Saturday 16 December 2017

नहीं जानता
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ज्यों
नभ -परी नृत्य रत
मुक्त बाल
कब कोई रूपाकृति गढ़ दे
नीलाम्बर का प्रतिबिम्ब
जिसे नित हीरक -हारों से
मढ़ दे
नहीं जानता |
मेरे मन की अगनित
शंका कुल छायायें
तर्क -वितर्को की
दीपित धूमिल सीमायें
नभ गंगा के
परसीमन की
कब कोई नव निष्कृति दे दे
अब तक की सारी परिभाषायें
जहां सकुच सिर झुका खड़ी हों
नहीं जानता |
शरद ,शिशिर ,हेमन्त झेलती
जरा -जीर्ण यह जर्जर काया
अन्तर की किस वज्र चोट से
कण -कण कर दे ममता माया
रज्जु -मुक्तमन लहराता
उत्तुंग लहर पर
देख सके फिर परम तत्व की मनहर अनुकृति
नहीं जानता |
मिल जाये फिर
मुक्ति नटी के
सहज रास में
रस -भागी होनें की स्वीकृति
नहीं जानता |

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