Thursday 16 November 2017

सांध्य -बेला 

एक सांझ ढल गयी किसी का दुःख न बांटा |
दीप्ति घड़ी टल गयी व्याप्त नीरव सन्नाटा ||
एक कदम उठ गया मौत की मंजिल पानें |
एक लहार उठ चली काल की प्यास बुझानें ||
एक पृष्ठ बह गया प्रलय की जलधारा में |
एक गीत घिर गया गद्य की घनकारा में ||
त्याग पुष्प झड़ गया शेष ममता का कांटा |
एक सांझ ढल गयी किसी का दुःख न बांटा ||
जीवन सरिता नित प्रति बहती ही रहती है |
स्वत्व -समर्पण की गाथा कहती रहती है ||
पर आकंठ समर्पण -सुरसरि वही नहाते |
आत्माहुति दे जीवन न्यौछावर कर जाते ||
भाष्कर का क्या अर्थ न यदि घन दुःख ,तम छांटा |
एक सांझ ढल गयी किसी का दुःख न बांटा ||
ज़रा मरण का चक्र सनातन ही चलता है |
प्राण -दीप पर सदा मृत्यु -मुख में पलता है ||
कुछ पैरों में थिरकन लाओ ,अधरों पर मुस्कानें |
कुछ आँखों से आंसू तोड़ो स्वर में भर दो गानें ||
युग वरेण्यं नर -पुंगव जिसनें जन मन अंतर पाटा |
एक सांझ ढल गयी किसी का दुःख न बांटा ||
प्रति पल प्रति क्षण बाहु युग्म में भर -भर तमस हटाओ |
मृत्युंजय बन हंसो मृत्यु पर जीवन सुरभि लुटाओ ||
हर प्रभात होली बन जाये ,हर संध्या दीवाली |
हर धमनी में मुखर हो उठे स्वस्थ रक्त की लाली ||
सोंधी महक लिये माटी की फैले बेल विराटा |
एक सांझ ढल गयी किसी का दुःख न बांटा ||
 दीप्ति काल टल गया व्याप्त नीरव सन्नाटा ||

 

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