Saturday 16 December 2017

स्वप्न सुन्दरी
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गढ़ तो चुका हूँ रूप प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक सी तराश अभी बाकी है
धरती से अम्बर तक सुषुमा बटोरी है
सतरंगी झालर से झूमर चुराये हैं
कंठ में झरती निर्झरिणीं उतारी है
वक्ष -काठिन्य गिरी -श्रंग ले आये हैं
माथे पर चाँद सी बिन्दी सजा दी है
केशों का किन्तु नागपाश अभी बाकी है
गढ़ तो चुका हूँ रूप -प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक सी तराश अभी बाकी है
चितवन में पहली बरसात सी बरसती है
रूप के सरोवर दो गालों नें पाले हैं
संध्या श्यामलता ले भौहें सजाई हैं
ऊषा अरुणिमा ले होंठ रच डाले हैं
आकुल रसज्ञों की तृष्णा जग आयी है
किन्तु मधु -निमन्त्रण का हास अभी बाकी है
गढ़ तो चुका हूँ रूप -प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक सी तराश अभी बाकी है
देकर उन्मुक्त चाल हरिणीं शरमाई है
गति में कैश्योर्य का दुलार अभी पलता है
आँखें पर यौवन की भाषा पढ़ लेती हैं
राग -दीप प्राणों में लुक छिप कर जलता है
जीवन हुलास है ,सुरभित निश्वास है
मिलन की नशैली किन्तु प्यास अभी बाकी है
गढ़ तो चुका हूँ रूप -प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक सी तराश अभी बाकी है
अधर अरुणोर हैं नयन कजरारे हैं
देह -यष्टि सुरभित किरीटी की डाली है
ज्वार संगीत वक्ष -दोलन में बजता है
शिरा शिरा झलक रही जीवन की लाली है
कब से प्रतीक्षा -रत अपलक मैं रूप विद्ध
किन्तु तुम प्रतिमा हो सांस अभी बाकी है |
गढ़ तो चुका हूँ रूप- प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक सी तराश अभी बाकी है |


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