -तोड़ होनें लगे | दस पन्द्रह  वर्ष का अनुभव रखने वाले सभी प्राध्यापक प्रबन्धकारणीं के इस या उस सदस्य के घरों में चक्कर लगानें लगे | सरकारी सहायता प्राप्त अराजकीय महाविद्यालयों की प्रबन्धकारणीं समितियां गुण ,योग्यता और व्यक्तित्व को नकारकर अपनें चाटुकारों को प्राचार्य पद पर विभूषित करती हैं और उन्हें कठपुतलियों की भांति नचाती रहती हैं | चार -छै महीनें के लिये कोई सज्जन बाहर से भी आये पर स्टाफ की कुटिल चालों और शर्मनाक असहयोगिता के कारण उन्हें वापस जाना पड़ा | अन्ततः मैनेजमेन्ट के एक प्रभावशाली सदस्य से जुड़े हिन्दी भाषा के एक प्राध्यापक को प्राचार्य पद पर बिठा दिया गया | प्रत्येक सत्र के प्रारंम्भ में महाविद्यालय की गतिविधियों के संचालन के लिये प्राध्यापकों की कुछ कमेटियां बना दी जाती थीं | महाविद्यालय में आनें के एक -दो वर्ष बाद ही कालेज की वार्षिक पत्रिका के प्रकाशन और छात्र यूनियन के चुनाव सम्पादन के साथ कनवीनर के रूप में मेरा नाम जोड़ दिया गया था और कुछ प्राध्यापक बन्धु सदस्य थे पर मुख्य जिम्मेदारी कनवीनर को ही निभानी होती थी | मैं प्रभु को न जानें कितनें दशकों से धन्यवाद देता रहा हूँ और जीवन पर्यन्त देता रहूँगा क्योंकि उन्होंने मुझे राष्ट्र मण्डल खेलों के संयोजक कल्माणी जी की दुर्बुद्धि अपनानें से सदैव दूर रखा | छात्र यूनियन के चुनाव मेरे लिये इसलिये और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गये  थे क्योंकि उम्मीदवार के रूप में जो विद्यार्थी खड़े थे उनमें से दो तीन का संम्बन्ध भारत की दो राष्ट्रीय पार्टियों -इन्डियन नॅशनल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी से गहरायी से जुड़ा था | एक उम्मीदवार छात्र प्रधान एक कांग्रेस एम. एल. ए. का भतीजा था और उसके मुकाबले में खड़ा दूसरा उम्मीदवार जिले की भारतीय जनता पार्टी इकाई का चहेता था साथ ही उसे एक क्षेत्रीय दल का समर्थन भी प्राप्त था | सचिव पद के लिये जो दो उम्मीदवार थे उनके पीछे कांग्रेस पार्टी के ही दो धड़े आमनें -सामनें खड़े थे | एक धड़ा जाति के नाम पर वैश्य उम्मीदवार को प्रोत्साहन दे रहा था दूसरा सेकुलरीजम के नाम पर एक बड़े किसान से संम्बन्धित छात्र उम्मीदवार के पीछे खड़ा था | इलेक्शन चुनाव के एक दो दिन पहले ही कालेज परिसर से बाहर पास के एक अखाड़े में दो छात्र गुटों के बीच मार -पीट के अलावा गोली -बारी भी हुयी थी | कोई मरा नहीं था पर एक छात्र की टांग में गोली लगी थी और एक भगदड़ में अपनी कलाई तोड़ बैठा था | दोनों ही निजी अस्पतालों में अपना इलाज करवा रहे हे और दोनों ही गुट आमनें -सामनें की लड़ाई के लिये  पूरी तैय्यारी में लगे थे | सुनायी पड़  रहा था कि असलहा इकठ्ठा किया जा रहा है और बिहार और पूर्वी यू. पी. से कट्टे और तमन्चे खरीदे गये हैं | सच्चायी शायद यह न हो | पर सनसनी खेज खबरें पर लगाकर चारो ओर पैनिक क्रियेट कर रही थी | चुनाव का एक दिन रह गया | मैनें डिप्टी कमिश्नर , सुपरिंटेंडेन्ट पुलिस और सिटी मजिस्ट्रेट को हालात से अवगत करा दिया | पुलिस की एक कम्पनी ड्यूटी पर तैनात करने की गुजारिश की | व्यक्तिगत रूप से एस. पी. से मिला | एन. सी. सी. के अनुशासित छात्रों की एक तीस सदस्यीय टुकड़ी खड़ी की | बैलेट पेपर्स स्वयं अपनी देख -रेख में मेरठ के एक प्रेस से छपवाये | बैलेट बॉक्सेस को सील बन्द किया ,मोहरों की जांच की , विद्यार्थियों की आम सभा में भी चुनाव के नियम कई बार दोहराये और फिर प्रत्याशी उम्मीदवारों की कई मीटिंगों में वोट डालनें  की प्रक्रिया को डिमॉन्स्ट्रेशन की प्रक्रिया को कई बार दिखाया , दर्शाया | बैलिड और इन्बैलिड वोटों के छोटे से छोटे बिन्दुओं को लेकर काफी चर्चा की क्योंकि मेरा अनुभव मुझे बताता था कि इन बैलिड वोटों को लेकर कितनी ही बार गहरा संकट खड़ा हो जाता है |
                                                मैनें ऊपर बताया है कि चुनाव का केवल एक दिन रह गया था पर उसी रात कालेज परिसर में बनी प्राचार्य महोदय की कोठी पर दो छात्र एक नकली रिवाल्वर लेकर धमकी दे आये | रिवाल्वर नकली था इसका पता तो मुझे बाद में लगा | वह असली जैसा ही था और प्राचार्य महोदय नें उसे असली ही समझा | उन दो लड़कों नें प्राचार्य महोदय को धमकी दी और कहा कि वे तीन दिन की छुट्टी लेकर वहां से चले जांय क्योंकि वे निष्पच्छ नहीं हैं | यह सब बातें मुझे बाद में पता लगीं क्योंकि अगले दिन इलेक्शन की तैयारी के लिये कालेज में अनध्याय रखा गया था और जब मैं वहां पहुंचा तो वहां पाया कि मेरे वरिष्ठ साथी प्रो०  खैराती लाल बजाज कुर्सी पर बैठे हैं और घबराये से दिख रहे हैं | मेरे पहुंचते ही उन्होंने कहा कि प्रो० अवस्थी बंसल तो छुट्टी लेकर भग गया | गाज मेरे ऊपर आ गिरी उसनें अपनी किसी निकट संम्बन्धी की बीमारी का बहाना लेकर छुट्टी मंजूर करवा ली | अब सब तुम्हारे हाँथ में है | कालेज की इज्जत का सवाल है | मैनें उन्हें आश्वस्त किया और कहा कि चुनाव बिल्कुल निष्पच्छ होंगें | साथ ही उनसे प्रार्थना की कि वे किसी भी दबाव में न आवें और किसी भी छात्र को तब तक वोट डालनें की सिफारिश न करें जब तक कनवीनर के नाते मैं उसका क्लियरेन्स न कर दूँ | फिर मैनें उनसे एस. पी. साहब से एक बार मेरे साथ चलकर व्यक्तिगत रूप से मिलनें का आग्रह किया और इस बात पर वे राजी हो गये | कालेज के प्रोक्टर इकबाल सिंह को भी हमनें साथ जोड़ा | | एस. पी. असीम बनर्जी एक अत्यन्त संभ्रान्त तरुण अधिकारी थे | उन्होंने कहा कि वे कालेज प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगें और तीस पुलिस कर्मी जिनमें एक इन्स्पेक्टर , एक सब इन्स्पेक्टर , दो हवलदार  और 26 कानेस्टिबिल होंगें कालेज प्रशासन की मदद के लिये सुबह आठ बजे कालेज पहुँच जायेंगें और परिणाम घोषित होनें  तक वहीं रुकेंगें | एस. पी. आफिस से लौटते समय हम लोगों नें देखा कि शहर  के हर चौराहे और बड़े -बड़े बिजली के खंम्भों पर चुनावी पोस्टर लगे हुये थे | था तो कालेज का चुनाव पर उत्सव ऐसा लग रहा था जैसे विधानसभा का चुनाव हो रहा हो | दरअसल शहर के सभी प्रतिष्ठित घरों के लड़के इस महाविद्यालय की रिपुटेशन के कारण इसके विद्यार्थी बननें में गौरव मानते थे यही कारण है कि  सारा शहर इस चुनाव के रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहा था | कांग्रेस और बी. जे. पी.दोनों ही दफ्तरों में अटकलबाजियां लगायी जा रही थीं | कोई कहता था दयानन्द जीतेगा कोई कहता सांघी का बेटा हरनन्द जीतेगा | आरक्षित वर्ग का एक विद्यार्थी सह सचिव वर्ग के लिये  खड़ा था | उसकी सपोर्ट में तरुणों की एक काफी बड़ी टोली घर -घर प्रचार में लगी थी | रात्रि कटनी कठिन हो गयी | काफी घनी संध्या होनें  पर मैं घर लौट पाया था पर सारी कोशिश के बावजूद एक -आध टूटी -फूटी झपकी ही आयी |
                                 अर्ध निद्रा में देखता रहा आमनें -सामनें   की लड़ायी  का अस्पष्ट द्रश्य , तने हुये तमंचे , पिस्तौलें , बंधी और उठी हुयी मुठ्ठियाँ , नारे लगाते छात्र , जबरजस्ती परिसर में घुसने वाले बाहरी तत्वों की पुलिस द्वारा पिटायी | इलेक्शन की सुबह घूमना भी नहीं हो सका | शौचादि से निवृत्त हो उल्टा -सीधा कुछ मुंह में डाला हो तो डाला हो तो फिर चल पड़ा बिखरी अव्यवस्था के बीच व्यवस्था की तलाश में | अचानक न जानें भीतर के किसी कोनें से शक्ति का श्रोत फूट पड़ा | अरे यह तो चुनाव की एक छोटी सी प्रक्रिया है अपनी निष्पच्छता पर विश्वास रखो | कर्तव्य में यदि कुछ हानि भी उठानी पड़े तो उसके लिये सदैव प्रस्तुत रहो | इस चुनाव में प्राण जानें का तो कोई ख़तरा  है नहीं पर यदि ख़तरा होता भी तो क्या दुम दबा कर भाग जाना कोई गौरव की बात होती ? छिः छिः क्या भारत का नेतृत्व सदैव अहिंसा का दार्शनिक चोला ओढ़कर कायरता के हिण्डोले पर ही डोलेगा | हमारी सेनायें जब उड़ी जा पहुंचीं और गिलगिट और बाल्टिस्तान की ओर बढनें लगीं तो हमनें U . N. O. का रिज्यूलेशन मान लिया L. O. C. कायम हो गयी | नहीं नहीं कहीं रुकना नहीं है | अभियान को अन्तिम सफलता तक ले जाना है | मेरे मन मांग सृष्टि रचयिता से आग की ज्वलनशीलता , दुधारू कृपाण की चीर देनें वाली कटानें , प्राण लेवा संघर्ष का जुझारूपन | मैरे मन , याद कर निराला की पंक्तियाँ , जागो फिर एक बार | पश्चिम की उक्ति नहीं , गीता है, गीता है , योग्य जन जीता है || जीकर दिखाना है , जवां मर्दी का खेल खेलना है | मैदान छोड़कर भग जानें वाले कायरो इस कालेज पर कहीं सन्त कवि कबीर की यह पंक्ति लागू न हो जाय - " कविरा ई मुरदन को गाँव | "
                                             नौ बजे स्टाफ एकत्रित हुआ | लगभग आध घण्टे की ब्रीफिंग के बाद उन्हें अपनें -अपनें कमरों में पोलिंग आफीसर की ड्यूटी पर भेज दिया गया | तीन वरिष्ठतम प्राध्यापक आव्जर्वर बनाये गये | ओवर आल इन्चार्ज होनें के नाते मैं और मेरे दो सहायक प्राध्यापक बन्धु एक केन्द्रीय कक्ष में आफिस स्टाफ और चतुर्थ श्रेणीं के कुछ कर्मचारियों को लेकर कार्यरत हुये , दस बजनें में पांच मिनट रहनें पर घण्टी बजा दी गयी |अपनें -अपनें कमरों में कक्षाओं के आधार पर जो पोलिंग बूथ बनाये गये  थे वहां छात्रों की लंम्बी लाइनें दिखायी पड़नें लगीं | हर पूलिंग बूथ पर एक या दो सिपाही और एक या दो एन.सी.सी. कैडिट अनुशासन बनाये रखनें के लिये तैनात हो गये  | इन्स्पेक्टर राम दित्ता और सब इन्स्पेक्टर करतार सिंह पूरी वर्दी में रिवाल्वर के साथ चारो ओर सुपरवीजन में लग गये | दोनों हेड कानिस्टिबिल भी सतर्क होकर केन्द्रीय कक्ष के बाहर असामाजिक तत्वों की निगरानी के लिये  तैनात कर दिये  गये | ठीक 10  बजे वोट पड़ने प्रारंम्भ हुये | प्रधान पद का प्रत्याशी दयाराम बी. ए. फ़ाइनल वर्ष का छात्र था | वह लाइन में सबसे पहले खड़ा था | पोलिंग बूथ पर जाकर उसनें प्रो ०  अरोड़ा को बताया कि वह अपना Identity Card भूल आया है | प्रो ० अरोड़ा बायलॉजी के विभागाध्यक्ष थे और दयानन्द मानवकीय संकाय का छात्र था | प्रो ० अरोड़ा नें  उससे कहा कि वह कोई भी हो बिना कालेज के Identity Card के वोट नहीं डाल सकेगा | रोला मच गया , दयानन्द नें यह तमाशा जान बूझ कर खड़ा किया  था | मैनें स्टाफ को पहले ही ब्रीफ कर दिया था कि यदि कोई पचड़ा पड़े तो रोला करनें वाले छात्र को कानेस्टिबिल के साथ मेरे पास केन्द्रीय कक्ष में भेज दिया जाय | कनवीनर के नाते यदि मैं यह सुनिश्चित कर लेता हूँ कि वह उपद्रवी वास्तव में कालेज का छात्र है तो मैं उसका केस प्रिन्सिपल बजाज साहब के पास रिकमेन्ड कर दूंगां और वे उसे बोट डालनें की लिखित इजाजत दे देंगें | इस लिखित इजाजत के साथ कानेस्टिबिल वापस पोलिंग बूथ पर ले जायेगा और तब बूथ के इन्चार्ज प्रोफ़ेसर साहिबान उसे अपनें मताधिकार का प्रयोग करनें देंगें | पोलिंग दोपहर 2  बजे तक चलनी थी  और फिर सारे पोलिंग बॉक्सेस केन्द्रीय कक्ष में इकठ्ठे होनें थे | जहां पर मतों की गिनती की जानीं थी | पौने दो बजे तक सब ठीक -ठाक चलता रहा पर आख़िरी पन्द्रह मिनटों में एक बबेला खड़ा ही हो गया | प्रधान पद का दूसरा प्रत्याशी सांघी का हरनन्द छोटे कद का साइंस संकाय के फाइनल इयर का छात्र था | वह अपना वोट डालकर कालेज परिसर में अपनें समर्थकों से खड़ा कुछ बातें कर रहा था | अचानक कुछ विद्यार्थी उसे पकड़कर हांथों हाँथ उठाकर तेजी से कालेज के गेट से बाहर निकल गये और कालेज के बाहर खड़ी एक लाल मोटर गाड़ी में उसे डालकर गाड़ी भगा ले गये | चारो ओर हल्ला मच गया कि हरनन्द का अपहरण हो गया है | | उसकी जान खतरे में है | कि अपहरण कर्ता कुछ गुण्डें हैं | कि जिन्हें दयानन्द नें इस काम के लिये खरीदा था | मैनें प्रिन्सिपल बजाज को तुरन्त इन्पेक्टर राम दित्ता को बुलाकर चारो ओर नाकाबन्दी करनें का सुझाव दिया | पलक मारते इन्स्पेक्टर दित्ता नें वायरलेस से शहर के सारे पुलिस स्टेशन्स को नाकाबन्दी करनें के लिये सचेत कर दिया गया और बताया कि लाल रंग की गाड़ी जो शायद फिएट है उसे तुरन्त कब्जे में कर लिया जाय | पोलिंग का समय समाप्त हो रहा था |प्रो ० बजाज के हाँथ पैर किसी आनें  वाले भय से ढीले पड़  रहे थे | पर ऊपर से वे अपने को सम्भालनें की कोशिश कर रहे थे | मुझे विश्वास था कि अपहरण का यह काण्ड जान बूझकर रचा  गया है और शीघ्र ही असलियत का पता लग जायेगा | कोई भी नाटक सत्य को छिपा नहीं सकता | पर वह चुनाव ही क्या जिसमें कोई नाटक न हो | महाकवि शैक्सपियर तो जीवन को ही एक नाटक बताते हैं | एक द्रश्य समाप्त होता है ,यवनिका गिरती है , फिर उठती है और  नया द्रश्य सामनें आता है | कुछ ऐसा ही इस अपहरण के मामले में घटित हुआ | पन्द्रह मिनट में ही खबर मिल गयी कि गाड़ी पकड़ ली गयी है कि हरिनन्द सुरक्षित है कि उसके उठाने वाले उसे साथ लेकर खुद कालेज में आ रहे हैं कि वह अपनी इच्छा से उन सबके साथ गया था क्योंकि उसे अपनी जीत के लिये बैण्ड बाजे का इन्तजाम करना था | बजाज साहब के दम में दम आया पर मैं चिन्तित हो उठा अभी तो वोटों की गिनती भी शुरु नहीं हुयी और बैण्ड बाजे का इन्तजाम होनें लगा | नाटे हरिनन्द की यह शेखी छै फुटा दयानन्द कैसे बर्दाश्त करेगा | अभी और  कुछ घटना है इस पटाक्षेप के बाद नये द्रश्य की प्रतीक्षा करें |
( क्रमशः )  

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