(गतांक से आगे )
रात्रि विश्राम से पहले राकेश की माँ नें मुझे बताया कि यूथ फैस्टिवल में विश्वविद्यालय की ओर से मोहन राकेश का लिखा हुआ ' आषाढ़ का एक दिन ' नाटक रंग मंच पर अभिनीत होगा | अपना राकेश उसका नायक है और और हिमानी उसकी नायिका | महाकवि कालिदास के जीवन पर आधारित इस नाटक की चर्चा मैं साहित्य जगत में कई बार सुन चुका था और अब रंग मंच पर उसकी परिणित देखने का सुअवसर भी आ रहा था | हिमानी राकेश के साथ एम ० ए ० फाइनल अंग्रेजी में पढ़ रही थी , वे तीन बहनें थीं | और उनके माता पिता सरकारी स्कूल में अध्यापक थे | हिमानी राकेश को भैय्या कहकर पुकारती थी पर राखी का सम्बन्ध शायद अभी तक कायम नहीं हो सका था | कम से कम मेरी नॉलेज में तो ऐसा कुछ नहीं था और न ही राकेश की माँ ने इस सम्बन्ध में कोई सूचना दी थी | मैं जनता था कि भारत के छोटे और मझोले शहरों में युवा नर नारियों के आकर्षण की पहली सीढ़ी भाई बहन के सम्बन्ध का सहारा लेकर चलती है पर शिक्षा की ऊंची सोपानों पर पहुंचे हुये तरुण और तरुणियाँ हो सकता है कहीं अधिक ईमानदार हों और उनके सम्बन्ध पवित्र साव्य भावना पर आधारित हों | राजकीय कन्या महाविद्यालय कालिदास के लिखे हुये शकुन्तला नाटक को रंगमंच अभिनीत करने जा रहा था | सीमा इसी कालेज में बी ० एस ० सी ० (बायलॉजी ) अन्तिम वर्ष में पढ़ रही थी और अभिज्ञान शाकुन्तलम में नायिका की भूमिका के लिये चयनित हुयी थी | थी भी तो वह रूप रंग और आचरण में दुष्यन्त प्रिया शकुन्तला के समान ही | यूथ फैस्टिवल में संम्भवतः चौबीस या पच्चीस महाविद्यालयों नें प्रतियोगिता में नामांकन कराया था | यों तो प्रतिभा प्रदर्शन के सभी क्षेत्रों में कड़ा मुकाबला था पर नाटक प्रतिस्पर्धा शहर तो क्या राज्य में भी चर्चा का विषय बन जाती थी | डिबेट डिक्लेमेशन कॉन्टेस्ट ,सिम्पोजियम , काव्य पाठ , चित्रकला , एकल अभिनय और पपेटरी सभी दर्शकों और श्रोताओं को बांधें रखते थे पर नाटकों में तो हजारों दर्शक भाव विभोर होकर Pin Drop साइलेन्स के साथ रंग मंचीय कलाकारों का अभिनय कौशल देखते थे | तीन दिन तक नाटक प्रतिस्पर्धा चलती रही | दूसरे दिन की संध्या को अषाढ़ का एक दिन प्रस्तुत किया गया | दर्शक भाव विभोर हो गये ,कालिदास का उत्थान और उस उत्थान को प्रेरणा देने वाली उसकी ग्राम्य प्रेमिका दोनों के रोल सराहे गये पर कालिदास के रूप में अन्तर मन्थन और परस्पर घात प्रतिघात करती हुयी भाव लहरियों का अत्यन्त शशक्त प्रदर्शन निर्णायकों के मन पर जादू का सा असर कर गया | तीसरे दिन की संध्या में अभिज्ञान शाकुन्तलम अभिनीत हुआ | मृग का पीछा करते हुये अश्व रथारूढ़ दुष्यन्त महर्षि कण्व के आश्रम में आये और फिर शकुन्तला से उनका प्रथम परिचय और प्रणय की प्रथम सहज ,सरल और भोली अभिव्यक्ति सभी दर्शकों का मन छू गयी | शकुन्तला के रूप में सीमा नें दर्शकों के मन पर सम्मोहन मन्त्र चला दिया | काँटों से उलझते अपनें परिधान को मुक्त करानें के लिये बार -बार मुड़कर दुष्यन्त की ओर इंगित प्रणय चितवन न जानें कितनें तरुण हृदयों पर प्रेम छुरी की मार कर गयी | रात्रि 11 बजे के बाद निर्णायक मण्डल को अपना निर्णय देनें के लिये मंच पर आहूत किया गया | जहां तक मुझे याद है मैं समझता हूँ इस निर्णायक मण्डल में साहित्य के लब्ध प्रतिष्ठ रचयिता शामिल थे | "आवारा मसीहा " के लेखक विष्णु प्रभाकर ,प्रसिद्ध गीतकार रामनाथ अवस्थी और नाटक समीक्षक डा ० पूरन चन्द्र निर्णायकों के पैनल में थे | विष्णु प्रभाकर ने सर्वश्रेष्ठ नाटक के रूप में राजकीय महाविद्यालय द्वारा अभिनीत अभिज्ञान शाकुन्तलम को आधिकारिक गौरव प्रदान किया | अषाढ़ का एक दिन दूसरे स्थान का अधिकारी माना गया और बिशप कैन्डिलस्टिक को तीसरे स्थान पर रखा गया | सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में आषाढ़ का एक दिन के नायक कालिदास की घोषणा हुयी | और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में अभिज्ञान शाकुन्तलम की नायिका को चुना गया | तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पण्डाल में अपनें नाटकीय भेष में जब सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और अभिनेत्री पुरुष्कार लेने मंच पर पहुंचे तो कैमरों से बीसों फ्लैश बल्ब उनकी छवि अंकित करने के लिये मचल पड़े | हम प्रौढ़ और वृद्ध व्यक्तियों के लिये यह द्रश्य एक सहज शैक्षिक घटना के रूप में दिखायी पड़ता है पर तरुणायी की दहलीज पर खड़े सैकड़ों हजारों किशोर किशोरियों के दिल पर इस प्रकार के द्रश्य अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं | एक कालेज के अंग्रेजी विभाग का अध्य्क्ष होनें के नाते मैं दर्शकों की अगली पंक्ति में बैठा था और इस सत्य को स्वीकारने में मुझे आज कोई संकोच नहीं है कि मुझे अपनें बेटे राकेश और भाई दुलीचन्द्र की बेटी सीमा के अभिनय नें काफी प्रभावित किया | मुझे लगा कि उनमें केवल अभिनय क्षमता ही नहीं जीवन के गहरे और टिकाऊ मूल्यों को सजोनें की युवा शक्ति भी है | भविष्य की अपार सम्भावनायें उन्हें चुनौतियां देकर अपनी ओर बुला सकती थीं | अगला दिन विश्वविद्यालय और उससे सम्बन्धित कॉलेजों में अवकाश का दिन था | महामहिम राज्यपाल को मुख्य अतिथि के रूप में पारितोषिक वितरण के लिये बुलाकर विश्वविद्यालय नें उनके सम्मान में अवकाश की घोषणा की थी | यों भी महीनों से व्यस्त तरुण कलाकार ,चितेरे ,शब्द योद्धा और नवोदित कवि पूर्ण विश्राम की मांग करते थे | शनिवार के अवकाश के बाद रविवार था और दो दिनों का यह आराम उन्हें फिर से स्फूर्ति प्रदान करने के लिये आवश्यक था | रविवार के दिन सीमा अपनें पिता के साथ मेरे घर आयी | सायं आठ बजे का टाइम रहा होगा | अन्य दिनों इस समय राकेश घर पर नहीं हुआ करता था और अपनें मित्रों के पास से नौ बजे के आस -पास घर लौटता था | पर आज वह शाम सात बजे के बाद कहीं गया ही नहीं | मेरे अनुभव नें मुझे बताया कि शायद सीमा के आने की पूर्व सूचना उसे रही होगी और इसीलिये वह अपनी मां के पास इधर उधर की बातें करता बैठा रहा था | दुलीचन्द्र नें मुझे बताया कि प्लस टू के बाद सीमा को मेडिकल कम्पीटीशन में इसलिये नहीं बिठाया था कि मैं चाहता था कि वह एक ग्रेजुएट हो जाय तब एम ० बी ० बी ० एस ० की परीक्षा में पूर्ण विश्वास के साथ प्रवेश करे | सीमा मेरी पत्नी के पास गयी और वहीं पर राकेश और वह मां के पास हँसते बोलते रहे | और अपनी उपलब्धियों का बखान करते रहे | दुलीचन्द्र नें कहा गुरुवार बच्चे बड़े हो रहे हैं हमें इनके लिये जीवन निर्माण की राह तलाशनी होगी | मैनें कहा भाई दुली सीमा को मेडिकल कालेज में प्रवेश करने दो और मैं यह देखना चाहूंगा कि राकेश के कितने प्रतिशत अंग्रेजी एम ० ए ० पार करता है तभी उसके लिये किसी करियर का निर्णय किया जा सकेगा | भारतीय प्रशासनिक सेवा में उसकी पैठ हो जाय तो कहना ही क्या , नहीं तो मैं उसे अध्यापन के क्षेत्र में उतारने के बजाय बैंकिंग सेवा में भेजना ज्यादा अच्छा समझूंगा | बातें आयी गयी हुयी और काल चक्र अपनी अनवरत गति से बढ़ता रहा | परीक्षाओं का समय नजदीक आ चुका था | कालेज की क्लासेज प्रिपेटरी लीव पर जा चुकी थी | संध्या के समय मेरा मन उदास सा होने लगा था ऐसा लगता था कि उम्र का बोझ शरीर के साथ मन पर भी पड़ रहा है | सोचा क्यों न परिणय पार्क में शाम के समय थोड़ा घूम आया करूँ | राकेश की माता जी को साथ चलने को कहा तो उसने घर के काम काज और चार बच्चों के आहार विश्राम की चर्चा की और कहा कि उसके पास समय ही कहाँ है | मई महीनें की चौदह या पन्द्रह तारीख थी जब मैं रात्रि के साढ़े आठ बजे परिणय पार्क की बदली भरी बीथियों में चक्कर लगा रहा था | तीन चौथायी चाँद का हल्का प्रकाश दूर तक फैले पार्क के पादप पुष्पों से अटखेलियां कर रहा था | मैं घूमता हुआ भी अपनें मन की चिन्ता गुहाओं में फंसा हुआ था | राकेश तो बड़ा हो ही गया है बाइस तेइस के आस पास | सन्दीप भी बीस पार कर रहा है यह बहुत अच्छा है कि वह अपने वेट में यूनिवर्सिटी का बॉक्सिंग चैम्पियन बन गया है | अंग्रेजी भी अच्छी बोल लेता है | हो सकता है भारतीय सेना में कमीशन पा जाय | माना कि आज कमीशन पाना कोई उपलब्धि नहीं मानी जाती है और मल्टीनेशनल कम्पनीज में कार्यरत एम ० बी ० ए ० उसे अपने बराबर का नहीं मानते फिर भी कमीशन तो कमीशन ही है राष्ट्र की सेवा में जीवन दान का संकल्प, भयमुक्त ,भ्रष्टाचारमुक्त , उच्च मूल्यों पर आधारित संकल्पित पवित्र जीवन | पर सन्दीप से पहले तो अपर्णा को सोचना होगा | वह भी अठ्ठारह की हो चुकी है | एकाध साल में स्नातक हो जायेगी फिर क्या करवाना है उसे | अरे भाई एम ० ए ० और मास्टरी नहीं पत्रकारिता का क्षेत्र कैसा रहेगा पर मध्य वर्गीय समाज में लड़की को जोखिम भरे कामों में डालना क्या ठीक रहेगा | फिर अठारह के बाद क़ानून के द्वारा शादी की सहमति भी तो दे दी गयी है क्यों न उसके लिये जीवन साथी चुननें की स्वतन्त्रता दी जाय पर क्या वह इतनी हिम्मत कर पायेगी | उसकी मां जो उच्च कुलीन हिन्दू नारी के आरोपित जीवन मूल्यों को ही सबसे बड़ी पूंजी मानती है अपनी बेटी को वरण की स्वतन्त्रता कैसे दे सकेगी | अभी भी तो वह बात बात में आपने को बीस बिस्वा के घर में जन्मनें के लिये प्रभु को धन्यवाद देती रहती है | कान्यकुब्ज ब्राम्हणों का यह बीघा बिस्वा वाला विश्वास तोड़कर उसे मनोवैज्ञानिक रूप से घायल करना क्या मेरे लिये उचित होगा | निराला की पंक्तियाँ मन में गूँजनें लगीं |
" धन्ये मैं पिता निरर्थक था
तेरे हित मैं कुछ कर न सका
पहनाकर तुझको चीनांशुक
रख सका न मैं तुमको दधि मुख | "
पर नहीं मैनें अपनी एकमात्र बच्ची के लिये सभी कुछ तो किया है | ठीक है की वह राजमहल में नहीं पल रही है | पर उसके पास एक कमरा तो है | नहीं नहीं मैं इसे अपना जीवन जीनें की स्वतन्त्रता दूंगा | मैं उसे सुद्रढ़ आर्थिक आधार देनें के लिये मार्ग प्रशस्त करूंगा | मैं ढकोसलों और विस्वों की झूठी मर्यादा को चुनौती दूंगा | सत्य को स्वीकारनें की करने की हिम्मत ही तो पुरुष को पुरुष बनाती है | हाँ चलो उसे स्नातक तो होने दो और सबसे छोटा जो अभी दसवीं में पहली श्रेणीं में उत्तीर्ण हुआ है उसके लिये क्या क्या करना होगा ,उसे अभी से कवितायेँ लिखने का शौक है | पर भाई कवितायें वो भी हिन्दी में उन्हें कौन पूछता है | रामावतार त्यागी नें ठीक ही तो लिखा है , " मैनें अपनी बीमार जिन्दगी में जो अब तक गीत लिखे हैं उन सबको बेचूँ तो शायद आधा कफ़न मुझे मिल जाये | " अरे नहीं उसे भी अंग्रेजी भाषा में निष्णांत करना होगा | बनने दो उसे राजा राव ,बनने दो उसे आर ० के ० नारायण , बनने दो उसे खुशवन्त सिंह , बनने दो उसे अभिताव घोष हाँ मैं नहीं चाहूंगा कि सलमान रशीदी की राह पकड़े क्योंकि वह राह तो उसे हमेशा के लिये बेघर बना सकती है | अरे छोड़ो भी इन बातों को परिणय पार्क की बजरी भरी राहों पर मेरे दिमाग का यह पचड़ा धुंधली छायायें फेंक रहा है | सभी कुछ योजना के मुताबिक़ नहीं चलता | किसी कवि नें ठीक ही तो कहा है , " If wishes were horses Everybody could ride them. " बाबा तुलसी दास भी अपना स्पष्ट मत दे रहे हैं , " हुईहै सोहि जो राम रचि रखा ,को करि तर्क बढ़ावै साखा | "
पर क्या अनिश्चय नियति के सहारे सभी कुछ छोड़ देना उचित होगा | यह तो आजीवकों का मार्ग हुआ नहीं नहीं पूर्व योजनायें तो बनानी ही चाहिये | अरे यह किसकी लाइनें हैं जो फिर मेरे दिमाग में गूँज उठीं क्या Robert Burns की " Well laid schemes of mice and men off gleg a gley." अरे यह हर वख्त किताबों की लाइनों में उलझे रहना दिमागी फितूर ही है | अम्माँ ठीक ही कहती थीं लाला बहुत पढ़ लिख चुके अब कुछ प्रभु स्मरण करो | काफी समय हो गया चलो अब घर वापस चलते हैं | अधिक देर होने पर डांट का मिलना तो सुनिश्चत ही है पर यह क्या मौल श्री कुन्ज के धुंधलके में किसी तरुण और तरुणीं का स्वर | यह स्वर तो कुछ पहचाने लग रहे हैं | नहीं नहीं राकेश और हिमानी यह मेरा भ्रम मात्र है मुझे उस ओर नहीं देखना चाहिये | शीघ्र द्रुतगामी कदमों से मैं पार्क से बाहर आ जाता हूँ और घर की ओर चल पड़ता हूँ | मेरा नियोजक होने का अभिमान चूर -चूर हो जाता है | मैं क्या हूँ वायु के झकोरों पर उड़ता हुआ एक तिनका | जीवन प्रकृति निर्मित मार्गों पर अवाधित गति से बढ़ रही है | | मेरे बच्चे मेरी प्रतिकृति नहीं हैं उन्हें हम हर नीति पर एक निर्धारित सांचे के अनुसार ढलान नहीं दे सकते चलो घर देखते हैं शायद राकेश घर पर ही हो ऐसा हुआ तो मुझे क्या किसी मनोचिकित्सक के उपचार की आवश्यकता पड़ेगी | वापस मार्ग में पाराशर जी मिल गये बोले अवस्थी जी कल सभी अराजकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों की आम सभा है | आप तक सूचना पहुँच ही चुकी होगी | | मुख्य मन्त्री जी यू ० जी ० सी० द्वारा निर्धारित नये वेतनमानों को लागू नहीं करना चाह रहे हैं | हमें आन्दोलन छेड़ना होगा | राज्य व्यापी हड़ताल की योजना बनायी जा रही है | आपको तीन शहरों रोहतक ,हिसार और सोनीपत का शिक्षक सेनापति बनाया जा रहा है | मोर्चा संभ्भालिये | कल आपको अनाजमण्डी में आयोजित होने वाली आम सभा में लेक्चर देना है | वंशी लाल जी की तानाशाही का प्रतिरोध करना हम सबका कर्तव्य है | डा ० मंगल सेन कल सुबह आप से भेंट करना चाहेंगें |
जीने दो राकेश ,गरिमा और सीमा को अपना जीवन | खोजने दो सन्दीप को अपना कैरियर | वरण करने दो अपर्णा को अपना जीवन साथी और चुननें दो छोटू सुधीर को कविता का मार्ग अब तो बजानी है रणभेरी जिसका परिणाम पहले से ही सुनिश्चित है | रोहतक में बनें नवनिर्मित केन्द्रीय जेल में बी ० कैटागिरी का अतिथि बनकर रहना चलो जीवन में स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने का सुअवसर नहीं मिला तो अब अध्यापक संघर्ष में आहुति देने की चुनौती भी तो एक अवसर बनकर आयी है | घबरा मत अवस्थी याद कर वह पंक्तियाँ , " मैनें उसको जब जब देखा लोहा देखा
लोहा जैसा गलते देखा
लोहा जैसा ढलते देखा
मैनें उसको गोली जैसा चलते देखा | "
स्वीकार है मुझे सत्ताधारियों की यह ललकार | करूंगा पूंजीवादी व्यवस्था से दो दो हाँथ | जय और पराजय पर हमारा अधिकार नहीं पर कर्म पर तो है | गीता का यही तो सन्देश है | जागो फिर एक बार सिंह की म्यादी में आज घुस आया स्यार ,योग्य जन जीता है पश्चिम की उक्ति नहीं गीता है गीता है |
एक जैसा काम एक जैसी विश्वविद्यालय परीक्षायें तो फिर राजकीय विद्यालयों के समान वेतनमान क्यों नहीं | मैथलीशरण जी नें तभी तो लिखा है , " अन्याय सहकर बैठ रहना यह महा दुष्कर्म है ,न्यायार्थ अपनें बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है | " घर पहुंचा तो राकेश का हँसता हुआ चेहरा बैठक में दिखायी पड़ा | मन ही मन बड़ा शर्मिन्दा हुआ कि मैं कुछ अन्यथा कैसे सोचने लगा था पर तभी राकेश की मां के पास किसी तरुणीं की मधुर हास्य भरी आवाज आयी और मैं जान गया कि मैं पाराशर जी की बातों में उलझ कर रुक गया था | उस बीच यह दोनों हिमानी की गाड़ी में घर वापस आ गये थे | | भविष्य परदे के पीछे क्या छिपाये है | उत्थान की ओजमयी प्रकाश आभा या पतन के गर्त में ले जाने वाली कीचड़ भरी राह | बन्द करो सोचना उठनें दो समय का पर्दा |
( क्रमशः )
रात्रि विश्राम से पहले राकेश की माँ नें मुझे बताया कि यूथ फैस्टिवल में विश्वविद्यालय की ओर से मोहन राकेश का लिखा हुआ ' आषाढ़ का एक दिन ' नाटक रंग मंच पर अभिनीत होगा | अपना राकेश उसका नायक है और और हिमानी उसकी नायिका | महाकवि कालिदास के जीवन पर आधारित इस नाटक की चर्चा मैं साहित्य जगत में कई बार सुन चुका था और अब रंग मंच पर उसकी परिणित देखने का सुअवसर भी आ रहा था | हिमानी राकेश के साथ एम ० ए ० फाइनल अंग्रेजी में पढ़ रही थी , वे तीन बहनें थीं | और उनके माता पिता सरकारी स्कूल में अध्यापक थे | हिमानी राकेश को भैय्या कहकर पुकारती थी पर राखी का सम्बन्ध शायद अभी तक कायम नहीं हो सका था | कम से कम मेरी नॉलेज में तो ऐसा कुछ नहीं था और न ही राकेश की माँ ने इस सम्बन्ध में कोई सूचना दी थी | मैं जनता था कि भारत के छोटे और मझोले शहरों में युवा नर नारियों के आकर्षण की पहली सीढ़ी भाई बहन के सम्बन्ध का सहारा लेकर चलती है पर शिक्षा की ऊंची सोपानों पर पहुंचे हुये तरुण और तरुणियाँ हो सकता है कहीं अधिक ईमानदार हों और उनके सम्बन्ध पवित्र साव्य भावना पर आधारित हों | राजकीय कन्या महाविद्यालय कालिदास के लिखे हुये शकुन्तला नाटक को रंगमंच अभिनीत करने जा रहा था | सीमा इसी कालेज में बी ० एस ० सी ० (बायलॉजी ) अन्तिम वर्ष में पढ़ रही थी और अभिज्ञान शाकुन्तलम में नायिका की भूमिका के लिये चयनित हुयी थी | थी भी तो वह रूप रंग और आचरण में दुष्यन्त प्रिया शकुन्तला के समान ही | यूथ फैस्टिवल में संम्भवतः चौबीस या पच्चीस महाविद्यालयों नें प्रतियोगिता में नामांकन कराया था | यों तो प्रतिभा प्रदर्शन के सभी क्षेत्रों में कड़ा मुकाबला था पर नाटक प्रतिस्पर्धा शहर तो क्या राज्य में भी चर्चा का विषय बन जाती थी | डिबेट डिक्लेमेशन कॉन्टेस्ट ,सिम्पोजियम , काव्य पाठ , चित्रकला , एकल अभिनय और पपेटरी सभी दर्शकों और श्रोताओं को बांधें रखते थे पर नाटकों में तो हजारों दर्शक भाव विभोर होकर Pin Drop साइलेन्स के साथ रंग मंचीय कलाकारों का अभिनय कौशल देखते थे | तीन दिन तक नाटक प्रतिस्पर्धा चलती रही | दूसरे दिन की संध्या को अषाढ़ का एक दिन प्रस्तुत किया गया | दर्शक भाव विभोर हो गये ,कालिदास का उत्थान और उस उत्थान को प्रेरणा देने वाली उसकी ग्राम्य प्रेमिका दोनों के रोल सराहे गये पर कालिदास के रूप में अन्तर मन्थन और परस्पर घात प्रतिघात करती हुयी भाव लहरियों का अत्यन्त शशक्त प्रदर्शन निर्णायकों के मन पर जादू का सा असर कर गया | तीसरे दिन की संध्या में अभिज्ञान शाकुन्तलम अभिनीत हुआ | मृग का पीछा करते हुये अश्व रथारूढ़ दुष्यन्त महर्षि कण्व के आश्रम में आये और फिर शकुन्तला से उनका प्रथम परिचय और प्रणय की प्रथम सहज ,सरल और भोली अभिव्यक्ति सभी दर्शकों का मन छू गयी | शकुन्तला के रूप में सीमा नें दर्शकों के मन पर सम्मोहन मन्त्र चला दिया | काँटों से उलझते अपनें परिधान को मुक्त करानें के लिये बार -बार मुड़कर दुष्यन्त की ओर इंगित प्रणय चितवन न जानें कितनें तरुण हृदयों पर प्रेम छुरी की मार कर गयी | रात्रि 11 बजे के बाद निर्णायक मण्डल को अपना निर्णय देनें के लिये मंच पर आहूत किया गया | जहां तक मुझे याद है मैं समझता हूँ इस निर्णायक मण्डल में साहित्य के लब्ध प्रतिष्ठ रचयिता शामिल थे | "आवारा मसीहा " के लेखक विष्णु प्रभाकर ,प्रसिद्ध गीतकार रामनाथ अवस्थी और नाटक समीक्षक डा ० पूरन चन्द्र निर्णायकों के पैनल में थे | विष्णु प्रभाकर ने सर्वश्रेष्ठ नाटक के रूप में राजकीय महाविद्यालय द्वारा अभिनीत अभिज्ञान शाकुन्तलम को आधिकारिक गौरव प्रदान किया | अषाढ़ का एक दिन दूसरे स्थान का अधिकारी माना गया और बिशप कैन्डिलस्टिक को तीसरे स्थान पर रखा गया | सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में आषाढ़ का एक दिन के नायक कालिदास की घोषणा हुयी | और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में अभिज्ञान शाकुन्तलम की नायिका को चुना गया | तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पण्डाल में अपनें नाटकीय भेष में जब सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और अभिनेत्री पुरुष्कार लेने मंच पर पहुंचे तो कैमरों से बीसों फ्लैश बल्ब उनकी छवि अंकित करने के लिये मचल पड़े | हम प्रौढ़ और वृद्ध व्यक्तियों के लिये यह द्रश्य एक सहज शैक्षिक घटना के रूप में दिखायी पड़ता है पर तरुणायी की दहलीज पर खड़े सैकड़ों हजारों किशोर किशोरियों के दिल पर इस प्रकार के द्रश्य अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं | एक कालेज के अंग्रेजी विभाग का अध्य्क्ष होनें के नाते मैं दर्शकों की अगली पंक्ति में बैठा था और इस सत्य को स्वीकारने में मुझे आज कोई संकोच नहीं है कि मुझे अपनें बेटे राकेश और भाई दुलीचन्द्र की बेटी सीमा के अभिनय नें काफी प्रभावित किया | मुझे लगा कि उनमें केवल अभिनय क्षमता ही नहीं जीवन के गहरे और टिकाऊ मूल्यों को सजोनें की युवा शक्ति भी है | भविष्य की अपार सम्भावनायें उन्हें चुनौतियां देकर अपनी ओर बुला सकती थीं | अगला दिन विश्वविद्यालय और उससे सम्बन्धित कॉलेजों में अवकाश का दिन था | महामहिम राज्यपाल को मुख्य अतिथि के रूप में पारितोषिक वितरण के लिये बुलाकर विश्वविद्यालय नें उनके सम्मान में अवकाश की घोषणा की थी | यों भी महीनों से व्यस्त तरुण कलाकार ,चितेरे ,शब्द योद्धा और नवोदित कवि पूर्ण विश्राम की मांग करते थे | शनिवार के अवकाश के बाद रविवार था और दो दिनों का यह आराम उन्हें फिर से स्फूर्ति प्रदान करने के लिये आवश्यक था | रविवार के दिन सीमा अपनें पिता के साथ मेरे घर आयी | सायं आठ बजे का टाइम रहा होगा | अन्य दिनों इस समय राकेश घर पर नहीं हुआ करता था और अपनें मित्रों के पास से नौ बजे के आस -पास घर लौटता था | पर आज वह शाम सात बजे के बाद कहीं गया ही नहीं | मेरे अनुभव नें मुझे बताया कि शायद सीमा के आने की पूर्व सूचना उसे रही होगी और इसीलिये वह अपनी मां के पास इधर उधर की बातें करता बैठा रहा था | दुलीचन्द्र नें मुझे बताया कि प्लस टू के बाद सीमा को मेडिकल कम्पीटीशन में इसलिये नहीं बिठाया था कि मैं चाहता था कि वह एक ग्रेजुएट हो जाय तब एम ० बी ० बी ० एस ० की परीक्षा में पूर्ण विश्वास के साथ प्रवेश करे | सीमा मेरी पत्नी के पास गयी और वहीं पर राकेश और वह मां के पास हँसते बोलते रहे | और अपनी उपलब्धियों का बखान करते रहे | दुलीचन्द्र नें कहा गुरुवार बच्चे बड़े हो रहे हैं हमें इनके लिये जीवन निर्माण की राह तलाशनी होगी | मैनें कहा भाई दुली सीमा को मेडिकल कालेज में प्रवेश करने दो और मैं यह देखना चाहूंगा कि राकेश के कितने प्रतिशत अंग्रेजी एम ० ए ० पार करता है तभी उसके लिये किसी करियर का निर्णय किया जा सकेगा | भारतीय प्रशासनिक सेवा में उसकी पैठ हो जाय तो कहना ही क्या , नहीं तो मैं उसे अध्यापन के क्षेत्र में उतारने के बजाय बैंकिंग सेवा में भेजना ज्यादा अच्छा समझूंगा | बातें आयी गयी हुयी और काल चक्र अपनी अनवरत गति से बढ़ता रहा | परीक्षाओं का समय नजदीक आ चुका था | कालेज की क्लासेज प्रिपेटरी लीव पर जा चुकी थी | संध्या के समय मेरा मन उदास सा होने लगा था ऐसा लगता था कि उम्र का बोझ शरीर के साथ मन पर भी पड़ रहा है | सोचा क्यों न परिणय पार्क में शाम के समय थोड़ा घूम आया करूँ | राकेश की माता जी को साथ चलने को कहा तो उसने घर के काम काज और चार बच्चों के आहार विश्राम की चर्चा की और कहा कि उसके पास समय ही कहाँ है | मई महीनें की चौदह या पन्द्रह तारीख थी जब मैं रात्रि के साढ़े आठ बजे परिणय पार्क की बदली भरी बीथियों में चक्कर लगा रहा था | तीन चौथायी चाँद का हल्का प्रकाश दूर तक फैले पार्क के पादप पुष्पों से अटखेलियां कर रहा था | मैं घूमता हुआ भी अपनें मन की चिन्ता गुहाओं में फंसा हुआ था | राकेश तो बड़ा हो ही गया है बाइस तेइस के आस पास | सन्दीप भी बीस पार कर रहा है यह बहुत अच्छा है कि वह अपने वेट में यूनिवर्सिटी का बॉक्सिंग चैम्पियन बन गया है | अंग्रेजी भी अच्छी बोल लेता है | हो सकता है भारतीय सेना में कमीशन पा जाय | माना कि आज कमीशन पाना कोई उपलब्धि नहीं मानी जाती है और मल्टीनेशनल कम्पनीज में कार्यरत एम ० बी ० ए ० उसे अपने बराबर का नहीं मानते फिर भी कमीशन तो कमीशन ही है राष्ट्र की सेवा में जीवन दान का संकल्प, भयमुक्त ,भ्रष्टाचारमुक्त , उच्च मूल्यों पर आधारित संकल्पित पवित्र जीवन | पर सन्दीप से पहले तो अपर्णा को सोचना होगा | वह भी अठ्ठारह की हो चुकी है | एकाध साल में स्नातक हो जायेगी फिर क्या करवाना है उसे | अरे भाई एम ० ए ० और मास्टरी नहीं पत्रकारिता का क्षेत्र कैसा रहेगा पर मध्य वर्गीय समाज में लड़की को जोखिम भरे कामों में डालना क्या ठीक रहेगा | फिर अठारह के बाद क़ानून के द्वारा शादी की सहमति भी तो दे दी गयी है क्यों न उसके लिये जीवन साथी चुननें की स्वतन्त्रता दी जाय पर क्या वह इतनी हिम्मत कर पायेगी | उसकी मां जो उच्च कुलीन हिन्दू नारी के आरोपित जीवन मूल्यों को ही सबसे बड़ी पूंजी मानती है अपनी बेटी को वरण की स्वतन्त्रता कैसे दे सकेगी | अभी भी तो वह बात बात में आपने को बीस बिस्वा के घर में जन्मनें के लिये प्रभु को धन्यवाद देती रहती है | कान्यकुब्ज ब्राम्हणों का यह बीघा बिस्वा वाला विश्वास तोड़कर उसे मनोवैज्ञानिक रूप से घायल करना क्या मेरे लिये उचित होगा | निराला की पंक्तियाँ मन में गूँजनें लगीं |
" धन्ये मैं पिता निरर्थक था
तेरे हित मैं कुछ कर न सका
पहनाकर तुझको चीनांशुक
रख सका न मैं तुमको दधि मुख | "
पर नहीं मैनें अपनी एकमात्र बच्ची के लिये सभी कुछ तो किया है | ठीक है की वह राजमहल में नहीं पल रही है | पर उसके पास एक कमरा तो है | नहीं नहीं मैं इसे अपना जीवन जीनें की स्वतन्त्रता दूंगा | मैं उसे सुद्रढ़ आर्थिक आधार देनें के लिये मार्ग प्रशस्त करूंगा | मैं ढकोसलों और विस्वों की झूठी मर्यादा को चुनौती दूंगा | सत्य को स्वीकारनें की करने की हिम्मत ही तो पुरुष को पुरुष बनाती है | हाँ चलो उसे स्नातक तो होने दो और सबसे छोटा जो अभी दसवीं में पहली श्रेणीं में उत्तीर्ण हुआ है उसके लिये क्या क्या करना होगा ,उसे अभी से कवितायेँ लिखने का शौक है | पर भाई कवितायें वो भी हिन्दी में उन्हें कौन पूछता है | रामावतार त्यागी नें ठीक ही तो लिखा है , " मैनें अपनी बीमार जिन्दगी में जो अब तक गीत लिखे हैं उन सबको बेचूँ तो शायद आधा कफ़न मुझे मिल जाये | " अरे नहीं उसे भी अंग्रेजी भाषा में निष्णांत करना होगा | बनने दो उसे राजा राव ,बनने दो उसे आर ० के ० नारायण , बनने दो उसे खुशवन्त सिंह , बनने दो उसे अभिताव घोष हाँ मैं नहीं चाहूंगा कि सलमान रशीदी की राह पकड़े क्योंकि वह राह तो उसे हमेशा के लिये बेघर बना सकती है | अरे छोड़ो भी इन बातों को परिणय पार्क की बजरी भरी राहों पर मेरे दिमाग का यह पचड़ा धुंधली छायायें फेंक रहा है | सभी कुछ योजना के मुताबिक़ नहीं चलता | किसी कवि नें ठीक ही तो कहा है , " If wishes were horses Everybody could ride them. " बाबा तुलसी दास भी अपना स्पष्ट मत दे रहे हैं , " हुईहै सोहि जो राम रचि रखा ,को करि तर्क बढ़ावै साखा | "
पर क्या अनिश्चय नियति के सहारे सभी कुछ छोड़ देना उचित होगा | यह तो आजीवकों का मार्ग हुआ नहीं नहीं पूर्व योजनायें तो बनानी ही चाहिये | अरे यह किसकी लाइनें हैं जो फिर मेरे दिमाग में गूँज उठीं क्या Robert Burns की " Well laid schemes of mice and men off gleg a gley." अरे यह हर वख्त किताबों की लाइनों में उलझे रहना दिमागी फितूर ही है | अम्माँ ठीक ही कहती थीं लाला बहुत पढ़ लिख चुके अब कुछ प्रभु स्मरण करो | काफी समय हो गया चलो अब घर वापस चलते हैं | अधिक देर होने पर डांट का मिलना तो सुनिश्चत ही है पर यह क्या मौल श्री कुन्ज के धुंधलके में किसी तरुण और तरुणीं का स्वर | यह स्वर तो कुछ पहचाने लग रहे हैं | नहीं नहीं राकेश और हिमानी यह मेरा भ्रम मात्र है मुझे उस ओर नहीं देखना चाहिये | शीघ्र द्रुतगामी कदमों से मैं पार्क से बाहर आ जाता हूँ और घर की ओर चल पड़ता हूँ | मेरा नियोजक होने का अभिमान चूर -चूर हो जाता है | मैं क्या हूँ वायु के झकोरों पर उड़ता हुआ एक तिनका | जीवन प्रकृति निर्मित मार्गों पर अवाधित गति से बढ़ रही है | | मेरे बच्चे मेरी प्रतिकृति नहीं हैं उन्हें हम हर नीति पर एक निर्धारित सांचे के अनुसार ढलान नहीं दे सकते चलो घर देखते हैं शायद राकेश घर पर ही हो ऐसा हुआ तो मुझे क्या किसी मनोचिकित्सक के उपचार की आवश्यकता पड़ेगी | वापस मार्ग में पाराशर जी मिल गये बोले अवस्थी जी कल सभी अराजकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों की आम सभा है | आप तक सूचना पहुँच ही चुकी होगी | | मुख्य मन्त्री जी यू ० जी ० सी० द्वारा निर्धारित नये वेतनमानों को लागू नहीं करना चाह रहे हैं | हमें आन्दोलन छेड़ना होगा | राज्य व्यापी हड़ताल की योजना बनायी जा रही है | आपको तीन शहरों रोहतक ,हिसार और सोनीपत का शिक्षक सेनापति बनाया जा रहा है | मोर्चा संभ्भालिये | कल आपको अनाजमण्डी में आयोजित होने वाली आम सभा में लेक्चर देना है | वंशी लाल जी की तानाशाही का प्रतिरोध करना हम सबका कर्तव्य है | डा ० मंगल सेन कल सुबह आप से भेंट करना चाहेंगें |
जीने दो राकेश ,गरिमा और सीमा को अपना जीवन | खोजने दो सन्दीप को अपना कैरियर | वरण करने दो अपर्णा को अपना जीवन साथी और चुननें दो छोटू सुधीर को कविता का मार्ग अब तो बजानी है रणभेरी जिसका परिणाम पहले से ही सुनिश्चित है | रोहतक में बनें नवनिर्मित केन्द्रीय जेल में बी ० कैटागिरी का अतिथि बनकर रहना चलो जीवन में स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने का सुअवसर नहीं मिला तो अब अध्यापक संघर्ष में आहुति देने की चुनौती भी तो एक अवसर बनकर आयी है | घबरा मत अवस्थी याद कर वह पंक्तियाँ , " मैनें उसको जब जब देखा लोहा देखा
लोहा जैसा गलते देखा
लोहा जैसा ढलते देखा
मैनें उसको गोली जैसा चलते देखा | "
स्वीकार है मुझे सत्ताधारियों की यह ललकार | करूंगा पूंजीवादी व्यवस्था से दो दो हाँथ | जय और पराजय पर हमारा अधिकार नहीं पर कर्म पर तो है | गीता का यही तो सन्देश है | जागो फिर एक बार सिंह की म्यादी में आज घुस आया स्यार ,योग्य जन जीता है पश्चिम की उक्ति नहीं गीता है गीता है |
एक जैसा काम एक जैसी विश्वविद्यालय परीक्षायें तो फिर राजकीय विद्यालयों के समान वेतनमान क्यों नहीं | मैथलीशरण जी नें तभी तो लिखा है , " अन्याय सहकर बैठ रहना यह महा दुष्कर्म है ,न्यायार्थ अपनें बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है | " घर पहुंचा तो राकेश का हँसता हुआ चेहरा बैठक में दिखायी पड़ा | मन ही मन बड़ा शर्मिन्दा हुआ कि मैं कुछ अन्यथा कैसे सोचने लगा था पर तभी राकेश की मां के पास किसी तरुणीं की मधुर हास्य भरी आवाज आयी और मैं जान गया कि मैं पाराशर जी की बातों में उलझ कर रुक गया था | उस बीच यह दोनों हिमानी की गाड़ी में घर वापस आ गये थे | | भविष्य परदे के पीछे क्या छिपाये है | उत्थान की ओजमयी प्रकाश आभा या पतन के गर्त में ले जाने वाली कीचड़ भरी राह | बन्द करो सोचना उठनें दो समय का पर्दा |
( क्रमशः )
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