Thursday 16 November 2017

विकट संघर्ष 

चार पंक्तियाँ लिखूं याकि दो पौदे रोपूँ
मन का यह संघर्ष विकट है
परवाना आ गया निकट है
मूल्यों की पहचान अभी तक रही अधूरी
सदा पकड़नें को दौड़ा मैं झूठी काया
आत्म केन्द्रित दर्शन की वर्तुल राहों में
अहंकार का अश्व घूमकर वापस आया
भाषण दूँ या दरी बिछाऊँ
मन का यह संघर्ष विकट है
परवाना आ गया निकट है
क्या थोथा क्या भरा न अब तक जान सका हूँ
शोध -साध डाले अनेक रस रूप रिसाले
दर्शन की छेनी से संवरी सिम सिम खुलनी
खोल न पायी कुहा -गुहा के काले ताले
थन से गिरते दुग्ध -धार की छनक सुनूं
या छनक छनक मंचों का पायल राग सुनाऊँ ,
मन का यह संघर्ष विकट है
परवाना आ गया निकट है |
पढ़ डाला भूगोल विश्व का जान न पाया
चण्डीगढ़ किसको मिलना है ,पानी किसका सीमा वासी
लड़ डाला चिटगांव युद्ध बन्दी सहस्त्र शत ,
बिंधी पड़ी है किन्तु अयोध्या मथुरा काशी
घासी की शव -यात्रा में कुछ हाँथ बटाऊँ
या सत्ता -स्वागत का तोरण -द्वार सजाऊँ ,
मन का यह संघर्ष विकट है
परवाना आ गया निकट है |
कस्तूरी मृग की तलाश में भटका गिरी वन
स्वेद सुवासित देह श्रमिक की दी न दिखाई
राजभोग की मध्ययुगीन ललक में लपका
हेय समझता रहा कृषक की खांड मिठाई
कवि सम्मलेन जाऊँ करतल ध्वनि अपनानें
या श्यामा के बोझ वहन में हाँथ बटाऊँ ,
मन का यह संघर्ष विकट है
परवाना आ गया निकट है |
कौन भान पा बुद्ध गगन की ज्योति बन गये
कौन भान गांधी को गोली तक ले आया
धूमदास का प्रेत पूछ्ता मुझसे प्रति निशि
पत्थर की खानों नें सोना कैसे पाया
प्रेक्षागृह में जाऊँ मन्द भूख उकसानें
या अभाव के द्वार प्यार की धाप लगाऊँ ,
मन का यह सघर्ष विकट है
परवाना आ गया निकट है ||


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