मौत से दो -दो हाथ
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कल रात मौत से हाथ किये दो दो मैंनें
कल रात मौत को घाव दिये मैनें गहरे
कुछ बात इस तरह हुयी कि
घर की छत ऊपर मैं सोया था
धीमी बयार की थपकी पा
तन्द्रिल लहरों में खोया था
हल्की आहट का भान हुआ
कुछ संम्भल आँख मैनेँ खोली
कद्दावर काया खड़ी कोण पर
लम्बी सी लेकर झोली
थी रात अंधेरी मावस की
मुख चित्र न कुछ स्पष्ट हुआ
इतना पर जान लिया मैनें
काया को किंचित कष्ट हुआ
मेरी आँखों की छानबीन
उसको न ज़रा भी भायी थी
इसलिये कि उसकी गतिविधि में
अड़चन न कभी आ पायी थी
सीमाओं की अतिशयता लख
क्षण भर को हृदय सशंक हुआ
पर निशि -चर होते वीर नहीं
यह सोच समझ निः शंक हुआ
फिर कहीं दूर से रोनें की आवाज कान में आयी थी
कुछ कहीं चुरा करके काया अपनी झोली में लायी थी
चलहट ,झोली है भरी हुयी
खाली कर झोली आ जाना
कविता पूरी कर लेनें दो
प्रभु का प्रसाद कल पा जाना
कुछ झुक ,सलाम करके काया
हो गयी लुप्त अंधियारे में
अन्तिम विराम दे कविता को
निश्चिन्त हुआ निज बारे में |
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कल रात मौत से हाथ किये दो दो मैंनें
कल रात मौत को घाव दिये मैनें गहरे
कुछ बात इस तरह हुयी कि
घर की छत ऊपर मैं सोया था
धीमी बयार की थपकी पा
तन्द्रिल लहरों में खोया था
हल्की आहट का भान हुआ
कुछ संम्भल आँख मैनेँ खोली
कद्दावर काया खड़ी कोण पर
लम्बी सी लेकर झोली
थी रात अंधेरी मावस की
मुख चित्र न कुछ स्पष्ट हुआ
इतना पर जान लिया मैनें
काया को किंचित कष्ट हुआ
मेरी आँखों की छानबीन
उसको न ज़रा भी भायी थी
इसलिये कि उसकी गतिविधि में
अड़चन न कभी आ पायी थी
सीमाओं की अतिशयता लख
क्षण भर को हृदय सशंक हुआ
पर निशि -चर होते वीर नहीं
यह सोच समझ निः शंक हुआ
फिर कहीं दूर से रोनें की आवाज कान में आयी थी
कुछ कहीं चुरा करके काया अपनी झोली में लायी थी
चलहट ,झोली है भरी हुयी
खाली कर झोली आ जाना
कविता पूरी कर लेनें दो
प्रभु का प्रसाद कल पा जाना
कुछ झुक ,सलाम करके काया
हो गयी लुप्त अंधियारे में
अन्तिम विराम दे कविता को
निश्चिन्त हुआ निज बारे में |
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