Wednesday 15 November 2017

' रुलाई क्यों रह -रह कर आती है ?'

क्या कहा मर्द हूँ मैं ,  फौलादी छाती है ,
फिर मुझे रुलाई क्यों रह -रह कर आती है ?

इसलिये कि मैनें साथ सत्य का लिया सदा ,
पर पाया जग का सत्य सबल की माया है |
नैतिकता ताकत के पिंजड़े में पलती  है ,
आदर्श छलावे की सम्मोहक छाया है |

मैं बुद्ध गाँधी को पढ़ गलती कर बैठा
सोचा दरिद्र नारायण हैं ,पग पूजूंगा |
अपनी मछली वाली चट्टानी बाहों में ,
ले खड्ग सत्य का अनाचार से जूझूँगा |

थे कई साथ जो उठा बांह चिल्लाते थे ,
समता का सच्चा स्वर्ग धरा पर लाना है |
सोपान नये जय -यात्रा के रचने होंगें ,
गाँधी दर्शन का लक्ष्य मनुज को पाना है |

पर चिल्लाकर हो गया बन्द उन सबका मुख ,
इसलिये कि उनके मुंह को दूजा काम मिला |
हलवा -पूड़ी के बाद , पान से शोभित मुख ,
दैनिक पत्रों में छपा झूठ का नाम मिला |

वे कहते अब भारत से हटी गरीबी है ,
रंगीन चित्र अब अन्तरिक्ष से आयेंगें |
अब उदर -गुहा में दौड़ न पायेंगें चूहे ,
भू कक्षा में वे लम्बी दौड़ लगायेंगें |

वे कहते बहुतायत की आज समस्या है ,
भंडार न मिल पाते भरनें को अब अनाज |
सब भूमि -पुत्र लक्ष्मी -सुत बनकर फूल गये ,
दारिद्र्य अकड़ कर बैठ गया है पहन ताज |

छह एकड़ का आवास उन्हें अब भाता है ,
गृह- सज्जा लाखों की लकीर खा जाती है |
हरिजन -उद्धार मंच से अब भी होता है ,
हाँ बीच -बीच में अपच जँभाई आती है |

मैं आस -पास गिरते खण्डहर हूँ देख रहा ,
सैय्यद चाचा का कर्जा बढ़ता जाता है |
प्रहलाद शुकुल ने खेत लिख दिये मुखिया को ,
धनवानों का सूरज नित चढ़ता जाता है |

चतुरी की बेटी अभी व्याहनें को बैठी ,
पोखरमल के घर रोज कोकिला गाती है |
क्या कहा मर्द हूँ मैं फौलादी छाती है ,
फिर मुझे रुलाई क्यों रह -रहकर आती है |

कल के जो बन्धु -बान्धव थे ,थे सहकर्मी ,
सत्ता का देनें साथ द्रोण बन भटक गये |
है उदर -धर्म पर बिका धर्म मानवता का ,
सच्चाई के स्वर विवश गले में अटक गये  |

युग-  पार्थ मोह से ग्रस्त खड़ा है धर्म -क्षेत्र ,
है उसका क्या कर्तव्य न अब तक भान हुआ |
गाण्डीव शिथिल सो रहा पार्श्व में अलसाया ,
चुप है विवेक का कृष्ण न गीता ज्ञान हुआ |

ताली पर देकर ताल थिरकते हैं जनखे ,
सत्ता कीर्तन अब अमर काव्य कहलाता है |
भाषा भूसा बन गयी ,बीन भैंसें सुनतीं ,
हर क्षीण -वौर्य गजलें गा मन बहलाता है |

व्रण -युक्त देह सतरंगीं साड़ी से ढककर ,
कविता कामाक्षी कृमि बटोर कर लाती है |
क्या कहा मर्द हूँ मैं फौलादी छाती है ,
फिर मुझे रुलाई क्यों रह -रहकर आती है |


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