Sunday 14 January 2018

(गतांक से आगे )

                                         तो चलूँ बचपन की ओर ,मातृ शक्ति की तलाश में जो क्षीण हो रही जीवन ऊर्जा को स्फुरित कर नया आवेग दे सके | पर मातृ शक्ति भी तो मूलतः नारी शक्ति ही है | वात्सल्य संरक्षण का ज्योतिर्मय आँचल प्रसरण | दार्शनिक बर्टेन्ड रसल के इस कथन में कितनी बड़ी सच्चायी है कि मानव जाति के कुछ महामानव सभ्यता के पिछले छह हजार वर्षों में नैतिक ऊंचाई का इतना बड़ा कद  पा गये हैं कि सितारे भी उनके आगे बौनें लगते हैं | पर फिर भी विश्व के बहुसंख्यक मनुष्य अभी भी कृमि कीटों भरी सड़ांध में गोते लगा रहे हैं | ऐसा ही तो कुछ हुआ था पुरुन्दर की उस पहाड़ी पर एक मास के सामरिक प्रशिक्षण के दौरान | स्वास्थ्य की कुछ समस्याओं के बावजूद मेरा उस प्रशिक्षण में जाना अति आवश्यक हो गया था | क्योंकि बटालियन कमाण्ड करनें की पात्रता उस प्रशिक्षण के बाद ही स्वीकृत हो पाती थी | मेरा शरीर उन दिनों अधिक शारीरिक श्रम वहन करनें योग्य नहीं लग रहा था | क्योंकि वायरल अटैक  के एक लम्बे दौर से पायी क्षीणता से वह अभी तक मुक्त नहीं हुआ था पर प्रशिक्षण के पहले ही दिन आयोजित एक सामरिक शैक्षिक परिचर्चा में मेरा योगदान सराहना के योग्य माना गया | और ब्रिगेडियर देसाई नें मुझे ऊषा पूर्व होनें वाली शारीरिक ड्रिल से मुक्त कर दिया | इस छूट के साथ ही मैं तीन प्रशिक्षुओं की एक कमेटी का संयोजक भी बना दिया गया | जो सौ से भी अधिक आये कॉलेजों के एन ० सी ० सी ० पदाधिकारियों का प्रशिक्षण प्रवास सुखद बना सकें | रविवार के दिन अवकाश रहता था और जैसा कि मैं अपनें पहले प्रशिक्षण प्रयासों में किया करता था वैसा ही फिर से पहाड़ी की ऊंची चोटी पर बनें नन्दी आरोहित देवाधिदेव शिव के मन्दिर जाकर सायंकाल का समय व्यतीत करने लगा | मेरी कल्पना द्रुति गामी अश्व पर सवार शिवा राजे उस मन्दिर में पूजा अर्चना कर पहाड़ी के ऊबड़ -खाबड़ चक्करदार मार्गों से उतरते हुये नीचे के ग्राम आंचलों की ओर जाते दिखायी पड़ते थे | महाराष्ट्र के इस महान योद्धा और महामानव नें किस प्रकार दिल्ली की अविजेय कही जानें वाली मुगुल सेना के छक्के छुड़ा दिये थे ये सोच -सोच कर मुझे रोमांच हो आता था | कुछ वरिष्ठ प्रशिक्षु मेरी तरह पहाड़ी की चोटी पर आकर आस -पास का सौन्दर्य निहारा करते थे | | पर अधिकाँश तरुण आफीसर्स जिनके लिये प्रशिक्षण का यह पहला दौर था पहाड़ी से नीचे उतरकर राम पेट होते हुये टैक्सी लेकर पूना चले जाते थे | रात्रि को नौ बजे से पहले वापस आनें की सीमारेखा कितनें ही ऐसे अफसरों द्वारा तोड़ दी जाती थी और मुझे संचालन कमेटी का Co-Ordinator होनें के नाते कई बार उन्हें सावधान भी करना होता था | कुछ प्रशिक्षु रामपेट गाँव के आस -पास चहलकदमी करते थे  और स्थानीय छोटी -मोटी दुकानों से कुछ खरीद -फरोख्त भी कर लेते थे | वैसे पुरुन्दर ट्रेनिंग अकादमी की अपनी शाप तो है ही | पत्रिका के अधिकाँश पाठक शायद महाराष्ट्र की इन पहाड़ियों के आँचल में बसे ग्रामवासियों से परिचित न हों इसलिये मैं बताना चाहूंगा कि इनमें से अधिकाँश मराठी लोग हैं जिन्हें अपनी वीरता ,अपनी पारिवारिक पवित्रता , और भारत के महाकाव्यीय गौरव पर अभिमान है | औद्योगिक द्रष्टि  से महाराष्ट्र एक विकसित प्रदेश है | बम्बई और उसके आस -पास भारत के सबसे धनी लोग और सबसे बड़े यद्योगपति पाये जा सकते हैं पर पहाड़ियों के बसे आँचल में आज से लगभग 50 वर्ष पहले घोर गरीबी थी और जहां तक मैं समझता हूँ शायद आज भी उस गरीबी का उन्मूलन न हो पाया हो | तो रामपेट गाँव के अधिकाँश पुरुष आफीसर्स की बैरकों में हेल्पर्स का काम करते थे उन्हें अंग्रेजी में बैरे या Bearer कहा जाता है | जूते पालिश करना ,पेटियां रंगना या चमकाना , सफाई करना या बिस्तरे लगाना आदि काम उनके द्वारा किये जाते थे और छोटी -मोटी तनख्वाह के साथ उन्हें बख्शीश भी मिल जाया करती थी | सभी प्रशिक्षु कॉलेजों के प्राध्यापक थे और सभी अच्छी  आर्थिक स्थिति के थे | नीचे के गाँव से जरूरत की छोटी -मोटी चीजें भी ये बैरे लाकर दे देते थे | पहाड़ी के ऊपर उगने वाले पेंड़ पौधे , झाड़ -झंखारों की सूखी डालियाँ इनके घरों की औरतें इकठ्ठा कर लेती थीं जिनसे सर्दी के दिनों में ठंड से बचने में मदद मिलती थी | झाड़ -झंखारों को काट -काट ये उनके स्थानों पर डाल देती थीं और जब ये सूख जाते तो इन्हें इकठ्ठा कर लेती थीं | संम्भवतः घर में खाना बनानें के लिये भी वे लकड़ियों का प्रयोग करती होंगीं | भारत के भिन्न -भिन्न शहरों से आये हुये हम लोग नीचे से ऊपर की चढ़ायी एक बार कर लेने पर दुबारा उतरनें की हिम्मत नहीं करते थे पर ये औरतें दिन में न जानें कितनी बार ऊपर नीचे आया -जाया करती थीं | रविवार के दिन बैरों की भी छुट्टी होती थी और इसलिये अधिकतर औरतें घर पर ही रहती थीं पर एकाध बार जरूरत पड़ने पर वह ईंधन इकठ्ठा करनें के लिये तीन चार किलोमीटर के दायरे में फ़ैली पुरुन्दर की पहाड़ी चट्टानों पर भी चक्कर लगा लेती थीं |
                                उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम तक और पूर्व में आसाम से लेकर पश्चिम में वारमेड़ ( राजस्थान ) की सीमाओं तक एन ० सी ० सी ० का प्रशिक्षण रक्षा मन्त्रालय की देख -रेख में सुनिश्चित किया गया है | भारत के सभी भागों में प्रोफ़ेसर प्रशिक्षु जिन्होनें एन ० सी ० सी ० में कमीशन लिया था इस प्रशिक्षण शिविर में आये थे उन दिनों राष्ट्रपति से पाये  हुये कमीशन को वही सम्मान मिलता था जो आजकल आई ० ए ० एस ० आफीसर को मिलता है | तो प्रशिक्षण के दूसरे  रविवार की एक घटना मुझे संचालन कमेटी के संयोजक होनें के नाते एक गहरे सशोपंत में डाल दिया | बात कुछ यों  थी शाम को पांच बजे रामपेट गाँव का एक अधेड़ मराठा और उसकी पत्नी रामाबाई अकेडमी के कमाण्डेन्ट ब्रिगेडियर देसाई से मिलनें के लिये आये | ब्रिगेडियर देसाई उस समय एक जरूरी काम में व्यस्त थे | इसलिये उन्होंने उन्हें अगले दिन आनें के लिये कहलवा भेजा पर दामोदर शिन्दे और रामाबाई मिलनें के लिये जिद्द करने लगे और कहा कि उन्हें एक बहुत जरूरी बात कहनी है कल तक कुछ भी हो सकता है | ब्रिगेडियर देसाई कर्नल राम सिंह को लेकर बाहर कमरे में बैठे मराठा दम्पति को मिलनें आ गये  और पूछा कि कौन सी ऐसी जरूरी बात है जिसे उन्हें तुरन्त बताना है | शिन्दे चुप रहा पर रामाबाई नें मराठी में कुछ कहना शुरू किया | देसाई गुजरात से थे और उन्हें मराठी का भी बहुत अच्छा ज्ञान था | कर्नल राम सिंह भी महाराष्ट्र में ही बहुत दिनों से थे और अच्छी मराठी बोल लेते थे | मैनेँ रामबाई की बात -चीत तो नहीं सुनी  पर ब्रिगेडियर देसाई नें मुझे जो बताया उसका सारांश कुछ इस प्रकार था | रामाबाई का कहना है कि उसकी लड़की जो कि करीब चौदह पन्द्रह साल की है आज शाम  चार बजे लकड़ियां इकठ्ठी करने के लिये पहाड़ी पर आयी थी | जिस जगह वह लकड़ियां इकठ्ठी कर रही थी उसी के  पास से होकर जीप वाली चक्कर दार सड़क गुजरती है | शाम को चार बजे के करीब तीन चार अफसर नीचे से ऊपर की ओर जा रहे थे वे शायद पूना से वापस आये होंगें उनमें से तीन तो ऊपर चले गये पर एक वहीं कहीं चट्टानों पर बैठा रहा | मेरी लड़की चोली और घाघरा पहनें थी | जब वह लकड़ी का गठ्ठर बांधकर सिर पर रखनें लगी तो भरे बदन का अफसर जिसका रंग सांवला है उसके पास आकर उसकी चोली में हाँथ डालनें लगा और जेब से कुछ नोट  निकालकर उसकी ओर बढ़ाये लड़की चिल्लानें लगी और गठ्ठर फेंककर नीचे की ओर भागी | वह गुण्डा दौड़कर वहां से ऊपर की ओर भाग गया | वह जरूर इन्हीं किन्हीं बैरकों में होगा | | लड़की नें मुझे सब बात बतायी | हमारी बिरादरी नें तय किया है कि हम आप से मिलकर सब बात बता दें | हम सब तलाश में हैं ज्यों ही वह गुण्डा हमें दिखायी पड़ा हम उसकी बोटी -बोटी काटकर कुत्तों के आगे फेंक देंगें | कुत्ते खायेंगें या नहीं खायेंगें यह माँ भवानी जानें | आप अगर कोई कदम नहीं उठाते तो कल सुबह से कोई बैरा इन बैरकों  में काम करने नहीं आयेगा |
                                           ब्रिगेडियर देसाई नें सूबेदार धर्म पाल को भेजकर तुरन्त मुझे बुलानें के लिए कहा और उस मराठा दम्पत्ति को बाहर बैठकर थोड़ी देर इन्तजार करनें की बात कही | मैं घबराया हुआ ब्रिगेडियर साहब के पास गया और सेल्यूट कर उनसे बुलानें का कारण पूछा | ब्रिगेडियर साहब तो चुप रहे पर कर्नल राम सिंह नें मुझे पूरी स्थित समझायी | और पूछा कि अब क्या किया जाय | मैं सौ से अधिक कालेज प्रोफेसरों का प्रतिनिधि था और वे जानते थे कि अगर वे स्वयं कोई दण्ड निर्धारित करेंगें तो एन ० सी ० सी ० आफीसर्स और रेगुलर आर्मी आफीसर्स के बीच में एक दरार पैदा हो सकती है |मुझे अन्तर्मन में विश्वास था कि माँ भवानी की शपथ खानें वाले मराठे झूठ नहीं बोलते और मराठा दंपत्ति नें जो कुछ कहा है उसमें निसंदेह सच्चायी है  पर आफीसर को काट कर फेंक देनें में उनकी योजना मुझमें घबराहट पैदा कर  रही थी | पर दण्ड तो देना ही था | क्या किया जाय ?कैसे किया जाय ? कुछ सोचकर  मैं अंग्रेजी में इस प्रकार बोला सर यह बहुत संगीन मामला है | पहले तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वह गुण्डा हमारे इस आफीसर्स बैच का ही आदमी है या बाहर का कोई व्यक्ति | पहचान हो जानें के बाद ही हम दण्ड का निर्धारण कर सकेंगें | इस बीच मैं अपनें पैनल के दो अन्य सदस्यों से भी विचार विमर्श कर लूंगा | इस वख्त अन्धेरा होने वाला है वैसे भी रविवार है रात्रि नौ बजे तक आनें की छूट है बहुत से आफीसर्स अभी तक नहीं आये होंगें , कल सुबह ऊषा पूर्व पी ० टी ० के दौरान जब सभी आफीसर्स फाल इन हों तो तो उस समय आप इस मराठा दम्पति को इनकी लड़की के साथ बुला लीजिये | पी ० टी ० में आफीसर्स जंगल हैट नहीं लगाये होंगें और वह लड़की आसानी से उस गुण्डा आफीसर को पहचान लेगी | इसके बाद दण्ड का निर्णय हम आप की राय को सर्वोपरि मानते हुये ले लेंगें और सभी एन ० सी ०सी ० आफीसर्स उस निर्णय से पूरी सहमति जतायेंगें | ब्रिगेडियर देसाई नें मेरे सुझाव के औचित्य को मान लिया | उन्होंने मराठा दम्पत्ति को यह बात समझायी | रामाबाई ने कहा , " बिटिया के बापू को तो कल सुबह काम पर जाना है वो तो नहीं आ पायेगा पर मैं और मेरी बेटी सबेरे पांच बजे आपके पास हाजिर होंगें ,आप हमारे माई -बाप हैं जो फैसला करेंगें  हम मान लेंगें तबतक हम अपनी बिरादरी के लोगों को कुछ न करने की बात पर राजी कर लेंगें |
                                             वो रात मेरे लिये काटनी काफी कठिन हो गयी मैनें अपनें दोनों साथी कैप्टन देवेन्द्र सिंह और कैप्टन पुणताम्बार को विश्वास में लिया दोनों ही वरिष्ठ एन ० सी ० आफीसर्स तो थे ही पर साथ ही दोनों अपनें -अपनें विषय के उदभट विद्वान भी थे | हमनें आपस में यह तय किया कि एन ० सी ० सी ० आफीसर्स की लाज बचाने के लिये पहचानें गये इस गुण्डा आफीसर को किसी तरह यहां से निकालकर इसे अपनें कालेज में भेजना होगा | पर अगर ब्रिगेडियर देसाई ने कहीं उसे मराठा दम्पति के हवाले कर दिया तो क्या होगा | तय हुआ कि सूझ बूझ कर हर कदम उठाया जाय और किसी न किसी प्रकार रेगुलर आर्मी आफीसर्स को अपने साथ रखा जाय | हमें ट्रेनिंग देनें वाले बहुत से सूबेदार और हवलदार मराठा थे और उनकी सहानुभूति स्वाभाविक रूप से उस पीड़ित परिवार के साथ थी | वैसे भी एन ० सी ० सी ० आफीसर्स के पूरे ग्रुप को बदनामी की चादर में लपेट देनें में उन्हें छुपा आनन्द मिल रहा था क्योंकि कमीशन्ड अफसर और नान कमीशन्ड आफीसर्स के बीच काम्प्लैक्सेस पलते रहते हैं | हम तीनों के अतिरिक्त और किसी एन ० सी ० सी ० आफीसर को कानों कान यह खबर नहीं मिली कि कल सुबह एक आइडेंटिटी परेड हो रही है जिसमें गुंडई का ताज किसी के सिर पर रखा जायेगा | किस प्रदेश से आया है यह गुण्डा प्रोफ़ेसर आफीसर ,किस कालेज की शान बना फिरता है यह नीच व्यभिचारी | किस माँ -बाप की औरस सन्तान है यह नाली का कीड़ा जैसा मैं पहले कह चुका हूँ मुझे पी ० टी ० पर जानें की छूट मिल चुकी थी पर उस सुबह मैं सीटी लगनें के पहले ही पी ० टी  ग्राउण्ड पर खड़ा था | सूबेदार जोगेन्दर सिंह नें सीटी मुंह में लगानें से पहले पूछा मेजर साहब आज इधर कैसे ? मैनें कहा सर सोचा आज आपसे शरीर विकास की कुछ नयी तकनीकें सीख लूँ सीटी बजाइये और एक के बाद एक और एक के बाद एक सफ़ेद टी शर्ट और सफ़ेद हाफ पैन्ट पहनें प्रोफ़ेसर आफीसर्स पी ० टी ० मैदान में सीधी पंक्ति में खड़े होने लगे | उस दिन पहली बार ब्रिगेडियर देसाई पी ० टी ० ड्रेस में आ उपस्थित हुये | सूबेदार जोगेन्दर सिंह घबरा गये कि कमाण्डेन्ट साहब इंस्पेक्शन पर क्यों आये तभी कर्नल राम सिंह और उनके पीछे रामाबाई और उनकी किशोरी बेटी फूलमती आती दिखायी पड़ी | एक छरहरी मझोले कद की सांवली सलोनी बालिका किशोरी | मैं भी जाकर पंक्ति के प्रथम सिरे पर खड़ा हो गया | कमाण्डेन्ट साहब नें सूबेदार जोगेन्दर सिंह को काशन देने के लिये कहा एक सौ तीन आफीसरों वाली वह पंक्ति सावधान मुद्रा में खड़ी हो गयी | कमाण्डेन्ट साहब , कर्नल साहब ,रामाबाई और फूलमती मेरे पास से होते हुये एक एक आफीसर्स के चेहरे को देखते हुये आगे बढ़ने लगे | दो तीन आफीसरों के बाद ब्रिगेडियर साहब नें मुझे लाइन से हटकर अपनें पास बुला लिया और साथ साथ चलने को कहा | मैं 96  तक गिनती कर चुका था और मेरा मन अत्यन्त हर्षित था कि शायद वह नीच गुण्डा हममें से नहीं है तभी सत्तानवे आफीसर के बाद जाकर  वह लड़की रुक गयी यूनिफार्म में न होनें के कारण उसका नाम मैं उस समय न जान पाया | ब्रिगेडियर साहब नें फूलमती से मराठी में कहा ठीक से देख लिया | फूलमती नें स्वीकृति में सिर हिलाया | ब्रिगेडियर साहब नें उस गुण्डा आफीसर से कहा फाल आउट और उनके इशारे पर दो हवलदारों ने दायीं  और बायीं ओर से उसका एक एक हाँथ पकड़ लिया और उसे खींचकर हेड क्वार्टर की ओर ले चले | कमाण्डर साहब ने मुझसे कहा मेजर अवस्थी , " Accompany me to my office , let us take a decision." सारी पी ० टी ० परेड पर मौत का सा सन्नाटा छा गया | क्या बात है , क्या होने वाला है ? बिहार राज्य के सासाराम चुनाव क्षेत्र से आने वाला यहएन ० सी ० सी ० आफीसर कैद में क्यों ले लिया गया ? सासाराम तो बाबू जगजीवन राम का चुनाव क्षेत्र है , यह मराठा लड़की यहाँ क्यों आयी ? न जानें कितनें प्रश्न हर दिमाग में उछलकर उत्तर मांगनें लगे |
(क्रमशः ) 

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