Saturday 16 December 2017

जाग मछन्दर
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निकल भागा ,निकल भागा
डाट खुलते ही
कलूछा
बन्द बोतल का निशाचर |
तमस की उठती घटायें
अग्रजन की धूर्ततायें
भ्रष्ट तन्त्री कुटिलतायें
दे रहीं भय -भूत को
अति प्रस्तरण की संम्भावनायें
बाग़ की हर शाख पर
है लगा उसका ठिकाना
हर भले इन्सान का
अब बन्द है इस राह आना
अब कहाँ जादू मछन्दर
देवता सब भग गये हैं
छोड़ सिंहासन छिपे हैं स्वयं इन्दर
अब कहाँ जादू मछन्दर
बज्र मुष्ठी में पकड़ जो
कैद कर दे फिर गुहा में
अमिट विस्मृति की कुहा  में
भ्रष्टता का यह निशाचर
डर रहे जिससे
दिवाकर और प्रभाकर
उठ मछन्दर जाग
क्यों अब सो रहा है
देख तेरे देश में क्या हो रहा है ?
शब्दकारो उठो ,अब गोरख बनो तुम
सुप्त जनता को मछन्दर सा गुनो तुम
दो उसे ललकार
पावे शक्ति अपनी
दो उसे संज्ञान जानें युक्ति अपनी
वोट का बल
वज्र की ही चोट तो है
है यही जादू मछन्दर
इसी जादू से
सहमकर
भ्रष्टता के कलुष पुतले
फिर घिरेंगें कुहा अन्दर
कुहा का लघु द्वार कसकर बन्द करना
कौन जानें फिर कहीं
सोची गयी हो कुटिल छलना |

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