Saturday, 24 February 2018

गतांक से आगे -

                                        गणितीय मीमांसा में गिनती का सबसे पहला अनुभाग एक से शुरू होता है | यह  ठीक है कि शून्य का महत्व सर्वोपरि है और यदि शून्य न होता तो शायद अन्तरिक्ष की हमारी उडानें भी संम्भव न हो पातीं | पर एक के महत्व से भी इन्कार नहीं किया जा सकता 11 , 21  , 51 ,101  , 1001 , और इसी प्रकार से आगे की संख्यायें अपनें में किसी अविश्लेषित पवित्रता का राज छिपाये हैं | दर्शन में भी  " एकम ब्रम्ह द्वितीयो नास्ति " की चर्चा शताधिक कलेवरों में संग्रहित की गयी है | आदि शंकर का अद्वैतवाद एक के महत्व को विश्वस्तर पर लहराने वाला एक चमत्कारी केतु है | पर छोड़िये दूर अतीत के घने कुहासे में छिपी इन दार्शनिक धारणाओं की पुनरावृत्ति | अब जो सबसे टटका और राजनीतिक सामर्थ्य से भरपूर सहारा एक को मिला है वह है पश्चिम बंगाल की मुख्य मन्त्री ममता बनर्जी से | शुक्रवार 20 मई 2011 को उन्होंने दोपहर एक बजकर एक मिनट पर मुख्य मन्त्री की शपथ ग्रहण की थी | पश्चिम बंगाल का सारा ज्योतिष ज्ञान इस बात में लगा रहा था कि शुभ मुहूर्त का प्रत्येक पल और क्षण अन्तरिक्ष टेक्नालॉजी का Precision(दुरुस्ती ) पा जाय | अब सभी अद्रश्य शक्तियां ममता जी को अपना आशीर्वाद देती रहेंगीं और  ' आमार बँगला , सोनार बंगला ' का स्वप्न सच्चा हो जायेगा पर मेरे अपनें जीवन में तो अधिकाँश स्वप्न सच होते हुये दिखायी नहीं पड़े | हो सकता है प्रकृति की अद्रश्य शक्तियां मुझे अहंकारी समझकर मुझे अपनें रास्ते पर अकेला छोड़ देती हों , चलो तो इकला ही चलना है | गुरुदेव रवीन्द्र भी तो इकला चलनें की राय दे गये हैं | " यदि तोर डाक सुने केऊ न आसे , तवे तुम इकला चलो ,इकला चलो रे | " अब वोट गणनां की बात लें तो मुझे ऐसा लगने लगा कि कहीं एक वोट से हार -जीत का चक्कर चुनाव की अब तक चल रही सुचारु प्रक्रिया को किसी गहरे झमेले में न डाल दे | दयानन्द और हरनन्द दोनों ही एकाध वोट के अन्तर से बराबर चलते दिखायी पड़ रहे थे | हर हार जीत और मतदान से निकला हर फैसला चुनाव विशारदों द्वारा रिसर्च का विषय बनाया जाता है पर मैं फैसला आनें से पहले ही मन ही मन रिसर्च करनें लगा | कालेज के मानविकीय , वाणिज्य और विज्ञान तीन संकाय थे | लगभग 800 विद्यार्थी मानविकीय संकाय में थे और तकरीबन इतनी ही संख्या विज्ञान संकाय में थी | वाणिज्य संकाय में लगभग 400 छात्र थे | लगभग 90 प्रतिशत पोलिंग हुयी थी | प्रधान पद के लिये दयानन्द मानविकीय संकाय से था और हरनन्द विज्ञान संकाय से | सचिव पद के लिये दोनों ही प्रतिद्वन्दी वाणिज्य संकाय से उम्मीदवार बने थे | एक सचिव उम्मीदवार के पीछे दयानन्द का हाँथ था और दूसरे के पीछे हरनन्द का | शहर के आस -पास गाँव के छात्र अपनें अपनें गाँव के नजदीकीपन पर मताधिकार का प्रयोग करते रहते थे | दयानन्द का परिवार संम्भवतः आर्य समाजी था और हरनन्द का सनातन धर्मी | मानविकीय के सारे छात्र दयानन्द के पीछे खड़े थे | और विज्ञान संकाय के सारे छात्र हरनन्द के पीछे | दोनों  संकाय में  बराबरी की छात्र संख्या होनें के कारण मुकाबला कांटे का था अब सचिव उम्मीदवारों में से वाणिज्य संकाय के वोट जो अधिक खींच ले वही प्रधान पद के उम्मीदवार को भी जिता सकता था | किसी भी चुनाव का फैसला जब मतों के काफी अन्तर से होता है तब झगड़े की गुंजाइश न के बराबर होती है पर जब फैसला 19 -20 से हो तो फैसले के अन्तिम क्षण तक उम्मीदवार प्रत्याशी और उनके समर्थको की साँसे रुकी रहती हैं | अब 13 मई को केरल में घोषित चुनाव नतीजों पर एक नजर डालनें से कांटे की चुनावी टक्कर का सस्पेन्स पूरी तीव्रता का साथ महसूस किया जा सकता है | श्री अच्युतानन्द  जो केरल के वामपन्थी मोर्चे का नेतृत्व संम्भाले  थे बाजी मारते -मारते रह गये | श्री चैंडी  जो डैमोक्रेटिक फ्रन्ट का मोर्चा संम्भाले थे दो एम. एल .ए.  की बढ़त पा गये | इन दोनों जगहों पर भी अन्तिम रिजल्ट घोषित होनें तक कांटे का मुकाबला चलता रहा | अब श्री चैंडी मुख्यमंत्री हैं  और अच्युतानन्दन विपक्ष के नेता किसे जनता का सच्चा प्रतिनिधि कहा जाय ? 21 और 19 का फैसला |  सामान्य आदमी तो बस इतना ही जानता है कि पांच वर्ष तक उसका भाग्य 21 के हाँथ में है | चुनाव सुधार की लंम्बी -लंम्बी बातें होती रहती हैं | पर अभी तक कोई प्रभावी चुनाव सुधार सामनें देखनें में नहीं आ रहा है | अब अगर 100 वोटों में से केवल 40 पड़े और 21 पानें वाला 100 का प्रतिनिधि बन जाय तब भी मौजूदा चुनाव विधान इसे उचित ठहराता है | यह तो शुक्र है कि अप्रैल- मई 2011 में हुये चार राज्यों के चुनाव में मतदान का प्रतिशत काफी ऊंचा रहा | इस ऊँचे प्रतिशत से ऐसी आशा बनती है कि आगे अन्य राज्यों और लोक सभा के चुनाव में भी लोगों का एक बड़ा प्रतिशत जनतन्त्र की प्रशासन प्रणाली को और अधिक सशक्त बनायेगा | पर महाविद्यालय के  जिस छात्र चुनाव की हम चर्चा कर रहे हैं उसका मतदान प्रतिशत तो 90 से ऊपर था और इसलिये जो भी चुना जायेगा वह अपेक्षाकृत अधिक सच्चे अर्थों में विद्यार्थियों का प्रतिनिधि होगा | महाविद्यालय के प्राचार्य और प्राध्यापक शायद प्रबन्ध कारणी  से भी उतनें नहीं डरते जितना विद्यार्थी नेताओं की घुड़कियों से | कौन जानें किस प्रतिष्ठित प्रोफ़ेसर की कक्षा का वाइकाट कर दिया जाय | कौन जानें सरकारी बिजली कट  को प्राचार्य की लापरवाही मानकर छात्र पार्क में पेड़ों के नीचे बैठकर रागनियां गानें लग जांय ? कौन जानें इन छात्र प्रधान की फीस माफ़ करवाने वाली सूची को पूरी तरीके से स्वीकार न करनें पर प्राचार्य का घेराव कर लिया जाय | राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियां भी इन सब तमाशों का स्थानीय नेताओं द्वारा आयोजन करती रहती हैं और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों का तो कहना ही क्या ? मुख्यमन्त्री दिवंगत बंशीलाल जी नें अपनें दबंग व्यक्तित्व के प्रचार के लिये कुछ अप्रजातान्त्रिक कदम भी भले ही उठाये हों पर उनका कालेज के सीधे चुनाव न करवानें का कदम मेरे मन में सदैव सराहना पाता रहा है | उन्होंने सेन्ट्रल एसोसिएशन बनवाकर उस एसोसिएशन द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से छात्र प्रधान और छात्र सचिव के चुनाव की सराहनीय व्यवस्था कायम की | हर क्लास से संख्या के आधार पर एक दो या तीन प्रतिनिधि चुनें जांय यह क्लासेज़ हर संकाय से अपनें -अपनें प्रतिनिधि चुनकर भेंजें | जितना बड़ा कालेज होगा उसके मुताबिक़ चयनित क्लास प्रतिनिधियों की संख्या होगी | यह सभी क्लास रिप्रजेन्टेटिव एक एसोसिएशन बनायेंगें | जिसे सेन्ट्रल एसोसिएशन कहा जायेगा | इस एसोसिएशन में हर क्लास का टापर मेधावी छात्र प्राचार्य के द्वारा मनोनीत होगा | इसी प्रकार इस एसोसिएशन में स्पोर्ट्स के चमकदार छात्र सितारे , एन. सी. सी.सीनियर मोस्ट कैडिट और एन. एस. एस. का प्रशंसा प्राप्त स्वयं सेवक भी मनोनीत होगा | मंचीय कलाओं में जैसे भाषण ,वाद -विवाद , क्विज , नाटक , एकल अभिनय , संगीत आदि से भी नैसर्गिक प्रतिभा संम्पन्न दो तीन छात्र सेन्ट्रल एसोसिएशन में मनोनीत होंगें | इस प्रकार बननें वाली छात्रों की सेन्ट्रल एसोसिएशन सच्चे अर्थों में महाविद्यालय के छात्रों की प्रतिनिधि झलक पेश करेगी | इस एसोसिएशन में प्रतिभा , क्रीड़ा , शौर्य , स्वयं सेवा , अभिनय क्षमता , और सीधे चुनाव द्वारा चयनित छात्र प्रतिनिधि सभी शामिल होंगें | यह सेन्ट्रल काउन्सिल फिर अपनें में से एक छात्र प्रधान और एक छात्र सचिव का या तो एक मत से या मतदान द्वारा चयन करेगी | महाविद्यालय का प्राचार्य यदि चाहे तो उप -प्रधान और सह -सचिव के लिये भी चुनाव की मंजूरी दे सकता है | हरियाणा के निर्माता माने जाने वाले चौधरी वंशी लाल की इस छात्र चुनावी व्यवस्था नें महाविद्यालय के प्राचार्यों के ऊपर लदा एक बहुत बड़ा बोझा उतार फेंका | सीधे चुनाव से चुना हुआ छात्र प्रधान रिजल्ट आते ही कालेज का छोटा -मोटा बादशाह बन जाता था उसकी घुड़की प्रिन्सिपल के लिये एक चुनौती बन कर खड़ी हो जाती थी | सेन्ट्रल एसोसिएशन के द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव प्रधान और सचिव पद पर अच्छे और पढ़ायी में निरत विद्यार्थियों को ही आगे ला सकता था क्योंकि मनोनीत छात्र महाविद्यालय की  बहुमुखी प्रगति के प्रतीक होते थे | पर मुझे जिस इलेक्शन मुहिम से जूझना पड़ा वह चौधरी वंशी लाल के मुख्य मन्त्रित्वकाल के पहले का समय था | उस समय प्रत्यक्ष चुनाव में अधिकतर पहलवान या पहलवान समर्थक छात्र ही चुनावी मैदान में उतरते थे | उनके लिये कालेज भी अखाड़ा होता था | वे आतंक के बल पर शासन करते थे | भारतीय राजनीति के कई तथाकथित नेता जो मुक्केबाजी और हिंसक गतिविधियों के लिये चर्चित होते थे उनके आदर्श होते थे | 6 फुट पांच इंच वाला दयानन्द 90 किलोग्राम वजन में बॉक्सिंग चैंपियन बनता रहा था | हरिनन्द कद में नाटा अवश्य था पर वेट लिफ्टिंग में अपनें वजन वर्ग में वह भी चैम्पियन रह चुका था , उसके बड़े भाई भी कई अखाड़ों में कुश्ती जीतकर इनाम पा चुके थे | अगर पुरानें जमानें की आमनें सामनें की  लड़ाई होती और दोनों की फौजें एक दूसरे पर हल्ला बोलतीं तो फैसला बहुत कुछ अनिश्चित ही रहता | चुनाव से पहले गोलियों में एक प्रत्याशी के सपोर्टर की टांग छिद चुकी थी | तो दूसरे के सपोर्टर की कुहनी टूट चुकी थी | जो गोलियां न कर सकीं वह कहीं बैण्ड बाजे न कर दें | आजादी के बाद भारतवर्ष में न जानें कितनें सांम्प्रदायिक दंगे हो चुके हैं और कई दंगों में एक कारण यह भी था कि अल्पसंख्यक प्रार्थना स्थलों से नाचता -गाता बैण्ड का कारवाँ गुजर रहा था | अब हरनन्द नें जब  स्वीकार किया कि जो लोग उसे उठाकर ले गये वह उसके ही सपोर्टर थे और खुशी का इजहार करनें के लिये उसे हांथों- हाँथ उठाकर शहर के शिवबैंड के मालिक की दुकान पर ले गए थे उन्होंने बताया कि हरनन्द के मुकाबले में चुनाव लड़नें वाला दयानन्द पहले ही हनुमान बैण्ड को बयाना दे आया है इसलिये उन्होंने हनुमान बैण्ड से भी बड़े शिव बैण्ड को जसन मनानें के लिये राजी कर लिया है | अब कालेज प्रशासन और पुलिस क्या करती ? डांट फटकार लगाकर हरनन्द को छूट मिल गयी और उससे कहा गया कि आख़िरी निर्णय न आनें तक उससे समर्थक न तो कोई नाराबाजी  करेंगें | और न ही और किसी किस्म की शरारत या छेड़खानी |
चुनाव के संम्बन्ध में मैं कनवीनर का काम तो अवश्य कर रहा था और उसमें पूरी जिम्मेदारी से संलिप्त था पर साहित्य प्रेमी होनें के नाते मेरे मन में निरन्तर कुछ पुलक लहरियां उठती रहती थीं | मैनें मन में सोचा कि हनुमान बैण्ड के मुकाबले शिव बैण्ड को खड़ा किया गया | आखिरकार गोसाईं तुलसीदास नें सैकड़ों वर्ष पूर्व जो कहा था वह आज के सन्दर्भ में भी पूरी तरह चरितार्थ है | पूज्य गोसाईं जी नें पवनपुत्र को " शंकर सुवन ,केशरी नन्दन " कहकर पूजित किया है | दयानन्द और हरनन्द ने हनुमान और शंकर को आमनें सामनें खड़ा कर दिया | कितनें नासमझ हैं ये कालेज के छोरे ? भला कभी शिव और हनुमान एक दूसरे के सामनें खड़े हो सकते हैं ? एक को तो हटना ही पडेगा ? कौन हटेगा ? जय बजरंगबली या जय धूर्जटी |
( क्रमशः ) 

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