Friday 5 January 2018

( गतांक  से आगे  )
                                           बालक ही रहा हूँगा जब बापू की पुकार पर भारत छोड़ो आन्दोलन क्विट इण्डिया अपनी ऊँचाइयाँ छू रहा था | नुक्कड़ों , चौराहों ,बाजारों और पेंड़ के नीचे बने चबूतरों पर अहिंसा के दीवाने स्वतन्त्रता सेनानी गिरफ्तारियाँ दे रहे थे | किसी केन्द्रीय स्थल पर पहले से ही घोषित प्रोग्राम के तहत स्वतन्त्रता प्रेमी भीड़ इकठ्ठा हो जाती थी  और फिर गांधी दर्शन से प्रेरित शुभ्र खद्दर से सज्जित कोई तरुण ब्रिटिश सरकार की अमानवीय नीतियों पर प्रकाश डालता था | विदेशी सरकार की गुलाम पुलिस वहां आ पहुँचती थी और जनता द्वारा  पुष्प हारों से अलंकृत वह आदर्श प्रेरित नवयुवक गिरफ्तार कर लिया जाता था | महात्मा गांधी की जय ,स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है , अत्याचारी अंग्रेजो भारत छोड़ो , आदि नारे वायु की छाती विदीर्ण कर चारो ओर गूँज जाते थे | स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात हम शिक्षित नवयुवकों की यह धारणा बन गयी थी कि शासकों की धींगा मस्ती के लिये अब स्वतन्त्र देश की पुलिस का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा | कहीं -कहीं पुलिस अत्याचारों की ख़बरें पढ़कर मन विक्षुब्ध हो उठता था | | पर सोचता था शायद यह कुछ मति भ्रमित पुलिस कर्मियों का हाँथ हो | प्रशासन चलाने वाले उच्चपदाशीन लोग ऐसी छोटी सोच नहीं रखते होंगें | मेरी यह धारणा कितनी भ्रामक थी इसका पूरा पता मुझे हरियाणा अराजकीय महाविद्यालयों के संशोधित वेतनमान के राजकीय आन्दोलन के समय हो पाया | जनतान्त्रिक परम्परा में अपनी औचित्यपूर्ण मांग उठाने का हक़ सभी को होता है | आश्चर्य यह है कि केन्द्र की नीतियां राज्य की सरकारें स्वीकार करने से इस आधार पर इन्कार करती हैं कि उनके पास वित्तीय साधन नहीं हैं | वैसे प्रोपोगण्डा के लिये कई राज्य सरकारें अपनी प्रदेश की समृद्धता का लम्बा -चौड़ा बखान करती रहती हैं | कुछ ऐसा ही हरियाणा राज्य की शैक्षिक नीतियों के सम्बन्ध में सत्तर -अस्सी के दशक में हो  रहा था | चौधरी वंशी लाल जातीय , क्षेत्रीय और तथाकथित धार्मिक समीकरणों के कारण कांग्रेस के एक सशक्त नेता के रूप में उभर आये थे | कई बार उनके आस -पास के लोग उन्हें द्रढ़ता के नाम पर शक्ति का अनावश्यक प्रदर्शन करने पर बाध्य कर देते थे | मैं समझता हूँ कि हेकड़ी और द्रढ़ता ये दो अलग -अलग बाते हैं | दंम्भ  को आत्मविश्वास नहीं कहा जा सकता | शान्ति पूर्ण प्रदर्शन को चुनौती के रूप में स्वीकार करना प्रशासन में दूरदर्शिता की कमी दिखाता है | विद्यार्थियों के समर्थन से हरियाणा राज्य के अराजकीय महाविद्यालय हड़ताल पर चले गये | सम्पूर्ण प्रदेश में पन्चानबे प्रतिशत से ऊपर अराजकीय महाविद्यालयों में पढ़ाई बन्द हो गयी | विद्यार्थी सडकों पर यू ० जी ० सी ० के द्वारा संशोधित वेतनमानों को लागू करने के लिये सरकार के खिलाफ नारे लगाने लगे | प्राध्यापक अपने -अपने महाविद्यालयों के परिसरों  में एकत्र  होते और गांधी जी के चित्र पर पुष्प अर्पित करते तथा प्रार्थना करते कि शासकों को सुबुद्धि दें कि वे शिक्षा के महत्व को समझें | और फिर संशोधित वेतनमानों का अस्सी प्रतिशत तो केन्द्र सरकार को ही देना था | बीस प्रतिशत का भार  जिसे प्रदेश सरकार नें राजकीय महाविद्यालयों के लिये स्वीकार कर लिया था | अराजकीय महाविद्यालयों के लिये भी स्वीकार करना था | इन संशोधित वेतनमानों को पाकर भी प्राध्यापक वर्ग जीनें की मूलभूत सुविधायें ही जुटा सकता था और इनमें कुछ भी ऐसा नहीं था जो उसे उसकी शैक्षिक योग्यता के आधार पर समाज में स्थापित कर सके फिर भी प्राध्यापक वर्ग वेतनमानों के केन्द्रीय ढाँचे को सर्वथा स्वीकार करते हुये राज्य सरकार से उसको लागू करने की प्रार्थना करता रहा था | संघीय संविधान राज्यों को बाध्य नहीं कर सकता केवल दिशा निर्देश ही कर सकता है | संम्पन्न कहे जाने वाले हरियाणा राज्य के प्राध्यापक हड़ताल के लिये विवश हो गये थे | अगले कदम के रूप में यह तय किया गया कि जन सभायें आयोजित की जांयें और उनमें सामान्य जनता को अपनी बात बताकर उनसे सहानुभूति और समर्थन की मांग की जाये | वरिष्ठ प्राध्यापकों को भिन्न -भिन्न नगरों तथा शिक्षा केन्द्रों पर जनसभाओं को संम्बोधित करनें का कार्य सौंपा गया | मुझे भी चरखी दादरी ,पानीपत ,सोनीपत और करनाल में कई सभाओं में अपनी बात कहनी पड़ी | हरियाणा प्रदेश का सामन्य जन प्राध्यापक वर्ग की दयनीय स्थिति को समझकर उसके समर्थन में जुट पड़ा | वंशी लाल की सरकार को लगा कि उसका जनाधार खिसक रहा है | इसी बीच रोहतक की अनाजमण्डी में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया जिसमें रोहतक से   निर्वाचित भारतीय जनता पार्टी के विधायक और प्रदेश के सबसे वरिष्ठ नेता नें प्राध्यापक आन्दोलन को अपनें समर्थन देनें की बात कही | प्राध्यापकों की ओर से मुझे इस सभा में मुख्यतम वक्ता होने की जिम्मेवारी सौंपी गयी | जिस दिन शाम को सभा होने वाली थी उसके पहले वाली रात को लगभग दस बजे रोहतक सिटी थाना से सब इन्सपेक्टर महेश कुमार दो कानेष्टिबिलों के साथ मेरे किराये के मकान की तलाश करते हुये आ पहुँचे | चूंकि मैं ऊपर के पोर्शन में रह रहा था इसलिये उन्होंने मुझे यह सन्देशा भिजवाया कि प्रदेश के मुख्य मन्त्री जी मुझे कुछ दिनों के लिये मेहमान बनाना चाहते हैं | भारतीय दण्ड संहिता से मैं थोड़ा बहुत परिचित हूँ और मैं जानता था कि मुझे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता पर क़ानून और शान्ति बनाये रखनें के नाम पर सरकारें डिटेन करने का हथकण्डा तो अपनाती ही हैं | इसी समय न जानें कहाँ से सूचना पाकर डा ० मंगलसेन अपने समर्थकों के साथ वहां आ पहुंचे | मैं नीचे उतरा और सामने रहने वाले एडवोकेट मित्रसेन जैन के यहां भीड़ इकट्ठी हो गयी | मैनें इन्स्पेक्टर महेश को स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे  मुझे कल  होने वाली जनसभा के बाद जहां चाहें मेहमान बनाकर ले जायें पर सभा में अपनी बात कहनें तक तो मैं स्वतन्त्र भारत का स्वतन्त्र नागरिक ही रहूँगा | महेश जी एक अच्छे अफसर थे और वे इस बात से सहमत हो गये
                    अगले दिन अनाजमण्डी में भारी भीड़ उमड़ पड़ी मुझे डिटेन करने की नाकाम योजना की खबर नें लोगों को और अधिक उत्सुक कर सभा में आनें के लिये प्रेरित किया | डा ० मंगल सिंह जी प्रासाइड कर रहे थे और मुझे प्राध्यापकों के प्रतिनिधि के रूप में माइक पर आनें के लिये आमन्त्रित किया गया | अत्याचार और अन्याय का प्रतिरोध करने के लिये मेरी बाणीं में माँ सरस्वती नें न जानें कितनें रसों को घोल दिया | कहीं सम कहीं विषम , कहीं सौम्य कहीं रौद्र , कहीं करुण और  कहीं उग्र ,    यह सब मेरी बातों में झलके होंगें तभी तो अनेक बार करतल ध्वनियों से  आस -पास का वातावरण गूंजता रहा | उस दिन जितना भाव उद्वेलित होकर मैं बोला वैसा अवसर अब तक मेरे जीवन में दोबारा नहीं आया है | डा ० साहब उठे उन्होंने मुझे गले लगा लिया और उन्होंने घोषणा की कि प्रदेश की जनता मन प्राण से जुटेगी और अहंकारी मुख्य मन्त्री को अपना सिर नीचा ही करना होगा | इन्सपेक्टर महेश अपनी जीप और दलबल के साथ उपस्थित थे और मैं जान गया कि मेरी नागरिक स्वतन्त्रता अब कुछ दिनों के लिये रोहतक के केन्द्रीय जेल की दीवारों में घिर जायेगी | गाजे बाजे के साथ जीप में बैठाकर मुझे जेल लाया गया और बी ० कैटागरी का डिटेनी बनाया गया | रात के पहले पहर में मेरे कुछ अन्य साथी सोनीपत और पानीपत से आ गये और फिर तो गिरफ्तारियों का तांता लग गया | प्रदेश के सैकड़ों प्राध्यापक स्वेच्छा से थानों में जाकर अपने को जेल में रखनें का दबाव देने लगे | | प्रशासन चिन्ता की लहरों में डूबने लगा | क्या किया जाय ? हजारों विद्यार्थी सडकों पर प्रदेश सरकार की धींगा -मुस्ती के खिलाफ नारे लगा रहे थे  प्राध्यापकों की पुरजोशी के लिये न जानें कितने फल ,मिठाइयां और खाने -पीने का सामान जेल में पहुँच रहा था | अन्ततः मुख्य मन्त्री जी नें प्राध्यापकों की मांगों के औचित्य को स्वीकार किया और हम सब ससम्मान अपनें घरों में वापस आ गये हममें से कइयों को ऐसा हीरोइक वेलकम मिला जैसा युद्ध विजेताओं को मिलता है | हो सकता है पाठकों को इसमें मेरे अहंकार की झलक मिले पर मैं निश्च्छल भाव से आत्मा की पूरी निष्ठा से यह बात कहना चाहता हूँ कि यदि इस आन्दोलन में मेरी जीविका जाती या मेरे जीवन का दुखद अन्त होता तो मैं इसके लिये पूरे मन से प्रस्तुत था | हरियाणा के जन समुदाय नें मेरे जैसे साधारण प्राध्यापक के लिये जो समर्थन जुटाया उसके लिये मैं उनका जीवन भर आभारी रहूँगा |
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                             गृहस्थी की गाड़ी फिर से अपनी राह पर चल पड़ी | त्वरित बैलगाड़ी के तरीके से नहीं वरन भगवती चरण वर्मा की भैंसागाड़ी की भांति , " चू चरर मरर -चू चरर मरर जा रही चली भैंसा गाड़ी | " पर हमारी गृहस्थी की चाल तेजी से बढ़ते टेक्नालॉजी की चाल को भला कैसे रोक सकती थी | रेडियो ब्लैक एण्ड व्हाइट टी ० वी ० में बदला फिर कलर्ड टी ० वी ० में फिर प्लाज्मा टी ० वी ० में और फिर...   अरे नये नामों को मेरा दिमाग अब याद नहीं रख पाता | लम्ब्रैटा के लिये महीनों लम्बी प्रतीक्षा पंक्ति घटने लगी | न जानें कितने शक्तिशाली तुरंग भारत की सडकों में दौड़ने लगे | प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप का चेतक अपनी समाधि से जीवित होकर उत्तर भारत का चहेता बन गया | दक्षिण में महाराष्ट्रीय तकनीक पुणें के अतीत गौरव के साथ सजीव हो उठी | और फिर चौपहिये वाहनों की भरमार | मरुत पुत्र मारुती में अवतरित हो गये और कहते हैं कि अब टाटा की टटिया लखटकिया बनकर विश्व का मन मोहने जा रही है | खुले मकान घेरे बन्द किलों में बदल गये | धरती पर सम्पूर्ण प्रसार का अवसर न पाकर मानव जाति आसमान की ओर देखनें लगी | कबूतरों के दर्बे जैसी शताधिक मंजिलें आधुनिक भवन निर्माण तकनीक का बेजोड़ नमूना मानी जानें लगीं | पर इन सबके बीच मध्य वर्गीय जीवन परम्परा में जीने वाला निचले स्तर का भारतीय समाज केंचुए जैसा आगे पीछे चलने की चेष्टा में अपनें स्थान पर ही हिलता -डुलता दिखाई पड़ा | सोच के धरातल पर मेरी पत्नी ,मेरे नजदीकी रिश्तेदारों के घरों की वृद्ध और प्रौढ़ नारियां तथा मेरे परिचित परिवारों की रमणियाँ अभी तक परम्परा की भूल भुलैयों और  व्यूहों से निकल कर   स्वतन्त्र चिन्तन ,समता और हीन भावना से मुक्ति का मार्ग खोजनें का प्रयास करती दिखायी नहीं पड़ती थीं | यदाकदा मेरे सहकर्मियों में किसी उच्च शिक्षित लड़की द्वारा स्वतन्त्र वरण और जाति मुक्त प्रेम सम्बन्ध का किस्सा सुननें में आता था पर हरियाणा का बहुसंख्यक समाज अभी भी गोत्र ,शासन ,ग्राम और अंचल की रूढ़ियों से पूरी तरह जकड़ा हुआ था | हिन्दुओं में हर पंथ अपनें को दूसरे पन्थों से श्रेष्ठ समझता था और संम्भवतः अब भी समझता है | जातियों की श्रेष्ठता के विवादों से महाविद्यालय के प्राध्यापक कक्षों में न जाने कितने तनातनी के मामले देखने में आते थे | पर इन सबके बीच में भारतीय संविधान की धर्म निरपेक्षता या अधिक ठीक शब्दों में कहें तो पंथ निरपेक्षता की भावना भी कुछ प्रबुद्ध परिवारों में झलक दिखलाने लगी थी | ऐसा ही एक किस्सा मेरी बेटी अपर्णा की सहेली सुनैना के जीवन के साथ जुड़ने जा रहा था |जैसा कि मैं बता चुका हूँ अपर्णा 18 की हो चुकी थी और उसकी सबसे निकटतम  सहेली सुनैना लगभग बीस की रही होगी | सुनैना के भाई अपनें नाम के आगे शर्मा लिखा करते थे | और सामान्यतः यह माना जाता है कि शर्मा लोग ब्राम्हण समुदाय से हैं और इसलिये हम उन्हें ब्राम्हण ही मानते थे वैसे ब्राम्हण होना मेरी सोच में कोई गौरव की बात नहीं है | क्योंकि जन्म को केवल मैं एक आकस्मिक घटना के रूप में ही देखता हूँ पर सामाजिक सम्बन्धों में परिवारजनों और नजदीकी लोगों की कट्टरतायें कभी -कभी अत्यन्त दारुण द्रश्य देखनें के लिये उपस्थित कर देती हैं | सुनैना के जीवन में भी मनोज नाम के एक नवयुवक नें प्रवेश किया | उनका परिचय सम्भवतः 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में होने वाली एन ० सी ० सी ० की परेड में हुआ | मनोज मेरठ कालेज से आया हुआ बी ० एस ० सी ० तृतीय वर्ष का छात्र था | और सुनैना इन्दिरा चक्रवर्ती राजकीय महाविद्यालय रोहतक से  बी ० ए ० द्वितीय   वर्ष की छात्रा | कब और कैसे दोनों एक दूसरे के प्रति आकृष्ट हुये और नजदीक आते चले गये यह मैं नहीं जानता पर मैं यह अवश्य जानता हूँ कि भूगोल विभाग के अध्यक्ष चाँद राम यादव के यहां मनोज का आना -जाना शुरू हो गया | गौड़ कालेज के भूगोल विभाग के अध्यक्ष और वरिष्ठतम प्राध्यापक चाँद राम यादव अपनी सूझ -बूझ कृषि सम्बन्धी विशेष जानकारी और एन  ०  सी ० सी ० आफीसर होनें के नाते काफी जाने -माने जाते थे  | उनकी बच्चियां अपने नाम के आगे यादव न लगाकर अहीर लिखा करती थीं | उन्हें अहीर जाति का सदस्य होने की गर्व था | वे अपनी परम्परा महाभारत के दिव्य पुरुष 16 कला सम्पन्न द्वारिकाधीश श्री कृष्ण के साथ जोड़ते थे | एकाध वर्ष तक  सुनैना और मनोज का प्रेम सम्बन्ध   प्रकाश में नहीं आया | पर मनोज नें जब फिजिक्स में एम  ० एस ० सी ० करने के लिये महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी को चुना तब उनका प्रेम प्रसंग चर्चा का विषय बननें लगा | सुनैना बी ० ए ० के अन्तिम वर्ष में परीक्षा देने जा रही थी | कभी -कभी मैनें उसे अपनी बेटी अपर्णा के साथ अपर्णा के कालेज परिसर में देखा था | यहां मैं यह बता दूँ कि अपर्णा एक अराजकीय कालेज की छात्रा थी जबकि सुनैना राजकीय महाविद्यालय में थी | वह कभी -कभी अपर्णा से मिलनें अपर्णा के शहर के मध्य में स्थित कालेज में चली आती थी | सुनैना स्कूटर चला लेती थी और वह आधुनिक लड़कियों जैसा पहनावा अपना चुकी थी | पांच फ़ीट छै इंच का उसका लम्बा छरहरा गोरा शरीर और आधुनिक शैली में कटे हुये उसके काले झूमते बाल नवयुवकों को अपनी ओर खींच लेते थे | पर एन  ० सी ० सी ० में सार्जेन्ट का पद सम्भालनें वाली सुनैना सबल व्यक्तित्व की धनी थी और मनचले उससे थोड़ा बहुत भयभीत भी रहते थे | बी ० ए ० तृतीय वर्ष के अन्तिम प्रश्न-पत्र  की परीक्षा देने के बाद एक दिन वह मेरी बेटी अपर्णा के साथ घर में आयी | मैं उस समय सम्भवतः परीक्षाओं के यूनिवर्सिटी निरीक्षक होने के नाते कहीं बाहर था | सुनैना काफी देर तक अपर्णा की माँ के पास बैठी रही | बाद में अपर्णा द्वार तक उसे छोड़ने गयी | घर में जाकर सुनैना नें रात का खाना खाया और लगभग 10 बजे अपने सोने के कमरे में चली गयी | सुबह उसके कमरे का दरवाजा अधखुली हालत में पाया गया पर सुनैना का कहीं पता न था | रात्रि  के अन्धकार में वह कहाँ और कैसे चली गयी यह एक रहस्य का विषय बन गया क्योंकि सुनैना अब एक मेजर बन चुकी थी इसलिये किसी नाबालिक को भगाने की रिपोर्ट करना शायद उसके माँ -बाप नें उचित नहीं समझा पर उन्होंने भीतर ही भीतर यह पता लगा लिया कि सुनैना कब कहाँ और किससे मिलती थी और भग जाने वाली रात को पहले दिन में प्रश्न पत्र के बाद वह कहाँ कब और किससे मिली थी | उन्होंने इस सम्बन्ध में फोन पर मुझसे मिलनें की इच्छा जाहिर की | मेरे कुछ मित्रों नें मुझे इस प्रेम प्रसंग की जानकारी दे दी थी और मैं चिन्ता में पड़ गया कि कहीं इस रहस्य का राज अपर्णा तो नहीं छिपाये है | गंभ्भीर स्वभाव वाली मेरी बेटी एक आदर्श सन्तुलित और मूल्यवान जीवन जी रही थी और वह अपनी प्रतिभा ,चरित्र और मंचीय उपलब्धियों के लिये सारे महाविद्यालय में जानी जाती थी  मुझे उस पर शत प्रतिशत भरोसा  था और मैं जानता था कि वह अपने पिता से कोई बात नहीं छुपायेगी | मैनें घर आकर पत्नी द्वारा लाये हुये पानी के ग्लास में मुंह लगाने के पहले ही अपर्णा को बैठक में बुलाया | मैनें उसकी ओर देखा पर कुछ बोला नहीं उसकी डबडबायी आँखों से आंसू छलक रहे थे | उसने स्वयं ही कहा पिताजी विश्वास करिये कल शाम तक सुनैना के माँ के पास जानें और द्वार पर मेरे विदायी देने तक मुझे कुछ भी मालूम न था | पर द्वार से लौटकर जब मैं अपने कमरे में बिस्तर पर बैठी और तकिये को सीधा किया तो उसके नीचे से एक पत्र मिला | पत्र सुनैना का लिखा हुआ है | शायद जब मैं बाथरूम में गयी थी तब उसनें यह पत्र मेरे तकिये के नीचे रख दिया हो यह कहकर उसनें वह पत्र मेरी ओर बढ़ा दिया और कहा कि आप स्वयं पढ़ लीजिये | मैनें पत्र खोला और पहली पंक्ति पर निगाह डाली - मेरी बहना ,मेरी सहेले ,मेरी आदर्श यार ,मुझे गलत मत समझना.........................
( क्रमशः )           

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