Monday 8 January 2018

( गतांक से आगे )
                                     सोने जाने से पहले अपर्णा नें मुझे बता दिया था कि ऊषा आंटी का फोन आया था | उन्होंने सुबह ठीक सात बजे तैय्यार रहने को कहा है | मैनें उससे पीताम्बर बंसल का नम्बर मिलाने को कहा और उन्हें बता दिया कि मैं ऊषा जी के साथ आ रहा हूँ गाड़ी भेजने की आवश्यकता नहीं है |
                                       डा ० ऊषा कालिया का भी अपना एक इतिहास है | इतिहास तो हर व्यक्ति का होता है पर सामान्य से अलग हटकर प्रयोगात्मक जीवन जीने वाले कुछ व्यक्तियों का इतिहास सामाजिक मूल्यों को कई नये संकुचन और विस्तार प्रदान करता है | डा ० ऊषा कालिया उन दिनों केवल ऊषा ही थीं | पच्चीस  वर्ष पहले कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के एम ०  ए ० अंग्रेजी की छात्रा ऊषा यूनिवर्सिटी की ब्यूटी क़्वीन चुनी गयी थीं | | टेलीविजन का अभी सूत्रपात ही हुआ था  और रेडियो पर उनके गीत और गजलों की धूम मची रहती थी | उनकी मनमोहक अदायें यूनिवर्सिटी के तरुण छात्रों पर रोमांस के अनेकानेक सुनहरे सपनें बिखेरा करती थीं | कैसे वह मिसेज कालिया बनीं | एक कन्या की माँ बनीं और फिर व्यक्तित्व की टकराहट से पति -पत्नी नें सम्बन्ध विच्छेद करने का निर्णय किया | तलाक के बाद उन्होनें डाक्ट्रेट की ,सरकारी कालेज में नौकरी प्राप्त की ,और इन दिनों एक डिग्री कालेज में प्राचार्या के पद पर रहकर ख्याति के नये कीर्तिमान अर्जित किये | इस सबकी कहानी फिर कहीं कहनी होगी | फिलहाल तो इतना ही कहना है कि अब पचास वर्ष की आयु में भी ऊषा जी एक सुहावने व्यक्तित्व की धनी हैं | उनका आकर्षण अब भी नारी सौन्दर्य के पारखियों को अपनी ओर खींचता है | उनकी पुत्री अमेरिका के Wisconsin यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान में डॉक्टरेट कर रही है |
                                पौने सात बजे ऊषा जी की गाड़ी दरवाजे पर आ खड़ी हुयी | गाड़ी वे स्वयं ही ड्राइव करती हैं ड्राइवर का कोई झंझट नहीं | मैं तैय्यार था ही आग्रह करने पर उन्होनें ड्राइंग रूम में बैठकर एक चाय का प्याला लिया और फिर मुझे लेकर वे झझ्झर गर्ल्स कालेज की ओर चल पड़ीं | रोहतक से झझ्झर लगभग घण्टे सवा घण्टे का ड्राइव वे है | मैं अगली सीट पर था और ऊषा जी के गाड़ी ड्राइव करने के आत्म विश्वास से प्रभावित हो रहा था | रास्ते में अधिक बात -चीत न हो सकी | उन्होंने यह अवश्य पूछा  कि क्या मैं ड्राइव कर लेता हूँ और मेरे नहीं कहने पर जोर देकर यह कहा कि मुझे ड्राइव करना सीखना चाहिये क्योंकि आने वाले कल में यह एक बाध्यता बन जायेगी | गाड़ी लेना सरल होगा पर ड्राइवर रखना कठिन | उन्होंने यह भी कहा कि सेल्फ ड्राइव का अपना एक अलग आनन्द है | मैं देखनें सुननें में अधेड़ लग रहा था और ऊषा जी मुझसे एक दो वर्ष छोटे होने पर भी बिल्कुल नवयुवती सी दिखायी पड़ रही थीं | उनके साथ बैठनें में मुझे एक सुखद अनुभूति हुयी | मैनें अनुभव किया कि सौन्दर्य का सामीप्य नर चेतना में एक उर्ध्वगामी चेतना का संचार करता है | शारीरिक सम्बन्धों की परिभाषा में इस स्फूर्ति का कोई योगदान नहीं होता पर अन्तर की प्राणवान सृजन शक्ति को विकसित करने में यह स्फूर्ति बहुत सहायक होती है | शायद इसीलिये महान से महानतम कवियों , कथाकारों , चित्रकारों ,शिल्पियों और कला सृष्टाओं की प्रेरणा के मूल में कोई न कोई नारी उपस्थित रहती है | जैविक देह धारण की सारी अपवित्रता अपना फूहड़पन खोकर आदि शक्ति नारी के भव्य काल्पनिक रूप में कलाकार के जीवन में एक दैवी प्रेरणां बनकर उभर आती है | ठीक आठ बजे हम झझ्झर गर्ल्स कालेज के द्वार पर पहुंच गये | डा ० आर ० एन ० शर्मा वहां पहले से ही उपस्थित थे और पीताम्बर जी नें बताया कि चण्डीगढ़ से आने वाले डा ० भांभरी लगभग दस मिनट की दूरी पर हैं | मैं पीताम्बर जी से कालेज के सम्बन्ध में जानकारी इकठ्ठा करने लगा | ऊषा जी और डा ० शर्मा एक दूसरे से शिक्षा विभाग की नीति सम्बन्धी जटिलताओं पर बातचीत पर लग गये | पीताम्बर जी ने बताया कि कालेज पिछले दस वर्ष से चल रहा है ,कि कालेज में लगभग तीन सौ छात्रायें हैं ,कि कालेज में अभी विज्ञान संकाय नहीं है और स्टाफ में तीस के करीब अध्यापक हैं | इसी बीच डा ० भांभरी हमारे बीच आ पहुंचें | पीताम्बर जी नें आग्रह किया कि हम सब कुछ जलपान कर लें  क्योंकि लगभग बीस के आस -पास कण्डीडेट्स उपस्थित हो चुके हैं | और हमें काफी देर तक इन्टरव्यूह में बिजी रहना पड़ेगा | पूंछने पर उन्होंने बताया कि कालेज की प्राचार्या शकुन्तला गोयल पुस्तकालय से लगे एक कक्ष में चाय -पानी की व्यवस्था कर रही हैं | | हम सब जलपान के लिये उस कक्ष में ले जाये गये | शकुन्तला जी पैतालिस  पचास के बीच रही होंगीं और भरे शरीर की संभ्रान्त घर की महिला जैसी दिख रही थीं | मेरा अपना अनुभव था कि अग्रवाल घरों की नारियां अपनी सारी ऊंची शिक्षा के बावजूद भारतीय परम्परा के प्रचलित जीवन मूल्यों को आदर्श मानकर अपना जीवन संजोती हैं और उनका यह आचरण उन्हें आधुनिक जीवन शैली से भले ही अलग कर दे पर उन्हें नारित्व का एक मर्यादा भरा गौरव प्रदान करता है | शकुन्तला जी को देखने पर एक सहजता का भाव मन में उभर आता था मुझे लगा कि वह प्राचार्या पद के गौरव को संभ्भालनें में पूरी तरह समर्थ हैं | अग्रवाल बिरादरी का खान -पान शुद्ध घी से बने मिष्ठानों और सूखी मेवा तथा ताजे फलों से भरा पुरा रहता है | गर्मी के दिनों में शुद्ध विलोये दूध की लस्सी भारतीयता का रंग और स्वाद का अनोखापन दोनों को साथ लेकर मन को उल्लासित कर देती है | नाश्ते के समय बंसल जी नें बताया कि झझ्झर के बलवान हलवाई की खोये की मिठाई सारे हरियाणां में प्रसिद्ध हैऔर दिल्ली के भी न जानें कितनें धनिक उसके यहां से कलाकन्द मंगवाते रहते हैं | मुझे खुशी हुयी यह सोचकर कि आधुनिक विज्ञापनों से दूर बलवान हलवाई को एक ऐसा प्रशंसक मिल चुका है जिसकी बात सत्य से बहुत दूर नहीं होगी | मैं जान गया कि लौटते समय ऊषा जी बलराम हलवाई की दुकान से अवश्य निकलेंगीं |
                                     साक्षात्कार के लिये हम सब महाविद्यालय के दाहिने पार्श्व में बनें मैनेजमेन्ट कक्ष में पहुँच गये | पास के एक कमरे में बीस से ऊपर नवयुवक खड़े बैठे आपस की बातचीत में लगे हुये थे | यहां मैं यह बता देना चाहूंगा कि उन दिनों सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में प्रवक्ताओं की नियुक्ति के लिये कुछ विशेष प्रावधान किये गये थे | सेलेक्शन कमेटी का चेयरमैन कालेज की मैनेजिंग कमेटी का प्रधान होता था | चार सदस्य और होते थे | जिनमें एक सबजेक्ट एक्सपर्ट ,एक उपकुलपति का नामिनी ,एक डायरेक्टर आफ हायर एजूकेशन का मनोनीत प्रतिनिधि और एक महाविद्यालय का प्राचार्य या प्राचार्या होता था | समझा यह जाता था कि पाँचों एक मत होकर दो नाम नियुक्ति के लिये उपकुलपति के पास प्रस्तावित करेंगें | उपकुलपति की स्वीकृति मिलनें पर पहले स्थान पर चयनित प्रत्याशी को नियुक्ति पत्र दिया जायेगा | यदि किसी कारणवश वह उसे स्वीकार नहीं करता तो दूसरा प्रत्याशी नियुक्ति पत्र का अधिकारी होगा | पर कई बार ऐसा भी हुआ था कि सेलेक्शन बोर्ड के पाँचों मेम्बर्स किसी एक नाम पर सहमत न हों | और तब बहुमत का फैसला उपकुलपति की स्वीकृति के लिये भेजा जाता था | सहमति न होनें वाले सेलेक्शन पैनल के सदस्य अपना -अपना स्पष्टीकरण अलग से अंकित कर देते थे | यह उपकुलपति पर निर्भर था कि वह बहुमत का फैसला मानें या फिर दुबारा चयन प्रक्रिया को गतिशील करे | सेलेक्शन कमेटी का चेयरमैन होनें पर भी मैनेजिंग कमेटी के प्रधान को कोई वीटो पावर नहीं था हाँ , इतना अवश्य था कि यह मान लिया जाता था कि महाविद्यालय का प्राचार्य या प्राचार्या चेयरमैन की राय से अलग जानें का साहस नहीं जुटा पायेंगें | पर दो के मुकाबले तीन भारी पड़ते थे | सब्जेक्ट एक्सपर्ट ,बी ० सी ० नामनी और डी ० एच ० ई ० नामनी मैनेजमेंट से अलग पक्ष मुक्त निर्णय लेनें में समर्थ थे और कई बार उन्हें प्रधान की स्वार्थ प्रेरित चयन प्रक्रिया को चुनौती देनी पड़ जाती थी | मैं जानता था कि झझ्झर कन्या महाविद्यालय में यह स्थिति खड़ी हो सकती है | अग्रवाल बिरादरी के प्रमुखतम महाविद्यालय का प्राचार्य होनें के नाते मैं इस बात से अवगत था कि चयन प्रक्रिया में बिरादरी का थोड़ा -बहुत पक्षपात तो होना ही है | आप जानना चाहेंगें मैं कैसे किसी अग्रवाल कालेज के प्राचार्य पद पर पहुंचा तो इसका श्रेय मैं भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू को देना चाहूंगा | और फिर मैं तो सम्मिलित पंजाब में पंजाब विश्वविद्यालय की नीतियों के मातहत नियुक्ति पा सका था | पर इस सब की  बात और कहीं उचित सन्दर्भ में समावेषित की जायेगी | यहां तो झझ्झर  कन्या महाविद्यालय में चल रही चयन प्रक्रिया का लेखा -जोखा विचारणीय है | दफ्तर के बड़े बाबू ओम प्रकाश गुप्ता कन्डीडेट्स की लिस्ट लेकर अंदर आये | पच्चीस अप्लीकेंट्स में चार कन्डीडेट्स उपस्थित नहीं हो पाये थे | 21 के दस्तखत लिस्ट पर मौजूद थे | बड़े बाबू को थोड़ी दूर हटकर कक्ष में ही बैठा लिया गया ताकि वह हर कण्डीडेट्स को कक्ष में बुलानें से पहले उसके Resume की एक -एक कॉपी सेलेक्शन कमेटी के प्रत्येक मेम्बर के सामनें प्रस्तुत कर दें | बायोडाटा और अकेडमिक Achivment पर एक नजर डाल लेने के  बाद ही कन्डीडेट से पूछना -जांचना अधिक सार्थक बन पड़ता है | तय किया गया कि हर प्रत्याशी को लगभग पन्द्रह मिनट दिये जायें | इस सारी प्रक्रिया में लगभग साढ़े पांच घण्टे लगने थे | पैनल का प्रत्येक मेम्बर तीन तीन मिनट तक अपनें पश्न पूछेगा और कन्डीडेटके पाजटिव और निगेटिव रिसपान्स को नोट करेगा | पैनल का प्रत्येक मेम्बर कन्डीडेट्स के परफारमेंस को अपनी सम्पूर्णताः ABCDचार ग्रुपों में श्रेणीबद्ध करेगा | पांच A पाने वाला प्रथम , और चार A और एक B पाने वाला द्वितीय स्थान पर रहेगा | यदि इससे फैसला न हो सके तो  A के 75 अंक B के 60 अंक ,C के 50 अंक और D के  40 अंक मानकर टोटल कर लिया जायेगा और अंकों के आधार पर प्रथम और द्वितीय स्थान तय किया जायेगा | 21  प्रत्याशियों में से 12  P.H.D. होल्डर थे | चार के पास M. Phil.डिग्री थी और पांच नें यू० जी ० सी ० का टेस्ट पास कर रखा था | सभी प्रत्याशी प्रवक्ता होनें की न्यूनतम अकेडमिक क्वालीफिकेशन पूरी करते थे | 6 घण्टे चले इस इंटरव्यूह में क्या पूछा गया और क्या उत्तर मिले , क्या घटित हुआ और क्या घटित होनें से रह गया इस सबका पूरा विवरण कई सौ पृष्ठों की पुस्तक का आधार बन सकता है | ऐसा करना विषय वस्तु को अनावश्यक विस्तार देना होगा | यहाँ तो इतना बताना ही उचित है कि इक्कीस प्रत्याशियों में से 6 महिलायें अग्रवाल परिवारों से सम्बन्ध रखती थीं और इन 6 में से ही प्रथम और द्वितीय स्थान को भरना होगा ऐसा मानकर ही सेलेक्शन पैनल के सभी सदस्य चल रहे थे | फिर भी संम्भावना यह थी कि कोई प्रत्याशी अग्रवाल न होकर भी कहीं इतना ब्राइट न हो कि अग्रवाल होनें की विशेषता पर ग्रहण लग जाये | अच्छा ही हुआ कि ऐसा कोई प्रत्यासी द्रष्टि में नहीं आया | सभी का मानसिक Level और भाषा ज्ञान उन्नीस बीस एक जैसा ही लगा | बल्कि सच तो यह है कि भाषा ज्ञान का कड़ा मुकाबला उन 6  अग्रवाल महिलाओं में ही था | प्रश्न यह था कि प्रथम स्थान पर कौन रखा जाय और द्वितीय स्थान पर किसे रख दिया जाये | यह सुनिश्चित था कि जिसे भी प्रथम स्थान पर रखा जायेगा वही महाविद्यालय में आकर ज्वाइन कर लेगा | चूंकि महाविद्यालय के प्रवक्ता की नौकरी अग्रवाल परिवार के गौरव मापदण्डों के अनुकूल ही होती है | 6  महिलाओं में से सीधा मुकाबला चित्रलेखा और चित्रकला के बीच ही था | मुझे सबसे बड़ा हर्ष यह था कि इन सारे कण्डीडेट्स में लालिमा भारद्वाज नहीं थी | उसने अप्लीकेशन तो डाली थी पर साक्षात्कार में वह उपस्थित नहीं हुयी | निश्चय ही वह अंग्रेजी साहित्य के क्षितिज पर एक उगता हुआ सितारा है | सम्भवतः उसनें चण्डीगढ़ ,रोहतक ,फरीदाबाद या गुड़गांव के अतिरिक्त किन्हीं छोटे शहरों में न जानें का निर्णय ले लिया हो | पर यदि कहीं वह इंटरव्यूह में आयी होती तो हमारे बीच खींच तान का का एक नया अध्याय जोड़ जाती | पर अब तो चित्रकला और चित्रलेखा को लेकर निर्णय करना था | दोनों नें P.H.D.कर राखी थी | चित्रलेखा नें डी ० एच ० लारेन्स पर अनुसन्धान किया था जबकि चित्रकला नें समरसेट माम पर | चित्रलेखा एक बड़े यद्योगपति की लड़की थी जबकि चित्रकला के मामा सांसद थे और एक बहुत बड़े तरुण नेता के नजदीकी विश्वास पात्रों में माने जाते थे | जहां तक मेरा प्रश्न था मैं इन दोनों में प्रतिभा के धरातल पर कोई विशेष अन्तर नहीं कर पाया था हाँ चित्रकला के समरसेट माम के प्रसिद्ध उपन्यास द रेजर्स यज पर कुछ प्रश्न किये तो उसके उत्तर कुछ लड़खड़ाये से लगे | पर मैं उसे कुछ नर्वस नहीं करना चाहता था | मैनें उससे समरसेट माम की प्रसिद्ध कहानी मि० नोआल के तथ्य के बारे में पूछा तो उसनें कहानी के सम्बन्ध में अपनी अनिभिज्ञता प्रकट की | अन्त में मैनें  पूछा कि माम के अतिरिक्त और किसी उपन्यासकार का साहित्य पढ़ा है तो उसनें बताया कि उसनें थामस हार्डी की दो रचनायें पढ़ी हैं | जब उससे पूछा गया कि क्या वह हार्डी के फारमर ओक नाम के किसी एक चरित्र से परिचित है तो उसने स्वीकृति में सिर हिलाया और बताया कि अब वह उस औपनास्यिक कृति का स्मरण नहीं कर पा रही है | चित्रलेखा से भी मैनें डी ० एच ० लारेन्स के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे | सन्स एण्ड लवर्स पर कुछ उसके उत्तर ठीक लगे यद्यपि उनमें मौलिक कुछ भी नहीं था | | यह पूछे जाने पर कि हिन्दी साहित्य के चित्रलेखा नाम की नारी पात्र से उसका कोई परिचय है या नहीं तो उसनें चुप्पी साधकर यह जाहिर किया कि वह कोर्स की किताबों के अतिरिक्त साहित्य की विपुलता के बारे में अधिक रूचि नहीं रखती | हाँ उसका अंग्रेजी उच्चारण अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध था | यह पूछे जाने पर कि Indict का क्या उच्चारण होगा या Situation का क्या उच्चारण होगा उसनें ब्रिटिश उच्चारण पर आधारित सही जवाब दिये | मेरी समीक्षा में चित्रलेखा और चित्रकला बराबर के स्थान पर खड़ी थीं | ऊषा जी मेरी ही तरह समान स्तर पर दोनों को रेखांकित कर चुकी थीं | D.H.E. नामनी और V.C. नामनी विल्कुल तटस्थ लग रहे थे | अब रह गये मैनेजिंग कमेटी के प्रधान पीताम्बर बंसल जी और उनके कालेज की प्राचार्या शकुन्तला गोयल जी | इन दोनों में प्राथमिकता की सहमति नहीं बन पा रही थी | शकुन्तला जी चित्रकला को वरीयता दे रहीं थी , जबकि पीताम्बर जी चित्रलेखा को प्रथम स्थान पर रख रहे थे | सभी प्रत्याशियों को सूचित कर दिया गया कि निर्णय एक सप्ताह के बाद उन तक पहुंचा दिया जायेगा और पीताम्बर जी नें उन सबको एक समोसा खिलाकर और एक चाय का  प्याला पिलाकर विदा कर दिया | बाद में ऊषा जी नें मुझे बताया कि आपसी असहमति का मूल कारण यह था कि जब शकुन्तला जी की नियुक्ति हुयी थी उस समय पीताम्बर जी का विरोधी ग्रुप अध्य्क्ष पद पर काबिज था | पूर्व अध्यक्ष अब भी राजनीति की एक मानी हुयी हस्ती हैं | और चित्रकला उन्हीं से समर्थित हैं शकुन्तला जी इसीलिये उसे प्राथमिकता दे रही हैं | पर पीताम्बर जी भी दांव पेंच के मानें हुये खिलाड़ी हैं | वे  चित्रकला को दूसरे स्थान पर रखवा कर अपनी वरिष्ठता तो सिद्ध कर ही पायेंगें साथ ही विरोधियों को यह भी बता देंगें कि वे क्या करें पैनल में आये सब्जेक्ट एक्सपर्ट नें चित्रलेखा को प्रथम स्थान दे दिया | मैनें सोचा कि यह दोष तो मुझ पर मढ़ा ही जाना है दोनों ही तरुणियाँ पढ़ी -लिखी सुशिक्षित , सुशील हैं और मेरी पुत्रियों के समान हैं | आज नहीं तो कल दोनों ही इस अग्रवाल कालेज में कहीं न कहीं अपना स्थान बना ही लेंगीं | मैनें शकुन्तला जी को प्रधान जी से अलग ले जाकर बात करने की सलाह दी | और बताया कि हम तीनों उनकी सहमति को सहर्ष स्वीकार कर लेंगें | आखिरकार कालेज उन्हें मिलकर चलाना है और नारी शिक्षा के उच्च अभियान में उन्हें हरियाणा राज्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है | पीताम्बर जी और शकुन्तला जी प्राचार्य कक्ष में जाकर कुछ देर बातचीत करते रहे | वहां क्या हुआ मैं नहीं कह सकता | संम्भवतः उन्होंने अन्य किसी से भी सीधे या परोक्ष रूप में सम्पर्क किया हो पर जब वे आये तो वे दोनों इस बात पर सहमत थे कि चित्रलेखा को प्रथम और चित्रकला को द्वितीय स्थान पर रख दिया जाय और अपनी अनुशंसा के साथ सेलेक्शन पैनल इन नामों को डीन ऑफ कॉलेज्स के पास विश्वविद्यालीय स्वीकृति के लिये भेज दें | आपसी टकराव का यह सौहार्दपूर्ण समझौता हम सबके मन को भा गया और फिर देर से प्रतीक्षित तीन बजे का लंच मधुर और मित्रतापूर्ण संवादों ,चुटकुलों और छोटे -मोटे व्यक्तिगत प्रसंगों के बीच काफी रुचिकर लगा | चलते समय पीताम्बर जी नें बलवान हलवायी की दुकान से मगाये हुये कलाकन्द के एक -एक किलो के पैकेट स्मृति स्वरूप भेंट किये और विनम्रता पूर्वक आग्रह किया कि हम इन्कार न करें | यह अग्रवाल कालेज की परम्परा है  | प्राचार्या शकुन्तला जी नें हमें महाविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के सीखनें -समझनें की सूझ देने के लिये आमन्त्रित करने का प्रस्ताव दिया | इतनी सब औपचारिकताओं के बाद ऊषा जी नें हमें घर पर छोड़नें के बात कहकर गाड़ी में बैठनें के लिये आमन्त्रित किया | यद्यपि पीताम्बर जी आग्रह कर रहे थे कि वे अपने ड्राइवर के साथ मुझे घर पर छुड़वा देंगें | पर मैं जिसके साथ आया था और जिसका साथ मुझे सुखद लगा था उस सानिध्य को थोड़ी देर और पा लेने का मोह मुझमें जग आया | पीताम्बर जी को धन्यवाद देते हुये और शकुन्तला जी का आग्रह स्वीकार करते हुये हम रोहतक की ओर चल पड़े | रास्ते में डा ० ऊषा कालिया नें मुझे बताया कि आपका बड़ा बेटा राकेश इन दिनों मंच पर अभिनीत नाटकों में हीरो का पार्ट लेकर काफी चर्चित हो रहा है और तो और उसके साथ की कई मंचीय कलानेत्रियाँ उसके साथ घूमती -फिरती देखी गयी हैं | उन्होंने बातों ही बातों में यह भी बताया कि एकाध जगह जातीय समीकरण न मिलने के कारण कहीं संघर्ष की नौबत न आ जाये | दूसरा बेटा सन्दीप भी वेट लिफ्टिंग और वाक्सिग चैम्पियन होने के नाते कई परिवारों की निगाह में है | उन्होंने स्वयं एक दिन सन्दीप को किसी डान्स क्लब में एक मोहक पार्टनर के साथ थिरकते देखा था | मैं शंकित हो उठा | पर ये तो होना ही है तरुणायी यदि बिना  किसी घटना के घाट जाये तो क्या उसे तरुणायी कहा जा सकता है और फिर उच्च शिक्षित युवक -युवतियां यदि जीवन में प्रयोग नहीं करेंगें तो नयी मंजिलों की तलाश कैसे हो पायेगी | नहीं नहीं मुझे घबराना नहीं चाहिये | अपनी निम्न मध्य वर्गीय मानसिकता से ऊपर उठकर हमें आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करना होगा | निरन्तर बच कर चलते रहना कायरता को बुलावा देना है | मनुष्य का मनुष्य होना ही काफी है | नारी की भी क्या कोई जाति होती है | यह तो वैसे ही हुआ जैसे कोई राजनीतिज्ञ एक तिहायी नारी आरक्षण को लेकर यह कह रहे हैं कि नारियों में भी जाति के आधार पर आरक्षण होना चाहिये | पर आने वाला कल का संसार अनुमान के बल पर गढ़ा नहीं जा सकता काल की अप्रतिहत गति उसे अपने चरण तालों पर स्वयं ही नचा देगी | क्या मेरे जीवन में भी ऐसा नहीं घटा है | क्या रूस की उस  स्वस्थ्य  तरुण युवती ने मुझे अपनी ओर पूरे वेग से नहीं खींच लिया था जब मैं उसे बाम्बे में Elephanta Caves के भ्रमण के दौरान मिला था पर यह तो बहुत पुरानी बात है उस समय मैं था ही क्या 27 -28 वर्ष का तरुण ,पुष्ट वक्षस्थल ,मछली वाली बाहें ,गहरे घने बाल और ज्योतित आभा वाला विशाल माथा | और जिन 11 लड़कों की टीम का मैं प्रोफ़ेसर इन्चार्ज था वे भी तो यह माननें पर विवश हो गये कि रूस की उस सुन्दरी नें उनके उस प्रोफ़ेसर को अपनें प्रेम पाश में जकड़ लिया है | पर सचमुच क्या ऐसा ही था ? क्या यह भ्रम मात्र ही नहीं था और मैं न जानें अवचेतन की किस लहर के आवर्त में घिरकर दशकों पहले Elephanta Caves में होनें वाले उस परिचय वीथिका में विचरण करने लगा जहां हमें उन जर्मन लेडी टूरिस्ट से मुलाक़ात हुयी थी जिनके साथ वह रूसी बाला दक्षिण भारत की यात्रा पर चल निकली थी | दरअसल वह बाला रूस से तो  अकेली ही निकली थी पर दिल्ली आकर वह जरमन लेडी टूरिस्ट के साथ वह उनकी गाड़ी में हो ली थी क्योंकि उसे जर्मन भाषा का भी ज्ञान था जिसका टूटा -फूटा अनुवाद वह अंग्रेजी में कर लेती थी | दक्षिण भारत की यात्रा पर बम्बई होकर जानें वाले लगभग सभी पर्यटक Elephanta Caves न देखें ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता | Ferry से समुद्र की छाती चीरकर जब हम टापू में बनें ElephantaCaves की कलात्मक प्रस्तर मूर्तियों पर पहुंचे तो उनके सौन्दर्य को देखकर अवाक रह गये | अनगढ़ पत्थर को काटकर सौन्दर्य और भब्यता का इतना पावन और सुहावन मूर्ति रूप दर्शक को अवाक कर देता है | भगवान् शिव और जगदम्बा पार्वती की पत्थर काटकर गढ़ी हुयी प्रतिमायें अपनी भव्यता में अदभुत हैं और उनके ऊपर अपनी कान्ति बिखेरता हुआ नवोदित चन्द्रमा | जब मैं वहां पहुँचा तो लगभग 10 जर्मन लेडीज अपने साथ लाई हुयी उस रूसी बाला से यह पूछ रहीं थीं कि वे प्रस्तर प्रतिमायें किसकी हैं और उनके ऊपर चाँद क्यों टिका हुआ है | रूसी बाला अपनी टूटी -फूटी अंग्रेजी में यह बात वहां खड़े एक लोकल गाइड से पूछ रही थी और वह गाइड उसे अपनी उल्टी -सीधी अंग्रेजी में समुद्र मन्थन और उस मन्थन से निकले विष ,अमृत , लक्ष्मी ,ऐरावत , और उच्चश्रवा की बातें बता रहा था | जर्मन लेडी टूरिस्ट यह जानना चाहती थीं कि चन्द्रमा का उन प्रस्तर प्रतिमाओं से क्या सम्बन्ध है और गाइड उन्हें यह बता रहा था कि शिव जी नें विष पी लिया था इसलिये चन्द्रमा उन्हें शीतलता प्रदान कर रहा है | भारतीय परम्परा के अनुसार यह उत्तर ठीक ही कहा जायेगा पर वह रूसी बाला इससे सन्तुष्ट नहीं थी | और न ही सन्तुष्ट थीं वे जर्मन बालायें | कुछ बहस मुवाहियासा चल रहा था और ठीक उसी समय मैं वहां जा पहुंचा | मेरे साथ के विद्यार्थी थोड़ा पीछे कुछ इधर -उधर देखा -दाखी कर रहे थे | मैनेँ गाइड और लेडीज के उस पौराणिक वाद -विवाद को कुछ हल्का करने के लिये हास्य का पुट देकर कहा कि भगवान् शिव और जगदम्बा पार्वती अभी -अभी प्रणय के स्थायी सूत्र में बंध गये हैं और पास -पास बैठे हुये हैं और आने वाले सुखद क्षणों की कल्पना कर रहे हैं | उनके ऊपर चमकता चाँद उसी कल्पना का द्रश्य रूप है | आप जानती ही हैं कि मैरिज के बाद हनीमून मनाया जाता है और भगवान् शिव और माता पार्वती के ऊपर चन्द्रमा का यह टंकन उसी हनीमून का प्रतीक है | इस बात से उन नवयुवतियों में हर्ष की लहर दौड़ गयी और वे ताली बजा -बजा कर तथा अंग थिरकाकर अपनी खुशी व्यक्त करने लगीं | रूसी बाला नें मेरी और देखा ,धन्यवाद किया और क्षण के सतांश में ही अपनी आँखों में न जानें क्या कह डाला इसी बीच मेरे विद्यार्थी मेरे पास आ गये और मुझे उन तरुण सुन्दरियों से घिरा देखकर भौचक्के रह गये |
(क्रमशः )

No comments:

Post a Comment