Thursday 18 January 2018

गतांक से आगे

                                                         कितनें अवसरों पर कितनें मंचों पर और कितनें वैविध्यपूर्ण कार्य क्षेत्रों में मुझे सहभागिता का सुअवसर मिल पाया है इसकी आधी अधूरी खोज बीन भी मुझे कुछ चौंकाने वाले स्थलों की ओर ले जाती है | सोचनें लगता हूँ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं दंम्भ की पगडण्डियों पर मिथ्या का अनुसरण कर रहा हूँ | फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि मिथ्या में भी शायद कोई समकालीन सभ्यता का भाव होता है तभी तो न जानें कितनी मिथ्यायें काल परिवर्तन के साथ मिथक बनकर जन मानस में अपना स्थान बना लेती हैं | इस धरित्री पर कब और कैसे जीवन का आविर्भाव हुआ और उसके अचल और सचल स्वरूपों में प्राणद ऊर्जा का निरन्तर गतिमान प्रवाहमयता कहाँ से आयी इन सब प्रश्नों का सम्पूर्णतः आश्वस्त करने वाला उत्तर मुझे आज तक नहीं मिल पाया है | और यदि मैं भूल नहीं करता तो शायद विश्व का कोई भी मनीषी शत -प्रतिशत निश्चयात्मकता के साथ जीवन -मरण की पहेली को सुलझा नहीं पाया है | दार्शनिकों की राष्ट्र भाषायें होनें में न होनें का तत्व छिपायें हैं और न होनें में सनातनता की चेतना धार की तलाश करती है | न जानें कितनी बार मुझे दिव्य सन्त महात्माओं की चमत्कार भरी शक्तियों के बारे में पढ़ने और सुननें को मिला है और जिन पारम्परिक परिवारों में हम पले बढ़े हैं उनमें अधिकाँश माताओं ,बहिनों का जीवन चक्र अधिकतर सन्त महात्माओं और बाबाओं के इन चमत्कारी शक्तियों के केन्द्रीय वृत्त में बंधकर ही घूमता रहता है | भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल जी संम्भवतः एक ऐसे धार्मिक महामानव थे जिन्होनें कहीं भी धर्म का वाह्य प्रदर्शन नहीं किया पर उसे अपनें आचरण में जीवन भर लक्षित करते रहे | धर्म निरपेक्षता अपनें सच्चे अर्थों में उनमें आध्यात्मिकता की उस गहरायी को झलकाती थी जो प्लेटो से लेकर कबीर , विवेकानन्द और मार्टिन लूथर तक पहुँचती है | चमत्कारों के प्रति मैं सदैव से शंकालु रहा हूँ पर सन्तत्व की आचरण पवित्रता के समक्ष मैं सदैव ही नत -मस्तक होता रहा हूँ |
                            तो पुरुन्दर के उस एक मास के प्रशिक्षण के बाद वापसी से पहले पहाड़ी की चोटी पर विशाल चट्टानों में कटी शिव नन्दी की जीवन दीप्ति उजागर करने वाली मूर्ति को प्रणाम करनें का अन्तिम सुअवसर का लाभ उठाया | मैं जानता था कि शताधिक आफीसरों में संम्भवतः मैं अपनें प्रशिक्षकों की द्रष्टि में योग्यता के शीर्षतम स्थान के आस -पास रखा गया हूँगा | कमाण्डेन्ट नें मेरे लिये पूना तक पहुंचाने के लिये एक स्पेशल जीप की व्यवस्था करके इस बात का आभाष दे दिया था कि वे मेरे लिये अपनें हृदय में गहरे लगाव और मानवीय सम्मान का भाव रखते हैं | पूना से बम्बई पहुंचकर मुझे दिल्ली के लिये एक फर्स्ट क्लास कूपे में आरक्षण मिला था | काफी पहले की बात है और जहां तक मैं समझता हूँ उस समय तक एयर कन्डीशन्ड यात्रा की सुनिश्चित व्यवस्था भारतीय रेल नहीं कर पायी थी | प्रथम श्रेणीं का आरक्षण ही उच्चतम सुविधा मानी जाती थी | ' माटी ' के पर्यटन विशेषज्ञ पाठक यह जानते ही हैं कि कूपे में चार सीटें होती हैं | दो नीचे और दो ऊपर | इस कूपे की तीन सीटें पहले से ही आरक्षित थीं और  बाकी एक सीट मेरे आरक्षण के हिस्से में आ गयी थी | हुआ ऐसा कि जो सीट मेरे  हिस्से में आयी थी वो नीचे की थी और शायद आरक्षण करानें के लिये भेजे गये सूबेदार साहब की अतिरिक्त पैरवी के कारण ऐसा हो सका था | बम्बई में स्टेशन पर खड़ी ट्रेन के कूपे में आरक्षित अपनी सीट में बैठकर मैं जूते खोलकर लेटनें की सोच रहा था | ट्रेन छूटनें का टाइम होनें वाला था और तभी  लगभग आठ दस सेना के जवानों के साथ मिलेट्री वर्दी में एक आला सिक्ख  आफीसर उनकी पत्नी और उनकी ग्यारह बारह साल की पुत्री स्टेशन पर आ गये | उन्होंने शीघ्र ही काफी सारा सामान उस कूपे में लाकर रख दिया | | सरदार जी उनकी पत्नी और उनकी पुत्री कूपे में बैठ ही पाये थे कि गाड़ी नें सीटी दी और चल पड़ी |साथ आये जवानों नें उन्हें सल्यूट किया और गाड़ी से उतर आये | सरदार जी नें मेरी और देखा और मैनें उनके परिवार का आँखों ही आँखों में जायजा लिया | वे लगभग 38 वर्ष के रहे होंगें और मैनें उनके Badges को देखकर जान लिया कि वे ब्रिगेडियर रैंक के हैं | उनकी पत्नी 32 ,33 के आस -पास होंगीं और पहली ही द्रष्टि में अपनी ओर आकृष्ट कर लेने वाली मुखाकृति और शरीर रचना उन्होंने प्रकृति के द्वारा पायी थी | मैं जानता था कि मात्र मेजर होनें के नाते मैं सरदार जी के मुकाबले एक जूनियर आफीसर हूँ पर मैं नागरिक वस्त्रों में था | और मैं क्यों और कहाँ जा रहा हूँ इससे वे परिचित नहीं थे | मैं उनसे उम्र में लगभग आठ -दस वर्ष बड़ा था और चूंकि नीचे की बर्थ मेरे नाम पर आरक्षित थी इसलिये उन्हें आराम करने के लिये स्वयं या उनकी बेटी को ऊपर की बर्थ पर जानें की जरूरत थी | मुझे कुछ अजीब सा लगा कि नीचे की एक बर्थ पर उनकी पत्नी हों और बगल की दूसरी बर्थ पर मैं आराम करूं | पहल मैनें ही की | मैनें कहा, सरदार जी अगर आप चाहें तो आप या आपकी बच्ची इस नीचे की बर्थ पर आ जायें | मैं ऊपर आ जाऊँगा | वे बोले , थैंक यू जनाब ,और यह कहकर उन्होंने अपनी बेटी मोनिका को मेरी बर्थ पर जानें को कहा | मैं ऊपर की बर्थ पर चला गया | अब मैं और वह ऊपर की बर्थ्स पर थे और इस समीपता ने हमें बातचीत करनें के लिये प्रेरित किया | उन्होंने पूछा आप कहाँ जा रहे हैं ? और क्या आप सेना में हैं ?मैनें बताया कि मैं दिल्ली के आसपास के कालेज में अंग्रेजी का प्राध्यापक हूँ  और एन. सी. सी. में प्रशिक्षण के लिये एक महीनें के लिये पुरुन्दर आया था | अब उन्हें लगा कि वे मुझसे अधिक विश्वास के साथ बातचीत कर सकते हैं | मिलेट्री के एक बड़े अफसर होनें के नाते वे यह जानते ही थे कि एन  ०सी ० सी ० में उन दिनों मेजर से बड़ा कोई रैंक नहीं होता था और वे एक ब्रिगेडियर थे इसलिये एक बड़प्पन का भाव भी कहीं उनके अन्तर्मन में छिपा था | पर मेरे अंग्रेजी बोलनें के ढंग से वे प्रभावित थे | और उन्हें लग रहा था कि अंग्रेजी के प्राध्यापक होनें के नाते सामान्य ज्ञान और भाषा सौष्टव की द्रष्टि से मैं उनसे कहीं कम न था | कहना न होगा कि हमारी सारी बातचीत अंग्रेजी में हो रही थी और नीचे पड़ी उनकी पत्नी तथा छठी सातवीं में पढ़ने वाली उनकी पुत्री मोनिका भी यह बातचीत सुन रही थी | बात ही बात में उन्होंने मुझे बताया कि वे झांसी जा रहे हैं जहाँ से उन्हें मऊ जाना है और वे मऊ में एक विशेषज्ञ के नाते कर्नल रैंक के आफीसरों के प्रशिक्षण से संम्बन्धित हैं | मैं प्रभावित हुआ क्योंकि  कि उन दिनों 1965  में होने वाली पाकिस्तान की युद्ध योजना अपनें चरम पर पहुँच रही थी और ब्रिगेडियर साहब संम्भवतः रक्षा मन्त्रालय की अत्यन्त गुप्त योजनाओं से थोड़े बहुत परिचित जान पड़ते थे | बातचीत में ही उन्होंने बताया कि मोनिका किसी अत्यन्त प्रसिद्ध क्रिश्चियन स्कूल में पढ़ रही है और वह बाइबिल में आये हुये कुछ प्रसंगों पर मुझसे बातचीत करती है पर मैं बाइबिल के इन प्रसंगों से इतना परिचित नहीं हूँ क्योंकि मेरी पत्नी तो अधिकतर पूजा -पाठ में लगी रहती है |  बातचीत करते काफी समय हो चुका था और मोनिका भी बीच -बीच में हमारी बातों में कुछ हिस्सा लेनें लगी थी | बच्चों का स्वभाव ही कुछ निर्मल होता है और वे जब तक जगते हैं  कुछ न कुछ बातचीत करना चाहते हैं | मोनिका की माँ अलस भरे नींद के झोंके ले रही थी | संम्भवतः यही कारण था कि ब्रिगेडियर साहब कुछ खुलकर बातें कर रहे थे | मैनें मोनिका से कहा बेटे , "तुम्हें बाइबल के कई प्रसंग याद हैं | तुम्हें यह भी पता है कि यूशू जो जोसफ  के बेटे थे , कि उनका जन्म वेथेलम में हुआ था ,कि उनकी माँ का नाम मेरी था और उनका जन्म पशुओं के लिये चारा रखनें वाले नांद या Manger में हुआ था यह सब जानना बहुत अच्छी बात है पर क्या तुम यह बता सकती हो कि राम के भाई शत्रुघन की माता का क्या नाम था मोनिका नें कहा , " I dont know any thing about Ramayana but I think he was a son of a Queen called Koshala. मैं मोनिका के इस अज्ञान पर मन ही मन हंसा और फिर मैनें उसे रामायण की कुछ मूल बातें बतायीं | फिर मैनें उससे पूछा कि क्या वह गुरुग्रन्थ साहब से पूरी तरह परिचित है ?  इस दिशा में भी उसका ज्ञान अधूरा ही लगा | सरदार जी नें मुझे बताया कि दरअसल यह क्रिश्चियन स्कूल में होने के कारण अधिकतर उन्हीं मित्रों के बीच उठती बैठती है जिन्हें पश्चिमी सभ्यता का जीवन जीनें का अवसर मिला है | यह भारतीय परम्पराओं से पूरी तरह परिचित नहीं है | और सच पूछो तो मैं भी योरोपीय अधिक हूँ और हिन्दुस्तानी कम | मोनिका एक प्रतिभाशाली लड़की थी और मेरी बातचीत से उसको लगा कि मैं उसके पिता जैसा या उनसे भी अधिक सामान्य ज्ञान का अधिकारी हूँ और वह मुझसे बड़े आदर के साथ बातचीत करने लगी | मैनें उसे बातों ही बातों में रामायण के एक और महापात्र रावण , उसके पिता विश्रवा  और उसके बाबा पुलत्स्य के बारे में बताया | मैनें रावण की पत्नी मन्दोदरी की चर्चा भी की और मैनें बताया कि मन्दोदरी की बात न माननें के कारण ही रावण अपनें परिवार को विनाश पथ की ओर ले गया | रात का अन्धेरा बढ़ने लगा था | गाड़ी के हल्के धक्कों में हिलता डुलता शरीर अलस भरी ऊँचाइयों में झूल रहा था | मोनिका की माँ और मोनिका धीरे धीरे सो गये | ब्रिगेडियर साहब अब सहज हो गये मुझसे बोले ब्रदर अवस्थी , तुम तो यार पण्डित लगते हो | बहुत सारी धर्म की बातें  जानते हो | मैं तो तोप के गोले और टैन्क संचालन के अलावा और कुछ जाननें का मौक़ा ही नहीं पा सका और फिर आवाज को धीमी करके बोले , " अवस्थी , मैं तुमसे एक बात पूछना चाहूंगा | मेरी पत्नी सांई बाबा की बहुत बड़ी भक्त है | सांई बाबा का फोटो अपनें कमरे में लगा रखा है और हर रोज उनकी पूजा अर्चना करती है | मैनें एक दिन उससे इस बारे में कुछ जानना चाहा तो उसनें कहा कि सांई बाबा ईश्वरीय अवतार हैं , और वे जो भी चाहें कर सकते हैं | मैं मिलेट्री का अफसर हूँ और मैं जानता हूँ कि हमारे राज जाननें  के लिये बहुत सी खुपिया एजेन्सीज  पूजा -पाठ और सन्त महात्माओं की  ओट में हमारी छिपी बातों का पता लगाना चाहती हैं | कहीं ऐसा तो नहीं है कि मेरी पत्नी एक सहज स्वभाव की नारी होनें के कारण किसी खुफिया तन्त्र की चालबाजी में फंस गयी हो |  मैनें कहा सर ,आपनें पूछा नहीं कि आपकी पत्नी को सांई बाबा के चमत्कारों में कैसे विश्वास हुआ | उन्होंने कहा मैनें उससे एक बार ऐसा ही प्रश्न किया था तो उसनें कहा कि उनकी फोटो से पूजा के बाद स्पर्श करनें से एक ऐसी भभूति निकलती है जिसकी सुगन्ध से अत्यन्त गहरा आत्मिक आनन्द प्राप्त होता है | मैनें उससे कहा कि वह मुझे भी उस भभूत का अनुभव कराये | अगले दिन उसनें पूजा के बाद मुझे भीतर बुलाया और कहा कि तस्वीर तुम्हारे सामनें है इसमें कहीं कुछ नहीं है | प्रणाम करके इसे स्पर्श करो तो तुम्हारे हाँथ में भभूति आ जायेगी और उसकी सुगन्ध तुम्हें एक नयी स्फूर्ति देगी | मैनें ऐसा ही किया और सच कहता हूँ अवस्थी न जानें कहाँ से वह महकती हुयी सुनहली भस्म मेरे हाँथ में आ गयी  और मैं विस्मय विमूढ़ हो गया | भाई अवस्थी ,मुझे शक है कोई विदेशी खुफिया जालतन्त्र मेरी धर्म परायण पत्नी के द्वारा मेरे द्वारा संचालित होनें वाली उस सामरिक प्रशिक्षण प्रक्रिया की निगरानी कर रहा है | मैं अन्दर से बहुत शंकाग्रस्त हो उठा हूँ | अत्यन्त धीमी आवाज में उन्होंने कहा , " Awasthi, she is now in deep sleep ." इसीलिये मैं आपसे ये बातें कर रहा हूँ | आप तो प्रोफ़ेसर  हैं ,पण्डित हैं बहुत सी धार्मिक क्रियाओं को जानते हैं | क्या वाकई में सांई बाबा में अदभुत चमत्कारी शक्तियां हैं | क्या मेरी पत्नी का सोचना ठीक है अगर मैं उसके जीवन में दखल देता हूँ तो परिवार की शान्ति नष्ट हो जायेगी | मैं बहुत असमंजस में हूँ कहीं ऐसा तो नहीं है कि मेरा  Careerखतरे में है |
                                  मेरे सामनें एक अत्यन्त जटिल समस्या आ खड़ी हुयी | क्या उत्तर दूँ ? क्या कह दूँ कि चमत्कारों की बात विज्ञान की रासायनिक प्रक्रियाओं का एक सोचा -समझा जाल विस्तरण है | पर ऐसा कैसे कह दूँ | महान सन्तों ,महाकाव्यों में और अतीत के भक्तों की जीवनियों में चमत्कारों की भरमार है | और भारत के कोटि -कोटि नर -नारी उसे निर्विवाद सत्य मानकर चलते हैं | पर विवेक क्या कहता है ? क्या देव की अद्रश्य शक्ति के अतिरिक्त और कोई व्याख्या उपयुक्त नहीं हो सकती | सूफी कवियों नें भी तो गाया है , " रवि ससि , नखत विपहिं ओहि जोती | रतन पदारथ मानक मोती || "
                              तो क्या सांई बाबा उस परम सत्ता के साथ डायरेक्ट कान्टेक्ट में हैं | मैं काफी देर चुप रहा | ब्रिगेडियर साहब नें कहा अवस्थी तुम कुछ बोले नहीं | झांसी आ रही है और मुझे लेने के लिये वहां दस बीस जवान प्लेटफार्म पर खड़े होंगें | मोनिका की माँ अभी नीन्द में है उसे जगाना होगा | बोलो क्या कहते हो ?
                              मैं कुछ कहनें ही जा रहा था कि इसी बीच मोनिका की माँ नें शरीर की हल्की हलचल के साथ अपनीं अलसायी आँखें खोल दीं | लाल -लाल डोरे पड़ी वे आँखें कितनी मादक थीं | ब्रिगेडियर साहब उन आँखों की मादकता में यदि डूब जाते हों तो इसमें उनका क्या दोष है | वे तो एक मिलेट्री आफीसर थे कोई सुजान तो थे नहीं इसलिये रसलीन के इस दोहे के पूरे  अर्थ से   परिचित नहीं थे |
                    " अनियारे दीरघ नयन , किती न तरनि समान
                       वे नयना औरे कछु ,जेहि बस होत सुजान || "
                                               तोपों की गड़गड़ाहट और टैंकों की खड़खड़ाहट सुननें के बाद बंगले पर आकर उन मादक नैनों का मतवालापन उन्हें बहिस्ता में पहुंचा देता हो तो इसके लिये वे क्या करें | मुझे ऐसा लगा -पर शायद ये सच न हो -कि मोनिका की माँ सचमुच सो नहीं रही थी बल्कि सोनें का बहाना कर रही थी | उसनें शायद मेरी सारी बातों को जो मैनें मोनिका से की थीं या जो ब्रिगेडियर साहब से हुयीं थीं सुन लिया था | मुझे लगा कि उसकी उन खुली आँखों में मेरे लिये एक अनकहा निर्देश है कि मैं ब्रिगेडियर हरमेन्दर सिंह के प्रश्न का उत्तर न दूँ , उन आँखों का निर्देश मैं कैसे टाल सकता था | फिर सोचता हूँ मैं उत्तर देता भी   तो उत्तर की तलाश गुरुग्रन्थ साहब में संग्रहित सन्त वाणियों में ही करता | मोनिका की माँ उठ बैठी और ऊपर देखकर बोली मोनी पापा पानी की बोतल देना | काले कजरारे मेघ जैसे बालों से घिरा उसका चन्द्रमुख पूरे कूपे में एक नयी दीप्ति फैला गया |
(क्रमशः )

No comments:

Post a Comment