Sunday 7 January 2018

( गतांक से आगे )
                                          पिछले वर्ष जब मैं 26 जनवरी को एन ० सी ० सी ० परेड  से Best Turn out का इनाम लेकर लौटी थी तब मैनें तुम्हें बताया था कि मनोज यादव जो मेरठ कालेज से आये थे को Best all round कैडेट आफीसर का इनाम मिला था | और जब तुमनें हंसकर पूछा था कि कहीं दिल तो नहीं लगा बैठीं तो मैनें सिर्फ मुस्करा दिया था | पर तेरी बात नें मुझे कहीं बहुत गहरे छू लिया था | मनोज का लम्बा छरहरा शरीर उसका आकर्षक व्यक्तित्व और उसकी प्राणवान गंभ्भीरता मुझे अपनी ओर खींच रही थी | मुझे ऐसा भी लगा था कि मनोज मुझसे भी प्रभावित हुये थे और निकटता पाने की चाह करने लगे थे | इस दिशा में फिर मेरी तेरी कोई बात आगे नहीं बढ़ी थी क्योंकि तू अपने कालेज की गतिविधियों में खो गयी और मैं अपनें सपनों के संसार में | एक बात और थी कि तुम्हारे पिताजी के दबंग व्यक्तित्व नें मुझे डरा रखा था और मैं यह हिम्मत नहीं कर सकी कि तुम्हें मैं अपनी प्रेम कहानी का साझीदार बना लूँ | तुम्हारी माँ से मुझे तुम्हारे पिता जी के जीवन मूल्यों का पूरा परिचय मिल गया था और मैं जानती थी कि वे अपनी सारी मंचीय उदारता के बावजूद परम्परा से आती जाति मर्यादाओं का उल्लंघन स्वीकार  नहीं कर पायेंगें | तू भी तो अपने पिता पर ही पड़ी है | कितना गजब का सयंम है तुझमें | पर यारां , मैं तो चाहत की बाढ़ में मूल- हीन लता की भांति बह चली | मनोज अच्छे खासे जमींदार घर का लड़का है और वह चाहे तो उसे सेना में कमीशन भी मिल सकता है | पर उसे तो भौतिकी का विद्वान बनने का नशा चढ़ा हुआ है | बी० एस  ० सी ० में 80 प्रतिशत से अधिक अंक  पाकर उसका उत्साह और बढ़ गया और उसने एम  ० डी  ० यूनिवर्सिटी में सम्भवतः मेरे ही कारण एम  ० एस ० सी ० में प्रवेश लिया | मैं बी ० ए ० के अन्तिम वर्ष में पहुँच ही चुकी थी | हम  कई बार Lake  पर मिलने लगे | पर हमारा मिलन सदैव शारीरिक मर्यादाओं के अनुशासन में ही रहता रहा | मनोज होस्टल में ही रहता था | और यदा -कदा मानसरोवर पार्क में शाम के समय आ जाता था जहां मेरे पिताजी वाक (Walk ) पर जाते थे | धीरे -धीरे अपने आप आदर पूर्व व्यवहार से उसने मेरे पिताजी का विश्वास प्राप्त कर लिया और जब पिता जी ने रिपब्लिक डे परेड में उसके Best officer की बात जानी तो वे अत्यन्त प्रसन्न हुये | साथ ही अस्सी प्रतिशत से अधिक का उसका Academic Career और उसका आकर्षक व्यक्तित्व भी उनके मन को भा गया | एन  ० सी ० सी ० की कैडिट होनें के नाते पिताजी नें एकाध बार मुझसे पूछा क्या मनोज नाम का नवयुवक रिपब्लिक डे परेड में Best Cadet Officer चुना गया था तो मैनें उन्हें प्रशंसा पूर्ण शब्दों में उसके चुने जाने के बात बतायी | उन्हें यह पता नहीं था कि मैं और मनोज एक दूसरे से मिल -जुल रहे हैं | अगले दिन जब वे अपने वाक से वापस लौटे तो मनोज को भी साथ लेते आये | ड्राइंग रूम से उन्होंने आवाज दी , " अरी बेटे सुनैना ,देखना कि मेरे साथ कौन आया है | " मैं मनोज द्वारा इस आने वाले घटनाक्रम से पहले ही परिचित करा दी गयी थी | और ड्राइंग रूम में घुसते ही मैनें नमस्ते करके नाटकीय ढंग से पूछा , " क्या आप एन ० सी० सी ० कैडेट आफीसर मनोज कुमार हैं |  आपको तो रिपब्लिक डे परेड पर Best cadet Officer चुना गया था | आप तो मेरठ से हैं | रोहतक कैसे आना हुआ | पापा से कैसे मिले | " मनोज नें आश्चर्य प्रकट करते हुये कहा अरे आप सुनैना हैं | आपको तो Best turn out गर्ल कैडेट आफीसर का इनाम मिला था | कितना सुखद संयोग है कि आपके पिताजी अपने साथ मुझे घर पर ले आये | उन्होंने मुझे यह नहीं बताया कि उनकी बेटी आने वाले कल में भारतीय सेना में एक सक्षम भूमिका निभायेगी | उन्होंने मुझसे सिर्फ यही बताया कि उनकी बड़ी बेटी बी ० ए ०  के अन्तिम वर्ष की छात्रा है और उसका छोटा भाई जीव विज्ञान के साथ बारहवीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा है | आप शायद नहीं जानतीं कि मैनें एम ० डी ० यूनिवर्सिटी में एम ० एस ० सी ० भौतिकी में प्रवेश ले लिया है | और यूनिवर्सिटी के होस्टल में रह रहा हूँ | चलिये रोहतक में मुझे अपना एक घर मिल गया जहां मुझे अभिभावक के रूप में माता -पिता का आशीर्वाद मिलता रहेगा | माता जी से मिलाइये उनके चरण छूकर आशीर्वाद प्राप्त करूँ क्योंकि मुझे 10 बजे से पहले होस्टल पहुंचना है | विश्वविद्यालय की नियम संहिता का यह एक अनिवार्य अंग है | याराँ जैसा मैं पहले कह चुकी हूँ मनोज की बातचीत का अन्दाज निराला है और उसकी नाटकीयता इतनी स्वाभाविक है कि बड़े से बड़ा विद्वान उसकी बातों की सच्चायी पर विश्वास कर लेता है | माता जी से मिलकर उनके पास बैठकर और जाते समय उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद पाकर मनोज नें अपने लिये मेरे घर आने का रास्ता बना लिया | माँ उसे मेरे बड़े भाई के रूप में लेने लगी और कई बार मेरा छोटा भाई भी हम दोनों के साथ विश्वविद्यालय परिसर में घूमने -फिरने जाने लगा | मनोज नें अपने घर का पूरा परिचय मेरी माँ को दिया उसकी बहन मेरठ में बी ० एस ० सी ० के दूसरे वर्ष में थी  और एक छोटा भाई अभी आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था | | पिता जी सेना में सूबेदार के पद से सेवा निवृत्त होकर मेरठ शहर में आ गये थे जहां उन्होंनें अपना मकान बनवा लिया था | पास ही बीस किलोमीटर की दूरी पर करौंथा ग्राम में उनका एक पैतृक घर था और करीब बारह एकड़ खेती की जमीन थी | वे अपनें पिता के अकेले पुत्र थे | खेती करने के लिये उन्होंने दो स्थायी नौकर रख रखे थे जो उनके पैतृक घर में सपरिवार रहते थे | घर में ट्रैक्टर था और दूसरे खेती के आवश्यक संसाधन | सिंचाई के लिये नहरी पानी के अलावा ट्यूब बेल भी था | पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सम्पन्न किसानों का भरापुरा जीवन और साथ में सूबेदारी की ठसक और अच्छी खासी पेन्शन | मनोज हर द्रष्टि से स्वतन्त्र भारत का एक आदर्श तरुण कहा जा सकता था पर हिन्दू समाज की परम्परायें कई बातों में श्रंखला बनकर उसका मार्ग अवरुद्ध कर रही थीं | अपने बी ० ए ० के अन्तिम वर्ष में मैनें सभी कविताओं और कहानियों में तथा सामाजिक और शारीरिक विज्ञान की किताबों में यही लिखा हुआ पाया कि जाति गत भेदों का कोई ईश्वरीय रूप नहीं है | यह सारे भेद मानव की संकीर्ण सोच से उपजे हैं और जैसे -जैसे शिक्षा के साथ वैश्विक चेतना का विकास होगा यह सारे भेद नष्ट हो जायेंगें | परीक्षा  का समय निकट आने के कारण मैं लगभग दो महीनों से मिल नहीं पायी थी | और वो भी अपनी तैय्यारी और प्रेक्टिकल्स में उलझा हुआ था | | जिस दिन मेरा अन्तिम प्रश्नपत्र समाप्त हुआ मनोज कालेज के गेट पर मेरी प्रतीक्षा कर रहा था | मैनें अपनी स्कूटी निकाली और गेट पर आ गयी | द्वार पर मनोज नें मुझे पीछे बैठने को बोला और स्वयं स्कूटी चलाकर लेक (Lake )की ओर चल पड़ा | परीक्षायें लगभग समाप्त हो चुकी थीं | और लेक पर तरुण -तरुणियों की हंसती खिलखिलाती टोलियां नजर आ रही थीं | स्टैण्ड पर स्कूटी खड़ा कर हम दोनों लेक की ओर बढ़े | लेक पर नौकायें किराये पर लेकर स्वीमिंग की सुविधा उपलब्ध रहती है यह तो तुम भलीभांति जानती ही हो | कितनी बार तुम्हें भी तो मैंने अपनें भाई भाभी के साथ नौका विहार करते देखा है | | अरे यारां तेरी भाभी भी तो  किसी ब्यूटी क्वीन से कम नहीं | बहना ,सच मानना उस समय तक यद्यपि मेरा मन मनोज की तरफ आकर्षित था , फिर भी यदि मेरे माता -पिता कहते तो मैं अपनें सम्बन्ध को भाई बहन के रूप में ही सीमित रखती पर उस दिन कुछ ऐसा घटा जिसनें मेरे निर्णय को एक गहरे झटके के साथ नयी दिशा दे दी |
                                                       नौकायन के लिये कुछ सीमित संख्या में ही लेक के घाट पर नाव की उपलब्धि है | परीक्षा से मुक्ति पाकर न जानें कितने तरुण सैलानी नांव पर बैठे चक्कर लगा रहे थे | कहना न होगा लड़के -लड़कियों के मिले -जुले झुण्ड अपनी अदाकारियों से तरुणायी भरे रोमांस की नयी श्रष्टि रच रहे थे | हम दोनों नें पूरे पैसे देकर चार व्यक्तियों के बैठने वाली एक नौका अपने लिये तय कर ली | ज्यों ही हम नौका पर बैठने वाले थे दो नवयुवक हमारी ओर आये और उन्होनें कहा कि उन्हें भी नौका सन्तरण की तीब्र इच्छा है पर नौकायें मिल नहीं रही हैं | यदि आप दोनों हम दोनों को इस नौका में बैठने दें तो हमें अत्यन्त खुशी होगी | | हम आधा किराया दे देंगें | हम दोनों चंडीगढ़ से आये हैं और रोहतक की इस लेक में सैर करने का हमारा बड़ा मन है | मैंने मनोज से इशारे से उन्हें न ले चलने की बात की | | अच्छी भाषा के बावजूद वे दोनों नवयुवक मुझे मनचले आवारा से लग रहे थे |और उनकी आँखों में मुझे नशे का रंग दिखायी पड़ रहा था  पर अपनी सज्जनता में मनोज नें उनकी बात मान ली ,हांलाकि उसने जोर देकर यह कहा कि वह पैसे नहीं लेगा | परन्तु मानवता के नाते उनके अनुरोध को स्वीकार करेगा | नाव चल पड़ी और मनोज बल्लियां खेने लगा | बहना , तुम तो जानती ही हो कि कुछ नावें यन्त्र संचालित हैं और कुछ बल्लियों वाली | यह नांव भी बल्लियों से चलती थी | अपनी पुष्ट और छरहरी बाँहों से मनोज नें नांव खेना शुरू किया | मैं सरककर आगे उसके पास चली गयी | वे दोनों नवयुवक एक दूसरे पर हाँथ नीचे कर झील से पानी लेकर छींटाकशी करने लगे | एक नें दूसरे से कहा अबे कोई गाना सुना दे | फड़कती हुयी कोई चीज | दूसरे नें अपनें फटे बांस जैसे स्वर में सिनेमा की एक पंक्ति दोहरायी , " एक तरफ तेरा घर ,एक तरफ मैकदां ,होता नहीं फैसला | "
                  मैनें मनोज की ओर देखा पर वह नांव खेने में व्यस्त था और अपनी नांव को और कई नावों से आगे निकालना चाहता था | मुझसे बात किये बिना भी मेरे पास बैठने मात्र से उसका मन खुशी से झूम रहा था | इस बीच उस फटे बांस के स्वर वाले नवयुवक नें कुछ खिसक कर मेरे पैर पर अपना पैर रखनें की कोशिश की | मैं खिसक कर मनोज से सट गयी | फटा बांस बोला , " अरी जानां हम क्या पराये हैं ,नोटों की गड्डी निछावर कर दूंगा | " मनोज नें यह वाक्य सुन लिया बल्ली रोककर उसनें क्रोध भरी आँखों से उन दोनों की ओर देखा और बोला , " बद्त्तमीजी बन्द करो , Behave Like Gentlemen ."
                               फटे बांस का साथी बोला , " अरे यह तो अंग्रेजी बोले से , दो धक्का साले को पानी में डूबेगा हम परी के साथ सैर करेंगें | इतना सुनना था कि मनोज नें बल्ली छोड़ दी और एक भरापुरा तमाचा उसके गूलर गालों पर जड़ दिया | तमाचे के आघात से उसका सिर झुका , नांव लड़खड़ाई और वह पानी में गिर पड़ा | पर नांव के उलटनें के पहले ही मनोज नें बल्ली थाम ली और नांव संम्भल गयी | फटे बांस का साथी गहरे पानी में हाँथ पैर मारने लगा | शायद उसे ठीक से तैरना नहीं आता था | फटा बांस खड़ा हो गया और उसनें अपनी जाकेट के नीचे से एक बटनदार चाकू निकाली और उसका ग्यारह इंची ब्लेड खड़ा कर दिया | मनोज नांव संम्भालनें में मुंह दूसरी ओर किये था | मैं चिल्लायी पर इससे पहले कि मनोज देख पाता फटे बांस नें अपनी चाकू उसके गर्दन की ओर फेंकनें की कोशिश की | यारां , न जानें मुझे उस समय क्या हो गया बिजली की तेजी से मैनें उसके पंजे में अपनें दांत गड़ा दिये | चाकू अपना लक्ष्य चूक गया और पानी में जा गिरा | गर्दन फेरते ही मनोज सब कुछ समझ गया ,उसने लात के एक आघात से फटे बांस को अपनें साथी के पास गहरे पानी में डुबकी लगानें के लिये भेज दिया | पर रक्षा के इस प्रयास में नाँव का सन्तुलन बिगड़ गया और मैं गहरे पानी में जा पड़ी | एन ० सी ० सी ० में होते हुये भी मुझे अफ़सोस है कि मैं तैराकी नहीं सीख पायी हूँ और मुझे लगा कि जल शैय्या ही मुझे शायद अपनी गोद में हमेशा के लिये सुला लेगी | पानी मेरे मुंह नांक से होकर अन्दर भर गया और मैं चेतना शून्य हो गयी | मैं नहीं जानती कि उसके बाद क्या हुआ पर जब मेरी आँख खुली तो मैनें अपनें को लेक के किनारे कई युवक -युवतियों से घिरा हुआ पाया | मैं एक पेंड़ के नीचे घास पर चित्त पड़ी थी और मनोज मेरे पास ही बैठा था | यह तरुण और तरुणियाँ मनोज के क्लास फैलो थे जो संयोग से लेक पर भ्रमण करने आ गये थे | फर्स्ट एड का पूरा ज्ञान रखनें के कारण मनोज नें किस प्रकार मेरे पेट का पानी निकाल कर मेरी श्वांस को संचालित किया यह मैं ठीक से नहीं जानती पर हाँ मैं इतना अवश्य जानती हूँ कि ऐसा करनें में मनोज को मेरे उस अर्धमृतक शरीर को कई बार स्पर्श अवश्य करना पड़ा होगा | होश में रहकर चाह कर भी जो मैं कभी नहीं कर सकी प्रकृति नें उसे एक अत्यन्त निराले ढंग से पूरा करवा लिया | प्यारी सखी , तुझे क्या बताऊँ होश आते ही न जानें कितनें मिले जुले भाव मेरे मन पर छा गये ग्लानि भी हुयी ,हर्ष भी हुआ और चिन्ता भी | सामाजिक डर की दुखदायी छायायें मेरे मन को घेरनें लगीं | हाय जब यह शरीर अर्धचेतन अवस्था में मनोज का हो गया तो जिसनें उसे जीवन दिया है उसी को क्यों न सौंप दिया जाय पर मेरे माता -पिता क्या इसे स्वीकार करेंगें | सैकड़ों अनुभागों में बटा ब्राम्हण समाज क्या इसे स्वीकार करेगा और फिर मनोज के माता -पिता | उनकी सहमति असहमति का पता भी तो लगाना होगा बाद में ठीक हो जानें मुझे पता लगा कि उन दोनों मनचले अवारों को पुलिस नें बेहोशी की दशा में झील से निकाल कर पी ० जी ० आई ० में भरती कराया था जहां से होश आनें पर वे डिस्चार्ज कर दिये गये थे क्योंकि हमारी तरफ से उनके खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गयी थी | | मनोज नहीं चाहता था कि हमारे नौकायन की बात परिवार वालों तक पहुचें | कैसे नया सूट खरीदनें का बहाना करके मैं उस दिन अंधेरा होनें के बाद घर पहुँची और किस प्रकार अतिरिक्त प्यार में डूबे मेरे माता पिता नें मेरी बातों में विश्वास कर लिया यह भी मैं नहीं जानती | पर आने वाला प्रभात मेरे जीवन की परीक्षा का प्रभात है यह मैं निश्चित रूप से  जानती थी क्योंकि मनोज नें कहा था कि कल वह घर जा रहा है और फिर वहां से उसे States में जानें का प्रबन्ध हो चुका है United States of America के Texas में उसके मामा एक मैनेजेरियल पोस्ट पर हैं और वहीं पर वह अपनें आगे के अध्ययन और Career की तलाश करेगा | रोहतक में अब उसका आना न हो सकेगा | | मैं चाहूँ तो उसके साथ चल सकती हूँ | उसके माता -पिता और सगे सम्बन्धी मुझे पाकर न केवल हर्षित होंगें बल्कि गौरव का अनुभव करेंगें | उसनें कहा कि सुनैना ,अन्तिम फैसला तुम्हें करना है | मैं तो जीवन और मरण दोनों में तुम्हारा अटूट साथी हूँ | प्रिये मैं यादव हूँ पर मैं क्या हूँ इसपर मेरा कोई वश तो नहीं है | सामाजिक विधान नें तो मुझे यादव बना दिया है और तुम्हें शर्मा | मैं नहीं जानता कौन बड़ा है और कौन छोटा | मैं इतना जानता हूँ कि मैं इक्कीसवीं शताब्दी का एक तरुण हूँ और तुम एक तरुणीं | मैं इतना जानता हूँ कि मंगल ग्रह के आगे शुक्र तक मंगल यान पहुँच चुका है | और कल्पना चावला तथा सुनीता विलियम्स अन्तरिक्ष में परिभ्रमण कर चुकी हैं | प्रिये मैं यह तो नहीं कहता कि तुम्हारी न पर मैं आत्महत्या कर लूंगा पर इतना अवश्य कह सकता हूँ कि तुम्हारी न पर जो मैं जीवन जियूँगा वह मुर्दे से बत्तर होगा | पिताजी ने तुम्हें लेने के लिये मेरठ से एक सजी -बजी गाड़ी भेजी है | रात्रि बारह बजे मानसरोवर पार्क के गेट  पर मैं उस गाड़ी के पास खड़ा प्रतीक्षारत रहूँगा | तुम्हारे घर से वहां तक आनें में पांच दस मिनट ही तो लगते हैं | निर्णय के लिये तुम स्वतन्त्र हो | क्या एक चुम्बन की भीख दोगी | और हल्के से मेरे होठों पर होंठ रखकर वह अश्रुपूरित आँखों से मुझसे विदा हो गया | मेरी बहना ,उस रात मैनें बातों ही बातों में खाना खाने के बाद पिताजी से जाति मुक्त व्याह सम्बन्धों के औचित्य के बारे में पूछा | उन्होंने उन्हीं पुरानी बातों को दोहराते हुये कहा कि उन्हें मरना पसन्द है पर अपने ब्राम्हण होनें की शाख पर आंच आनें की कोई विचारधारा स्वीकार नहीं है | गांधी ,नेहरू ,विवेकानन्द ,टालस्टाय ,और अटल अपनी जगह पर हैं पर वे अपनी जगह पर हैं क्योंकि परम्परा उनके साथ है और शास्त्र उनके साथ हैं | मेरी माँ को तो तुम जानती ही हो वे तो भोली गाय हैं | लाख चाहनें पर भी वे पिताजी की  किसी बात का विरोध नहीं कर सकतीं | तू ही बता अपर्णा मेरा फैसला क्या होना चाहिये था | क्या तुझे अपनी सखी के फैसले पर शर्म से सिर झुकाना तो नहीं पड़ रहा है | अपनें पिताजी से मेरी ओर से मांफी मांग लेना पर बहना ,यह विश्वास  तो मैं तुझे गंगाजल हाँथ में लेकर दिलाती हूँ कि मैं और मनोज शारीरिक रूप से अपना दाम्पत्य जीवन तभी प्रारम्भ करेंगें जब हमें अपनें मां -बाप और अपनें गुरुजनों का आशीर्वाद मिल जायेगा | हम दोनों का जीवन इक्कीसवीं शताब्दी के बदलते परिवेशों में मानव स्वतन्त्रता की कुर्बानी की एक नयी मिशाल पेश करेगा | क्या पता बहना ,नयी पीढ़ी हमें तिरस्कार के योग्य न समझे और आदर्श के रूप में स्वीकार कर ले | बड़े जनों को मेरा प्रणाम देना और माँ के चरणों पर मेरा नतमस्तक होना स्वीकार करवाना | मुझे विश्वास है कि तुम अपने मित्र को घृणां के योग्य नहीं समझोगी | अपर्णा एक दिन तुम बहुत अच्छी जगह पर होगी वहां जहां मैं शायद पहुंच भी न सकूं पर तब क्या तुम मुझे याद रख सकोगी | तुम जिसे मैं अपनें अन्तर्मन का साथी मानती हूँ | अच्छा तो विदा अपर्णां देखें नियति चक्र में मेरे लिये और कौन से अध्याय खुलते हैं | तुम्हारी लांक्षित सहेली -सुनैना शर्मा |
                                 पत्र पढ़कर मुझे अपनी परम्परा आधारित चिन्तन पद्धति की समीचीनता पर शंका करने पर बाध्य होना पड़ा | तो क्या सुनैना भविष्य के समाज की अग्रदूतिका है ? तो क्या अपर्णां भी इसी भांति सोचती है ? तो क्या राकेश ,सन्दीप और सुधीर भी इसी चिन्तन के पोषक हैं ? तो क्या नयी पीढ़ी के लक्ष्य लक्ष्य तरुण और तरुणियाँ जाति दुराग्रह से मुक्त होकर मानव मूल्य आधारित समाज की संरचना में विश्वास रखते हैं ? तो क्या मैं ,सुनैना के पिता और नयी पीढ़ी के अन्य सभी अधेड़ और बृद्ध युग सत्य से कटकर अलग -थलग पड़ गये हैं | अपर्णां अभी तक मेरे पास खड़ी थी मैनें उससे कहा बेटे , " जा अपनी मां से कह एक कप चाय बना दे| "  उसके जानें पर  मैं सोचने लगा कि हमारा अन्तिम सत्य जान लेने का अभिमान एक दंम्भ मात्र ही तो है जिसे हम अन्तस -चेतना कहते हैं ,जो दार्शनिक Kant का Categorical Impertive है वो कहीं हमारे लक्ष लक्ष वर्षों की विकास प्रक्रिया द्वारा सहेजी गयी पूंजी ही तो नहीं है | उसमें कितना कुछ ईश्वरीय है इसका निर्णय तो अभी तक हो ही नहीं पाया पर इतना तो सच ही  है कि ग्रहों के आर -पार सितारों तक लगने वाली मानव छलांगें और उड़ानें तुच्छ सीमाओं को तोड़ फोड़कर धरती का सम्पूर्ण विस्तार तो देंगीं ही यह रंग का अभिमान ,यह  प्रजाति का गर्व ,यह जाति का वर्चस्व ,यह संस्कृति का आरोपित अभिमान सभी कुछ तो विश्लेषण पर मनमोहक मिथक से बढ़कर और कुछ साबित नहीं हो पाता पर हिन्दुस्तान की  जमीनी सच्चायी अभी जाति आधारित संकीर्ण चिन्तन और कबीला परस्ती से ऊपर उठ ही कहाँ पायी है | दिमाग में कौंध जाता है भारत के प्रथम प्रधान मन्त्री प ० जवाहर लाल नेहरू से विद्यार्थियों के एक डेलीगेशन के साथ 1960 के आस -पास मुलाकात का वह क्षण | उनके सचिव नें जब उन्हें बताया विद्यार्थियों का यह डेलीगेशन रोहतक के मल्टीफैकल्टी वैश्य कालेज से है तो उन्होंने कहा , " Why name institutes of higher learning after cast names? Is it not funny that you have vaish college,Jot college , kaanykubj college ,Raajput college and what not?" पण्डित जी का चिन्तन अपनी विशालता में शिक्षा के जातिगत विभाजनों को हास्यास्पद बना देता था पर उन जैसे महान पुरुषों के सारे प्रयासों के बाद भी आज की सभी राजनैतिक पार्टियां जाति समीकरणों के जोड़तोड़ पर ही राज्य सत्ता का सुख भोगनें का स्वप्न देखती हैं | और शिक्षा संस्थाओं में तो इस दिशा में अन्धेर ही हो रहा है | अरे हाँ , याद आया कालेज Women Wing में एक अंग्रेजी के लेडी प्राध्यापक की नियुक्ति होनी थी | शायद कल ही तो इंटरव्यूह हुआ था | अनजातुल्य श्यामा जी ही तो अंग्रेजी की विभागाध्यक्ष हैं | उनसे पूछ लिया जाय कि लालिमा भारद्वाज को Appointmentमिला कि नहीं  क्योंकि वह यूनिवर्सिटी की टॉपर हैं और डी ० एच ० लारेन्स पर किये गये अपनें शोध प्रबन्ध को डाक्ट्रेट के लिये सबमिट भी कर चुकीं हैं | मैनें ऊंची आवाज में कहा ," बेटे ,अपर्णा तनिक श्यामाजी का फोन मिलाना ,देखें किस नाम पर सहमति बन पायी है | हेलो ,This is Awasthi on this side of the line.दूसरी तरफ से आवाज आयी प्रणाम बड़े भाई ,आपनें तो सब सुन ही लिया होगा | " No ,I have just come back fron official duty.I was checking at Rewari as convenor ." भाई साहब लालिमा नहीं लग पायी | प्रधान जी शकुन्तला मित्तल में Interested थे | कहते थे विरादरी की लड़की ही बनिया कालेज में लगेगी | पर उसका Performence जीरो था | वैसे भी वह Ordinary 2nd क्लास है | सब्जेक्ट एक्सपर्ट और डी ० एच ० ई ० नामनी लालिमा के Performance से सन्तुष्ट थे और उसकी नियुक्ति चाहते थे | झगड़ा खड़ा हो गया और इन्टरव्यूह पोस्टपोन्ड हो गया | अब Re-Advertisement होकर दुबारा डेट फिक्स की जायेगी | "  O God, now cast rules supreme in Inda.Thank You Shyaamaa ,for the Information . " और यह कहकर मैनें फोन नीचे रख दिया | 
                                अपर्णां की माँ चाय का प्याला मेज पर रखकर सामनें की कुर्सी पर बैठ चुकी थी और मैं उसके शान्त चेहरे को देखकर अपनी मानसिक अशान्ति पर क्षोभ से भर पड़ा पर अशान्ति से मुक्ति कहाँ | मुझे भी तो अगले हफ्ते झझ्झर गर्ल्स कालेज में Subject Expert बनकर जाना है | विश्वविद्यालय के कुलपति विवेश शर्मा का पत्र तो मुझे मिल ही चुका है और फिर चित्रलेखा सिंहल के पिता भी तो अपनी लड़की की सिफारिश के लिये दो एक दिन पहले किसी को साथ लेकर मुझसे मिलनें आये थे | वे एक प्रसिद्ध उद्योगपति हैं और उनकी बेटी को लगा लेने से किसी भी कालेज को काफी बड़े डोनेशन मिलनें की संम्भावना वास्तविकता बन सकती है | पर चित्रलेखा को यह तो बताना ही होगा कि उसके पिता नें उसका नाम चित्रलेखा क्यों रखा ? क्या इस नाम के कोई सांस्कृतिक पौराणिक और साहित्यिक सन्दर्भ भी हैं | और अंग्रेजी साहित्य से इस नाम का सन्दर्भ कहाँ और कैसे जोड़ा जा सकता है | और अगर वह न बता पायी तो उसकी नियुक्ति क्या संम्भव हो पायेगी | | मैनेजिंग कमेटी के प्रधान से हर बार झगड़ पड़ना भी तो ठीक नहीं पड़ेगा | लोग न जानें इसका क्या अर्थ लगायें | याद आ गया वो  दिन जब एक कालेज में एक शहर में नियुक्त नायब तहसीलदार क़ानून की परीक्षा  में बैठकर नक़ल कर रहे थे और मैनें उनका केस बनाकर विश्वविद्यालय भेजा था |  अपनें ऊपर पड़ने वाले न जानें कितनें राजनीतिक दबावों के बावजूद मैनें उन्हें कठोर दण्ड देने की बात कही थी | पर हुआ क्या उल्टा मुझपर ही मुकदमा चलाया गया कि मैनें एक परीक्षार्थी को ख़ाहमखांह हैरस किया | नक़ल का पेपर यूनिवर्सिटी के दफ्तर में बदल दिया गया और उसके स्थान पर गणेश बन्दना का एक पेज लगा दिया गया | कोर्ट में नायब तहसीलदार जी नें कहा कि वे पेपर देनें से पहले गणेश वन्दना का पाठ कर रहे थे | संविधान उन्हें किसी भी देवी -देवता की मदद मांगनें का पूरा अधिकार देता है | खैर , इस केस को मैं कैसे जीत पाया इसकी चर्चा उचित सन्दर्भ में की जायेगी अभी तो झझ्झर गर्ल्स कालेज में Subject expert  के नाते अपनें कर्तव्य का दायित्व करना होगा | क्या वहां भी लालिमा भारद्वाज नें अप्लीकेशन लगायी है ? यह तो इन्टरव्यूह के कुछ समय पहले ही लिस्ट देखनें पर पता लगेगा पर कहीं ऐसा तो नहीं कि जन्म से ब्राम्हण होनें के नाते मैं भारद्वाज के प्रति कुछ अधिक उदार होनें लगा हूँ | नहीं नहीं हर भारतवासी मेरे लिये समान  है | विक्रमादित्य की न्याय की कहानियां अब तक मेरे अवचेतन में ,कौंधती रहती हैं | न्याय का उतना बड़ा सिंहासन तो मेरे पास नहीं है पर जो भी टूटी -फूटी मचिया मुझे बैठने को मिली है उस पर बैठकर मैं न्याय ही करूंगा |  Justice Nothing but sheer justice ,un alloyed and pure. पर क्या मैं अपने को ठीक तरह से जानता हूँ | वाल्टेयर की कुछ पंक्तियाँ दिमाग में गूँज उठती हैं |
Man is a stranger to his own research ,
he knows not whence he comes ,not with her  goes ,
Tormented atoms in a bed of mud ,
Devoured by beath , a monckery of fate,
But thinking atoms, whose far-seeing eyes,
Guided by thoughts ,have measured the faint stars.
                        झझ्झर में होने दो शब्द शराघात | डा ० आर ० एन ० शर्मा , डा ० ऊषा कालिया ,डा ० भांभरी जैसे दिग्गज पैनल में हैं | और हैं पीताम्बर बंसल प्रधान जी ,पीताम्बर जी नें गाड़ी भेजनें को कहा है | यह क्या ऊषा जी का Pick offer ज्यादा ठीक नहीं रहेगा |
(क्रमशः )

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