Thursday 14 December 2017

वास (न ) सुवास
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जान सका यह  सत्य अभी तक के जीवन  में
मर जाता है प्यार वासना मर- मर जीती
अमर वासने अमिट तुम्हारी राम कहानी
भू कुंठित लुंठित नृप योगी -ज्ञानी मानी
कालचक्र सी प्रबल शताधिक रूपों वाली
दंश मधुर मारक फिर भी तू मधु की प्याली
 सर्वजयी तू कर्मचक्र की सजग विधात्री
आदि शक्ति तू आदि मूल तू जीवन दात्री
झूठा साथी ,प्यार द्वन्द की इस धरती पर
नीलकंठ सा तू ही धरती का विष पीती
जान सका यह सत्य अभी तक के जीवन में
मर जाता है प्यार वासना मर -मर जीती
मैनें पोथी के पन्नों में सदा पढ़ा था
जब तक कायम श्रष्टि प्यार की राह चलेगी
इसके छींट निरन्तर बिखरेंगें धरती पर
फ़ैल छैल कर रस की मोहक बेल फलेगी
पर दुनिया के लाख -लाख पन्नों में पढ़कर
पाया पोथी -भान एक बस बहलावा है
किन्हीं कल्पकों के स्वप्नों  का शब्द चित्र है
दुख विस्मृति का एक अधूरा दिखलावा है
झर -झर होता क्षार प्यार का पर्वत उँचा
किन्तु मृत्तिका खुद खुद कर भी बीज संजोती
जान सका यह सत्य अभी तक के जीवन में
मर जाता है प्यार वासना मर मर जीती
उस्तादों की वाणीं हरदम रही बताती
प्यार आँख को छोड़ हृदय में ही पलता है
प्यार चाह का सहचर होता नहीं सुनयनें
रूप द्रष्टि की राह वासना को छलता है
पर विराग में पलनें वाला राग न देखा
अब तक का अनुभव तो मुझको यही बताता
लंगड़ाता है प्यार खड़ा अपनें पैरों पर
सदा वासना के रथ पर ही चढ़ कर आता
चुक  जाती है बड़े प्यार की लम्बी बातें
किन्तु वासना की गगरी कब होती रीती ?
जान सका यह सत्य अभी तक के जीवन में
मर जाता है प्यार वासना मर मर जीती
जो शरीर से अलग दिव्य हो निराधार हो
अमर बेल सा पलनें वाला प्यार न देखा
सोंध न जिसमें बसती हो माटी की प्यारी
मैनें तो ऐसा कोई संसार न देखा
प्यार विसर्जन नहीं अहं का अति -अर्जन है
जब की वासना निज से बढ़कर जग तक जाती
प्यार किताबों में साँसे ले ले मरता है
जब कि वासना घर -घर में फिरती मुस्काती
प्यार मात्र आकाश कुसुम है ,मधुर छलावा
जब कि वासना ठोस ,सलोनी ,मीठी तीती
जान सका यह सत्य अभी तक के जीवन में
मर जाता है प्यार वासना मर मर जीती |





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